कहानी: इंसानियत का सफर

प्रस्तावना

दोस्तों, आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूं जो सिर्फ एक पुलिस वाले की नहीं, बल्कि उस हर ताकतवर की है जिसने कभी कमजोर की फरियाद को रौंद कर खुद को कानून समझ लिया। यह कहानी है गुरूर के एक बुत की, जो एक यतीम बच्चे की खामोश नजरों को भी ना झेल सका।

प्रवीण शर्मा की कहानी

कहानी एक छोटे से कस्बे की है, जहां एक वर्दी वाला शख्स इंसाफ के नाम पर जुल्म बांटता था। उसका नाम था प्रवीण शर्मा। पुलिस की वर्दी में मलबूस यह शख्स जब बाजार से गुजरता तो लोग सहम जाते। बच्चों को मां-बाप समझाते, “खामोश रहो वरना प्रवीण आ जाएगा।” वह महज एक अफसर नहीं था, बल्कि एक डर का निशान बन चुका था। उसकी आंखों में ऐसी सख्ती थी जो इंसान के अंदर छुपी हर कमजोरी को बेनकाब कर देती थी।

प्रवीण के बारे में मशहूर था कि वह इंसाफ के नाम पर बस अपनी अना की तस्कीन करता है। वह खुद को कानून का देवता समझता था। अगर कोई गलती करे या ना करे, प्रवीण का गुस्सा उस पर उतर ही जाता। उसकी वर्दी उसे इख्तियार देती थी और इख्तियार उसे तकुर में बदल देता।

फराज का संघर्ष

कस्बे के एक कोने में एक यतीम बच्चा फराज रहता था। महज 11 बरस का, लेकिन उसकी आंखों में उम्र से बड़ी संजीदगी थी। फराज के मां-बाप बचपन में ही वफात पा चुके थे और अब दादी ही उसका कुल कायनात थीं। दादी, जिसे सब आमना भी कहकर पुकारते थे, कमजोर थी लेकिन उनकी जुबान से दुआ कभी बंद नहीं होती थी।

फराज हर सुबह सूरज निकलने से पहले एक पुरानी टोकरा कमर पर लादकर कचरे की तलाश में निकल पड़ता। वह प्लास्टिक, कागज, लोहा जो कुछ भी बिकता हो, उसे जमा करके एक पुरानी दुकान पर बेचता। जो पैसे मिलते, उनसे दादी की दवा आती, थोड़ा सा आटा और कभी-कभार एक-दो फल।

प्रवीण और फराज की पहली मुलाकात

एक दिन, फराज जब बोझ से भरी बोरी उठाए एक सड़क पार कर रहा था, तभी प्रवीण अपनी जीप में आता दिखाई दिया। प्रवीण ने गाड़ी रोक दी और नीचे उतरकर बोला, “ओए, यह क्या उठाकर फिर रहा है?”

फराज ने कहा, “साहब, दादी बीमार है। दवा लानी है। यह बेचकर पैसे मिलते हैं।” प्रवीण ने तंजिया मुस्कुराहट के साथ फराज की बोरी छीन ली और उसे नाली में फेंक दिया।

फराज के जिस्म से आवाज नहीं निकली, मगर उसकी आंखों ने बोलना शुरू कर दिया। “साहब, मेरी दादी दवा के बिना मर जाएंगी।” लेकिन प्रवीण का दिल जरा भी नरम नहीं हुआ। उसने गुस्से से कहा, “निकल जा यहां से। गंदगी फैलाते हो और फिर रहम की बात करते हो।”

फराज का दर्द

फराज का जिस्म धजके से लड़खड़ा गया। उसने खुद को संभाला और नाली के किनारे बैठा अपनी बोरी को देखता रहा। उसका सरमाया, उसकी मेहनत, सब खत्म हो चुका था। घर पहुंचकर जब दादी ने दरवाजा खोला तो फराज की आंखों में खामोश सी नमी देखकर सब समझ गईं।

