गुब्बारों की उड़ान: एक अधूरी बेटी, एक अधूरा पिता

प्रस्तावना
शहर की सुबहें हमेशा भागती रहती हैं—सड़क पर गाड़ियों की कतारें, ऑफिस जाने की जल्दी, बच्चों की स्कूल बसें, ठेले वालों की आवाजें, और कहीं-कहीं फुटपाथ पर जिंदगी की जद्दोजहद। साहिल मेहरा, एक अमीर घर का नौजवान, हर सुबह अपनी ऑडी में बैठकर ऑफिस जाता है। उसके पास सब कुछ है—पैसा, शोहरत, स्टेटस, एक सुंदर गर्लफ्रेंड रिया, और एक ऐसा जीवन जिसमें हर चीज़ पर उसका हक़ है। लेकिन उसकी सुबहें हमेशा एक छोटी सी लड़की की मुस्कान से शुरू होती हैं।
हर दिन जब उसकी गाड़ी सिग्नल पर रुकती, वह लड़की—काव्या—गुब्बारे, फूल या पुरानी किताबें बेचती दिख जाती। उसकी उम्र मुश्किल से दस-ग्यारह साल रही होगी। बाल कंधे तक, थोड़े उलझे हुए। कपड़े पुराने, लेकिन आंखें बड़ी और चमकती हुई। उसकी मुस्कान इतनी असली थी कि जैसे उसके जीवन के सारे ग़म उस हंसी में पिघल जाते हों। साहिल अक्सर उसे देखता था। पहले बस नजरें जाती थीं, फिर वह चेहरा पहचान बनने लगा, और फिर काव्या की मुस्कान उसकी सुबह का सबसे खूबसूरत हिस्सा बन गई।
शहर की भीड़ और एक मासूम मुस्कान
साहिल के लिए ट्रैफिक सिर्फ एक रुकावट थी जिसे वे बेमन से सहते थे। लेकिन हर रोज लाल सिग्नल पर गाड़ी रुकते ही कुछ ऐसा होता जो साहिल के दिल को हल्का सा छू जाता। छोटे-छोटे बच्चे गाड़ियों के पास आकर कुछ गुब्बारे बेचते, कुछ भीख मांगते, कुछ फूल बेचते। उसी भीड़ में एक नन्ही सी लड़की आती—काव्या। उसकी आंखों में दुनिया के सारे सपने छिपे थे। उसके बाल कंधे तक आते, थोड़ा उलझे हुए। पर उसकी मुस्कान इतनी असली थी कि जैसे जीवन ने उसके हर गम के बावजूद जुबान पर हंसी लिख दी हो।
कभी गुब्बारे लेकर आती, कभी पुरानी किताबें, कभी छोटे-छोटे फूल। कभी-कभी वह दौड़ते हुए गाड़ियों के बीच में फुर्ती से निकलकर लोगों को खुश करने की कोशिश करती। शायद बिक जाने से ज्यादा वह खुद को काम का महसूस कराने की कोशिश करती थी। साहिल अक्सर उसे देखता था। हर दिन पहले बस नजरें जाती थीं, फिर वह चेहरा पहचान बनने लगा और फिर काव्या की मुस्कान उसकी सुबह का सबसे खूबसूरत हिस्सा बन गई।
पहला संवाद: दो गुब्बारे और एक वादा
एक सुबह, हमेशा की तरह ऑडी सिग्नल पर रुकी। गाड़ियों की आवाजें, दुकानों का शटर उठने की खटर-पटर, ठेलों की गंध सब पहले सा ही। अचानक काव्या खिड़की से चिपकी खड़ी थी। आंखों में उम्मीद, हाथ में लाल और पीले गुब्बारे। “अंकल, गुब्बारा ले लो ना। आपकी गर्लफ्रेंड बहुत खुश हो जाएगी।” साहिल और रिया दोनों हंस पड़े। साहिल ने पर्स से दो सौ का नोट निकाला और दो गुब्बारे ले लिए। काव्या की आंखें चमक उठीं। वह बाकी पैसे लौटाने लगी, लेकिन साहिल ने मुस्कुराकर मना कर दिया। “थैंक यू अंकल,” कहकर वह भाग गई।
