कहानी: आरव और सुमन का सफर
प्रारंभ
बादल जैसे फट चुके थे। आसमान मुसलसल गरज रहा था और बिजली लम्हा बलम्हा चमक रही थी, जैसे किसी अंदरूनी गुस्से का इजहार कर रही हो। सड़क पर गाड़ियां आहिस्ता-आहिस्ता रेंग रही थीं। कुछ लोग रास्ते के किनारे छुपने की जगह तलाश कर रहे थे। कुछ को यह बारिश बहुत भारी लग रही थी, खासतौर पर वो जो पैदल थे।
आरव की स्थिति
ऐसे ही हालात में एक चमकती हुई B1 MMW आराम से लेकिन तेज रफ्तारी से सड़क का सीना चीरती हुई गुजर रही थी। उसके अंदर बैठा शख्स भी उस तूफान जैसा ही था। खामोश, गहरी सोचों में गुम और अंदर ही अंदर बिफरा हुआ। उसका नाम था आरव मल्होत्रा। एक कामयाब बिजनेस टकून जिसने अपनी मेहनत और मेहनत से एक बहुत बड़ी कंपनी खड़ी की थी।
लेकिन आज वह शख्स जिसकी उंगली के इशारे पर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां चलती थीं, खुद टूटा हुआ था। दो तलाकें, अनगिनत अखबारी खबरें और एक दागदार झांती जिंदगी। यह सब उसकी खामोशी के पीछे छुपे तूफान का पता दे रहे थे। आज भी वह एक लंबी बोर्ड मीटिंग से लौटा था, जहां कंपनी के पीआर की बिगड़ती हुई साख पर बहस हो रही थी।
अचानक मुलाकात
लेकिन उसकी तवज्जो किसी और तरफ थी। उसका दिमाग बरसों पीछे चला गया था। किसी ऐसे लम्हे में जहां उसने कोई फैसला किया और फिर पलट कर कभी ना देखा। इतने में एक मोड़ पर गाड़ी जैसे खुद ब खुद रुक गई। आरव ने हल्का सा ब्रेक दबाया, लेकिन जैसे ब्रेक नहीं, किस्मत ने खींच लिया हो।
सड़क के किनारे एक औरत खड़ी थी। वह मुकम्मल भीगी हुई थी। उसके कपड़े जिस्म से चिपके हुए थे। चेहरे पर बारिश के कतरे मोतियों की तरह टपक रहे थे। उसके दोनों हाथों में दो नन्हे बच्चों के हाथ थे। एक जैसे कांपते हुए, नंगे पांव, भूखे और डरे हुए।
पुरानी यादें
आरव की सांस रुक गई। आंखें जैसे वक्त के पर्दे चीर कर किसी पुरानी याद को देखने लगीं। उसने शीशा नीचे किया। बारिश के कतरे उसके चेहरे पर पड़ने लगे। उसने धीरे से पुकारा, “सुमन?” औरत ने आहिस्तगी से सर उठाया। जैसे उस आवाज को पहचानने में उसे एक लम्हा लगा हो।
उसकी आंखें आरव से मिलीं। वही आंखें, जिन्हें बरसों पहले उसने देखकर नजर फेर ली थी। लेकिन अब वो आंखें वो नहीं थीं। उनमें गुस्सा, थकन और एक गहरा दर्द था। वो दर्द जो बरसों की तन्हाई और जद्दोजहद से आता है।
सुमन की बातें
