कहानी: मोहब्बत और लालच के मोड़ पर
कभी-कभी जिंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है, जहां मोहब्बत और लालच के बीच चुनाव करना पड़ता है। ख्वाहिश थी दौलत, शान, शौकत और चमक-धमक की जिंदगी। रचना को नहीं पता था कि यह लालच उसे वहां लाकर खड़ा कर देगा, जहां बरसों बाद उसे अपने पूर्व पति को एक नामी होटल में वेट्रेस के रूप में पानी का गिलास देना पड़ेगा।
तीन साल पहले, तिरुपति और रचना की शादी हुई थी। दोनों की मुलाकात एक साधारण शादी के मंडप में रिश्तेदारों के जरिए हुई थी। तिरुपति ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था, लेकिन दिल से सीधा और मेहनती इंसान था। वहीं रचना शहर में पली-बढ़ी थी, उसे छोटी-छोटी चीजों में खुश होना आता था। मगर कहीं अंदर से उसे हमेशा थोड़ा और पाने की चाह रहती थी।
शादी के शुरुआती दिनों में दोनों का रिश्ता किसी फिल्मी कहानी जैसा था। सुबह तिरुपति काम पर निकलता तो रचना दरवाजे पर खड़ी होकर हाथ हिलाती। शाम को लौटते ही वह तिरुपति को पानी देती और कहती, “आज बहुत थक गए होंगे ना? बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं।” तिरुपति मुस्कुरा कर कहता, “थकान तो तुम्हें देखकर मिट जाती है। तुम्हारी मुस्कान ही मेरी ताकत है।”
उनके पास बड़ा घर नहीं था, सिर्फ दो छोटे कमरे और एक रसोई। लेकिन उन दीवारों के बीच प्यार इतना था कि रचना को लगता, यही उसका पूरा संसार है। कभी दोनों बारिश में छत पर खड़े होकर चाय की चुस्की लेते, कभी रात में बिजली चली जाती तो मोमबत्ती की रोशनी में हंसते-हंसते बातें करते। रचना को सजने-संवरने का शौक था। वह अक्सर कहती, “तिरुपति देखो, यह साड़ी कितनी सुंदर है। काश मैं इसे ले पाती।” तिरुपति अपनी जेब टटोलता और कहता, “इस बार तो पैसों की तंगी है, लेकिन अगले महीने जरूर दिला दूंगा।” रचना उसकी हालत समझकर मुस्कुरा देती और कहती, “ठीक है, तुम साथ हो तो यह भी किसी हीरे जवाहरात से कम नहीं।”
उनकी यह छोटी सी दुनिया में कभी रसोई के स्वादिष्ट खाने की खुशबू, कभी मोहल्ले के बच्चों की हंसी-ठिठोली गूंजती रहती। रचना अक्सर खिड़की से बाहर झांकते हुए सोचती, “मेरी जिंदगी भले ही साधारण है, लेकिन इसमें तिरुपति जैसा साथी है, यही मेरी सबसे बड़ी दौलत है।” इसी प्यार और समझदारी में तीन साल ऐसे बीत गए कि मोहल्ले वाले कहते, “देखो, यह दोनों कैसे हमेशा मुस्कुराते रहते हैं। असली पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा ही होता है।”
लेकिन रचना के दिल के किसी कोने में अब भी एक अधूरी ख्वाहिश दबी थी – दौलत, शान-शौकत और चमक-धमक की जिंदगी। रचना की सहेली मीना का जन्मदिन था। मीना ने जिद करके कहा, “रचना, इस बार तुम्हें मेरे साथ महेश चौक चलना ही होगा। वहां नई-नई दुकानें खुली हैं, तुम देखोगी तो दंग रह जाओगी।” शाम को दोनों स्कूटी से महेश चौक पहुंची। वहां का नजारा देखकर रचना की आंखें चौंधिया गईं।
