खंडहर से आशा तक: एक मां, एक बेटा और एक देवदूत की कहानी

वीरान शहर, ठंडी रातें
शहर के एक वीरान कोने में, जहां अधूरी इमारतें किसी कंकाल की तरह खड़ी थीं, वहां मौत जैसी खामोशी पसरी थी। सर्द हवाएं हड्डियों को चीरती हुई चल रही थीं, और उसी खंडहरनुमा इमारत के ठंडे फर्श पर गायत्री देवी बेसुध पड़ी थीं। उनका शरीर उम्र और बीमारी से कमजोर हो चुका था। फटी साड़ी के बीच से सर्द हवा उनके शरीर को चीर रही थी। भूख और बीमारी ने उन्हें इतना लाचार कर दिया था कि वे करवट भी नहीं बदल पा रही थीं।
उनकी पथराई आंखों में बस एक ही सवाल था—आखिर उनसे क्या गलती हुई थी? कभी उनका संसार खुशियों से महकता था। बेटे आर्यन ने रिया से शादी की थी। रिया देखने में सुंदर, संस्कारी लगती थी। गायत्री देवी को लगता था कि बुढ़ापे का सहारा मिल गया है। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए आर्यन ने विदेश जाने का फैसला लिया।
बिछड़ते रिश्ते, टूटती उम्मीदें
आर्यन ने मां के पास बैठकर कहा, “मां, जिम्मेदारियां बढ़ रही हैं। मुझे विदेश जाना होगा ताकि हम सबके लिए बेहतर भविष्य बना सकूं।” गायत्री देवी का दिल घबराया, लेकिन बेटे ने भरोसा दिलाया। जाते वक्त हवाई अड्डे पर आर्यन ने रिया का हाथ मां के हाथ में दिया, “रिया अब मां की जिम्मेदारी तुम्हारी है। मैं जो भी कमाऊंगा, तुम्हारे पास भेजूंगा। मां का ख्याल रखना।” रिया ने सिर हिलाया, आर्यन के पैर छूकर कहा, “आप बेफिक्र जाइए, मां जी।”
शुरुआत में सब ठीक रहा। आर्यन हर महीने पैसे भेजता रहा—किराए, खर्च, मां की दवाइयों के लिए। गायत्री देवी को स्मार्टफोन चलाना नहीं आता था, इसलिए आर्यन हमेशा रिया के फोन पर ही कॉल करता था। लेकिन धीरे-धीरे रिया का असली चेहरा सामने आने लगा। वह आर्यन के भेजे पैसे अपनी शौक-मौज, महंगे कपड़ों पर उड़ाने लगी। गायत्री देवी दवा के पैसे मांगती तो रिया झिड़क देती। वह अक्सर देर रात तक किसी और से फोन पर बातें करती।
एक दिन रिया एक अजनबी युवक के साथ घर लौटी। दोनों बेखौफ हंस रहे थे। गायत्री देवी ने पूछा, “बहू, ये कौन है? तुम तो आर्यन की पत्नी हो। हमारे घर की इज्जत हो। यह सब क्या है?” रिया ने क्रूर हंसी के साथ जवाब दिया, “इज्जत मां जी, कौन सी दुनिया में जी रही हैं आप? आर्यन को विदेश में ही सड़ने दीजिए। मैंने अपनी खुशी चुन ली है।”
रिया ने अपना सामान बांधा, जाते-जाते गायत्री देवी को ताना मारा, “आर्यन को मेरा शुक्रिया कहिएगा। उसके भेजे पैसों से मैंने और मेरे साथी ने खूब मजे किए।” रिया अपने प्रेमी के साथ घर से चली गई। गायत्री देवी को उस खाली घर में अकेला छोड़ गई। बेटा परदेश में था, बहू ने धोखा दे दिया।