“शुक्रिया,” सुमन बोली, उसकी आवाज में कोई लरजिश नहीं थी। सिर्फ सर्द महरी थी। “मेरी जिंदगी बर्बाद करने के लिए शुक्रिया आरव।” आरव के होंठ खुश हो गए। वो कुछ कहना चाहता था, मगर अल्फाज हलक में अटक गए। बारिश उसके चेहरे पर गिरती रही।
लेकिन अंदर का तूफान कहीं ज्यादा शदीद था। सुमन ने बच्चों के हाथ और सख्ती से थाम लिए। एक बच्चा खांसने लगा। दूसरा उसके कपड़ों से चिपक गया। आरव के दिल की धड़कन बेतरतीब हो गई। वह उन बच्चों को देख रहा था जैसे उनमें अपना कोई अक्स तलाश कर रहा हो।
गाड़ी में सफर
एक लम्हे में सब बदल गया। उसने फौरन दरवाजा खोला और आहिस्ता से कहा, “गाड़ी में आ जाओ, दोनों बच्चों के साथ फौरन।” सुमन ने नजरें झुकाई और फिर खामोशी से गाड़ी में बैठ गई। उसके चेहरे पर कोई उम्मीद ना थी। ना सवाल, ना वजाहत।
आरव ने गाड़ी की रफ्तार तेज की और उस लम्हे उसे सिर्फ एक ही चीज की फिक्र थी। यह सब कैसे हुआ और क्या वह इन बच्चों का बाप हो सकता है? लेकिन सच्चाई तो तभी सामने आती है जब दिल में एहसास जिंदा हो और आरव का दिल उस लम्हे पहली बार धड़का था।
अस्पताल में
गाड़ी अस्पताल पहुंचकर आरव ने फौरन गाड़ी से छलांग लगाई और अमले को आवाज दी। “दो बच्चों को फरी चेकअप की जरूरत है।” उसकी आवाज में एक बाप का इतराफ था जो उसे खुद भी महसूस नहीं हो रहा था।
सुमन खामोशी से बच्चों के साथ उतरी। कोई सवाल ना किया। कोई शिकवा ना किया। बस बच्चों को उठाकर अंदर ले गई। रिसेप्शन पर अमले ने फौरन इमरजेंसी वार्ड में बच्चों को मुंतकिल किया।
आरव बाहर इंतजार में खड़ा रहा और सुमन बारिश से भीगी कपकपाती हुई एक बेंच पर बैठ गई। उसकी आंखों में आंसू नहीं थे। सिर्फ एक अजीब सी पथरीली शबीह थी जैसे वह बरसों की थकन और तकलीफ को जज कर चुकी हो।
सुमन का सामना
आरव आहिस्ता-आहिस्ता उसके करीब आया। उसका दिल चाहा कि वह बैठे उससे माफी मांगे, सब कुछ समझाए। लेकिन वह खुद नहीं समझ पा रहा था कि कैसे बात शुरू करें। उसने हिम्मत की और बैठते हुए बोला, “मुझे वाकई कुछ नहीं मालूम था सुमन।”
सुमन ने हाथ उठाकर उसे खामोश कर दिया। “माफी उस वक्त मांगी जाती है जब इंसान को मालूम हो कि उसने क्या किया है। तुम्हें तो याद भी नहीं कि तुमने क्या बर्बाद किया।” आरव ने नजर झुका ली।
सुमन की यादें
“मैंने तुम्हें ढूंढा आरव, तुम्हारा पता, तुम्हारा नंबर, सब कुछ। लेकिन तुम तो जैसे जमीन निगल गई। जब मुझे पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं तो मैंने सिर्फ एक चीज चाही, तुम्हारे बच्चों को तुम्हारा नाम देना। लेकिन तुम कहां थे?”
