कहानी: आरव का हृदयस्पर्शी कार्य

परिचय

दोस्तों, आज मैं आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहा हूं जो कोई फिल्मी कहानी नहीं है, बल्कि एक सच्ची घटना है। यह कहानी है एक 10 साल के मासूम हीरो की, जिसने हमें सिखाया कि इंसानियत और दयालुता की कोई उम्र नहीं होती। यह कहानी है आरव की, जिसने अपनी छोटी सी दुनिया में एक ऐसा काम किया जो हम बड़े-बड़े लोग भी सोचने से हिचकिचाते हैं। इस कहानी को अंत तक जरूर पढ़िएगा क्योंकि यह आपकी आंखों में आंसू भी लाएगी और आपके दिल में उम्मीद की एक नई लौ भी जलाएगी।

आरव का परिचय

यह कहानी दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय परिवार में रहने वाले 10 साल के आरव की है। आरव थोड़ा नटखट, थोड़ा चंचल और अपनी ही दुनिया में मग्न रहने वाला बच्चा था। उसे क्रिकेट खेलना पसंद था, वीडियो गेम्स का शौक था और अपने दोस्तों के साथ गलियों में दौड़ लगाना उसका रोज का काम था। उसके माता-पिता, श्रीमान विकास और श्रीमती सीमा ने उसे हमेशा अच्छी परवरिश और संस्कार दिए थे। उन्होंने उसे सिखाया था कि कभी किसी चीज की बर्बादी नहीं करनी चाहिए और हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए।

एक गर्मी की शाम

इस कहानी की शुरुआत एक आम सी गर्मी की शाम को हुई। आरव अपने पापा के साथ स्कूटर पर बैठकर बाजार से घर लौट रहा था। रास्ते में एक ट्रैफिक सिग्नल पर वे रुके। पास में एक मिठाई की दुकान थी, जहां से समोसों की महक आ रही थी। आरव ने जिद की और विकास जी ने उसे एक गरमागरम समोसा खरीद दिया। आरव बड़े चाव से समोसा खा ही रहा था कि उसकी नजर सिग्नल पर भीख मांग रहे दो छोटे बच्चों पर पड़ी। एक लड़का और एक लड़की, दोनों की उम्र 6 से 7 साल रही होगी।

उनके कपड़े फटे हुए थे, बाल बिखरे थे और चेहरे पर कई दिनों की भूख और थकान साफ झलक रही थी। उनकी नजरें आरव के हाथ में मौजूद समोसे पर टिकी थी। उनकी आंखों में एक अजीब सी ललक थी, एक ऐसी तड़प जिसे आरव ने पहले कभी महसूस नहीं किया था। उसने एक पल के लिए अपनी आंखें उन बच्चों की आंखों से मिलाई। उन नन्ही आंखों में सवाल थे, मजबूरी थी और एक गहरी उदासी थी।

आरव का निर्णय

आरव का हाथ वहीं रुक गया। जिस समोसे का स्वाद उसे इतना अच्छा लग रहा था, वह अचानक उसके गले में अटकने लगा। ग्रीन लाइट हो गई और पापा ने स्कूटर आगे बढ़ा दिया। लेकिन आरव का मन वहीं सिग्नल पर उन दो भूखे बच्चों के पास ही रह गया। घर आकर भी वह चुपचाप था। मां ने खाना परोसा, उसकी पसंदीदा आलू की सब्जी बनी थी, पर आरव ने सिर्फ दो निवाले खाए और उठ गया।

मां ने पूछा, “क्या हुआ बेटा? तबीयत ठीक है?” आरव ने बस सिर हिला दिया और अपने कमरे में चला गया। उस रात उसे नींद नहीं आई। बार-बार उन बच्चों का भूखा चेहरा उसकी आंखों के सामने घूम रहा था। उसे पहली बार एहसास हुआ कि जिस खाने को वह कभी-कभी नखरे दिखाकर छोड़ देता, उस खाने के एक निवाले के लिए भी कोई तरस सकता है।