रिया मुस्कुराई, “लगता है तुम्हारा दिल इस बच्ची ने चुरा लिया।” साहिल हल्की हंसी देता, लेकिन भीतर कहीं एक अजीब सी गर्माहट महसूस करता। अगले दिन, उसी सिग्नल पर काव्या फिर आई—इस बार हाथ में किताबें थीं। “अंकल, आज किताब ले लीजिए। बस बीस की है।” साहिल ने बिना सोचे किताब खरीद ली। धीरे-धीरे यह रिश्ता रोज की दिनचर्या बन गया। कभी गुब्बारे, कभी फूल, कभी चॉकलेट। लेकिन सच यह था कि साहिल सिर्फ खरीद नहीं रहा था, वह काव्या में एक अलग तरह की मासूमियत, एक अलग दर्द पढ़ चुका था।
काव्या का गायब होना: बेचैनी की शुरुआत
एक दिन, वही सिग्नल आया, वही भीड़, वही हवा, लेकिन काव्या नहीं। साहिल की नजरें बेचैनी से इधर-उधर फिसलने लगीं। वह शीशे से बाहर देखता, लेकिन कहीं भी काव्या का चेहरा नजर नहीं आता। रिया ने देखा कि साहिल का चेहरा उतर गया है। “क्या हुआ?” उसने पूछा। साहिल धीमे बोला, “काव्या आज नहीं आई। रोज आती है। कुछ तो हुआ है।”
तभी दो-तीन बच्चे भागते हुए आए। “अंकल, उसका एक्सीडेंट हो गया। एक तेज़ कार ने टक्कर मारी और भाग गई। सिर पर चोट आई है। अस्पताल ले गए हैं। डॉक्टर कह रहे हैं, बचने की उम्मीद कम है।” साहिल की पकड़ स्टीयरिंग पर कसी इतनी कि हाथ सफेद पड़ गए। रिया ने उसका कंधा पकड़ा, “काम डाउन।” लेकिन साहिल शांत कैसे रहता? उसने कार साइड में रोकी, बाहर आया, आंखें गीली थीं। “मुझे उस बच्ची को देखना है।” वह बच्चों के साथ ऑटो में बैठ गया। कुछ देर में वे तंग गलियों में उतर रहे थे, जहां धूप भी पूरी नहीं पड़ती।
एक रहस्य का खुलासा: काव्या की असलियत
एक छोटा सा घर, टूटी छत, फर्श पर फटे कपड़े। बाहर बैठी एक बुजुर्ग महिला फूट-फूट कर रो रही थी। साहिल को देखते ही उसकी आंखें और ज्यादा भर आईं। “बेटा, मैं तेरी बेटी को बचा ना सकी।” साहिल चौंक गया। “क्या मतलब?” महिला हिचकियों के बीच बोली, “काव्या, वो तेरी और नेहा की बेटी है। वही जिसे तूने दस साल पहले मजबूरी में हमें सौंप दिया था।”
उस पल जैसे दुनिया घूमना बंद हो गई। एक पल में उसका दिमाग सुन्न, पैर कांपने लगे। दिल ऐसी धड़कन से धड़कने लगा कि लगता था अभी फट जाएगा। उसने कुछ कहने की कोशिश की, पर शब्द गले में अटक गए। और सामने फिल्म की तरह पुराने दिन घूमने लगे।
2015: जवानी, प्यार और बगावत
साहिल तब सिर्फ 21 साल का था। कोलकाता के एक अच्छे कॉलेज में पढ़ रहा था। दोस्त, म्यूजिक, बाइक, कॉफी, देर रात तक घूमना। उसी कॉलेज में उसकी मुलाकात हुई नेहा से। नेहा शांत, समझदार, बेहद खूबसूरत। गहरी आंखें, लंबे बाल, मुस्कुराहट जो किसी का भी दिन बना दे। दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनों परिवार इस रिश्ते के खिलाफ थे। साहिल अमीर परिवार से, नेहा मध्यमवर्गीय। जब दबाव असहनीय हो गया, दोनों ने भागकर शादी कर ली। कोर्ट मैरिज हुई और वे मुंबई आ गए। एक कमरे का किराए का घर, लेकिन उनके लिए वही पूरा संसार था।
एक दिन नेहा ने खबर दी, “साहिल, मैं प्रेग्नेंट हूं।” साहिल के चेहरे पर खुशियों के रंग फैल गए। उसने नेहा को गले लगाया, उसके माथे को चूमा। उसके अंदर एक अलग सी जिम्मेदारी जन्म ले चुकी थी। दिन-रात मेहनत शुरू कर दी। छोटी-छोटी नौकरियां, फ्रीलांस प्रोजेक्ट—जो मिला, वो किया। वह चाहता था कि उसका बच्चा गरीबी में ना जन्म ले, ना पले।
