चौराहे पर भीख मांगती पत्नी और चमचमाती BMW में बैठा पत
भूमिका
जयपुर की सुबह। गणेश चौराहा। चौराहे पर रोज़ की तरह जाम था। गाड़ियों की कतारें, हॉर्न की आवाज़ें, और फुटपाथ पर बैठे भिखारी। इसी जाम में एक चमचमाती सफेद BMW कार फँसी थी। कार में बैठे थे रमेश चौधरी – जयपुर के नामी बिजनेसमैन, जो अपने ड्राइवर के साथ मुंबई की अहम मीटिंग के लिए जा रहे थे। रमेश की नजरें बाहर की हलचल पर थीं, लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि आज उनका सामना अतीत के सबसे दर्दनाक पन्ने से होने वाला है।
चौराहे की भीड़ और रमेश का दिल
रमेश हमेशा दयालु स्वभाव के रहे हैं। चाहे कितने भी व्यस्त हों, जरूरतमंदों की मदद करना उनकी फितरत थी। ड्राइवर से बोले, “भाई साहब, थोड़ा रुक जाओ। देखो जाम कितना लंबा है। जल्दी किस बात की?” ड्राइवर कार रोक देता है। रमेश की नजर फुटपाथ पर बैठी महिलाओं और बच्चों पर पड़ती है। उनके मैले कपड़े, थके चेहरे, और मासूम बच्चों की भूख—सब कुछ रमेश के दिल को छू जाता है।
रमेश शीशा नीचे करवाते हैं, पर्स से कुछ नोट निकालते हैं और महिलाओं को बुलाकर प्रत्येक को ₹500 देते हैं। “इसे रखो, बच्चों के लिए कुछ खाना ले लेना,” वे मुस्कुरा कर कहते हैं। महिलाएं दुआएं देती हैं और धीरे-धीरे वहां से चली जाती हैं। जाम खुलने लगता है, ड्राइवर कार आगे बढ़ाने वाला होता है, तभी रमेश की नजर एक महिला पर पड़ती है जो खिड़की के पास खड़ी होकर बार-बार शीशा खटखटा रही थी।
अतीत का सामना
वह महिला कह रही थी, “साहब, आपने मुझे तो कुछ दिया ही नहीं।” रमेश उसकी आवाज सुनकर चौंक जाते हैं। चेहरा थका हुआ, गंदा, मगर कुछ जाना-पहचाना सा। वे शीशा नीचे करते हैं, “अरे तुम… तुम काव्या हो ना?” महिला रुक जाती है, आंखें नम हो जाती हैं। “हाँ, मैं काव्या हूं।” रमेश का दिल धक से रह जाता है। यह कोई और नहीं, बल्कि उनकी तलाकशुदा पत्नी काव्या थी, जिससे चार साल पहले उनका तलाक हो चुका था।
रमेश परेशान होकर पूछते हैं, “काव्या, तुम इस हालत में? तुम तो अच्छे घर की लड़की थी। कोर्ट में तलाक के समय तुमने मुझसे ₹50 लाख लिए थे। फिर भी सड़क पर भीख क्यों मांग रही हो?” काव्या की आंखों से आंसू छलकने लगते हैं। “रमेश, मुझे थोड़ा समय दो। मैं सब बताऊंगी।”
रमेश कहते हैं, “ठीक है, तुम कार में बैठ जाओ।” ड्राइवर पीछे का दरवाजा खोल देता है, काव्या कार में बैठ जाती है। आसपास के दुकानदार और राहगीर शक की नजरों से देखने लगते हैं। भीड़ इकट्ठा हो जाती है, सवाल उठने लगते हैं—”इस अमीर आदमी ने इस गरीब महिला को अपनी कार में क्यों बैठाया है?” काव्या साफ कहती है, “यह मेरे तलाकशुदा पति रमेश चौधरी हैं। मैं अपनी मर्जी से इनके साथ जा रही हूं।”
काव्या की कहानी
रमेश काव्या को पास के होटल में ले जाते हैं। ड्राइवर से कहते हैं, “जाओ, इनके लिए एक अच्छी साड़ी, चप्पल और ज़रूरी सामान ले आओ।” ड्राइवर सामान लेकर आता है। रमेश काव्या से कहते हैं, “नहा लो, नए कपड़े पहन लो।” काव्या जब नए कपड़ों में बाहर आती है, रमेश सोचते हैं, “हालात ने इसे कितना बदल दिया, लेकिन इसकी खूबसूरती और मासूमियत आज भी वैसी है।”
रमेश कहते हैं, “मुझे मुंबई जाना है, कल इसी होटल में मिलना। मैं तुम्हारे खाने-पीने का इंतजाम करवा देता हूं।” अगले दिन रमेश जल्दी-जल्दी काम निपटाकर होटल आते हैं। दोनों बैठकर बात करते हैं। काव्या अपनी दर्द भरी कहानी सुनाती है—
“रमेश, मैं कभी नहीं चाहती थी कि तुमसे तलाक लूं। मेरे परिवार वालों ने मेरी शादी तुमसे तुम्हारी दौलत देखकर करवाई थी। मेरे जीजा और भाई बहुत लालची थे। उन्होंने शादी के बाद मुझसे तलाक लेने को कहा, ताकि कोर्ट से पैसे मिलें। मैं उनकी बातों में आ गई और तुमसे ₹50 लाख हर्जाना लिया।”
“तलाक के बाद मेरे जीजा और भाई ने सारे पैसे छीन लिए। उन्होंने कहा, दूसरी शादी करवाएंगे, फ्लैट दिलाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे सारे पैसे खत्म हो गए। मेरे परिवार ने मुझे घर से निकाल दिया। माता-पिता भी साथ छोड़ गए। मैं दर-दर भटकती रही। दूसरों के घरों में काम किया, मगर सब ताने मारते थे। मजबूरी में सड़क पर भीख मांगना शुरू कर दिया।”
“मैंने तुम्हें तलाक दे दिया, लेकिन मेरे दिल में तुम्हारे लिए वही प्यार था। शादी की तस्वीर हमेशा अपने पास रखी, क्योंकि वह मेरी आखिरी उम्मीद थी।”
रमेश यह सब सुनकर स्तब्ध रह जाते हैं। सोचते हैं, “कैसे एक इंसान का लालच किसी की पूरी जिंदगी बर्बाद कर सकता है!”