आरव का बदलाव

अगले दिन से आरव में एक अजीब सा बदलाव आने लगा। उसे हर महीने ₹500 पॉकेट मनी मिलती थी, जिससे वह अपनी पसंद की कॉमिक्स, चॉकलेट्स और खिलौने खरीदता था। लेकिन इस बार उसने कुछ नहीं खरीदा। उसने अपनी मां से कहा कि उसे इस महीने कुछ नहीं चाहिए। उसने अपने सारे पैसे अपनी गुल्लक (पिग्गी बैंक) में डाल दिए। अब यह उसका रोज का नियम बन गया।

स्कूल से आते-जाते बाजार में उसे जहां भी कोई भूखा बच्चा या जरूरतमंद दिखता, वह एक पल के लिए रुक जाता। उसके छोटे से दिल में एक बड़ी सी आग जलने लगी, कुछ करने की आग। उसने एक योजना बनाई। उसने अपनी पॉकेट मनी बचाना शुरू कर दिया। उसने अपने दोस्तों के साथ बाहर कोल्ड ड्रिंक पीना बंद कर दिया और अपनी पसंदीदा आइसक्रीम खानी छोड़ दी। हर एक रुपया जो वह बचाता, सीधा उसकी गुल्लक में जाता।

उसके माता-पिता ने यह बदलाव देखा, पर उन्होंने सोचा कि शायद आरव किसी बड़े खिलौने के लिए पैसे जोड़ रहा है। एक महीना बीत गया। आरव ने अपनी गुल्लक तोड़ी। उसमें करीब ₹700 जमा हो चुके थे। उन पैसों को हाथ में लेकर उसकी आंखों में एक चमक थी, जैसे उसे कोई खजाना मिल गया हो।

आरव का मिशन

वह चुपचाप घर के पास वाली बेकरी में गया और उन सारे पैसों से बिस्किट्स के ढेर सारे पैकेट खरीद लिए। उसने बिस्किट्स को अपने स्कूल बैग में छिपा दिया। अब उसका एक नया मिशन शुरू हुआ। हर दिन स्कूल से लौटते समय वह उसी सिग्नल पर उतर जाता। वह उन बच्चों को ढूंढता और चुपके से उन्हें बिस्किट के पैकेट दे देता।

शुरुआत में बच्चे उससे डरते थे, हिचकिचाते थे। लेकिन जब उन्होंने आरव की आंखों में अपने लिए सच्ची परवाह देखी, तो वे मुस्कुराकर पैकेट ले लेते। उन बच्चों के चेहरे पर वह छोटी सी मुस्कान देखकर आरव को इतनी खुशी मिलती थी जो उसे दुनिया के किसी भी खिलौने या वीडियो गेम से नहीं मिली थी।

अब यह सिर्फ उन दो बच्चों तक सीमित नहीं रहा। आरव को जहां भी कोई भूखा बच्चा दिखता, वह अपने बैग से बिस्किट निकालकर उसे दे देता। वो बच्चे उसे पहचानने लगे थे। उसे दूर से देखते ही उनके चेहरे खिल उठते और वे दौड़कर उसके पास आ जाते। वह अब उनके लिए सिर्फ एक लड़का नहीं बल्कि “बिस्किट वाला भैया” बन गया था।

कठिनाई का सामना

लेकिन यह सब ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। आरव की बचाई हुई पॉकेट मनी जल्द ही खत्म हो गई। अब उसके पास बच्चों को देने के लिए कुछ नहीं था। अगले दो-तीन दिन वह खाली हाथ उन बच्चों के सामने से गुजरा। बच्चे उसे उम्मीद से देखते पर उसका खाली बैग देखकर मायूस हो जाते। आरव के लिए यह देखना किसी सजा से कम नहीं था। वह घर आकर चुपचाप रोता।

उसे अपनी लाचारी पर गुस्सा आ रहा था। एक रात जब वह अपने कमरे में उदास बैठा था, उसकी मां उसके पास आई। उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरा और प्यार से पूछा, “क्या बात है? मेरे बच्चे, मैं कुछ दिनों से देख रही हूं, तुम बहुत परेशान हो। ना खेलते हो, ना कुछ खाते हो। मुझे बताओ क्या हुआ?” आरव खुद को रोक नहीं पाया और मां के गले लगकर फफक कर रो पड़ा।

