कहानी: परिवार का बिखराव और पुनर्मिलन
प्रारंभ
दोस्तों, यह कहानी है एक लड़के अजय की, जो विदेश में पैसा कमाने गया था। वह दो साल बाद अपने घर लौट रहा था। हवाई जहाज से उतरने के बाद, वह दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचा और ट्रेन में बैठकर अपने शहर रायबरेली के लिए रवाना हो गया। ट्रेन रायबरेली से पहले एक स्टेशन पर कुछ समय के लिए रुकी। अजय ने सोचा कि क्यों न स्टेशन से कुछ खाने-पीने का सामान ले लिया जाए।
दुःखद दृश्य
वह ट्रेन से उतरकर पास की एक दुकान में जा रहा था, तभी उसकी नजर अपने बूढ़े माता-पिता और पत्नी पर पड़ी। वे रेलवे स्टेशन पर भीख मांग रहे थे। अजय को विश्वास नहीं हुआ। उसने देखा कि उसके मां-बाप और पत्नी भीख मांग रहे हैं, जबकि वह विदेश में पैसे कमाने गया था। उसकी पत्नी रो रही थी और उसके माता-पिता भीख मांगते हुए कह रहे थे, “साहब, कुछ पैसे दे दीजिए। दो दिन से कुछ नहीं खाया है।”
अजय का संकट
अजय की आंखों में आंसू आ गए। उसने सोचा, “यह क्या हो रहा है? मेरे बिना मेरे परिवार की यह हालत कैसे हो गई?” उसने तुरंत अपने माता-पिता और पत्नी को पहचान लिया और उनके पास गया। वह बोला, “आप लोग यहां क्या कर रहे हैं?”
उसकी मां ने कहा, “बेटा, तुम्हारे भाई रमेश और उसकी पत्नी ने हमें घर से निकाल दिया। उन्होंने हमारी सारी संपत्ति हड़प ली और अब हमें भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा।” अजय को यह सुनकर गहरा सदमा लगा। उसने सोचा, “मेरे बिना मेरे परिवार को इतना बड़ा संकट क्यों सहना पड़ा?”
अजय का अतीत
यह कहानी केवल अजय की नहीं है, बल्कि उसके परिवार की भी है। अजय और उसके भाई रमेश के बीच हमेशा से एक प्रतिस्पर्धा रही थी। रमेश की पत्नी, जो बहुत चालाक थी, ने हमेशा अजय को नीचा दिखाने की कोशिश की। अजय विदेश जाकर पैसे कमाने लगा, लेकिन रमेश की पत्नी ने उसे भड़काने का कोई मौका नहीं छोड़ा।
जब अजय विदेश गया, तो उसने अपने माता-पिता की जिम्मेदारी रमेश और उसकी पत्नी के हाथ में सौंप दी। अजय ने सोचा कि वे अच्छे से उनकी देखभाल करेंगे। लेकिन रमेश और उसकी पत्नी ने अपनी लालच में अंधे होकर अजय के माता-पिता को धोखा दिया।
परिवार का बिखराव
अजय की भाभी ने रमेश को कहा, “तुम्हारे भाई के विदेश जाने का फायदा उठाओ। मम्मी-पापा की संपत्ति अपने नाम कराओ।” रमेश ने अपनी पत्नी की बात मान ली और अपने माता-पिता को धोखे में रखकर उनकी सारी संपत्ति अपने नाम करवा ली।
जब अजय विदेश में पैसे कमाने लगा, तब रमेश और उसकी पत्नी ने अजय के माता-पिता को घर से निकाल दिया। बेचारें माता-पिता रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने के लिए मजबूर हो गए। अजय की पत्नी दीपिका भी अपने चचेरे भाई के साथ रहने लगी, लेकिन वहां भी उसे ताने सुनने पड़े।
दीपिका का संघर्ष
दीपिका ने सोचा कि अब वह इस घर में नहीं रह सकती। उसने अपने चचेरे भाई से कहा, “मैं कहीं और काम करूंगी। मुझे ताने सहन नहीं होते।” वह रेलवे स्टेशन पर पहुंची, जहां उसने अपने सास-ससुर को भीख मांगते देखा। उसने उन्हें गले लगाकर रोते हुए पूछा, “आपकी यह हालत कैसे हो गई?”
