कहानी: रीमा की हिम्मत
प्रस्तावना
गर्मी की वह दोपहर और भी ज्यादा झुलसा देने वाली महसूस हो रही थी। धूप इस शिद्दत के साथ जमीन पर बरस रही थी कि जैसे हर चीज को पिघला देगी। सड़क पर कहीं-कहीं दरख्तों की छांव दिखाई देती, लेकिन वह भी इस हद तक गर्म हो चुकी थी कि सुकून देने के बजाय और तपिश का एहसास दिलाती। सड़क पर चलते लोग पसीने से शराबोर थे। गाड़ियों के हॉर्न, रिक्शों की आवाजें, और कभी-कभार गुजरती हुई मोटरसाइकिलों की रफ्तार पूरे माहौल को बेचैन कर रही थी।
ऐसे में स्कूल की छुट्टी के बाद 16 साल की लड़की रीमा अपना बस्ता मजबूती से पकड़े हुए आहिस्ता-आहिस्ता अपने घर की तरफ बढ़ रही थी। रीमा के नक्श ओ सूरत पर थकान के आसार नुमाया थे। उसने सादा सफेद कमीज और खाकी रंग की सलवार पहनी हुई थी, जो आम स्कूल का लिबास समझा जाता था। उसके हाथ में एक पुरानी नोटबुक थी, जिसके किनारे मुड़ चुके थे और कुछ सफों पर नीली स्याही के धब्बे लगे हुए थे। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी क्योंकि आज उसका इम्तिहान खत्म हो गया था।
वह कई दिनों से लगातार रातों को जागकर तैयारी कर रही थी, जिसका नतीजा आज उसने पूरे इत्मीनान के साथ लिखा था। इसीलिए उसके दिल में सुकून था कि अब कुछ दिनों के लिए जहन को आराम मिल जाएगा। गलियां तकरीबन सुनसान थीं। गर्मी के कारण लोग अपने घरों में दुबक गए थे और जो कोई बाहर निकल भी रहा था, तो तेज कदमों से अपनी मंजिल की तरफ दौड़ रहा था।
रास्ते की अनहोनी
रीमा रोजाना इसी रास्ते से जाती थी। उसके लिए यह रास्ता बिल्कुल मामूल का हिस्सा था। वह बचपन से यहां से गुजरती रही थी और कभी ऐसा नहीं हुआ था कि उसने किसी खतरे या मसले का सामना किया हो। आज भी वह यही सोचकर पुरसुकून कदमों से बढ़ रही थी कि बस जल्दी घर पहुंचे, कपड़े बदलकर आराम करें और मां के साथ खाना खाए।
लेकिन उस दिन किस्मत ने उसके लिए कुछ और ही लिखा रखा था। जैसे ही वह केंद्रीय सड़क पर पहुंची, अचानक सामने एक पुलिस वर्दी में मलबूस शख्स उसकी राह में आ खड़ा हुआ। यह मंजर इतना अचानक था कि रीमा के कदम खुद-ब-खुद रुक गए। उसका दिल जोर से धड़कने लगा। वह शख्स दरमियानी उम्र का था, लगभग 40 के करीब, और जिस्म के एतबार से काफी मजबूत और चौड़ा। उसकी मूछें घनी थीं, चेहरे पर सख्ती नुमाया थी, और आंखों में घरूर की झलक साफ नजर आ रही थी।
पुलिस अफसर ने ऊंची आवाज में कहा, “ए लड़की, जरा रुकना।” यह आवाज इतनी सख्त थी कि रीमा के कदम वहीं जम गए। उसने डरते-डरते सर झुकाया और अदब से जवाब दिया, “जी सर, क्या बात है?” अफसर ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को तौल रहा हो। फिर उसने तंजिया अंदाज में बोला, “तुम्हें पता है कि तुम गलत लेन से आई हो? यह जुर्म है। चाहो तो अभी चालान कर दूं।”
डर और बेबसी
रीमा का दिल धक से रह गया। वह रोजाना इसी रास्ते से आती थी और कभी किसी ने कुछ नहीं कहा। लेकिन आज यह अचानक इल्जाम सुनकर उसके हलक से आवाज मुश्किल से निकली। उसने हिचकिचाते हुए कहा, “सर, मैं तो हमेशा इसी रास्ते से आती हूं। मुझे नहीं मालूम था कि यह गलत है।” लेकिन उसके नरम लहजे ने भी अफसर के चेहरे पर किसी किस्म की नरमी पैदा ना की।
