“गरीब समझकर पत्नी ने शोरूम से भगाया – तलाकशुदा पति ने खड़े-खड़े खरीद डाला पूरा शोरूम”
यह कहानी लखनऊ की गलियों से शुरू होती है। चमचमाती सड़कों और ऊंची इमारतों के बीच खड़ा एक बड़ा Mercedes शोरूम। अंदर एसी की ठंडी हवा, झिलमिल करती कारें, और महंगे सूट पहने लोग। तभी कांच के दरवाज़े खुलते हैं और अंदर आता है एक आदमी — फटा हुआ कुर्ता, धूल भरी पायजामा, और पैरों में पुराने सैंडल। शोरूम में मौजूद हर नजर उसी पर ठहर जाती है। कोई धीरे से कहता है, “गलत जगह आ गया लगता है…” किसी के चेहरे पर तिरस्कार भरी मुस्कान है।
मैनेजर केबिन से बाहर निकलती है — उसका नाम है रीना। वही रीना जो कभी हरीश की पत्नी थी। अब महंगे ब्रांडेड सूट, हाई हील्स और आत्मविश्वास में लिपटी हुई। जैसे ही उसने उस आदमी को देखा, उसकी आंखों में तिरस्कार और अतीत की झलक एक साथ उभर आई।
वो तंज कसते हुए बोली —
“हरीश? तुम यहाँ? यह Mercedes का शोरूम है, कोई फुटपाथ नहीं जहाँ तुम्हारे जैसे गरीब खड़े हों। निकल जाओ यहाँ से।”
शोरूम में हल्की-हल्की हंसी फैल गई। दो सेल्समैन उसकी तरफ बढ़े। हरीश ने किसी को कुछ नहीं कहा। बस चुपचाप खड़ा रहा। उसके चेहरे पर एक ठंडा सन्नाटा था, जैसे भीतर आग जल रही हो मगर चेहरा बर्फ बना हो।
रीना फिर बोली —
“याद है जब मैंने तुम्हें छोड़ा था? तब भी तुम्हारे पास कुछ नहीं था, और आज भी तुम्हारे पास कुछ नहीं है। तुम्हारे जैसे लोग सिर्फ सपनों में जीते हैं, असलियत में नहीं।”
हरीश की आंखें थोड़ी झुकीं, और जैसे अतीत की धुंध उसके सामने फैल गई। आठ साल पीछे चला गया वो मन।
वो वक्त जब हरीश और रीना का छोटा-सा संसार था — एक किराये का कमरा, टपकती छत, टूटी चारपाई और सपनों का बोझ। रीना बैंक में काम करती थी, और हरीश ट्यूशन पढ़ाता, छोटे-मोटे काम करता।
रीना अक्सर कहती —
“मेरे दोस्तों के पास गाड़ियां हैं, उनके पति बिजनेसमैन हैं, और मैं… मैं एक ट्यूटर की बीवी हूँ! मैं यह जिंदगी नहीं जी सकती, हरीश!”
हरीश चुप रहता।
वो जानता था कि गरीबी दर्द देती है, मगर उम्मीद मरने नहीं देती।
एक दिन उसने तय किया — “अब कुछ बड़ा करना होगा।”
उसका एक दोस्त निखिल मिला, जिसने पहली बार उसे बताया कि शेयर मार्केट में दिमाग लगाकर अमीरी पाई जा सकती है।
शुरुआत आसान नहीं थी। हरीश रातों को इंटरनेट कैफे में बैठता, वीडियो देखता, किताबें पढ़ता, चार्ट्स समझता।
रीना ने जब उसे यह सब करते देखा तो हंस पड़ी —
“तुम शेयर मार्केट में पैसे कमाओगे? तुम्हें मोबाइल चलाना नहीं आता!”