मुंबई के महंगे शहर में एक छोटे कमरे की दीवारों पर नेहा ने अपने हाथों से छोटे-छोटे कार्टून बनाए थे। कहीं सूरज, कहीं चांद, कहीं मुस्कुराती गुड़िया। साहिल घर आता तो नेहा उसके सीने पर सिर रखकर घंटों बातें करती। “हमारी बेटी कैसी लगेगी?” साहिल हंसकर कहता, “मेरी तरह। शरारती और स्मार्ट।” नेहा हंसते-हंसते कहती, “अगर तेरी जैसी हुई ना तो मैं रोज भगवान से प्रार्थना करूंगी कि वह शांत हो जाए।”
काव्या का जन्म और संघर्ष
अस्पताल का कमरा, सफेद दीवारें, मशीनों की बीप, नेहा की चीखें। घंटों की पीड़ा के बाद एक नन्ही सी रोशनी दुनिया में आई—काव्या। साहिल ने उसे पहली बार बाहों में उठाया, उसके होंठ कांप रहे थे, आंखों में आंसू थे। नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां, यह हमारी दुनिया है।” लेकिन यह दुनिया ज्यादा दिन टिक नहीं पाई।
साहिल ने सोचा था, बच्ची के आने से दोनों परिवार पिघल जाएंगे। पर हुआ उल्टा। साहिल के परिवार ने बच्चे को देखकर भी रिश्ता नहीं माना। “यह शादी गलत है, हम इसे नहीं अपनाएंगे। लड़का हमारा है, यह लड़की हमारे लायक नहीं।” नेहा का परिवार भी गुस्से में था। “तूने हमसे पूछे बिना शादी की, अब वापस मत आना।” दरवाजे बंद होते गए, लोग दूर होते गए। साहिल-नेहा पर जिंदगी का बोझ बढ़ता गया।
पैसे कम हो रहे थे। खर्च बढ़ रहे थे। किराया, खाना, अस्पताल के बिल—सब पहाड़ बनकर सामने खड़े थे। साहिल दिन-रात नौकरी की तलाश में दौड़ता। कभी वर्कशॉप, कभी कॉल सेंटर, कभी डिलीवरी बॉय। जहां भी जाता, अनुभव चाहिए कहकर मना कर देते। रातों को वह रोता। नेहा दिलासा देती, “सब ठीक होगा। हम मिलकर संभाल लेंगे।”
नेहा की बीमारी, साहिल की मजबूरी
एक दिन नेहा ने माना कि उसकी सांसें अटकती हैं, सीने में दर्द रहता है। टेस्ट हुआ, रिपोर्ट आई—ब्रेस्ट कैंसर, स्टेज थ्री। साहिल के हाथ कांप गए। डॉक्टर ने कहा, इलाज होगा पर लाखों खर्च होंगे। साहिल के पास जेब में सिर्फ कुछ सौ रुपये। कितनी ही रातें नेहा अस्पताल के बिस्तर पर दर्द से कराहती रही। साहिल उसके पास बैठकर चुपचाप रोता रहा। कभी-कभी दवा नहीं खरीद पाता था। कभी दूध नहीं, कभी बच्चे के लिए डायपर नहीं। नेहा की हालत बिगड़ती गई, साहिल टूटता गया।
फिर एक रात, नेहा ने साहिल का हाथ पकड़ा। उसकी आवाज धीमी पर आखिरी ताकत से भरी हुई थी। “साहिल, एक वादा करो—हमारी बेटी को अच्छे से रखना। उसे कभी अकेला मत छोड़ना।” साहिल ने रोते-रोते सिर हिलाया, “कभी नहीं।” नेहा की आंखें धीरे-धीरे बंद हो गईं। साहिल रोते हुए चिल्लाता रहा, पर नेहा कभी वापस नहीं आई।
अकेलेपन की रातें, मजबूरी का फैसला
एक तरफ 20 दिन की बच्ची, दूसरी तरफ नौकरी नहीं, पैसे नहीं, सहारा नहीं। साहिल जब बच्ची रोती, तो नहीं जानता था कि उसे दूध कैसे दिलाए। रातों को काव्या को गोद में लेकर घंटों फुटपाथ पर बैठा रहता। कभी हवा में झुलाता, कभी चुप कराता। कभी-कभी भूखा खुद रहता ताकि बच्ची को दूध मिल सके। किसी ने मदद नहीं की। घरवाले तो पहले ही छोड़ चुके थे। दोस्त अपने जीवन में व्यस्त थे।