सड़क किनारे चमचमाती रोशनी, बड़े-बड़े शोरूम, कांच की इमारतों पर सजे ब्रांड के होर्डिंग्स। महंगी कारें रुकतीं और उनमें से उतरते लोग – कोई सूट में, कोई कीमती गहनों में। लोगों की चाल-ढाल में एक अलग ही रब और ठाट-बाट झलक रहा था। रचना मीना से बोली, “यह लोग कितने अच्छे लग रहे हैं। इनके पास कितना सब कुछ है। मैं भी अगर चाहूं तो ऐसा जीवन जी सकती हूं ना?” मीना ने हंसते हुए कहा, “बिल्कुल, लेकिन उसके लिए तुम्हें ऐसा पति चाहिए जो कमाए भी करोड़ों और खर्च करने में भी पीछे ना हटे।”
यह सुनकर रचना के मन में हलचल मच गई। उसके दिमाग में तिरुपति की सादी शर्ट और पुरानी चप्पल की तस्वीर घूमने लगी। उसने सोचा, तिरुपति अच्छा है, लेकिन उसकी सादगी से मेरी इच्छाएं पूरी नहीं होंगी। मैं कब तक सिर्फ चाय और मोमबत्ती की रोशनी में हंसकर जीती रहूंगी? मुझे भी तो बड़ा घर, गाड़ी और शोहरत चाहिए।
उसी रात जब तिरुपति काम से थका-हारा लौटा तो रचना ने पहली बार उसे देखकर मुस्कुराने की बजाय तिरस्कार भरी नजर डाली। तिरुपति ने चौंक कर पूछा, “क्या हुआ रचना? इतनी चुप क्यों हो?” रचना ने धीमे स्वर में कहा, “तुम्हें कभी लगता नहीं तिरुपति कि हम बहुत पीछे छूट गए हैं? चारों ओर लोग कितला आगे बढ़ रहे हैं और हम अब भी वहीं के वहीं हैं। साधारण जिंदगी जीते हुए।” तिरुपति ने उसकी आंखों में देखकर कहा, “रचना, खुशी पैसे से नहीं होती। हमारे पास प्यार है, अपनापन है। यही सबसे बड़ी दौलत है।”
लेकिन इस बार रचना ने उसकी बातों को दिल से नहीं सुना। उसके दिल में महेश चौक की चमक अब गहरी चुभ चुकी थी। रचना की नाराजगी दिन-ब-दिन बढ़ती गई। जहां पहले वह तिरुपति की छोटी सी कोशिशों में भी खुश हो जाती थी, अब वही बातें उसे बोझ लगने लगीं। एक शाम वो अचानक फट पड़ी, “तिरुपति, मुझे अब यह साधारण जिंदगी बर्दाश्त नहीं। मैं औरों की तरह ऐशो-आराम चाहती हूं। तुमसे यह संभव नहीं है।”
तिरुपति ने समझाने की बहुत कोशिश की, “रचना, थोड़ा धैर्य रखो। मेहनत कर रहा हूं। एक दिन सब बदल जाएगा।” लेकिन रचना ने सुनना ही बंद कर दिया। आखिरकार कई झगड़ों और आंसुओं के बाद दोनों ने तलाक ले लिया। रचना चली गई और तिरुपति बिल्कुल अकेला रह गया।
तलाक के बाद तिरुपति टूट चुका था। लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने सोचा, जब प्यार नहीं बचा तो अब मेहनत ही मेरी पहचान होगी। दिन-रात काम करता, छोटे-छोटे कॉन्ट्रैक्ट उठाता और धीरे-धीरे कारोबार खड़ा करने लगा। उधर रचना अपने मायके लौट गई। शुरू में उसे लगा कि उसने सही फैसला लिया है। लेकिन वहां उसे वह इज्जत और आराम नहीं मिला जिसकी वह हकदार समझती थी। घरवाले भी अक्सर ताना मारते, “पति था अच्छा, मेहनती भी, लेकिन तूने लालच में आकर उसे छोड़ दिया।”