आरव का गला खुश हो गया। वो वाकई उस लम्हे बेबस हो गया। इतने में एक नर्स कागजात का एक लिफाफा लेकर आई। “मिस्टर आरव, डॉक्टर आपसे बात करना चाहते हैं।”
आरव उठा। डॉक्टर के केबिन में गया। अंदर डॉक्टर ने बगैर किसी तमहीद के वह बात कही जिसने जमीन हिला दी। “डीएनए रिपोर्ट आ गई है सर। दोनों बच्चे आपके हैं। 100 फीस मैच।”
आरव का सदमा
आरव की टांगों से जान निकल गई। वो कुर्सी पर बैठने के बजाय फर्श पर ही धम्म से गिर गया। उसने दोनों हाथों से चेहरा ढांप लिया। आंखों से बेकाबू आंसू बहने लगे। बरसों की बेयकीनी, रिश्तों की शिकस्त और वह ताना जो हर बीवी ने दिया। “तुम में कमी है।” सब कुछ झूठ निकला।
वह बाप था और यह सच उसके वजूद में लरजा पैदा कर रहा था। जब वह बाहर निकला तो सुमन ने उसे देखा। आरव के चेहरे पर सदमा, खामोशी और पछतावे का एक तूफान था। वो खामोशी से उसके पास आया।
माफी की कोशिश
घुटनों के बल बैठा और सिर्फ इतना कहा, “मुझे माफ कर दो।” “प्लीज,” सुमन ने नजरें फेर दी। “यह माफी मेरे बच्चों के बुखार को नहीं उतार सकती। आरव, लेकिन शायद तुम्हारे दिल का बोझ हल्का कर दे।”
अस्पताल के हाल में वह लम्हा खामोश मगर भारी था। आरव मल्होत्रा, जो कल तक बिजनेस वर्ल्ड का शेयर समझा जाता था, आज अपनी असल से टकरा गया था। डॉक्टर के अल्फाज अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे। “दोनों बच्चे आपके हैं 100% मैच।”
सुमन की ताकत
यह जुमला जैसे किसी तूफान की गरज से ज्यादा जोर से उसके दिल पर लगा था। आरव बाहर निकला और जैसे ही सुमन की नजरें उससे टकराई, वह घुटनों के बल गिर पड़ा। पूरे अस्पताल का फर्श उसके आंसुओं से नम हो गया।
उसने अपना चेहरा हाथों से छुपा लिया और बेकाबू रोने लगा। वो रो रहा था जैसे बचपन में कभी किसी ने उसका खिलौना छीन लिया हो। जैसे बरसों के अंधेपन के बाद रोशनी उसकी आंखों को जला रही हो। “मेरे बच्चे!” वो दहाड़े मारता रहा। “मैं समझता रहा कि मैं कभी बाप बन ही नहीं सकता। और असल में मैं ही बाप था।”
सुमन की सहानुभूति
यह वही शख्स था जिसे उसकी दोनों बीवियों ने बांझ कहकर तलाक दी थी। उसके दोस्तों ने, मीडिया ने और यहां तक कि वह खुद भी इस लेबल को कबूल कर चुका था। लेकिन आज, आज सच्चाई उसके गुरूर को पाशपाश कर रही थी।
वो शख्स जिसके पास दौलत के अंबार थे, अपने ही बेटों को नहीं पहचान पाया। जिन्हें सड़क पर बारिश में भीगते देखा और अब पता चला कि वही तो उसकी नस्ल का चिराग है।
सुमन का साहस
सुमन ने उसे फर्श पर गिरा देखा। उसके चेहरे पर ना फक्र था, ना रहम। सिर्फ एक थकन थी। एक औरत की थकन जिसने जिंदगी को तन्हा काटा हो। हर दर पर गई हो। हर सवाल सहा हो। “उठो आरव। सड़क पर फेंक कर गए थे। अब फर्श पर पड़े हो। यही वक्त है आंखों से देखने का। जुबान से नहीं।”
आरव ने सर उठाया। आंखें लाल हो चुकी थीं। सांस बेतरतीब थी। वो सिर्फ इतना कह सका, “मैं, मैं नहीं जानता था सुमन। अगर जरा सा भी अंदाजा होता कि तुम मां बनने वाली हो, मैं कभी तुम्हें ना छोड़ता।”
सुमन की प्रतिक्रिया
सुमन ने एक ठंडी सांस ली। “अंदाजा तुम्हें याद है कि मैंने उस रात तुम्हें सहारा दिया। तुम्हें तुम्हारे फ्लैट तक लेकर आई। तुम्हें तुम्हारे बेड पर लिटाया? तुम नशे में थे। तुम्हें कुछ होश नहीं था और मैं बस तुम्हारी मदद कर रही थी। लेकिन तकदीर ने कुछ और लिख दिया था।”