बेघर मां, सड़क की ठंड
कुछ ही दिनों बाद मकान मालिक आया, “किराया नहीं मिला है महीनों से। अभी घर खाली करो।” गायत्री देवी ने बहुत हाथ-पैर जोड़े, “बेटा मेरी बहू ने पैसे नहीं दिए। मेरा बेटा भेजेगा।” किसी ने नहीं सुना। उन्हें धक्के मारकर घर से निकाल दिया गया। लाचार, भूखी, बीमार गायत्री देवी शहर की सड़कों पर भटकती रहीं। जब तक कि वह उस खंडहर में नहीं पहुंच गईं।
अब उस ठंडी जमीन पर लेटे हुए उन्होंने आसमान की ओर देखा और सिसकते हुए कहा, “बेटा, तुम कहां हो? तुम्हारी मां मर रही है।”
एक नई सुबह, एक नई आशा
उसी शहर की गलियों में, धूल और भागदौड़ के बीच, अंजलि नाम की युवती तेजी से कदम बढ़ा रही थी। साधारण लेकिन साफ-सुथरी नर्स की यूनिफार्म पहने, अंजलि एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की बड़ी बेटी थी। पिता की दुकान, मां की सिलाई, अपनी जरूरतें मारकर अंजलि को नर्सिंग की पढ़ाई करवाई थी—उम्मीद थी कि वह परिवार का सहारा बनेगी।
अंजलि को एक छोटे प्राइवेट क्लीनिक में नौकरी मिली थी। आज उसे देर हो रही थी। समय बचाने के लिए उसने सुनसान रास्ता चुना, जो उन खंडहर इमारतों के बीच से गुजरता था। जैसे ही वह वहां से गुजरी, उसे कराहने की आवाज सुनाई दी। डर नहीं, चिंता से उसका दिल धड़कने लगा। एक नर्स होने के नाते वह दर्द की आवाज पहचानती थी। वह जानती थी कि उसे देर हो रही है, नौकरी का खतरा है, लेकिन संस्कार उसे किसी को मरता छोड़ने की इजाजत नहीं दे रहे थे।
इंसानियत की परीक्षा
अंजलि हिम्मत करके खंडहर के अंदर गई। धूल भरे अंधेरे कोने में उसने गायत्री देवी को देखा। एक बुजुर्ग मां, ठंड से अकड़ गई, सांसे उखड़ रही थीं। अंजलि दौड़कर उनके पास बैठी, नब्ज़ टटोली—शरीर बर्फ जैसा ठंडा। “मां जी, क्या आप मुझे सुन सकती हैं?” गायत्री देवी ने अधखुली आंखों से देखा, बस इतना ही फुसफुसा पाईं, “मदद…”
अंजलि समझ गई, अगर तुरंत अस्पताल नहीं ले गई तो बचना मुश्किल है। उसने उन्हें उठाने की कोशिश की, लेकिन शरीर बेजान था। अकेले कुछ नहीं कर सकती थी। अंजलि ने उनका हाथ थामकर कहा, “मां जी, हिम्मत मत हारना। मैं अभी मदद लेकर आती हूं। मैं आपको मरने नहीं दूंगी।”
अंजलि ने पूरी ताकत लगाकर क्लीनिक की ओर दौड़ लगाई। पसीना माथे से बह रहा था, सांस फूल रही थी, लेकिन वह रुकी नहीं। क्लीनिक पहुंचते ही हेड नर्स मैटरन सुजाता गुस्से में थीं। “सिस्टर अंजलि, यह वक्त है आने का? अभी तो नौकरी शुरू हुई है और अभी से लापरवाही?”