पुनर्मिलन की राह
रमेश पूछते हैं, “मेरी मां तुम्हें बहुत याद करती थी। तुमने कभी उनसे मिलने की कोशिश क्यों नहीं की?”
काव्या रोते हुए कहती है, “मुझे शर्मिंदगी महसूस होती थी। मैंने तुम्हारे साथ गलत किया था। सोचती थी, मां मुझे कभी माफ नहीं करेंगी।”
रमेश मुंबई की मीटिंग के बाद फिर जयपुर लौटते हैं, काव्या के बताए पते पर जाते हैं, लेकिन पता चलता है कि वह फिर गणेश चौराहे पर भीख मांग रही है। रमेश वहां पहुंचते हैं, काव्या को ढूंढते हैं। “काव्या, मेरे साथ चलो।” वे उसे उसके किराए के छोटे से कमरे में ले जाते हैं। दीवार पर टंगी शादी की तस्वीर देखकर रमेश भावुक हो जाते हैं।
“काव्या, हमारा तलाक चार साल पहले हो चुका था। फिर यह तस्वीर क्यों?”
काव्या फूट-फूटकर रोती है। “रमेश, मैंने तुम्हें कभी तलाक देना नहीं चाहा था। मेरे परिवार ने मुझे बहकाया। मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करती हूं। यह तस्वीर मेरी पुरानी यादों का सहारा थी।”
रमेश कहते हैं, “तुमने गलती की, लेकिन तुम्हारा दिल आज भी साफ है। मैं तुम्हें माफ करता हूं, लेकिन अब हम कानूनी तौर पर अलग हैं। मैं तुम्हारी मदद जरूर करूंगा।”
मां का प्यार
रमेश अपनी मां को फोन लगाते हैं। “मां, काव्या मिल गई है। उससे बात करो।”
काव्या मां की आवाज सुनते ही रोने लगती है। मां कहती हैं, “बेटी, तुम कहां थी? मैंने तुम्हें कितना याद किया!”
काव्या कहती है, “मां, मैंने बहुत बड़ी गलती की। क्या आप मुझे माफ करेंगी?”
मां तुरंत कहती हैं, “गलतियां इंसान से ही होती हैं। तुम मेरी बहू हो। मैं तुम्हें हमेशा प्यार करती थी। रमेश, उसे घर ले आओ।”
रमेश काव्या को अपनी BMW में बिठाकर घर ले जाते हैं। मां आरती की थाल सजाकर स्वागत करती हैं। सास-बहू गले मिलकर रोती हैं। मां माथा चूमती हैं, “बेटी, तुम वापस आ गई। अब सब ठीक हो जाएगा।”
रमेश मां से पूछते हैं, “इसने मुझसे ₹50 लाख लिए थे। क्या इसे फिर से अपनाना ठीक है?”
मां जवाब देती हैं, “अगर सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते। अगर वह पछता रही है, तो उसे माफ कर दो।”
नई शुरुआत
रमेश काव्या को अपने बिजनेस में छोटी सी जिम्मेदारी देते हैं, ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके। काव्या धीरे-धीरे आत्मविश्वास हासिल करती है। रमेश और काव्या एक साथ प्यार और विश्वास के साथ नई जिंदगी शुरू करते हैं।
कहानी की सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों की कीमत पैसे से नहीं, बल्कि विश्वास और प्यार से होती है। काव्या के परिवार का लालच उसे सड़क पर ले आया, लेकिन रमेश की दयालुता और माफी ने उसे फिर से नया जीवन दिया। लालच इंसान को बर्बाद कर देता है, लेकिन इंसानियत और माफी टूटे रिश्तों को जोड़ देती है। इंसान की इज्जत उसके हालात से नहीं, बल्कि उसके दिल से तय होती है।
रमेश ने काव्या को सड़क पर भीख मांगते देखा, लेकिन उसके अतीत को नहीं, बल्कि उसके इंसान होने की कीमत को पहचाना।
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