कहानी: “एक घर, एक मकान और एक सबक”
मां-बाप का दिल जीत कर जो घर बनता है, वहीं सच्चा घर कहलाता है। आधुनिक दौड़ती-भागती जिंदगी में अक्सर लोग मकान बनाने में इतना मशगूल हो जाते हैं कि अनजाने में अपना घर ही उजाड़ बैठते हैं। ऐसी ही कड़वी हकीकत से गुजरते हैं हमारे इस किस्से के नायक राकेश, जिसने सुविधाओं की चकाचौंध में अपने पिता को बोझ समझ लिया…
सुख सुविधाओं की दुनिया
राकेश नोएडा के एक आलीशान फ्लैट में, अपनी सुंदर पत्नी सुनीता और दो प्यारे बच्चों के साथ रहता था। मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर पोस्ट, बड़ी गाड़ी, तनख्वाह शानदार — उसकी दुनिया में सबकुछ था जो मिडिल क्लास का हर शख्स चाहता है। लेकिन इस तस्वीर में एक किरकिरी थी — 75 साल के बीमार, अकेले पड़े पिता, श्री हरिनारायण शर्मा।
पिता जो ज़िंदगीभर बेटे की खुशियों के लिए फिक्र करते रहे, अब बेटे की बड़ी दुनिया में फ़ीट नहीं होते थे। पिताजी की दवाइयां, उनकी पुरानी आदतें, उनकी खांसी… राकेश और सुनीता को घर का माहौल बोझिल लगने लगा।
एक फैसला, एक अपराध
राकेश के मन में धीरे-धीरे पत्नी की बातें जहर घोल देती हैं — “पिताजी की वजह से बच्चे टीवी भी ठीक से नहीं देख पाते… क्यों न इन्हें वृद्धाश्रम भेज दें?” और एक दिन वो “फैसला” हो ही गया। राकेश ने वेरी फॉर्मल, बिना भावुक हुए पिता को वृद्धाश्रम ले जाने का निर्णय लिया। मिठी बातें बनाईं — “पापा, आपके लिए बेस्ट देखभाल मिलेगी… आपके जैसे ही और दोस्त मिलेंगे…”
श्री हरिनारायण जी सुनते रहे, मुस्कुराते रहे। उन्हें क्या पता था कि ये एक बेटे के प्यार की विदाई नहीं, तिरस्कार की शुरुआत है। वृद्धाश्रम के गेट पर उतरते वक्त एक बार कांपती आवाज में पूछा — “बेटा, कब आओगे मिलने?” जवाब मिला, “आता रहूंगा, पापा।” गाड़ी स्टार्ट हुई और पीछे एक बूढ़े पिता गेट के पार अकेले छूट गए।
खुदगर्जी की पार्टी
राकेश और सुनीता को लगा सिर का भारी बोझ उतर गया। उसी रात उन्होंने घर में पार्टी रखी, दोस्तों को बुलाया, शराब–संगीत–हंसना–ठहाके… सब कुछ था, बस घर के एक पुराने सदस्य का नाम, याद, जिक्र कहीं नहीं था।
वृद्धाश्रम की सुबह, एक पहचान
वृद्धाश्रम में अगली सुबह एक और कहानी करवट ले रही थी। वहां के मालिक श्री आनंद कुमार रोज़ की तरह नए सदस्य से मिलने पहुंचे। चेहरा देखते ही चौंक गए— “बाबूजी, आप अपने गांव के उसी स्कूल के मास्टर जी हैं na? हरिनारायण शर्मा?”
