जिस बच्चे को भिखारी समझ रहे थे वह निकला MBBS डॉक्टर। फिर बच्चे ने जो किया 

शहर के सबसे बड़े और आलीशान हॉस्पिटल “सिटी लाइफ हॉस्पिटल” की इमारत आसमान को छूती थी। कांच की दीवारों से बनी यह इमारत जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही डरावनी भी। यहां हर दिन जिंदगी और मौत का सौदा होता था। इसी हॉस्पिटल के ठीक सामने सड़क के किनारे एक पुरानी सी टपरी थी। यह टपरी रामलाल की थी। सुबह के छह बजे बजते ही अदरक और इलायची वाली चाय की महक पूरे इलाके में फैल जाती थी। रामलाल अपनी बूढ़ी हड्डियों के साथ चाय बनाता और उसका बेटा रवि ग्राहकों को चाय सर्व करता।

रवि कोई साधारण लड़का नहीं था। उसकी उम्र मुश्किल से बीस साल थी। उसके एक हाथ में चाय की केतली होती थी और दूसरे हाथ में ग्रेस एनाटॉमी जैसी मोटी मेडिकल किताबें। उसके कपड़े भले ही पुराने थे, लेकिन उसकी आंखों में एक चमक थी – डॉक्टर बनने की चमक। वह शहर के मेडिकल कॉलेज में कार्डियोलॉजी का सबसे होनहार छात्र था, जिसे स्कॉलरशिप मिली हुई थी। लेकिन घर की गरीबी ऐसी थी कि कॉलेज के बाद उसे अपने पिता का हाथ बटाना पड़ता था।

रामलाल अक्सर रवि को किताबों में डूबा देख भावुक हो जाते। वे कहते, “बेटा, मेरे हाथ तो चाय छानते-छानते घिस गए, लेकिन तू इन हाथों से लोगों की जिंदगी बचाएगा। तू इस सामने वाले अस्पताल का सबसे बड़ा डॉक्टर बनेगा।” रवि मुस्कुरा देता, “जरूर पापा, एक दिन मैं उस हॉस्पिटल में चाय देने नहीं, इलाज करने जाऊंगा।”

लेकिन किस्मत ने उस दिन कुछ और ही तय कर रखा था।

सोनू सिंघानिया का दिल का दौरा

दोपहर के दो बजे थे। सूरज आग उगल रहा था। अचानक शहर का माहौल बदल गया। हॉस्पिटल के गेट पर सायरन की गूंज सुनाई दी। यह एंबुलेंस का सायरन नहीं था, बल्कि पुलिस और प्राइवेट सिक्योरिटी का काफिला था। काली गाड़ियों का एक लंबा रेला हॉस्पिटल के पोर्च पर रुका। गाड़ियों से दर्जनों बॉडीगार्ड उतरे और उन्होंने घेरा बना लिया। बीच वाली गाड़ी का दरवाजा खुला और बाहर निकला सोनू सिंघानिया।

सोनू सिंघानिया नाम ही काफी था। शहर का सबसे बड़ा बिजनेस टाइकून, जिसका कारोबार रियल एस्टेट से लेकर अंडरवर्ल्ड तक फैला था। कहते थे कि शहर की पुलिस भी उसकी इजाजत के बिना सांस नहीं लेती थी। लेकिन आज वह ताकतवर इंसान लड़खड़ा रहा था। उसका चेहरा पसीने से तर-बतर था। बायां हाथ सीने पर जकड़ा हुआ था और उसकी आंखों में वह खौफ था जो उसने आज तक दूसरों की आंखों में देखा था – मौत का खौफ।

जैसे ही वह रिसेप्शन की तरफ बढ़ा, वह अचानक जमीन पर गिर पड़ा। उसके बॉडीगार्ड्स चिल्लाए, “सर, सर!” पूरे हॉस्पिटल में भगदड़ मच गई। स्ट्रेचर दौड़ाए गए। हॉस्पिटल के डीन, डॉक्टर खन्ना, जो शहर के माने हुए कार्डियोलॉजिस्ट थे, अपनी टीम के साथ भागते हुए आए। सोनू सिंघानिया को तुरंत इमरजेंसी आईसीयू में शिफ्ट किया गया।