अफसर ने ऊंची आवाज में कहा ताकि आसपास मौजूद लोग मुतवज्जा हो सकें, “बहुत चालाक हो तुम। कानून तोड़कर बहाना बना रही हो। तुम्हें लगता है यह मामूली बात है। अब आस-पास मौजूद कुछ लोग रुकने लगे। कुछ दुकानदार अपनी दुकानों से बाहर निकल आए। चंद राहगीर पलट कर देखने लगे। माहौल में अजीब सी संगीनियत फैल गई। रीमा के माथे पर पसीने के कतरे चमकने लगे।
उसने नोटबुक को और मजबूती से पकड़ लिया जैसे वही उसका सहारा हो। उसके कदम कांप रहे थे और आंखों में अनजाने खौफ की परछाइयां उभर रही थीं। अफसर ने एक कदम आगे बढ़ते हुए आवाज और भी नीची की और धमकी आमेज लहजे में कहा, “अगर अभी बात खत्म करनी है तो सीधा-सीधा ₹ लाख निकालो वरना सबके सामने तुम्हारी इज्जत खाक में मिला दूंगा।”
जुल्म का शिकार
यह अल्फाज़ रीमा के कानों में बिजली की तरह गूंजे। उसका दिल बैठ गया। जिस्म लरजने लगा और होंठ सूख गए। उसने आंखों में आंसू लिए बेमुश्किल कहा, “सर, मैं तो एक तालीबा हूं। मेरे पास इतने पैसे कहां से आएंगे?” लेकिन अफसर के चेहरे पर रहम का शायबा तक ना था। उसकी मुस्कान और गहरी हो गई। जैसे उसे इस खौफजदा लड़की को सताकर सुकून मिल रहा हो।
अब मजमा और भी बढ़ने लगा था। कुछ ने अपने मोबाइल फोन निकालकर वीडियो बनानी शुरू कर दी। हर कोई जानता था कि यह लड़की बेगुनाह है। लेकिन कोई भी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर रहा था। सब अपनी जगह खड़े तमाशबीन बने थे। रीमा अब समझ चुकी थी कि वह एक ऐसे खेल का शिकार हो गई है, जहां उसकी कमजोरी पुलिस वाले की ताकत बन चुकी है।
उसके दिल में खौफ के साथ-साथ बेबसी भी बढ़ने लगी। उसने धीरे से आसमान की तरफ देखा जैसे मदद मांग रही हो। उसे अंदाजा नहीं था कि आने वाले लम्हे उसकी जिंदगी का रुख बदल देंगे और यह मामूली सा दिन एक ऐसी कहानी में ढल जाएगा जिसे पूरा शहर याद रखेगा।
पुलिस अफसर की बर्बरता
रीमा के लिए वक्त जैसे रुक गया था। उसके कानों में सिर्फ पुलिस अफसर की धमकी गूंज रही थी। आसपास का शोर, गाड़ियों के हॉर्न और लोगों की सरगोशियां सब मध्यम हो गए थे। उसका दिल बेसब्री से धड़क रहा था और आंखों में खौफ तैरने लगा था। उसने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और दबे-दबे लहजे में कहा, “सर, मैं वाकई कुछ नहीं जानती थी। यह तो हमेशा से मेरा रास्ता है। मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा।”
अफसर ने कहा, “ऐसा कहकर मत करो। तुम्हें लगता है मैं नहीं जानता कि लोग कैसे बातों से बचने की कोशिश करते हैं।” रीमा के गले में आंसू अटक गए। उसने नोटबुक को अपने सीने से चिमटा लिया जैसे वह उसके लिए ढाल हो। उसके कदम कांप रहे थे और आवाज कपकपा रही थी।
“सर खुदा के लिए, मैं तो एक तालिबा हूं। मेरे पास इतने पैसे कहां से होंगे?” पुलिस वाले की आंखों में सफाकी उतर आई। वह सबके सामने गुरूर से बोला, “पैसे नहीं हैं तो आवाम के सामने जलील होने के लिए तैयार हो जाओ। यह शहर का कानून है। मेरा कानून।”
यह जुमला सुनते ही मजमा में खुसरपुसर शुरू हो गई। कुछ औरतों ने अफसोस से सर हिलाया। कुछ नौजवानों ने मोबाइल कैमरे ऑन कर दिए। लेकिन कोई भी आगे बढ़ने की हिम्मत ना कर सका। सबको मालूम था कि वर्दी पहने यह आदमी ताकत का गलत इस्तेमाल कर रहा है।
मदद की उम्मीद
रीमा ने इधर-उधर नजर दौड़ाई। शायद कोई उसकी मदद करे। मगर उसकी आंखों में सिर्फ अजनबी और बेबस चेहरे नजर आए। उसका दिल और भी डूबने लगा। उसने रंधी हुई आवाज में कहा, “सर, आप क्यों ऐसा कर रहे हैं? मैंने क्या कसूर किया है?”