हरिनारायण की आंखें डबडबा गईं — “हां बेटा… पर तुम कौन?” आनंद कुमार फूट पड़े— “गुरु जी, मैं आनंद… वही अनाथ बच्चा जिसे आपने मुफ़्त पढ़ाया, दुलार दिया, अपने बेटे सा माना। आपकी बदौलत ही मैं बड़ा आदमी बना। आप ही के आशीर्वाद से आज यहां तक पहुंचा हूं।”
पुराना ऋण, नई चुकता
आनंद को जब पता चला कि जिस बेटे के लिए गुरु जी ने अपना सब दिया, उसी बेटे ने उन्हें यहाँ लाकर छोड़ दिया? उनका दिल कांप उठा।
फिर आनंद ने पूछा — “राकेश के बेटे…?” गुरूजी बोले,” हाँ।” अब आनंद तिलमिला उठा। उन्होंने अगले ही दिन राकेश के घर दस्तक दी।
असली मालिक, असली हक
राकेश ने दरवाजा खोला। सामने आनंद, “मैं शांति कुंज वृद्धाश्रम का मालिक हूँ… जहां कल अपने पिता को छोड़ आए हो।” राकेश हड़बड़ा गया। आनंद ने शांत पर तल्खी भरे स्वर में कहा, “शायद तुम नहीं जानते, जिस कंपनी में नौकरी है, जिस फ्लैट में रहते हो, ये बिल्डिंग–गाड़ी — सब मेरी है। और, तुम्हारे पिता मेरे गुरु हैं — मेरी असली सफलता का कारण। तुम्हारे लिए बस दो रास्ते हैं: या अभी अपने पिता को सम्मान सहित घर लाओ, या सब कुछ छोड़ दो।”
लज्जा, पछतावा, माफी
राकेश व सुनीता को जैसे पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई। वे भागते हुए वृद्धाश्रम पहुँचे, पापा के चरणों में गिर पड़े, माफी मांगी। पिता ने भर्राए गले से आशीर्वाद दिया — “बेटा, मां-बाप नाराज़ हो सकते हैं, पर बूढ़े दिल जल्द पिघल जाते हैं…”
नया घर — सचमुच घर
उस दिन के बाद राकेश बदल चुका था। अब पार्टी, बड़ी बातें, मैनिजर वाली अकड़ नहीं; अब घर में सुबह की शुरुआत पिता जी की चाय, उनकी दवा, पुराने दिनों की बातों और उस सीख के साथ होती— “मां-बाप की दुआ अनमोल होती है। अगर मन से घर में रखो, तो ही ईंट-पत्थर का मकान, पीढ़ियों का घर बनता है।”
आनंद अब अक्सर गुरु जी से मिलने आते, राकेश के लिए बड़े भाई–सा। इस सबक के आगे सारे ऐश–ओ–आराम भी छोटे पड़ जाते हैं।
संदेश
इस कहानी से सीखें — घर वो है, जहां मां-बाप के संस्कार और दुआएं हों, न कि सिर्फ सजावट और सुविधा। जिन्होंने अपनी खुशियों का त्याग हमारी खुशियों के लिए किया, उन्हें बुढ़ापे में ठुकरा दें, तो ये जीवन की सबसे बड़ी नासमझी है।
कभी ये मत भूलो — मां-बाप का साथ है असली दौलत। अगर कहानी ने दिल छू लिया — लाइक करें और साझा करें, ताकि औरों तक भी ये सच्ची सीख पहुंचे।
– समाप्त –
News
कहानी: “डीएम की ठेली”
कहानी: “डीएम की ठेली” शहर की सुबह थी। हल्की धूप सड़क को सुनहरा बना रही थी। आये दिन की तरह…
कहानी: “खाकी के खिलाफ”
कहानी: “खाकी के खिलाफ” मेजर विक्रम चौधरी भारतीय सेना में चार साल की लंबी ड्यूटी के बाद पहली बार अपने…
बारिश की वो रात: दया की छोटी सी रौशनी
बारिश की वो रात: दया की छोटी सी रौशनी मुंबई की उस बरसाती रात में आधी दुनिया अपने घरों में…
एक मां, एक बलिदान: सावित्री देवी की प्रेरणादायक कहानी
एक मां, एक बलिदान: सावित्री देवी की प्रेरणादायक कहानी एक मां का दिल कितना मजबूत होता है? क्या वह अपने…
The Tragic Tale of Richa Sharma: Sanjay Dutt’s First Wife and the Forgotten Star
The Tragic Tale of Richa Sharma: Sanjay Dutt’s First Wife and the Forgotten Star The glamorous world of Bollywood is…
Inside the Tumultuous Life of Faisal Khan: Mental Health Allegations, Family Rift, and the Struggle for Independence
Inside the Tumultuous Life of Faisal Khan: Mental Health Allegations, Family Rift, and the Struggle for Independence Introduction Bollywood is…
End of content
No more pages to load