सास-ससुर ने कहा, “बेटा, तुम्हारे पति ने हमें घर से निकाल दिया। अब हम दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।” दीपिका ने अपने सास-ससुर की मदद करने का फैसला किया। वह भीख मांगने के अलावा कभी-कभी ट्रेन में चना और मूंगफली बेचने लगी।
अजय की वापसी
दो साल बाद, अजय ने अपने घर की याद की। उसने सोचा कि अब घर लौटने का समय आ गया है। जब वह घर पहुंचा, तो देखा कि घर में ताला लगा हुआ है। पड़ोसियों ने बताया कि उसके भाई और भाभी ने मकान और सारी संपत्ति बेच दी और कहीं चले गए।
अजय को यह सुनकर गहरा सदमा लगा। उसने सोचा, “मेरी भाभी के चक्कर में मैंने अपनी पत्नी को छोड़ दिया। अब मैं क्या करूं?” वह रेलवे स्टेशन पहुंचा, जहां उसने अपने माता-पिता को भीख मांगते देखा।
पुनर्मिलन
अजय ने अपने माता-पिता को देखकर फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया। उसी समय, दीपिका पानी लाने गई थी। जब उसने अजय को देखा, तो दौड़कर उसके पास गई और उसे गले लगा लिया। अजय ने अपनी गलती का एहसास किया और उसे अपनी पत्नी का प्यार देखकर पछतावा हुआ।
उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया और अपने दुख साझा किए। अजय ने कहा, “मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हें समझ नहीं पाया।” दीपिका ने कहा, “आपकी कोई गलती नहीं है। आपको भाभी ने अपने वश में कर रखा था। अब आपकी आंखें खुल गई हैं।”
नई शुरुआत
अजय ने अपने माता-पिता और पत्नी के साथ एक नई शुरुआत करने का फैसला किया। उसने कहा, “अब तुम्हें भीख मांगने की जरूरत नहीं है। हम मेहनत करेंगे।” अजय ने अपने माता-पिता और पत्नी को लेकर दूसरे शहर चला गया। वहां उसने एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया और मंडी में काम करने लगा।
धीरे-धीरे, अजय ने अपनी मेहनत से सब्जी की दुकान खोलने का फैसला किया। दीपिका ने सब्जी बेचने का सुझाव दिया, और संजय ने मार्केट में अच्छी जगह देखकर दुकान खोल दी।
परिवार की खुशहाली
धीरे-धीरे उनका व्यवसाय बढ़ने लगा। उन्होंने एक छोटा सा प्लॉट खरीदा और उस पर घर बना लिया। अजय और दीपिका ने अपने माता-पिता का भी ख्याल रखा।
उधर, रमेश और उसकी पत्नी ने जो किया था, उसका फल उन्हें मिला। जब उनके पैसे खत्म हो गए, तो ससुराल वालों ने उन्हें घर से निकाल दिया। अब वे दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गए।
अंत का संदेश
एक दिन, जब रमेश और उसकी पत्नी सब्जी मंडी पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि अजय और दीपिका अच्छे से रह रहे हैं। रमेश ने अपनी पत्नी से कहा, “हमने जो किया, उसका फल हमें भुगतना पड़ा।”
अजय ने कहा, “मैंने तुम्हें माफ कर दिया। लेकिन तुम्हें अपनी गलती का एहसास करना होगा।” दीपिका ने भी कहा, “हम अब एक परिवार हैं। हमें एक-दूसरे का साथ देना चाहिए।”
निष्कर्ष
दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि परिवार का महत्व क्या होता है। कभी-कभी हम लालच में आकर अपने करीबी लोगों को भूल जाते हैं। लेकिन सच्चा प्यार और परिवार की अहमियत को कभी नहीं भूलना चाहिए।
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