रचना ने नौकरी ढूंढने की कोशिश की, पर पढ़ाई अधूरी होने और अनुभव ना होने के कारण कहीं स्थाई काम नहीं मिला। कुछ समय तक वह सहेलियों के सहारे रही लेकिन धीरे-धीरे हालात बिगड़ने लगे। रचना को गुजारे के लिए छोटे-मोटे काम करने पड़े। इधर तिरुपति का संघर्ष रंग लाने लगा। सालों की मेहनत के बाद उसने अपना खुद का बिजनेस खड़ा किया। आज उसके पास गाड़ी थी, अपना घर था और नाम-दाम सब कुछ। तिरुपति शहर के बड़े कारोबारियों में गिना जाने लगा था। उसकी मेहनत और संघर्ष ने उसे उस मुकाम तक पहुंचा दिया था, जहां लोग उससे हाथ मिलाने के लिए लाइन में खड़े रहते थे।
एक दिन उसे एक नामी होटल में बिजनेस पार्टी का न्योता मिला। पार्टी में चमक-धमक, महंगी सजावट और बड़ी हस्तियां मौजूद थीं। तिरुपति अपनी ब्लैक सूट में जब हॉल में दाखिल हुआ तो सबकी नजरें उसी पर टिक गईं। वह इधर-उधर देख ही रहा था कि अचानक किसी ने उसके हाथ में पानी का गिलास रखा। उसने पलट कर देखा और उसके कदम ठिटक गए। वह कोई और नहीं बल्कि रचना थी। होटल में वेट्रेस का काम कर रही थी। चेहरा थका हुआ, आंखें बुझी-बुझी और चाल पहले जैसी आत्मविश्वासी नहीं रही।
उसने जैसे ही तिरुपति को पहचाना, उसके हाथ कांप गए। गिलास गिरते-गिरते बचा और आंखों से आंसू छलक पड़े। रचना ने कांपती आवाज में कहा, “तिरुपति, तुम…” तिरुपति का दिल कुछ पल के लिए भारी हो गया। वह समझ गया कि किस्मत ने दोनों को फिर से आमने-सामने खड़ा कर दिया है।
रचना रोते हुए बोली, “मैंने तुम्हें छोड़कर सबसे बड़ी गलती की। मुझे लगा था दौलत ही सब कुछ है। लेकिन आज देखो, मैं इस हालत में हूं। अगर मुमकिन हो तो मुझे माफ कर दो।” तिरुपति ने गहरी सांस ली। उसके दिल में चोटें तो थीं, लेकिन रचना की टूटी हालत देखकर उसका दिल पिघल गया। वो बोला, “रचना, मैं तुमसे कभी नफरत नहीं कर सका। तुमने गलती की थी, लेकिन प्यार गलतियों से बड़ा होता है। अगर तुम सच में बदल चुकी हो तो मेरे पास आज भी तुम्हारे लिए जगह है।”
यह सुनते ही रचना फूट-फूट कर रो पड़ी। उसने तिरुपति के हाथ पकड़ कर कहा, “मुझे फिर से जीने का एक मौका दो।” तिरुपति ने उसकी आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा, “चलो, इस बार हम एक दूसरे की कद्र करना सीखेंगे। अब जिंदगी में दौलत से ज्यादा हमें रिश्ते संभालने होंगे।”
पार्टी की भीड़ में खड़े लोगों ने देखा कि किस तरह एक टूटा हुआ रिश्ता फिर से जुड़ गया और उस रात दोनों की जिंदगी ने नया मोड़ लिया, जहां दौलत से बड़ी प्यार और माफी की ताकत साबित हुई।
कहानी की सीख:
जिंदगी में दौलत और शान-शौकत जरूरी है, लेकिन उससे भी जरूरी है रिश्तों की कद्र और प्यार की अहमियत। लालच कभी-कभी इंसान को ऐसी जगह पहुंचा देता है, जहां पीछे छूटे रिश्तों की कीमत समझ में आती है। अगर आपको यह कहानी पसंद आए तो इसे जरूर शेयर करें
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