आरव खामोशी से सुनता रहा। उसका दिल हर जुमले के साथ चुभता गया। “तुम गए और मैं वो लम्हा साथ लेकर रह गई। जब पता चला कि मैं हामिला हूं तो मैंने खुद को अस्पताल में अकेला पाया। बच्चों को जन्म दिया और खुद ही उन्हें गोद में लिया। किसी ने मेरा हाल तक नहीं पूछा।”
आरव का पछतावा
आरव का दिल जैसे मुट्ठी में आ गया। वो कुछ कहना चाहता था, लेकिन सुमन ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया। “अब यह सब सुनकर तुम्हें अफसोस हो रहा है। पछतावा?” हां, आरव की आवाज कांप रही थी। “मुझे नहीं मालूम था कि मेरे एक लम्हे की बेखबरी तुम्हें कितने बरसों की अजीयत दे गई।”
सुमन की हिम्मत
सुमन ने पहली बार उसकी तरफ देखा। आंखों में नमी थी, मगर अब कोई तल्खी नहीं थी। “बात अजीयत की नहीं आरव। बात यह है कि जब हम सच से मुंह मोड़ते हैं तो वह सच हमें कभी ना कभी घेर ही लेता है। तुम आज सच्चाई से नजरें चुरा नहीं सकते। यह बच्चे तुम्हारी हड्डियों का गोश्त हैं। तुम इंकार करो या ना करो। वो तुम्हारा अक्स लिए फिरते हैं।”
आरव ने सर झुका दिया। “मैं जानता हूं और अब मैं कुछ छुपाना नहीं चाहता। मैं चाहता हूं कि तुम मुझे एक मौका दो। बस एक।”
सुमन का निर्णय
सुमन ने कुर्सी से उठते हुए कहा, “मौका तब मिलता है जब वक्त जिंदा हो। तुम्हारा वक्त अभी बाकी है लेकिन मैं फैसला जल्दी नहीं करूंगी।” वो चल दी, नंगे पांव खामोश कदमों से और आरव वहीं बैठा रहा।
नरम रात की खामोशी में एक बाप, एक शौहर, एक इंसान की तरह जो पहली बार अपनी जिंदगी को समझने लगा था।
नई सुबह
अगली सुबह सूरज अपनी पूरी आब और ताब के साथ आसमान पर चमक रहा था। लेकिन हवेली के अंदर का माहौल अभी भी रात के सन्नाटे से आजाद नहीं हुआ था। आरव सुबह से जागा हुआ था। मगर उसने नीचे आने में देर लगाई।
उसके जहन में सुमन की बातें गूंज रही थीं। हर जुमला, हर इल्जाम, हर खामोश शिकवा जैसे दिल पर छुरी की तरह लगा था। नीचे बावर्ची खाने से बच्चों की हंसी की आवाज आ रही थी।
बच्चों की खुशी
यह पहला मौका था जब हवेली के इस किचन में कोई बच्चा कहखा लगा रहा था। आरव ने दबे कदमों नीचे का रुख किया। दरवाजे के पास पहुंचकर वह रुक गया। सुमन किचन में खड़ी थी। रोटी बना रही थी।
उसके बाल हल्के से बंधे हुए थे। चेहरा निखरा हुआ, मगर संजीदा। बच्चों ने मार्बल के काउंटर पर बैठकर अंडे और पराठे खाते हुए हंसी से मां को छेड़ा और सुमन ने हल्की सी मुस्कान से उन्हें चुप करवा दिया।
आरव का अहसास
यह बुरा मंजर सा आरव के लिए अजनबी था। लेकिन खूबसूरत, इतने बरसों से जो खला उसकी जिंदगी में रहा था। आज उसे एहसास हुआ कि वो सिर्फ जिस्मानी नहीं, जज्बाती था। वो एक बाप का किरदार कभी समझा ही नहीं था। शायद उसने मौका ही नहीं दिया।
किचन में दाखिल होकर वह आहिस्ता से बोला, “सुबह बखैर।” सुमन ने एक नजर उस पर डाली और फिर नजरें हटाकर बच्चों को कहा, “पहले खाना खत्म करो फिर बातें करना।”
शॉपिंग की योजना
आरव बच्चों के पास बैठ गया। दोनों ने मुस्कुरा कर देखा, लेकिन हिचक अभी बाकी थी। “आज एक काम करते हैं,” आरव ने नरमी से कहा। “शॉपिंग पर चलते हैं। तुम दोनों के कपड़े, किताबें, जूते सब कुछ खरीदेंगे।”