मां का समर्थन

उसने रोते-रोते अपनी मां को सब कुछ बता दिया। कैसे उसने उन भूखे बच्चों को देखा, कैसे उसने पैसे बचाए, कैसे वह उन्हें बिस्किट देता था और अब कैसे उसे पैसे खत्म हो गए हैं। सीमा जी की आंखों में आंसू आ गए। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनका 10 साल का बेटा इतना बड़ा और नेक काम कर रहा था और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी।

उन्हें अपने बेटे पर गर्व महसूस हुआ। उन्होंने आरव को सीने से लगा लिया और कहा, “मेरे हीरो, इसमें रोने की क्या बात है? तुमने जो किया है वह बहुत बड़ा काम है और तुम यह काम अकेले क्यों कर रहे हो? हम भी तुम्हारे साथ हैं।” उसी समय आरव के पापा भी कमरे में आ गए। उन्होंने सारी बात सुनी। उनकी भी आंखें नम हो गईं।

उन्होंने आरव को अपनी गोद में उठा लिया और कहा, “बेटा, अच्छाई कभी अकेले नहीं की जाती। अच्छाई तो फैलने के लिए होती है। तुमने एक चिंगारी जलाई है। अब इसे आग बनाना हम सबका काम है।”

नया अभियान

उस दिन के बाद सब कुछ बदल गया। अगले दिन रविवार था। आरव के माता-पिता सुबह जल्दी उठे। उन्होंने सिर्फ बिस्किट नहीं बल्कि घर पर ताजा खाना बनाने का फैसला किया। उन्होंने 20 से 25 लोगों के लिए पूरी, सब्जी और हलवा बनाया। उन्होंने खाने को पैकेट में पैक किया और आरव को साथ लेकर उसी सिग्नल पर पहुंचे।

आरव ने जब उन बच्चों को अपने हाथ से खाने के पैकेट दिए तो उनकी आंखों में जो चमक और खुशी थी, वह अनमोल थी। उन्होंने सिर्फ खाना नहीं खाया बल्कि पेट भरकर दुआएं भी दी। यह खबर धीरे-धीरे फैली। आरव के पापा ने अपने दोस्तों और ऑफिस के सहकर्मियों को इस बारे में बताया। आरव की मां ने अपनी सहेलियों और पड़ोसियों से बात की।

हर कोई इस नन्हे हीरो की कहानी सुनकर हैरान था और मदद के लिए आगे आना चाहता था। देखते ही देखते आरव का छोटा सा मिशन एक बड़े अभियान में बदल गया। अब हर रविवार को आरव के घर के बाहर लोग इकट्ठा होते। कोई राशन लेकर आता, कोई पैसे देता और कुछ लोग खाना बनाने और बांटने में मदद करते।

आरव और उसके दोस्त मिलकर खाने के पैकेट तैयार करते और पास की झुग्गी बस्तियों और सिग्नल्स पर जाकर जरूरतमंद बच्चों और लोगों में बांटते। उस छोटी सी पहल का नाम पड़ गया “आरव की रसोई”। एक 10 साल के बच्चे के दिल में जली एक छोटी सी चिंगारी ने आज एक ऐसी मशाल का रूप ले लिया है जो भूखे पेट की आग बुझा रही थी।

प्रेरणा का स्रोत

आरव ने दुनिया को दिखा दिया कि मदद करने के लिए आपको अमीर होने की जरूरत नहीं है। आपके पास बस एक संवेदनशील दिल और कुछ करने का जज्बा होना चाहिए। दोस्तों, यह थी आरव की कहानी। एक ऐसा हीरो जिसके पास कोई सुपर पावर नहीं थी, सिवाय दया और करुणा के। आज भी आरव की रसोई चल रही है और ना जाने कितने लोगों के लिए उम्मीद का जरिया बनी हुई है।

यह कहानी हमें सिखाती है कि हम सब अपनी-अपनी छोटी सी दुनिया में एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं। बस जरूरत है अपने अंदर के आरव को जगाने की। अगर इस कहानी ने आपके दिल को छुआ हो तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि आरव की यह प्रेरणादायक कहानी हर किसी तक पहुंचे। शायद इसे देखकर किसी और के दिल में भी अच्छाई का एक बीज अंकुरित हो जाए।

आप आरव के बारे में क्या सोचते हैं? कमेंट्स में जरूर बताइएगा और चैनल को लाइक सब्सक्राइब जरूर करें। धन्यवाद।