कहानी: “एक साधारण बुजुर्ग या असली मालिक?”

सुबह के 11 बजे थे। शहर के एक बड़े बैंक का माहौल आम दिनों जैसा ही था। तभी दरवाजे से अंदर प्रवेश करते हैं – सफेद कपड़ों में सजे-धजे, एक छड़ी और एक पुराना लिफाफा हाथ में पकड़े एक बुजुर्ग – हरपाल सिंह। उनके चेहरे पर मासूमियत, चाल में धीमापन, लेकिन आँखों में गहरी चमक थी।

जैसे ही वो बैंक में दाखिल हुए, वहाँ के ग्राहकों और कर्मचारियों की नजरें सीधे उन पर टिक गईं। किसी के चेहरे पर हैरानी तो किसी के मन में संदेह – क्या यह व्यक्ति भीख मांगने आया है? बेलौस कपड़े, सादा ढंग – पैसे वाले बैंक के भीतर ऐसे कैसे?

हरपाल सिंह सीधा ग्राहक सेवा काउंटर पर जाती हैं जहाँ बैठी थी संगीता। संगीता उन्हें ऊपर से नीचे देखती है और थोड़ा तिरस्कार भरी आवाज़ में पूछती है – “बाबा, कहीं आप गलत बैंक में तो नहीं आ गए?” हरपाल जी विनम्रता से जवाब देते, “बेटी, एक बार देख तो लो, हो सकता है मेरा खाता यहीं हो।” संगीता लिफाफा लेती है, अनमने मन से कागज़ देखते हुए बोलती—“लगता है आपको वेट करना होगा। मैं देखती हूँ।”

अब बुजुर्ग को किनारे बैठा दिया जाता है। वहाँ बैठे अन्य लोग तरह-तरह की चर्चा करने लगते—“ऐसा आदमी इस बैंक में? अकाउंट तो बड़े लोगों के हैं!” हरपाल सिंह चुपचाप कोने की चेयर पर बैठकर इंतजार करते हैं। ग्राहक और कर्मचारी अब उनकी स्थिति का मजाक बना रहे हैं।

तभी, बैंक का एक स्टाफ—पवन—फिर लौटता है। वह देखता है कि सभी बुजुर्ग की तरफ देख रहे हैं और किसी को भी उसकी हालत पर तरस नहीं आ रहा। पवन गहरी संवेदनशीलता के साथ बुजुर्ग के पास जाता है और पूछता, “बाबा, आपको किससे मिलना है?” हरपाल सिंह उजले मन से कहते, “बेटा, मैनेजर से काम है।”

पवन बैंक मैनेजर के केबिन में पहुंचता है और सारी बात बताता है। लेकिन मैनेजर बिना संवेदनशीलता—केवल बाहरी हालत देखकर—बुजुर्ग को लौटाने की सोचता है, “ऐसे लोग तो रोज आते हैं, समय खराब करते हैं!”

एक घंटा गुजर जाता है। हरपाल सिंह अब और इंतजार नहीं कर पाते और मैनेजर से मिलने खुद पहुँच जाते हैं। मैनेजर उनकी बात बिना ठीक से सुने कह देता है, “बाबा, अकाउंट में पैसे नहीं होंगे तो ट्रांजैक्शन तो रुकी जाएगी!” हरपाल सिंह कहते, “बेटा, पहले चेक तो कर लो।” मैनेजर हँसते हुए, “इतने सालों से देख रहा हूँ, शक्ल देखकर भी बता सकता हूँ किसके अकाउंट में क्या है!”

आहत होकर, बुजुर्ग अपने लिफाफे में दी डिटेल मैनेजर की टेबल पर छोड़ बैंक से बाहर निकल जाते हैं। जाते-जाते वे कहते हैं, “बेटा, इसका नतीजा ज़रूर भुगतना पड़ेगा।”

मैनेजर आदतन उस बात को हवा में उड़ा देता है। लेकिन तभी पवन लिफाफा komputer में चेक करता है… शॉकिंग खुलासा! हरपाल सिंह न सिर्फ पुराने ग्राहक हैं, बल्कि बैंक के 60 प्रतिशत शेयर उनके नाम हैं—वो तो बैंक के मालिक जैसे हैं! पवन रिपोर्ट निकालता है, मैनेजर को बताता है—मैनेजर अभिमान में रिपोर्ट पढ़ने से भी मना करता है।

अगले दिन—ठीक 11 बजे—हरपाल सिंह फिर बैंक आते हैं, साथ में सूट-बूट में एक व्यक्ति (शायद लीगल सलाहकार)। सबकी नजर उन्हीं पर जाती है। हरपाल सिंह सीधा मैनेजर को बुलाते हैं, “आपको तो मैंने कहा था—यह बात भारी पड़ेगी। आज से आप मैनेजर नहीं – फील्ड स्टाफ रहेंगे। आपकी जगह पवन अब नए मैनेजर हैं।”

मैनेजर हैरान-परेशान, “आप होते कौन हैं?” हरपाल सिंह, “साठ प्रतिशत शेयर मेरे हैं, चाहूं तो किसी को भी हटा दूं। और बैंक की नीति है – ग्राहक गरीब हो या अमीर, व्यवहार एक जैसा होना चाहिए। पवन ने संवेदनशीलता दिखाई—आज उसकी मेहनत की ईमानदारी का इनाम है।”

फिर हरपाल सिंह पूरे स्टाफ को समझाते हैं—“बैंक केवल पैसे का नहीं, भरोसे का कारोबार है। सीखिए, पवन से—सम्मान, संवेदनशीलता। लोगों को खामख्वाह जज मत कीजिए।”

संगीता और मैनेजर माफी मांगते हैं; हरपाल सिंह चेतावनी देकर विदा होते हैं।

अब पूरे बैंक में चर्चा थी—“आज से बदलाव जरूरी है! कहीं अगली बार कोई हमारा भी इम्तहान न ले।” बैंक की कार्यसंस्कृति सुधर गई—हर ग्राहक, हर इंसान अब सम्मान की नजर से देखा जाता है।

सीख:

कभी किसी की हालत, कपड़ों या चेहरे देखकर उसे कम मत तानो। असली पहचान नीयत और इंसानियत से होती है–और कोई भी इंसान, चाहे वो कैसा भी दिखे, आपकी कल्पना से कहीं बड़ा हो सकता है।

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