फराज ने झुक कर कहा, “प्रवीण साहब ने सब फेंक दिया नाली में। दादी, दवा नहीं आ सकेगी।” आमना बी ने कहा, “बेटा, अल्लाह सब देखता है। वह किसी का हक छाया नहीं होने देता। सब्र करो।”

प्रवीण का आत्मचिंतन

रात के सन्नाटे में, प्रवीण अकेला अपने घर के डाइनिंग टेबल पर बैठा था। उसने एक निवाला उठाया ही था कि पेट में एक हल्की सी जलन महसूस हुई। लम्हा यह जलन बढ़ने लगी। पहले खफीफ सा दर्द फिर हल्की सोजिश।

प्रवीण बमुश्किल उठा और आईने के सामने खड़ा हुआ। जैसे ही उसने अपना पेट देखा, उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। वह फौरन पीछे हटा और दीवार के साथ टेक लगाकर बैठ गया।

फराज की दुआ

वहीं, फराज की दुआ उसके दिल में गूंजने लगी। “हम शिकायत नहीं करते। दादी कहती हैं जो तकलीफ दे, उसके लिए दुआ करो।” यह सुनकर प्रवीण का दिल कांप गया।

उसने खुद से सवाल किया, “क्या यह सब उस लड़के की बद्दुआ है?” उसकी आंखों के सामने फराज का खामोश चेहरा घूमने लगा। प्रवीण ने महसूस किया कि शायद उसने कुछ गलत किया है और इस बार गलती का जवाब उसकी झा को दिया जा रहा है।

प्रवीण का बदलाव

प्रवीण ने अपने दिल में एक ख्याल रखा। उसने तय किया कि वह फराज और उसकी दादी से माफी मांगेगा। अगले दिन, प्रवीण ने वर्दी नहीं पहनी। उसने एक छोटा सा थैला उठाया जिसमें उसने दवा और कुछ फल रखे।

जब वह फराज और आमना बी के घर पहुंचा, तो आमना बी ने दरवाजा खोला। प्रवीण ने कहा, “बीबी जी, मैं आज वर्दी में नहीं आया क्योंकि मैं वही इंसान नहीं रहा जो कल था। मैं उस दिन का हिसाब लेकर नहीं, उस दिन की माफी मांगने आया हूं।”

फराज का माफ करना

फराज ने प्रवीण के हाथ से थैला ले लिया और सर हिला दिया। प्रवीण की आंखों में नमी आ गई। “तुमने मुझे माफ कर दिया?” उसकी आवाज कांप रही थी।

फराज ने नरम लहजे में कहा, “दादी कहती हैं जो दिल से माफी मांगे, उसको इंकार नहीं करना चाहिए।” यह सुनकर प्रवीण का दिल हिल गया।

नई शुरुआत

फहद ने अपनी पहचान को बदलने का फैसला किया। उसने फराज और उसकी दादी की मदद करने का संकल्प लिया। वह मोहल्ले में बच्चों को पढ़ाने लगा, यतीमों की कफालत करने लगा और जरूरतमंदों की मदद करने लगा।

निष्कर्ष

फहद ने अपनी जिंदगी को एक नई दिशा दी। उसने सीखा कि इंसानियत का असली मतलब क्या होता है। फराज और आमना बी ने उसे वह रास्ता दिखाया जो उसके रब की तरफ जाता है।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चे दिल से की गई तौबा कभी बेकार नहीं जाती। जब इंसान सच्चे दिल से बदलने का फैसला कर ले, तो रब उसे रुसवा नहीं करता, बल्कि उसे उस मकाम पर ले आता है जहां लोग उसे मोहब्बत से याद करते हैं।

फहद की कहानी यह बताती है कि इंसानियत की रोशनी हर अंधेरे को खत्म कर सकती है। इस तरह, एक व्यक्ति का बदलाव न केवल उसके लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक नई उम्मीद बन सकता है।