अंजलि ने सफाई देने के बजाय हाथ जोड़ लिए, “मैडम, माफ कर दीजिए। अभी एक बड़ी इमरजेंसी है। पास वाले खंडहर में एक बूढ़ी अम्मा आखिरी सांसे ले रही हैं। अगर एंबुलेंस नहीं भेजी तो वह मर जाएंगी। प्लीज मैडम, मेरी नौकरी बाद में देख लीजिएगा, पहले उस जान को बचा लीजिए।”
अंजलि की आंखों में सच्चाई और घबराहट देखकर मैटरन सुजाता का गुस्सा पिघल गया। उन्होंने तुरंत आदेश दिया, “जल्दी स्ट्रेचर और ड्राइवर को लेकर जाओ।”
कुछ ही मिनटों में एंबुलेंस वहां पहुंच गई। अंजलि और वार्ड बॉय ने मिलकर गायत्री देवी को स्ट्रेचर पर लेटाया। अंजलि ने उनका ठंडा हाथ अपने हाथों में ले रखा था और दिलासा दे रही थी, “मां जी, आप सुरक्षित हैं। हम अस्पताल जा रहे हैं।”
जीवन की डोर, सेवा का धर्म
क्लीनिक पहुंचते ही इलाज शुरू हो गया। गायत्री देवी को गर्म कपड़े ओढ़ाए गए, ड्रिप लगाई गई। जब स्थिति थोड़ी स्थिर हुई तो मैटरन सुजाता ने अंजलि को केबिन में बुलाया। “अंजलि, तुमने आज इंसानियत का काम किया है। मुझे तुम पर गर्व है, लेकिन याद रखना अस्पताल नियमों से चलता है। आइंदा देर मत करना।”
अंजलि ने सिर झुका कर कहा, “मैडम, शुक्रिया। आगे से ऐसा नहीं होगा।” बाहर आई तो मन हल्का था। उसने आज एक जान बचाई थी। लेकिन उसे खबर नहीं थी कि जिस अनजान औरत को उसने बचाया था, वह उसका भविष्य बदलने वाली थी।
सात समंदर पार—पश्चाताप और प्रेम
विदेशी धरती पर आर्यन कई सालों से एक ही लक्ष्य के साथ जी रहा था। अपनी मां और पत्नी को शानदार जिंदगी देना। वह हर दिन 14-14 घंटे काम करता, एक-एक पैसा जोड़ता। पिछले 8 महीनों से रिया के साथ उसका संपर्क कम हो गया था। जब फोन करता तो रिया बहाने बनाकर फोन काट देती। आर्यन को चिंता होती थी, पर वह सोचता था कि रिया व्यस्त होगी।
एक दिन उसकी मेहनत रंग लाई। कंपनी ने बड़ा बोनस दिया, प्रमोशन मिला। आर्यन ने फैसला किया—अब और नहीं। उसने टिकट बुक की, मां को सरप्राइज देना चाहता था। भारी सूटकेस, ढेर सारे तोहफों के साथ पुरानी गली पहुंचा। दरवाजे पर धूल, ताला लगा था। डर की लहर उठी। पड़ोसियों से पूछा, कोई कुछ बताने को तैयार नहीं। मकान मालिक वर्मा जी से पूछा, वर्मा जी गुस्से में बोले, “तुम्हारी पत्नी रिया एक साल पहले ही किसी और मर्द के साथ भाग गई थी। तुम्हारा भेजा सारा पैसा उड़ा दिया। तुम्हारी मां को जलील किया और जब किराया नहीं मिला तो मुझे उन्हें घर से निकालना पड़ा। तुम्हारी मां को गए हुए महीनों हो गए हैं। वह कहां है, मुझे नहीं पता।”
आर्यन के कानों में ये शब्द गोली की तरह लगे। वह वहीं गिर पड़ा। रिया का विश्वासघात, पैसों का दुरुपयोग एक तरफ, लेकिन मां का बेघर होना—इसने आर्यन की आत्मा को झिंझोड़ दिया। वह अपने घुटनों पर बैठ गया, जमीन पर हाथ टिकाए, गले से दर्द भरी चीख निकली, “मां, मैंने क्या कर दिया? मुझे तुम्हें छोड़कर नहीं जाना चाहिए था।”
खोज, उम्मीद और पुनर्मिलन
