कहानी: राधिका की संघर्ष और पुनर्निर्माण

प्रारंभ

दोस्तों, सोचिए जरा एक औरत 8 महीने की गर्भवती, हाथ में पुराना बायोडाटा, आंखों में नींद से ज्यादा डर, बारिश में भीगते हुए नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटक रही है। कोई उसे रख नहीं रहा, कोई कहता तुमसे काम नहीं होगा, कोई कहता घर जाओ और बच्चा संभालो। लेकिन आज उसे एक बड़ी कंपनी का पता मिला है। वह हिम्मत करके वहां पहुंची। रिसेप्शन पार किया और जैसे ही मालिक के केबिन का दरवाजा खोला, उसकी सांसे थम गई। सामने उसका तलाकशुदा पति गोपाल था। क्या वह उसे नौकरी देगा या फिर एक बार फिर जिंदगी से बाहर फेंक देगा?

राधिका का अतीत

यह घटना एक सुबह की हल्की बारिश से शुरू होती है। गली की टूटी सी सड़कों पर पानी जम गया था। ठंडी हवा के झोंके पुराने घर की जजर खिड़कियों को हिला रही थी। उस छोटे से कमरे में एक पुराना पंखा घिसट-घिसट कर घूम रहा था और नीचे कोने में लकड़ी की अलमारी पर रखी चाय की केतली से भाप निकल रही थी।

कमरे के बीचोंबीच एक औरत धीरे-धीरे झुक कर अपनी चप्पल पहन रही थी। उसके चेहरे पर थकान की गहरी लकीरें थीं। पेट पर हाथ रखा हुआ था, जो साफ बता रहा था कि उसके कोख में जिंदगी पल रही है। वह थी राधिका, सिर्फ 28 साल की। लेकिन बीते सालों के बोझ ने उसे वक्त से बहुत आगे पहुंचा दिया था।

तलाक का दर्द

राधिका ने पुराना दुपट्टा सर पर डाला, पर्स में कुछ सिक्के डाले और बाहर निकलने लगी। दरवाजा बंद करते वक्त उसकी नजर दरवाजे पर लटके एक पुराने फोटो फ्रेम पर पड़ी। फोटो में वह और गोपाल मुस्कुरा रहे थे। गोपाल, उसका पूर्व पति, जिसने उसे जिंदगी के सबसे कठिन मोड़ पर छोड़ दिया था।

तीन साल पहले दिल्ली की भीड़ भरी सड़कों में एक छोटे से कैफे में उनकी पहली मुलाकात हुई थी। गोपाल एक मार्केटिंग कंपनी में सीनियर था और राधिका उसी कंपनी में नई-नई जॉइनिंग हुई थी। काम के सिलसिले में बातें शुरू हुईं, फिर चाय, कॉफी, फिल्में और आखिरकार शादी। लेकिन धीरे-धीरे हालत बदलने लगी। गोपाल का बिजनेस डूबने लगा। पैसों की तंगी ने रिश्ते की बुनियाद हिला दी।

अकेली राधिका

एक दिन गुस्से में गोपाल ने कह दिया, “तुम मेरी किस्मत की सबसे बड़ी गलती हो।” उस रात राधिका अपना छोटा सा बैग लेकर मायके चली गई। लेकिन मायका भी अब उसका नहीं रहा था। मां-बाप पहले ही चल बसे थे और भाई-भाई भी। कुछ हफ्ते बाद कोर्ट में तलाक हो गया। गोपाल के चेहरे पर कोई भाव नहीं था और राधिका ने भी बिना आंसू बहाए कागज पर दस्तखत कर दिए। अब 8 महीने की गर्भवती राधिका अकेली थी।

नौकरी की तलाश

उस दिन बारिश में निकलते वक्त उसके मन में सिर्फ एक ही बात थी, “मुझे नौकरी चाहिए, चाहे जो कुछ भी हो।” पहले ठिकाने पर गई, एक बेकरी में, लेकिन मैनेजर ने कहा, “यहां केक उठाना पड़ता है, आपसे नहीं होगा।” दूसरे ठिकाने पर सिलाई के छोटे कारखाने में, मालिक ने कहा, “बेटा, जब बच्चा होगा तो छुट्टी होगी। हमें ऐसे लोग नहीं चाहिए।”

हर जगह से मना सुनकर उसके कदम और भारी होते जा रहे थे। बस स्टैंड पर थकी हुई राधिका बैठ गई। हाथ से पेट को सहलाते हुए उसने धीरे-धीरे कहा, “बेटा, मम्मी हार नहीं मानेगी। हम दोनों जीतेंगे।” तभी एक बुजुर्ग महिला ने पूछा, “बिटिया, इतनी बारिश में कहां जा रही हो?” राधिका ने मुस्कुराकर कहा, “काम ढूंढ रही हूं।”