रवि जो बाहर खड़ा हुआ यह सब देख रहा था, उसके कान खड़े हो गए। उसने मेडिकल की पढ़ाई की थी। वह जानता था कि जिस तरह से सिंघानिया गिरा है, वह कोई मामूली हार्ट अटैक नहीं है। उसने मन ही मन सोचा, “लिवाइन साइन, पसीना और गिरने का तरीका – यह एक मैसिव मायोकार्डियल इंफेक्शन है।”

डॉक्टरों की हार, रवि की उम्मीद

अगले एक घंटे में हॉस्पिटल के बाहर मीडिया का जमावड़ा लग गया। हर न्यूज़ चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ थी: “सोनू सिंघानिया को दिल का दौरा, हालत बेहद नाजुक।” अंदर का माहौल बेहद तनावपूर्ण था। डॉक्टर खन्ना और शहर के तीन अन्य बड़े सर्जन्स ऑपरेशन थिएटर के बाहर खड़े थे। उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी। खन्ना ने सिंघानिया के पर्सनल सेक्रेटरी से कांपती आवाज में कहा, “मिस्टर मेहता, इनका हार्ट पूरी तरह से ब्लॉक हो चुका है। आर्टरीज इतनी कमजोर हैं कि हम बाईपास सर्जरी नहीं कर सकते। अगर हमने सीना खोला, तो यह टेबल पर ही मर जाएंगे। और अगर कुछ नहीं किया तो यह अगले 20 मिनट में मर जाएंगे।”

मेहता ने डॉक्टर खन्ना का कॉलर पकड़ते हुए कहा, “डॉक्टर, अगर सिंघानिया साहब को कुछ हुआ, तो यह हॉस्पिटल श्मशान बन जाएगा। तुम सब की लाशें भी नहीं मिलेंगी। मुझे नहीं पता कैसे, बस उन्हें बचाओ।”

डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे। साइंस और डर के बीच डॉक्टर हार मान चुके थे। यह खबर जंगल की आग की तरह बाहर भी फैल गई कि डॉक्टर जवाब दे चुके हैं।

रवि की बहादुरी

रवि ने जब यह सुना कि डॉक्टर हार मान चुके हैं, तो उसे रहा नहीं गया। वह जानता था कि मेडिकल साइंस में हमेशा एक रास्ता होता है। बस उसे ढूंढने वाला चाहिए। उसने अपनी चाय की एप्रन उतारी, अपनी किताबें काउंटर पर रखी और अपने पिता की तरफ देखा। “पापा, मुझे जाना होगा।”

रामलाल ने घबरा कर पूछा, “कहां, वहां अंदर? पागल हो गया है क्या रवि? वो लोग तुझे मार डालेंगे।”

“पापा, अगर आज मैंने कोशिश नहीं की, तो मेरी सारी पढ़ाई बेकार है। और वह इंसान मर जाएगा।”

रवि दौड़ा। वह सिक्योरिटी गार्ड्स को चकमा देते हुए हॉस्पिटल के कांच के दरवाजों को पार कर गया। रिसेप्शन पर अफरातफरी मची हुई थी। रवि सीधा रिसेप्शनिस्ट के पास पहुंचा। उसकी सांसे फूल रही थी। “सोनू सिंघानिया कौन से रूम में है?” रवि ने तेज आवाज में पूछा।

रिसेप्शनिस्ट जो फोन पर चिल्ला रही थी, उसने रवि के साधारण कपड़े और बिखरे बाल देखकर उसे ऊपर से नीचे तक देखा। “तुम्हें क्या काम है? तुम कौन हो? चाय वाले हो क्या? भागो यहां से।”

“मैडम, मैं मेडिकल स्टूडेंट हूं। मैं उनकी जान बचा सकता हूं। मुझे पता है डॉक्टर्स को क्या परेशानी आ रही है।” रवि ने विनती की।