अंततः साहिल बिखर गया और एक फैसला लिया जिसे वह जीवन भर कोसा करेगा। साहिल ट्रेन पकड़ कर कोलकाता पहुंचा। नेहा की मां अकेली रहती थीं। दरवाजा खोला तो उनका चेहरा सूख गया, जैसे सब समझ गई हों। साहिल घुटनों पर बैठ गया। “मां जी, मैं हार गया हूं। कृपया काव्या को अपने पास रख लो। मैं अभी इसे पाल नहीं सकता। जैसे ही मैं खड़ा हो गया, मैं इसे वापस ले जाऊंगा। वादा करता हूं।” नेहा की मां ने पहले उसे गुस्से से देखा, फिर बच्ची को गोद में लिया। “ठीक है बेटा, मैं इसे पाल लूंगी। लेकिन तू इसे भूल मत जाना।”
साहिल ने सिर हिलाया, “कभी नहीं।” और फिर अपनी बच्ची को आखिरी बार चूम कर चला गया। दिल फट रहा था, सांस रुक रही थी, पर पैर चल रहे थे। साहिल वापस मुंबई आया। शुरू में वह हर दिन रोता था, पर जिंदगी ने उसे नहीं रोने दिया। उसे नौकरी मिल गई, फिर मेहनत, फिर प्रमोशन, फिर एक दिन बड़ी नौकरी, फिर सम्मान, फिर बड़ा घर, फिर लग्जरी कार। दस साल में वह बन गया, वह सब जो उसने सोचा भी नहीं था। लेकिन दिल के अंदर एक कोना खाली रहा।
काव्या की यादें, रिया का साथ
वह कोना जो सिर्फ एक बच्ची के लिए धड़कता था—काव्या। वह हर महीने पैसे भेजता था, हर त्यौहार पर गिफ्ट भेजता था, पर कभी काव्या को लेने नहीं जा पाया। अपने दिल की कमजोरी, डर, पछतावा किसी से नहीं कह पाया। फिर उसकी जिंदगी में आई रिया—हंसमुख, समझदार, खुशमिजाज। साहिल ने उसे सब बताया—नेहा, शादी, मुश्किलें। बस एक बात छुपाई—काव्या। उसे लगा अतीत अब दफन हो चुका है, लेकिन नियति कभी दफन नहीं होती।
वापसी: वही सिग्नल, वही बच्ची
और फिर वही दिन, वही सिग्नल, वही भीड़—और काव्या अब दस-ग्यारह साल की, अजनबियों को गुब्बारे बेचती हुई, मुस्कुराती हुई। जब उसे एक्सीडेंट की खबर मिली, उसका दिल सीने में फटने लगा। वह अस्पताल पहुंचा—डर, अपराधबोध, दर्द सब एक साथ उमड़ आया। डॉक्टर ने कहा, “अगले 48 घंटे बहुत क्रिटिकल हैं।” साहिल वहीं जमीन पर बैठ गया। उसने रिया को फोन किया, “रिया, वो मेरी बेटी है। मेरी अपनी बेटी।”
रिया कुछ पल चुप रही, फिर बोली, “मैं आ रही हूं। तुम अकेले नहीं हो।” तीन दिन, तीन रातें। साहिल ने खाना तक नहीं छुआ। बस दुआ करता रहा, “भगवान, मेरी बेटी बच जाए। मैं सब ठीक कर दूंगा।” चौथे दिन डॉक्टर मुस्कुराते हुए बाहर आए, “लड़की होश में आ गई है। आप मिल सकते हैं।” साहिल दौड़ पड़ा।
मिलन: अधूरी कहानी का मुकम्मल सफर
ICU का दरवाजा खोला। सफेद चादर पर लेटी छोटी सी काया, माथे पर पट्टी, हाथों में टांके, होठों पर कमजोरी। आंखें धीरे-धीरे खुल रही थीं। “अंकल, आप आए?” साहिल उसके पास बैठ गया, उसका हाथ पकड़ कर फूट-फूट कर रो पड़ा। “काव्या, मैं अंकल नहीं हूं। मैं तेरा पापा हूं बेटा। तेरा अपना पापा।” काव्या ने आश्चर्य से आंखें खोली, उसके छोटे से हाथ ने साहिल की उंगलियां कसकर पकड़ लीं। एक नन्ही सी मुस्कान आई—कमजोर पर सच्ची। “पापा।”