सुमन ने बगैर सर उठाए जवाब दिया, “हमें खैरात की आदत नहीं।” “यह खैरात नहीं सुमन, यह एक बाप का फर्ज है।” एक लम्हे के लिए खामोशी छा गई। बच्चों ने सुमन की तरफ देखा जैसे उन्हें शॉपिंग का मतलब मालूम हो और जैसे उन्हें जिंदगी में पहली बार कुछ नया मिलने वाला हो।
सुमन का सहमति
आखिरकार सुमन ने सर हिलाया। “ठीक है। लेकिन सिर्फ बच्चों के लिए, मेरे लिए कुछ नहीं चाहिए।” आरव ने मुस्कुरा कर कहा, “जैसे तुम कहो।” थोड़ी देर बाद वह सब शहर के सबसे बड़े शॉपिंग मॉल में दाखिल हुए।
मॉल की चमकती रोशनियां, रंग बिरंगे खिलौने, म्यूजिक की हल्की धुन, यह सब कुछ बच्चों के लिए किसी परियों की दुनिया से कम ना था। कभी वह जूतों की दुकान की तरफ दौड़ते, कभी स्कूल बैग की तरफ।
आरव का गर्व
एक ने स्पाइडरमैन का लंच बॉक्स पसंद किया। दूसरा बैटमैन की शर्ट। आरव उन्हें देखकर हंसता। उनकी पसंद से मुतासिर होता और पहली बार जिंदगी में उसे फक्र महसूस हो रहा था। बतौर बाप, सुमन, अलबत्ता खामोशी से उनके पीछे-पीछे चल रही थी।
उसे यह सब खवाब सा लग रहा था। कल तक जिन बच्चों के लिए उसके पास छतरी भी ना थी, आज वो एसी मॉल में खेल रहे थे। लेकिन उसके दिल में एक सवाल गूंज रहा था। “यह सब कब तक?”
सुतलाना का सामना
तभी उसकी नजरें एक औरत पर पड़ीं जो दूर से उन्हें तेज नजरों से घूर रही थी। वह एक बारिश में भीगी हुई नफरत की मानिंद थी। लबों पर मसनुई मुस्कान, आंखों में तंज। वो तेजी से करीब आई और आरव के कंधे पर हाथ रखा।
“अरे वाह आरव मल्होत्रा, नई बीवी या बस कोई शौक की चीज?” सुमन ने चौंक कर देखा। आरव के चेहरे का रंग यकदम बदल गया। “सुतलाना।” वो हल्के गुस्से से बोला, “यह सुमन है और मेरे बच्चों की मां है।”
सुतलाना की प्रतिक्रिया
बच्चे तुम्हारे वो कहखा मार कर हंसी। तुम तो बांझ थे ना? आरव ने फक्र से जुड़वाऊं बच्चों की तरफ इशारा किया जो अब खामोशी से सुमन के पीछे छुप रहे थे। “नहीं, सच कभी छुपा नहीं रहता। यह मेरे बच्चे हैं। और सुमन मेरी जिंदगी की सबसे सच्ची हकीकत।”
सुतलाना की मुस्कान मुरझा गई। वो कुछ बोले बगैर पलट गई और सुमन ने पहली बार आरव को देखा एक मुकम्मल बाप के रूप में।
सुमन की पहचान
शॉपिंग मॉल का यह दिल दहला देने वाला लम्हा ना सिर्फ सुमन को चौंकाने वाला था, बल्कि आरव के दिल में एक नया जख्म भी छोड़ गया। सुतलाना की जहरीली बातों के बाद माहौल जैसे एक लम्हे को जामिद हो गया। बच्चों के चेहरे सहम गए।
सुमन की पेशानी पर शिकनें नमूदार हुईं और आरव का चेहरा सख्त हो गया। आरव ने खामोशी से बच्चों को अपने करीब किया। “चलो अब चलते हैं।” उसकी आवाज में नरमी तो थी, मगर नीचे दबी हुई आग भी महसूस हो रही थी।
घर लौटना
रास्ते में सुमन खामोश थी। बच्चे थकन से आंखें मूंद रहे थे और आरव गाड़ी चलाते हुए वफेवफे से रियर व्यू मिरर में उन्हें देखता रहा। जो आज हुआ, आरव ने आहिस्ता से कहना शुरू किया। “उस पर शर्मिंदगीगी है मुझे। सुतलाना को वहां होना भी नहीं चाहिए था। वो मेरी मांझी की गलती है।”
सुमन ने सर झुकाया। कुछ लम्हे खामोश रही फिर बोली, “मैं तो बस सोच रही थी कि जब कल की हकीकतें दोबारा सामने आती हैं तो हम आज की सच्चाई को कैसे संभाल पाते हैं?”