वहां खड़े सिंघानिया के कुछ गुंडे और हॉस्पिटल का स्टाफ रवि पर हंसने लगे। एक सिक्योरिटी गार्ड ने रवि का हाथ पकड़ा और उसे धक्का देते हुए कहा, “अबे चल, यहां शहर के बड़े-बड़े गोल्ड मेडलिस्ट डॉक्टर पसीना छोड़ रहे हैं और तू एक चाय वाले का बेटा इलाज करेगा? निकल यहां से वरना हाथ पैर तोड़कर बाहर फेंक देंगे।”

रवि गिरते-गिरते बचा। उसकी आंखों में अपमान के आंसू थे। लेकिन उससे ज्यादा उसे चिंता उस मरीज की थी जो अंदर मर रहा था।

मेडिकल नॉलेज का कमाल

रवि फिर खड़ा हुआ। उसने अपनी आवाज में इतनी ताकत भरी जितनी उसने आज तक कभी नहीं भरी थी। “डॉक्टर खन्ना एक रेट्रोग्रेड परक्यूटेनियस कोरनरी इंटरवेंशन करने से डर रहे हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि आर्टरी फट जाएगी। लेकिन मैं जानता हूं कि उसे बिना फाड़े कैसे करना है। मैंने इसके बारे में वो रिसर्च पढ़ी है जो शायद उन्होंने अभी तक नहीं पढ़ी होगी।”

हॉल में सन्नाटा छा गया। सब हैरान थे कि इस लड़के ने इतनी भारी मेडिकल टर्मिनोलॉजी कैसे बोली। इत्तेफाक से डॉक्टर खन्ना उसी वक्त रिसेप्शन एरिया में आए थे। यह बताने के लिए कि अब कोई उम्मीद नहीं बची है। उन्होंने रवि की बात सुनी। डॉक्टर खन्ना रवि के पास आए। उनकी आंखों में थकान और अविश्वास दोनों थे।

“तुमने क्या कहा? रेट्रोग्रेड तकनीक तुम्हें इसके बारे में कैसे पता?” रवि ने उनकी आंखों में देखा। “सर, मैं आपका स्टूडेंट हूं। रवि फाइनल ईयर। आप ही ने क्लास में कहा था कि जब सारे रास्ते बंद हो जाएं तो हमें वह रास्ता चुनना चाहिए जो असंभव लगता हो। सिंघानिया जी के पास वक्त नहीं है। मुझे एक मौका दीजिए।”

तभी सिंघानिया का राइट हैंड, शेरा, आगे बढ़ा। “अगर यह लड़का कहता है कि यह कर सकता है तो इसे अंदर जाने दो। लेकिन सुनो, अगर बॉस को एक खरोच भी आई या तेरी वजह से उनकी जान गई तो मैं तेरे बाप को तेरी लाश के टुकड़े गिफ्ट भेजूंगा और तुझे तड़पातड़पा कर मारूंगा।”

रवि ने एक गहरी सांस ली। “मंजूर है। लेकिन अगर मैंने उन्हें बचा लिया तो आप मेरे काम के बीच में नहीं आएंगे।”

डॉक्टर खन्ना को यह पागलपन लग रहा था। लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं था। “ठीक है। इसे स्क्रब करने ले जाओ। अगर यह मरना चाहता है, तो इसे कोशिश करने दो।”

ऑपरेशन थिएटर में चमत्कार

रवि को ऑपरेशन थिएटर की तरफ ले जाया गया। दरवाजे बंद हो गए। अब यह सिर्फ एक सर्जरी नहीं थी बल्कि एक तमाशा था। एक चाय वाले के बेटे और मौत के बीच का मुकाबला।

रवि के दिमाग में एक प्राचीन और दुर्लभ तकनीक थी जिसका जिक्र उसने एक रशियन मेडिकल जर्नल में पढ़ा था। जिसे आज तक भारत में किसी ने ट्राई नहीं किया था।