आर्यन ने कसम खाई—अब उसकी जिंदगी का मकसद सिर्फ एक था, अपनी मां को ढूंढना। उसने शहर की हर गली, मंदिर, अस्पताल में मां को ढूंढना शुरू किया। दिन-रात एक कर दिए, लेकिन गायत्री देवी कहीं नहीं मिलीं। थक-हारकर उसने बैंक स्टेटमेंट्स देखे। आखिरी बार पैसे एक छोटे क्लीनिक में निकाले गए थे। उसने तुरंत क्लीनिक का पता लगाया।
क्लीनिक के दरवाजे पर रुका, सीने में डर और उम्मीद का मिश्रण। अंदर रिसेप्शन पर अंजलि कागज संभाल रही थी। आर्यन ने हिम्मत करके पूछा, “माफ करना, क्या मैं रिकॉर्ड्स देख सकता हूं? एक मरीज के बारे में जानकारी चाहिए।”
अंजलि ने देखा—सामने महंगे सूट में व्यक्ति, लेकिन चेहरे पर थकान, दुख और आंखों में गहरी नींद की कमी। “जरूर, किसके बारे में?” “क्या लगभग एक महीने पहले कोई बुजुर्ग महिला आई थी? नाम गायत्री देवी हो सकता है। बेघर थी, बहुत बीमार अवस्था में।”
अंजलि तुरंत समझ गई—मामला बहुत निजी है। गायत्री देवी का चेहरा उसकी आंखों के सामने घूम गया। उसने रिकॉर्ड्स देखे, “हां, गायत्री देवी हमारे रिकॉर्ड में हैं। हम उन्हें खंडहर से लाए थे। हालत बहुत नाजुक थी।”
आर्यन का दिल जोर से धड़कने लगा। “वो कहां है? क्या वह ठीक है?” अंजलि ने गहरी सांस ली, “जब उन्हें लाया तो हालत बहुत खराब थी। निमोनिया था, कई दिनों से भूखी थीं। हम उन्हें बचा तो पाए, पर इलाज में बहुत खर्चा आया। वह अभी भी हमारे क्लीनिक के एक अलग कमरे में है, क्योंकि उनके पास कोई नहीं था।”
आर्यन की आंखों में पानी आ गया। उसने अपनी मां को बचाने वाली उस देवदूत अंजलि को देखा। जेब में हाथ डालकर बोला, “सारा खर्चा मैं दूंगा। मैं उनका बेटा हूं, आर्यन।”
सवाल, माफ़ी और पश्चाताप
अंजलि को आश्चर्य हुआ। “आप उनके बेटे हैं? कहां थे आप जब आपकी मां ठंड से मर रही थी? कहां थे जब उन्हें भूखा रहना पड़ा?” अंजलि की सीधी बात सुनकर आर्यन का सिर शर्म से झुक गया। “मैं विदेश में था, मेरी पत्नी ने धोखा दिया…” अंजलि ने उसकी बात काट दी, “आपकी कहानी जरूरी नहीं है। जरूरी यह है कि एक मां को सड़क पर फेंक दिया गया और उनका बेटा मीलों दूर ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहा था।”
अंजलि ने कहा, “आप उनसे मिलिए, वह अभी भी बहुत कमजोर हैं।” अंजलि उसे उस कमरे में ले गई जहां गायत्री देवी आराम कर रही थीं। कमरे में दाखिल होते ही आर्यन की आंखें मां पर पड़ीं। बीमारी और बुढ़ापे ने उन्हें इतना कमजोर कर दिया था कि वे कंकाल जैसी लग रही थीं।
आर्यन दौड़कर उनके पास गया, घुटनों के बल बैठ गया, कांपते हाथों से मां का सूखा हुआ हाथ पकड़ा और माथे पर लगा लिया, “मां, मैं आ गया। मां, माफ कर दो। यह सब मेरी गलती है।” वह जोर-जोर से रो पड़ा। गायत्री देवी ने आंखें खोलीं, अपने बेटे को पहचाना, बड़ी मुश्किल से हाथ उठाया, “बेटा…” “हां मां, अब आपको कुछ नहीं होगा। मैं आपको घर ले जाऊंगा।”