नई उम्मीद

बुजुर्ग महिला ने उसे एक पते का कागज दिया, “यहां एक बड़ी कंपनी है। मालिक सख्त है, पर अगर दिल छू जाए तो काम दे देता है।” राधिका ने कागज जेब में रखा और वहां जाने का निश्चय किया।

गोपाल से सामना

ऑफिस के गेट पर अगले दिन वह उसी कंपनी के गेट के सामने खड़ी थी। दिल धड़क रहा था। रिसेप्शन पर जाकर उसने कहा, “मैं नौकरी के लिए आई हूं।” रिसेप्शनिस्ट ने शक की नजरों से देखा, “मैडम, हमारे बॉस बहुत सख्त हैं।” फिर भी कुछ मिनट बाद उसे अंदर बुला लिया गया।

केबिन का दरवाजा खुला और जैसे ही उसने सामने देखा, दिल जैसे रुक गया। वह वही था गोपाल, उसका पूर्व पति। गोपाल ने चश्मा उतारा और उसे ऊपर से नीचे तक देखा। राधिका ने गहरी सांस ली और आंखें मिलाकर कहा, “हां, मैं नौकरी के लिए आई हूं।”

संघर्ष की शुरुआत

गोपाल ने कुर्सी पर पीछे झुकते हुए एक धीमी हंसी छोड़ी, “तुम इस हालत में नौकरी चाहती हो?” राधिका ने जवाब दिया, “क्योंकि मेरे पेट का बच्चा मोहताज नहीं होगा और मैं भी नहीं।” गोपाल ने कहा, “हमारी कंपनी में सख्त नियम हैं।”

राधिका ने सीधा सवाल किया, “क्या आप मुझे सिर्फ इसलिए नहीं रख सकते क्योंकि आप मेरी क्या थे?” गोपाल ने नजरें फेर लीं। कुछ देर बाद उसने कहा, “देखो, मैं तुम्हें यहां सिर्फ इसलिए नहीं रख सकता क्योंकि तुम मेरी…”

नई पहचान

“मत कहना कि तुम मेरी बीवी थीं। मैं यहां बीवी बनकर नहीं, एक इंसान बनकर आई हूं। बस काम चाहिए।” गोपाल ने उसे एक हफ्ते का ट्रायल देने का फैसला किया। राधिका ने हल्की सी मुस्कान दी।

मेहनत और सफलता

राधिका ने काम में जुटकर सबको प्रभावित किया। मीटिंग में जब गोपाल ने डाटा प्रेजेंट किया, तो क्लाइंट ने कहा, “इंप्रेसिव वर्क, यह किसने तैयार किया?” गोपाल ने कहा, “राधिका।” कमरे में तालियां बजीं।

गोपाल की परीक्षा

लेकिन अगले दिन गोपाल ने उसे ऐसा काम दिया जो उसके लिए सबसे मुश्किल था। एक आउटडोर प्रोजेक्ट जिसमें घंटों खड़े रहना पड़ेगा। राधिका ने बिना कुछ कहे सिर हिलाया। साइट विजिट के दिन तेज धूप और पेट का बोझ उसे थका रहा था।

संघर्ष का परिणाम

राधिका ने काम में जुटकर सब कुछ समय पर पूरा किया। क्लाइंट ने कहा, “आपने मुझे सिर्फ आईडिया ही नहीं, बल्कि एक विज़न बेचा है।” गोपाल ने सबके सामने कहा, “यह जीत मेरी नहीं, राधिका की है।”

नया मोड़

कुछ हफ्ते बाद, राधिका का बेटा तेज बुखार में तप रहा था। गोपाल ने बिना एक पल गवाए गाड़ी की चाबी उठाई और अस्पताल भागा। डॉक्टर ने कहा, “अगर एक घंटा और लेट होते तो स्थिति बिगड़ सकती थी।”

भरोसे का पुनर्निर्माण

अगले दिन राधिका ने कहा, “रिश्ता वही सच्चा होता है जो मुश्किल वक्त में बिना बुलाए भी साथ खड़ा हो।” गोपाल ने कहा, “क्या इसका मतलब है?” राधिका ने कहा, “भरोसे से शुरू होगा, पुराने घावों से नहीं।”

नई शुरुआत

कुछ महीने बाद एक छोटी सी शादी हुई। विक्रम भी आया और मुस्कुराते हुए कहा, “तुमने सही फैसला लिया, राधिका। खुश रहो।”

निष्कर्ष

दोस्तों, प्यार का मतलब सिर्फ दिल जितना ही नहीं, भरोसा जितना है। और भरोसा तभी बनता है जब इंसान वक्त पर साथ खड़ा हो। अगर कहानी पसंद आई हो तो वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और हमारे चैनल ज्ञानी धाम को सब्सक्राइब जरूर करें। मिलते हैं अगले वीडियो में। तब तक खुश रहिए, अपनों के साथ रहिए और रिश्तों की कीमत समझिए। जय हिंद, जय भारत। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।