और एक दिन उसने ठंडे लहजे में कहा —
“हरीश, मैं थक गई हूँ। मुझे तलाक चाहिए। मैं यह गरीबी और तुम्हारे सपनों का बोझ नहीं उठा सकती।”
हरीश ने कुछ नहीं कहा। सिर्फ तलाक के कागज़ पर साइन कर दिए।
उस रात छत पर बैठकर उसने आसमान की तरफ देखा और धीरे से कहा —
“एक दिन लौटूंगा रीना, और साबित कर दूंगा कि गरीब वो नहीं होता जिसके पास पैसा नहीं, गरीब वो होता है जिसके पास हिम्मत नहीं।”
उसके बाद शुरू हुआ संघर्ष।
दिन में काम, रात में स्टडी। उधार लेकर डेमो ट्रेडिंग। कभी घाटा, कभी मुनाफा।
वो हारता, गिरता, मगर उठता रहा।
चार साल बाद उसकी किस्मत ने मुस्कुराना शुरू किया।
लाखों के निवेश ने करोड़ों का रूप लिया।
वो अब सफल ट्रेडर था, खुद की इन्वेस्टमेंट कंपनी का मालिक।
लेकिन उसने अपने राज़ को छुपा कर रखा।
ना किसी रिश्तेदार को बताया, ना रीना को।
उसके मन में एक ही बात थी — “जिस दिन मैं लौटूंगा, दुनिया मुझे पहचान नहीं पाएगी, लेकिन मैं उन्हें पहचान लूंगा।”
आज वही दिन था।
वो कुर्ता पहनकर उसी शोरूम में आया, जहाँ रीना अब मैनेजर थी।
शोरूम में हर कोई हंस रहा था। रीना ने कहा —
“तुम गाड़ी खरीदने आए हो? तुम्हारे पास तो किराया देने के पैसे नहीं थे!”
हरीश ने बिना जवाब दिए, अपनी जेब से पुरानी चेकबुक निकाली।
सन्नाटा छा गया।
रीना ठहाका मारकर बोली —
“देखो सब लोग, यही है मेरी किस्मत का मज़ाक। यह आदमी चेकबुक लेकर Mercedes खरीदने आया है!”
हरीश ने चुपचाप टेबल पर चेक लिखा और सेल्समैन को दिया।
सेल्समैन ने चेक देखा, और अगले ही पल उसका चेहरा सफेद पड़ गया।
वो हकलाया —
“मैडम… इसमें तो… करोड़ों की रकम लिखी है…”
रीना की आंखें फैल गईं।
“क्या कहा?”
सेल्समैन ने धीरे से दोहराया — “जी मैडम, यह चेक पूरे शोरूम की कीमत का है।”
पूरा शोरूम सन्नाटे में डूब गया।
जो कुछ देर पहले हंस रहे थे, अब दंग रह गए।
हरीश ने सिर उठाया और बोला —
“हाँ, मैं कार नहीं, पूरा शोरूम खरीदने आया हूँ।”
रीना की टाँगें कांपने लगीं। उसकी आंखों से शर्म और पछतावे के आंसू छलकने को थे।
वो बोली —
“यह सब मजाक है, हरीश… तुम मजाक कर रहे हो…”
हरीश ने हल्की मुस्कान दी।
“मजाक उस दिन हुआ था, रीना, जब तुमने मुझे गरीब समझकर छोड़ दिया था। आज तो बस हिसाब बराबर हुआ है।”
पास खड़े वकील ने कागज़ बढ़ाया —
“सर, सारे दस्तावेज तैयार हैं, बस साइन कीजिए।”
हरीश ने साइन किया और बोला —
“अब से यह शोरूम मेरा है।”
तालियाँ गूंज उठीं।
ग्राहक, कर्मचारी — सब उसकी तरफ सम्मान से देख रहे थे।
रीना वहीं खड़ी रह गई। आंखों में पछतावा, चेहरे पर टूटा हुआ घमंड।
वो बोली —
“हरीश, मैं… मैं तुम्हें गलत समझी थी… माफ कर दो…”
हरीश ने उसकी तरफ देखा —
“रीना, माफ करने लायक कुछ बचा नहीं। तुमने मेरा साथ उस वक्त छोड़ा, जब मुझे किसी के कंधे की ज़रूरत थी। अब मेरे पास सब कुछ है — लेकिन तुम्हारे लिए कुछ नहीं।”
वो मुड़ा और बाहर निकल गया।
पीछे सिर्फ सन्नाटा था और रीना की कांपती सिसकियां।
बाहर उसका दोस्त निखिल खड़ा था।
“यार, याद है जब तू ₹500 का पहला शेयर खरीदा था और रातभर सो नहीं पाया था?”