पुलिस वाला एक कदम और आगे बढ़ा। उसने रीमा के कंधे पर हाथ रखा और दबाव डालते हुए कहा, “कसूर कसूर यह है कि तुम कमजोर हो और कमजोर को ताकतवर हमेशा झुका देता है।” यह अल्फाज़ रीमा के दिल में खंजर की तरह उतर गए। उसके वजूद में लजा दौड़ गया।
उसने शिद्दत से बाजू छुड़ाने की कोशिश की। मगर अफसर ने उसकी कलाई मजबूती से दबा ली। रीमा की चीख निकल गई। “छोड़ो मुझे! मैंने कुछ नहीं किया!” यह मंजर देखकर कई लोग चौंके। कुछ ने एक दूसरे को देखा मगर फिर सबने नजरें झुका ली। कोई भी इस लड़की के दफा में आगे ना बढ़ा।
जुल्म का नंगा नाच
सिर्फ कैमरों की रोशनी और दबे-दबे तंजिया जुमले गूंज रहे थे। अफसर ने सख्त लहजे में कहा, “अभी के अभी 2 लाख दो। वरना मैं तुम्हें ऐसा सबका सिखाऊंगा जो सारी जिंदगी याद रखोगी।” रीमा की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने कांपती आवाज में कहा, “मेरे पास कुछ नहीं। बस यह नोटबुक और जेब में थोड़े पैसे।”
अफसर के लबों पर शैतानी मुस्कान आई। उसने गर्दन मोड़कर मजमा से कहा, “देख देख लो, यह लड़की कानून तोड़कर भी अपनी गलती नहीं मानती। अब कानून दिखाएगा अपनी सख्ती।” लोग एक दूसरे को देखने लगे। कुछ के दिलों में बगावत थी। मगर वर्दी के खौफ ने जुबाने बंद कर रखी थी।
रीमा जमीन पर नजरें जमाए खड़ी थी। गाल आंसुओं से तर थे। दिल में दुआ कर रही थी। काश कोई उसे इस झिल्लत से बचा ले। मगर साथ सिर्फ उसकी बेबसी थी। पुलिस वाले ने उसकी कलाई जोर से दबाई और धमकी दी। “अगर ना मानी तो सबके सामने रुसवा कर दूंगा ताकि सब याद रखें कि वर्दी के आगे किसी की इज्जत महफूज नहीं।”
कर्नल दीपक वर्मा का आगमन
रीमा का वजूद लरज उठा। सांसें तेज हो गईं, होंठ सूखे। आसपास सबकी नजरें उस पर जमी थीं। दिल में खौफ छा गया लेकिन सवाल भी जगा। क्या कोई उसकी फरियाद सुनेगा? लम्हा खामोश तूफान जैसा था। अफसर अगली हरकत के लिए तैयार खड़ा था। रीमा का जिस्म कपकपाने लगा। अफसर ने कलाई जकड़ रखी थी जैसे वह कैदी हो।
मजमा बस देख रहा था। कुछ की आंखों में हमदर्दी, कुछ में तजस्सुस और बाकी तमाशबीन वीडियो बना रहे थे। कोई आगे बढ़ने की हिम्मत ना कर सका। अफसर ने जहरीली मुस्कान के साथ रीमा को खींचा और कहा, “चलो मेरे साथ सबको अंजाम दिखाता हूं।” रीमा ने कलाई छुड़ाने की कोशिश की और चीखी, “छोड़ो मुझे! मैंने कुछ गलत नहीं किया!”