आरव ने गहरी सांस ली। “मैं आज जो कुछ भी हूं उसमें सबसे बड़ा सच यही है कि मैं तुम्हारा और इन बच्चों का मुजरिम हूं। लेकिन मैं सिर्फ पछताने नहीं आया। मैं सब कुछ वापस जीतना चाहता हूं जो खो दिया था।”
सुमन की हिम्मत
सुमन ने हल्की आवाज में कहा, “याद रखो, एतबार खरीदने की चीज नहीं होता आरव और मैं खैरात के बदले रिश्ते नहीं निभाती।” गाड़ी हवेली के गेट पर रुकी। बच्चे सो चुके थे और नौकरानी उन्हें उठाकर ऊपर ले गई।
सुमन ने जैसे ही सीढ़ियां चढ़ने का इरादा किया, आरव ने उसे आवाज दी। “सुमन, जरा ठहरो।” उसने जेब से एक लिफाफा निकाला। उसकी तरफ बढ़ाया। “यह तुम्हारे लिए है।”
सुमन का आश्चर्य
सुमन ने हिचकिचाते हुए लिफाफा लिया। खोला और लम्हा भर के लिए सांस रोक गई। यह नर्सिंग स्कूल का एडमिशन लेटर था। उसका नाम साफ लिखा हुआ था। साथ में फीस की रसीद और यूनिफार्म की लिस्ट।
“तुम्हें कैसे पता?” उसने धीरे से पूछा। “मुझे हमेशा मालूम था तुम में कितना पोटेंशियल है। तुम सिर्फ मां नहीं हो। एक ख्वाब हो जिसे कभी किसी ने संजीदगी से देखा ही नहीं। अब देखने का वक्त मेरा है।”
नई शुरुआत
सुमन की आंखों में नमी उतर आई। लेकिन उसने कुछ ना कहा। उसी वक्त नीचे से शीशे के टूटने की आवाज आई। दोनों चौंक कर नीचे भागे। लाउंज की खिड़की टूट चुकी थी। गार्ड दौड़ते हुए आए। “सर, कोई अंदर घुसने की कोशिश कर रहा था।”
जब हम पहुंचे तब तक वह भाग चुका था। आरव ने फॉरेन सिक्योरिटी सिस्टम चेक किया लेकिन कोई कैमरा कुछ नहीं दिखा रहा था। सब कुछ अंधेरे में हुआ था। तभी गार्ड ने हाथ में एक अंगूठी थामे दिखाई।
खतरा
“यह मिली है सोफे के पास।” आरव ने अंगूठी को हाथ में लिया और उसी लम्हे उसका चेहरा जर्द पड़ गया। “यह मेरे भाई देवराज की अंगूठी है।” सुमन ने चौंक कर उसे देखा। “भाई? तुम्हारा भाई कहां से आ गया?”