हरीश मुस्कुराया —
“हाँ, और आज पूरा शोरूम खरीद लिया।”
निखिल बोला —
“सच में, तूने कमाल कर दिया।”
हरीश ने कहा —
“निखिल, असली जीत पैसे की नहीं, इज्जत की होती है। जिस दिन खुद को साबित कर दो, वो दिन सबसे बड़ा होता है।”
रात को जब हरीश अपने ऑफिस पहुँचा — ऊँची इमारत, कांच की दीवारें, और उसकी मेहनत का साम्राज्य — उसकी टीम ने ताली बजाई।
“सर, डील फाइनल हो गई?”
हरीश ने कहा —
“हाँ, आज से वो शोरूम हमारा है।”
सभी के चेहरों पर गर्व था।
उधर, रीना अपने घर पहुंची।
महंगी गाड़ियों से भरे पार्किंग में उसकी कार थी, पर मन खाली था।
कमरे की लाइट बंद की, और आईने के सामने बैठ गई।
उसने खुद से कहा —
“काश, मैंने थोड़ा सब्र किया होता। काश, मैंने हरीश का हाथ नहीं छोड़ा होता।”
लेकिन वक्त वापस नहीं आता।
पैसों के पीछे भागते हुए उसने असली दौलत — प्यार, भरोसा, इंसानियत — सब खो दिया था।
अगले दिन रीना हिम्मत जुटाकर हरीश के ऑफिस पहुंची।
दरवाज़े पर खड़ी थी, आँखें नम, आवाज़ कांपती हुई —
“हरीश, मैं माफी मांगने आई हूँ। मैंने बहुत बड़ी गलती की।”
हरीश ने शांत स्वर में कहा —
“रीना, वक्त एक बार जाता है तो लौटकर नहीं आता। तुमने मेरी गरीबी देखी थी, लेकिन मेरे सपनों की आग नहीं देखी। और आज जब मैं सफल हूँ, तुम लौटी हो… लेकिन अब मेरे दिल में तुम्हारे लिए कुछ नहीं बचा।”
रीना रो पड़ी —
“हरीश, एक मौका दे दो…”
हरीश ने कहा —
“अब देर हो चुकी है। इंसानियत यही सिखाती है कि आगे बढ़ो, लेकिन पीछे मुड़कर मत देखो।”
वो चला गया, और पीछे रह गई रीना — टूटी, अकेली, पछतावे में डूबी।
हरीश बालकनी में खड़ा शहर की रोशनी देख रहा था।
हवा में ठंडक थी, लेकिन उसके दिल में सुकून था।
उसने आसमान की तरफ देखा और धीरे से कहा —
“धन्यवाद भगवान, तूने मुझे टूटने नहीं दिया।”
उसकी आंखों में जो चमक थी, वो सिर्फ सफलता की नहीं — सम्मान और आत्मविश्वास की थी।
रीना के कमरे में अंधेरा था, लेकिन उसके भीतर पछतावे की आग जल रही थी।
वो बुदबुदाई — “प्यार पैसों से नहीं, भरोसे से जीता जाता है।”
कहानी यहीं खत्म होती है, लेकिन यह सबक छोड़ जाती है —
किसी को कभी उसके कपड़ों, हालात या गरीबी से मत आंकिए।
क्योंकि वक्त के पास सबको पलट देने की ताकत होती है।
अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो ❤️
तो याद रखिए —
गरीबी कोई दोष नहीं, अहंकार हर रिश्ते को गरीब बना देता है।
जय हिंद। जय भारत। 🇮🇳
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