लेकिन भीड़ में कोई हरकत ना हुई। लोग सरगोशियां करते रहे। कुछ बड़बड़ाए, “काश कोई बचा ले।” मगर कोई ना आया। अफसर उसे घसीट कर सड़क के बीच खंभे तक ले आया। लोग रुकने लगे। जुल्म अब तमाशा बन रहा था।
अफसर ने कमरबंद से मोटी रस्सी निकाली। रीमा का दिल हक में अटक गया। वह चीखी, “सर, प्लीज! मैंने कुछ नहीं किया!” खुदा के लिए जाने दें। मगर पुलिस वाले की सख्त आवाज गूंजी, “बहुत बोलती हो। अब देखना क्या हाल होता है।”
उसने रस्सी फेंकी और झुक कर उसके पांव पकड़ लिए। रीमा ने पैर समेटने की कोशिश की मगर अफसर का जोर गालिब था। उसने दोनों पांव बांध दिए। रस्सी की सख्ती से झिल्द जख्मी हो गई। फिर एक झटके से रीमा को खंभे से बांध दिया।
जुल्म का अंत
लम्हे भर में उसका जिस्म उल्टा लटक गया। सर नीचे, पांव ऊपर, बाल बिखर कर जमीन की तरफ झूल गए। खून चेहरे की तरफ दौड़ा और रंग सुर्ख हो गया। यह मंजर देखकर मजमा में हलचल हुई। औरतों ने मुंह पर हाथ रख लिए। एक बुजुर्ग बोला, “हाय रब्बा, यह तो जुल्म है।” मगर आवाज शोर में दब गई।
रीमा चीखती रही, “मुझे उतारो प्लीज! मैं शर्मिंदा हो रही हूं। मैंने कुछ नहीं किया!” आंसू जमीन पर टपकने लगे। उसकी आवाज कई दिलों को हिला गई मगर वर्दी का खौफ सबको रोक रहा था। लोग बस वीडियो बनाते रहे।
पुलिस अफसर अकड़ कर बोला, “यह है कानून का अंजाम जो मेरी बात ना मानेगा। यही हाल होगा।” यह अल्फाज़ सुनकर मजमा पर सन्नाटा छा गया। कुछ ने नजरें झुका लीं लेकिन अक्सर यह मंजर कैद कर रहे थे। रीमा की सिसकियां और चीखें फजा में गूंजती रही।
कर्नल दीपक वर्मा की दखल
अचानक भारी कदमों की आवाज गूंजी। धूप में बूटों की चाप ने माहौल को लरझा दिया। मजमा पीछे हटने लगा। भीड़ को चीरते हुए एक दबंग शख्सियत सामने आई। आंखों में बिजली, चेहरे पर सख्ती और रब। यह थे कर्नल दीपक वर्मा।
फौज के आला अफसर और रीमा के पिता। वह आमतौर पर खामोश रहते थे। मगर उस लम्हे बाप का लावा फूट रहा था। जैसे ही उन्होंने अपनी बेटी को खंभे से उल्टा लटका देखा, कदम रुक गए। चंद लम्हों के लिए वह पत्थर बने खड़े रहे। फिर चेहरा सुर्ख हो गया और आंखों में खून उतर आया।
रीमा की नजर भीड़ में वालिद पर पड़ी। उसने रोते हुए पुकारा, “पापा, मुझे बचाइए!” यह सदा दिल को चीर गई। दीपक वर्मा जख्मी शेर की तरह दहाड़े, “किसकी जुर्रत है कि मेरी बेटी को यूं लटकाया जाए?” भीड़ में सन्नाटा छा गया।
फातिहाना अंदाज वाला पुलिस अफसर चौका। फिर अपनी अना बचाने को बोला, “सर, यह लड़की गलत रास्ते से आई थी। मैं उसे डिसिप्लिन सिखा रहा था।”
जुल्म का सामना
दीपक वर्मा का चेहरा और सुर्ख हो गया। वह आगे बढ़े और ठहर-ठहर कर बोले, “यह डिसिप्लिन है? एक मासूम बच्ची को सबके सामने जलील करना? यह जुल्म है और जुल्म बर्दाश्त नहीं होगा।” मजमे में हलचल पैदा हुई। लोग बोल उठे, “हां, यह जुल्म है। वर्दी को बदनाम कर रहे हैं।”
अफसर का गहरूर टूटने लगा। बौखला कर बोला, “सर, आप फौजी हैं, लेकिन यहां कानून पुलिस का है। हम जिसे चाहे सजा दें। कोई बीच में नहीं आ सकता।”
दीपक वर्मा आगे बढ़े। अफसर पसपा हुआ लेकिन रौनक छुपाने को सीना तान लिया। वर्मा दहाड़े, “याद रखो, वर्दी आवाम की हिफाजत के लिए है। जुल्म के लिए नहीं। तुमने ना सिर्फ बच्ची को जलील किया बल्कि इस वर्दी को भी शर्मिंदा किया है।”
इंसाफ का समय