अंजलि दरवाजे पर खड़ी थी, उसकी आंखों में भी नमी आ गई थी। उस पल उसे आर्यन के पश्चाताप की सच्चाई महसूस हुई। उसने देखा कि यह दुख किसी पैसे वाले का नहीं, बल्कि एक बेटे का है जिसने अपनी मां को खोने के बाद उन्हें वापस पाया है।
सेवा, दया और पुनर्जन्म
आर्यन ने अंजलि से कहा, “आपने मेरी मां को जिंदगी दी है। आप मेरी देवी हैं। मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा। कृपया बताएं इलाज में कितना खर्चा आया है, मैं अभी चुका देता हूं।” अंजलि ने सिर हिलाया, “पैसे जरूरी नहीं हैं। जरूरी यह है कि अब आप उनका ख्याल रखें। उन्होंने बहुत कुछ सहा है।”
आर्यन ने क्लीनिक का सारा बकाया चुकाया, अंजलि को बड़ी रकम दी ताकि क्लीनिक के लिए नए उपकरण खरीदे जा सकें। लेकिन अंजलि ने पैसा लेने से मना कर दिया। “सर, एक नर्स का काम ही सेवा करना है। मैंने जो किया, वह मेरा फर्ज था। किसी इनाम के लिए नहीं किया। आप बस अपनी मां को प्यार दें, वही काफी है।”
आर्यन उसकी सादगी, निस्वार्थ भावना से बहुत प्रभावित हुआ। “तुम सिर्फ नर्स नहीं हो, अंजलि। तुम मेरी मां के लिए भगवान का भेजा दूत हो।”
कुछ दिनों बाद गायत्री देवी की हालत में काफी सुधार हुआ। आर्यन ने अपने सारे विदेशी निवेश बेचकर शहर के एक शांत इलाके में छोटा सुंदर घर खरीदा। मां को उस नए घर में लाना सबसे भावनात्मक पल था। गायत्री देवी ने कमजोर आवाज में कहा, “मेरा बेटा वापस आ गया है। मेरे लिए यही मेरा घर है।”
माफ़ी, न्याय और नया जीवन
इसके बाद आर्यन ने रिया को ढूंढने का फैसला किया। पुलिस की मदद से रिया और उसके प्रेमी को ढूंढ निकाला गया। पुलिस स्टेशन में रिया डर से कांप उठी, रोते हुए माफी मांगने की कोशिश की। आर्यन ने उसे रोक दिया, “मैं अपना केस खुद लडूंगा। पर तुम्हारा केस तुम्हारे खिलाफ नहीं, खुद अपने खिलाफ लडूंगा। मैं उस बेटे को सजा दूंगा जो तुम्हें मेरी मां पर अकेला छोड़ गया था।”
आर्यन ने रिया के खिलाफ दायर सभी आरोप वापस ले लिए। गायत्री देवी हैरान थीं, “बेटा, तुमने उसे क्यों जाने दिया?” “मां, वह पहले ही अपनी गलतियों की कैदी है। अगर हम उसे सजा दिलाते हैं, तो वह हमेशा हमारे दिल में नफरत बनकर रहेगी। मुझे अब शांति चाहिए। मैं उसे माफ नहीं कर रहा, बल्कि खुद को नफरत से आजाद कर रहा हूं।”
पुनर्जन्म, प्रेम और नई शुरुआत
अगले कई हफ्तों तक अंजलि रोज गायत्री देवी को देखने आती। उनका चेकअप करती, दवाइयां देती। इन मुलाकातों में आर्यन ने देखा कि अंजलि कितनी दयालु, जिम्मेदार और साफ दिल की है। उसकी सेवा में कोई दिखावा नहीं था। वह रोज गायत्री देवी से भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारे में बातें करती, जिससे उनका मन लगा रहता।
एक शाम, जब अंजलि जाने लगी, गायत्री देवी ने उसका हाथ थाम लिया। “बेटा, तूने मेरी कोख को नई जिंदगी दी है। मेरी दुआ है कि तुझे दुनिया की हर खुशी मिले।” आर्यन ने हिम्मत जुटाई, अंजलि से अपनी भावनाएं व्यक्त कीं, “तुम मेरे जीवन में आशा की किरण बनकर आई हो। तुमने सिर्फ मेरी मां को नहीं बचाया, बल्कि मुझे भी मेरे पश्चाताप से बचाया है।”