आरव की आवाज में लरजिश थी। “वो बरसों पहले कारोबारी फ्रॉड के बाद खानदान से निकाला गया था। किसी को नहीं पता था वह कहां गया। अब तक सुमन ने सर पकड़ लिया। तो अब, अगर वह वापस आया है तो जरूर कोई मकसद है और वह मकसद खतरनाक हो सकता है।”
आरव का संकल्प
सुमन ने लज्जती आवाज में कहा, “तुम्हें लगता है यह सब हमारे लिए खतरा है, बच्चों के लिए?” आरव ने सादगी से मगर मजबूत लहजे में जवाब दिया, “मुझे शक नहीं, यकीन है।”
वो रात जो एक नरम तोहफा बन सकती थी, एक नए डर की दस्तक दे गई थी। हवेली की दीवारें साखित थीं, लेकिन फजहा में एक गैरमरी कशिश और कसावट तैर रही थी। खिड़की का शीशा टूटना, वह पुरानी सोने की अंगूठी और फिर देवराज का नाम।
तैयारी
यह सब कुछ सुमन के आसाब पर बिजली बनकर गिरा। आरव के चेहरे का रंग बदला हुआ था। उसकी आंखों में खौफ नहीं था, लेकिन एक गैर मामूली संजीदगी जरूर थी। जैसे वह जानता हो कि एक पुरानी आग दोबारा भड़कने वाली है।
यह अंगूठी मैं कभी नहीं भूल सकता। आरव ने आहिस्ता से कहा जैसे खुद से बात कर रहा हो। “यह देवराज के हाथ में हमेशा रहती थी। वो इस पर फक्र करता था जैसे ताज हो उसकी उंगली में।”
सुमन की चिंता
सुमन ने वह अंगूठी गौर से देखी। “तो तुम्हारा मतलब है वो यहां आया था हमारी मौजूदगी में?” “हां,” आरव का लहजा पुख्ता हो चुका था और यह महज धमकी नहीं, यह वार्निंग है।
फ्लैशबैक: देवराज, आरव का सौतेला भाई कभी इस खानदानी सल्तनत का इकलौता वारिस समझा जाता था। लेकिन बदमाली, नशे की लत और कारोबारी बदमलियों ने उसे खानदान से निकाल दिया।
जब बाप ने उसे जायदाद से बराबर का हिस्सा देने के बजाय इख्तियार आरव के हवाले किया, तब से देवराज गायब हो गया था। कुछ लोगों का कहना था वह मुल्क छोड़ चुका है। कुछ कहते थे वह जेल में है और बाकी उसे मरा हुआ समझ चुके थे।
आरव की रणनीति
लेकिन वह जिंदा था और वापस आ चुका था। हवेली में अब सिक्योरिटी का माहौल था। अगली सुबह आरव ने पूरे अमले को बुलाकर सख्त हिदायतें दीं। “अब से कोई बगैर इजाजत अंदर नहीं आएगा। मेन गेट के अलावा तमाम दाखिली रास्ते बंद कर दो। कैमरों की तादाद डबल करो और हर दरवाजे पर गार्ड।”
सुमन, जो अभी भी गुजस्ता रात की दहशत में थी, अपने बेटों को आंखों से ओझल नहीं होने दे रही थी। वो हर लम्हा उनके आसपास रहती। जैसे कोई गैर मरी खतरा दीवारों के पीछे सांस ले रहा हो।
सुमन की चिंता
दोनों बच्चे जाग चुके थे। एक ने मां का कंधा हिलाया और पूछा, “मां, क्या हम जन्नत में आ गए हैं?” सुमन ने हल्का सा मुस्कुराकर उसे अपने सीने से लगा लिया। “नहीं बेटा, यह जन्नत नहीं है। यह वो दुनिया है जहां ख्वाब बेचे जाते हैं।”
गाड़ी रुकी और आरव जल्दी से बाहर निकला। उसने दरवाजा खोला और बोला, “चलो अंदर आ जाओ। बारिश का पानी तुम्हारे जिस्म में ठंड पैदा कर देगा।”
सुमन की प्रतिक्रिया
सुमन खामोशी से बच्चों का हाथ थामे बाहर निकली। उसका दुपट्टा भीगा हुआ। पांव कीचड़ से भरे और कपड़े बदन से चिपके हुए थे। लेकिन उसके कदम में झिझक नहीं थी। वह सीधी खड़ी रही जैसे अंदर की टूटफूट को छुपाने के लिए उसने अपने वजूद को दीवार बना लिया हो।
अंदर दाखिल होते ही नौकर और मुलाजिमा दौड़ते हुए आगे बढ़े। एक नौकरानी तौलिया लेकर आई। दूसरी ने गर्म पानी का बोल देखा और बावर्ची ने किचन से झांक कर नजर डाली। सबकी नजरें सुमन और उसके बच्चों पर थीं।
आरव का आदेश
उनका हुलिया, उनका अंदाज, उनकी खामोशी सब कुछ अलग था और सब जानते थे कि यह कोई आम मेहमान नहीं। आरव ने संजीदगी से हिदायत दी। “बच्चों के लिए दो गेस्ट रूम तैयार करो और उनके सोने के कपड़े, जुराबें और कुछ गर्म दूध अभी लाओ।”
सुमन ने फ
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