भीड़ में हलचल हुई। लोग बोले, “यही होना चाहिए था। आखिरकार किसी ने जुल्म के आगे आवाज उठाई।” अफसर तड़पते हुए उठने लगा। मगर चेहरे पर घबराहट थी। अहलकार सहम गए। वह जानते थे कि सामने एक बाप ही नहीं बल्कि आला फौजी अफसर है।
दीपक वर्मा ने चारों तरफ के अहलकारों को घूरा। “याद रखो, अगर किसी ने मेरी बेटी को छुआ तो इसी जमीन पर गिरा दूंगा।” यह अल्फाज सुनते ही भीड़ में जोश दौड़ गया। लोग कहने लगे, “यही वक्त है जुल्म के खिलाफ खड़े होने का।”
अफसर हाफते हुए बोला, “मैं पुलिस हूं। मेरा इख्तियार है। कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।” लेकिन आवाज कमजोर थी जैसे खुद को तसल्ली दे रहा हो।
दीपक वर्मा ने कहा, “इख्तियार उसका होता है जो इंसाफ करे। तुम जैसे लोग आवाम के ऐतबार के कातिल हो। आज सबने तुम्हारा असल चेहरा देख लिया।” यह कहते ही उन्होंने एक और जोरदार घूंसा मारा।
जुल्म का अंत
इस बार अफसर के होंठ फट गए। खून बहने लगा। वह करहता हुआ जमीन पर गिर गया। रीमा यह सब देख रही थी। आंसू अब भी बह रहे थे। लेकिन दिल में सुकून था कि वालिद मौजूद हैं। अब वह तन्हा नहीं।
भीड़ में नारे गूंजने लगे। “इंसाफ चाहिए। जुल्म बंद करो। हीरो दीपक वर्मा जिंदाबाद।” पुलिस अफसर के साथी खौफजदा होकर पीछे हटने लगे। वर्मा का रब उनके हौसले तोड़ चुका था।
यह लम्हा सिर्फ एक बाप का नहीं बल्कि पूरे मजमे के लिए अलामत बन गया। जो लोग अभी तक डरे बैठे थे, उनके दिलों में हिम्मत जागने लगी। रीमा के पांव अब भी खंभे से बंधे थे। सर नीचे लटका था। खून चेहरे की तरफ दौड़ रहा था।
रीमा की आज़ादी
दीपक वर्मा के कानों में बेटी की कमजोर सदा गूंजी। “पापा, बचाइए मुझे।” यह अल्फाज उनके दिल में धमाके की तरह फटे। वह लपक कर खंभे के पास पहुंचे। रस्सी को देखा। हाथों में सिर्फ अज्म था।
भीड़ सांस रोके खड़ी थी। सब जानते थे कि मंजर बदलने वाला है। दीपक वर्मा ने तेज कदमों से पुलिस अफसर का गिरेबान पकड़ लिया। अफसर लड़खड़ाया और गहरूर से बोला, “रुकिए मुझे छोड़िए।”
दीपक वर्मा ने कहा, “ताकत आवाम को तहफ देती है। जलील करने को नहीं। तुमने वर्दी को दागदार किया है।”
इंसाफ का फैसला
भीड़ में दबेदबे तालियां बजने लगीं। पुलिस के दूसरे अहलकार आगे बढ़े। एक ने कहा, “सर, यह कानून के खिलाफ अहम थेरे।” वर्मा ने दहाड़ कर जवाब दिया, “कानून तुम लोग कानून के नाम पर आवाम को लूटते हो। आज एक बच्ची को सबके सामने लटकाया। यह कौन सा कानून है? यह जुल्म है।”
यह कहकर उन्होंने पुलिस अफसर के सीने पर घूंसा मारा। वह जमीन पर जा गिरा। भीड़ में सरगोशियों के साथ नारे भी बुलंद हुए। “यही होना चाहिए था।”
नई शुरुआत
रीमा अपने वालिद का हाथ थामे खड़ी थी। उसके चेहरे पर खौफ के आसार मौजूद थे। लेकिन आंखों में एक नया हौसला भी था। वह जान गई थी कि उसकी चीखें अब लाखों लोगों तक पहुंच चुकी हैं।
उसके आंसू अब खामोश नहीं थे बल्कि पूरे मुल्क को झिंझोड़ रहे थे। उस लम्हे पुलिस के आला हुककाम को भी इत्तला मिल चुकी थी। हुक्म जारी हुआ कि फौरन इस अफसर को हिरासत में लिया जाए ताकि आवामी गुस्से को काबू किया जा सके।
कुछ देर बाद एक गाड़ी आई और अहलकारों ने उस अफसर को हथकड़ियों में जकड़ लिया। जैसे ही वह हुजूम के सामने हथकड़ियों के साथ लाया गया, लोगों ने जोर-जोर से नारे लगाए। “शेम शेम! इंसाफ चाहिए!”