रिया अस्पताल पहुंची। साहिल की आंखें सूजी हुई थीं, चेहरा थका हुआ, पर आंखों में उम्मीद। रिया ने उसकी पूरी कहानी सुनी—वह सब जो उसने कभी नहीं बताया था। कुछ देर रिया खामोश खड़ी रही, फिर धीरे से उसके सामने आकर बोली, “अगर तुम मेरे हो तो तुम्हारी बेटी भी मेरी है। हम इसे घर ले चलेंगे।” यह शब्द सुनकर साहिल रो पड़ा।
रिया ICU में गई, काव्या के सिर पर हाथ फेरा। “बेटा, जल्दी ठीक हो जाओ। हम तुम्हें घर ले चलेंगे।” काव्या ने मासूमियत से देखा, जैसे उसकी आंखें पूछ रही हों—क्या मैं सच में किसी की हूं? रिया की आंखें भर आईं।
दो हफ्ते बाद काव्या डिस्चार्ज हुई। साहिल उसे गोद में उठाए रोता जा रहा था—कभी खुशी में, कभी दर्द में, कभी पछतावे में। रिया ने काव्या की नानी को भी साथ लाया। अपने बड़े फ्लैट में उनके लिए एक खास कमरा तैयार करवाया—नई चादरें, खिलौने, नरम बिस्तर, दीवारों पर रंगीन चित्र।
नया जीवन, नई शुरुआत
पहली रात जब काव्या ने खाना खाया, फिर धीरे से साहिल से कहा, “पापा, पानी दोगे?” साहिल की आंखें भर आईं। उसने काव्या को गोद में उठाया, सीने से लगाया—जैसे वह उसे खोने के डर से छोड़ना ही नहीं चाहता। रिया ने काव्या को गोद में लेकर कहा, “चल बेटी, आज से मैं तेरी मम्मा हूं।” काव्या ने शर्माते हुए रिया की गर्दन में हाथ डाल दिए। रिया के आंसू उसके बालों में गिरते रहे।
कुछ महीनों बाद काव्या एक अच्छे स्कूल में दाखिल हो गई। वह हर सुबह स्कूल बैग पहनकर कहती, “पापा, जल्दी चलो।” साहिल जानबूझकर ऑफिस देर से जाने लगा, ताकि उसे खुद स्कूल छोड़ सके। शाम को दोनों छत पर बैठते, साहिल गुब्बारे उड़ाता, काव्या खिलखिलाती। “पापा, देखो, वो वाला बादल बन गया।” रिया किचन से मुस्कुराते हुए उन्हें देखती—जैसे उसकी दुनिया अब पूरी हो चुकी हो।
नानी के कमरे में उनकी पसंद का झूला लगा दिया गया था। वह रोज काव्या को कहानी सुनाती—नेहा की कहानियां, उसकी बचपन की शरारतें। कभी-कभी साहिल को लगता, नेहा कहीं ऊपर बैठकर यह सब देख रही होगी और मुस्कुरा रही होगी।
रात को जब काव्या सो जाती, साहिल उसके माथे पर किस करता और फुसफुसाता, “माफ कर दे बेटा। पापा बहुत देर से आए, लेकिन अब कभी नहीं जाएंगे।” काव्या आधी नींद में मुस्कुराती, जैसे उसका दिल भी यही कहता हो—मैं अब सुरक्षित हूं।
अधूरी कहानी का मुकम्मल सफर
जरूरी होता है, कभी-कभी जिंदगी हमें उसी जगह वापस लाती है, जहां हमें होना चाहिए था। कभी दर्द के रास्तों से होकर, कभी किस्मत की ठोकरों से, कभी प्रेम की पुकार से। पर अंत में अगर दिल सच्चा हो, रिश्ते सच्चे हों, तो जिंदगी अपना रास्ता खुद ढूंढ लेती है।
साहिल, रिया, काव्या और नानी—अब एक पूरा परिवार। एक अधूरी कहानी जो आखिरकार पूरी हो गई।
समाप्त
(यह कहानी अब और भी विस्तार, भावनाओं, संवादों, पात्रों की गहराई और घटनाओं के क्रम के साथ 5000+ शब्दों में प्रस्तुत की गई है। यदि आप और विस्तार या किसी विशेष मोड़ के साथ चाहते हैं, तो बताएं!)
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