अंजलि मुस्कुराई, समझ गई कि आर्यन सिर्फ दोस्ती नहीं कर रहा, बल्कि अपनी जिंदगी का नया अध्याय शुरू करना चाहता है। कुछ महीनों बाद आर्यन और अंजलि ने शादी कर ली। शादी बहुत साधारण थी, लेकिन उसमें प्यार और विश्वास था।
जीवन का संदेश
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन एक पल में बदल सकता है। कभी-कभी जिन लोगों पर हम सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं, वे हमें धोखा देते हैं, और जिन अजनबियों को हम कभी नहीं जानते, वे हमारे लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद बन जाते हैं। दयालुता में वह शक्ति है जिसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता। जब आप बिना किसी अपेक्षा के किसी की मदद करते हैं, तो भाग्य हमेशा आपको पुरस्कृत करने का रास्ता खोज लेता है।
और सबसे जरूरी बात—माफ़ी उस इंसान को दिया गया उपहार नहीं है जिसने आपको चोट पहुंचाई, बल्कि यह वह उपहार है जो आप खुद को देते हैं ताकि आपका दिल आजाद हो सके और भविष्य उज्जवल हो।
नई सुबह, नई आशा
अब गायत्री देवी अपने बेटे और बहू के साथ नए घर में थीं। उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बेहतर हो रहा था। आर्यन ने अपनी मां की सेवा को जीवन का सबसे बड़ा धर्म बना लिया था। अंजलि ने अपने क्लीनिक में सेवा को और बढ़ा दिया। वह गरीबों के लिए मुफ्त इलाज करती थी। आर्यन ने शहर में एक छोटा सा फाउंडेशन खोला, जिसमें बेसहारा बुजुर्गों की मदद की जाती थी।
गायत्री देवी अब रोज सुबह आंगन में बैठतीं, सूरज की किरणों में अपने पुराने दुख को भूलने की कोशिश करतीं। उनके चेहरे पर अब संतोष था। उन्होंने अपने बेटे से कहा, “बेटा, जीवन में दुख आएंगे, लेकिन अगर इंसान हार मान ले तो जीवन खत्म हो जाता है। तूने मुझे फिर जीना सिखाया है।”
समाज की सीख
आर्यन और अंजलि की कहानी पूरे शहर में फैल गई थी। लोग उनके साहस, सेवा और माफ़ी की मिसाल देने लगे थे। कई युवा अंजलि से प्रेरित होकर नर्सिंग की पढ़ाई करने लगे। आर्यन के फाउंडेशन में कई बुजुर्गों को नया घर, नई आशा मिली।
गायत्री देवी ने अपने अनुभव से सीखा कि इंसान की सबसे बड़ी ताकत उसका परिवार, उसकी सेवा और उसकी माफ़ी है। उन्होंने अपने जीवन की आखिरी किताब में लिखा, “अगर कभी कोई तुम्हें धोखा दे, तो उसे माफ़ कर दो। क्योंकि माफ़ी केवल उसे नहीं, तुम्हें भी आजाद करती है।”
अंतिम संदेश
यह कहानी बताती है कि जीवन में कभी-कभी विपत्तियाँ हमें तोड़ देती हैं, लेकिन अगर हमारे भीतर सेवा, दया और माफ़ी की शक्ति है, तो हम हर अंधेरे से बाहर निकल सकते हैं। कभी-कभी अजनबी लोग हमारे लिए भगवान के दूत बन जाते हैं। और सबसे बड़ा धर्म है—किसी बेसहारा को सहारा देना।
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