दीपक वर्मा ने अपनी बेटी को देखा और आहिस्ता कहा, “बेटी, तुमने जुल्म को बेनकाब कर दिया। अब यह लड़ाई पूरे मुल्क की है।”
रीमा ने अपने आंसू साफ किए और दिल ही दिल में अहद किया कि अब वह कभी खौफ के आगे झुकने नहीं देगी। चंद दिन बाद इस वाकया की गूंज पूरे मुल्क में सुनाई देने लगी।
निष्कर्ष
टीवी चैनल्स, अखबारात और सोशल मीडिया सब जगह सिर्फ एक ही मौजूद था। “रीमा को इंसाफ!” हुकूमत ने इस केस को छुपाने के बजाय खुलेआम फौजी अदालत में चलाने का फैसला किया ताकि आवाम का एतबार बहाल हो सके।
अदालत के दिन शहर भर में गैर मामूली रश था। अदालत के बाहर लोगों का हुजूम था जो नारे लगा रहा था। “रीमा को इंसाफ दो!” “जो जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करो!”
कमरा ए अदालत खचाखच भरा हुआ था। सामने जज अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था। उसके सामने फौजी यूनिफार्म में कुछ अफसरान और वकला मौजूद थे। सहाफी कतारों में बैठे हर लम्हा रिपोर्ट करने के लिए तैयार थे।
तलबा तंजीमों के नुमाइंदे भी आए हुए थे ताकि अपनी हिमायत का इजहार कर सकें। सबकी नजरें उस एक शख्स पर थीं जो कटहरे में बैठा था। वही पुलिस अफसर जिसने चंद दिन पहले एक मासूम लड़की को सबके सामने जलील किया था।
जज का फैसला
जज ने कारवाई का आगाज किया। वकील ने बड़े मजबूत दलीलें दी और वीडियोस बतौर सबूत पेश की। एक बड़ी स्क्रीन पर वह तमाम रिकॉर्डिंग्स चलाई गई जिन्हें आवाम ने सोशल मीडिया पर वायरल किया था।
कमरा-ए अदालत में गहरा सुकू छा गया। हर चीख, हर आंसू, हर बेबसी सबकी आंखों के सामने जिंदा हो गई। जब वीडियो में रीमा की आवाज गूंजी, “पापा, बचाइए मुझे!” तो कई आंखें भीग गईं।
जज ने पुलिस अफसर से सवाल किया, “क्या यह सब कुछ तुमने किया?” अफसर ने सर झुकाते हुए धीमी आवाज में कहा, “जी हां, लेकिन मैं सिर्फ डिसिप्लिन सिखा रहा था।”
यह सुनते ही कमरे-ए अदालत में गुस्से की लहर दौड़ गई। लोग चिल्लाने लगे, “झूठ है! यह डिसिप्लिन नहीं, जुल्म है!”
इंसाफ की जीत
जज ने सख्ती से खामोशी कायम कराई और फिर गहरी आवाज में कहा, “तुमने एक तालिबा को ना सिर्फ जिस्मानी अजीयत दी बल्कि उसकी इज्जत और वकार को भी मजरू किया। तुम्हारे इस अमल ने आवाम के ऐतबार को चकनाचूर कर दिया। कानून के मुहाफिज होकर तुमने कानून को ही पामाल किया।”
यह अल्फाज़ अदालत में गूंजते ही पुलिस अफसर का चेहरा और झुक गया। उसकी आंखों में अब वह गरूर बाकी ना था। वह जानता था कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं।
जज ने फैसला सुनाते हुए कहा, “तुम्हें कैद की सजा दी जाती है। साथ ही फौरन मुलाजमत से बर्खास्त किया जाता है। यह अदालत वाजह करती है कि कोई भी वर्दी आवाम पर जुल्म करने की इजाजत नहीं देती।”
रीमा का नया सफर
फैसला सुनते ही अदालत में एक लम्हे के लिए खामोशी छा गई। फिर यदम तालियों और नारों से हॉल गूंज उठा। लोग एक-दूसरे को गले लगा रहे थे। किसी की आंखों में आंसू थे। किसी के चेहरे पर सुकून।
रीमा अपने वालिद के साथ अदालत के कोने में बैठी थी। उसने कांपते हुए हाथों से दीपक वर्मा का हाथ थामा और आहिस्ता कहा, “पापा, यह सब आपकी हिम्मत की वजह से हुआ। अगर आप ना होते तो मैं कभी इस जुल्म के खिलाफ खड़ी ना हो पाती।”
दीपक वर्मा ने बेटी की तरफ मोहब्बत भरी नजर डाली और जवाब दिया, “नहीं बेटी, यह तुम्हारी सच्चाई और हौसले की वजह से हुआ है। तुमने जुल्म बर्दाश्त किया मगर झूठ को कबूल नहीं किया। यही तुम्हारी असली ताकत है।”
समाज में बदलाव
कमरा-ए अदालत में रिपोर्टरों ने इस मंजर को कैमरों में कैद किया। अखबारात ने अगले दिन बड़े-बड़े हरूफ में लिखा, “रीमा को इंसाफ मिल गया। अदालत ने करप्ट अफसर को सजा सुनाई।”
यह फैसला सिर्फ एक केस का इख्तताम ना था बल्कि पूरे मुल्क में उम्मीद की एक नई लहर बन गया। अब हर कोई कह रहा था, “अगर जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद की जाए तो इंसाफ मिल सकता है।”
अदालत के बाद का माहौल अदालत के फैसले के बाद आवाम में खुशी और सुकून की एक लहर दौड़ गई। लेकिन साथ ही सवाल भी उठने लगे कि आखिर इतनी बड़ी ज्यादती पहले ही क्यों ना रोकी गई?
टीवी चैनल्स पर माहरीन बहस कर रहे थे। अखबारात में इदारिए लिखे जा रहे थे और सोशल मीडिया पर लोग अपने जज्बात का इजहार कर रहे थे। हर तरफ एक ही बात थी कि पुलिस का महकमा अपनी इस्लाह करें और आवाम का एतबार बहाल करें।
रीमा का नया सफर
इसी दबाव के तहत पुलिस हेड क्वटर्स में एक हंगामी इजलास बुलाया गया। बड़े-बड़े अफसरान कांफ्रेंस हाल में जमा हुए। चेहरों पर संजीदगी और माहौल में तनाव साफ महसूस हो रहा था। फैसला किया गया कि खुलेआम आवाम से माफी मांगी जाए ताकि गुस्सा कुछ कम हो सके।
चंद दिन बाद एक बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी गई। कमरा सहाफियों, टीवी कैमरों और माइक्स से भरा हुआ था। पुलिस का एक आला अफसर स्टेज पर आया। उसके साथ दूसरे अफसरान भी खड़े थे। कैमरों की फ्लैश लाइट्स बार-बार चमक रही थीं।
अफसर ने माइक पर झुककर कहा, “हम आवाम से माफी मांगते हैं। इस वाकया ने महकमा पुलिस का सर शर्म से झुका दिया है।”
निष्कर्ष
बेशक यह कहानी एक बाप और बेटी की है, लेकिन यह समाज के लिए एक सबक है। रीमा की हिम्मत ने यह साबित किया कि अगर सच और इंसाफ के लिए खड़ा हुआ जाए, तो जुल्म का सामना किया जा सकता है। दीपक वर्मा और रीमा की कहानी ने यह दिखाया कि एक व्यक्ति की हिम्मत पूरे समाज को बदल सकती है।
रीमा अब जानती थी कि उसके साथ जो हुआ, वह सिर्फ उसके लिए नहीं, बल्कि हर उस लड़की के लिए है जो अपने हक के लिए लड़ रही है। यह कहानी एक नई शुरुआत थी, एक नई उम्मीद थी।
“सच्चाई और हिम्मत की आवाज कभी दब नहीं सकती।”
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