अंदर का नजारा डरावना था। सोनू सिंघानिया स्ट्रेचर पर पड़े थे और उनका विशाल शरीर अब बेजान सा लग रहा था। मॉनिटर पर उनकी हार्ट बीट बहुत धीमी और अनियमित चल रही थी। डॉक्टर खन्ना और उनकी टीम के तीन सीनियर सर्जन वहां पहले से मौजूद थे। उन्होंने रवि को ऐसे देखा जैसे वह कोई एलियन हो।

“यह पागलपन है। अगर सिंघानिया टेबल पर मर गए, वो गुंडा हम सबको जिंदा जला देगा। यह लड़का तो मरेगा ही, हमें भी ले डूबेगा।”

डॉक्टर खन्ना का चेहरा पसीने से तर था। हालांकि कमरे का तापमान 18° था। उन्होंने रवि की ओर देखा। “अभी भी वक्त है। पीछे हट जाओ। यह कोई किताब का पन्ना नहीं है। यह असली जिंदगी है। यहां बैकस्पेस का बटन नहीं होता।”

रवि ने एक लंबी सांस ली। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। लेकिन उसके हाथ बिल्कुल स्थिर थे। उसने अपनी आंखें बंद की और एक पल के लिए अपने पिता का चेहरा याद किया। “तू डॉक्टर बनेगा रवि।”

स्कैल्पल नर्स ने हिचकिचाते हुए डॉक्टर खन्ना की ओर देखा। डॉक्टर खन्ना ने बेमन से सिर हिलाया। रवि के हाथ में सर्जिकल चाकू आ गया। रवि ने मरीज के पास जाकर स्थिति का जायजा लिया। एंजियोग्राफी की स्क्रीन पर साफ दिख रहा था कि सिंघानिया की लेफ्ट मेन कोरनरी आर्टरी पूरी तरह ब्लॉक थी। यह वही जगह है जिसे मेडिकल भाषा में “विडो मेकर” कहा जाता है क्योंकि यहां ब्लॉकेज होने पर बचने की उम्मीद ना के बराबर होती है।

ब्लॉकेज बहुत सख्त है। रवि ने बुदबुदाते हुए कहा, “गाइड वायर अंदर नहीं जा रहा है। इसी वजह से आप लोग डरे हुए थे।”

डॉक्टर मेहरा ने ताना मारा, “अगर हमने जबरदस्ती वायर घुसाने की कोशिश की तो आर्टरी फट जाएगी और वह तुरंत मर जाएंगे। तुम क्या अलग करने वाले हो? जादू?”

रवि ने जवाब नहीं दिया। उसने एक बहुत ही पतला बाल से भी बारीक वायर लिया। “मैं रेट्रोग्रेड अप्रोच का इस्तेमाल करूंगा। मैं ब्लॉक हुई आर्टरी के सामने से नहीं बल्कि दिल के पीछे के रास्ते से यानी कोलैटरल वेसल्स के जरिए दूसरी तरफ से ब्लॉकेज तक पहुंचूंगा।”

डॉक्टर खन्ना चिल्लाए, “नहीं! यह आत्महत्या है। कोलैटरल नसें बहुत कमजोर होती हैं। अगर एक भी नस फटी तो इंटरनल ब्लीडिंग हो जाएगी।”

रवि रुका नहीं। उसका पूरा ध्यान मॉनिटर की स्क्रीन पर था। उसके हाथ जादूगर की तरह चल रहे थे। उसने इस प्रक्रिया के सिमुलेशन वीडियो हजारों बार देखे थे।

बीप बीप बीप… मॉनिटर की आवाज तेज हो गई। अचानक एक अलार्म बजा। “बीपी गिर रहा है 60/40।”

“सर, हम उन्हें खो रहे हैं!” एनस्थेटिस्ट चिल्लाया। कमरे में हड़कंप मच गया।

डॉक्टर मेहरा रवि की तरफ लपके, “रुको! बंद करो यह सब।”

रवि ने अपनी कोहनी से डॉक्टर मेहरा को पीछे धकेल दिया। “अगर अभी रुके तो यह पक्का मरेंगे। मुझे मेरा काम करने दीजिए।”

रवि ने वह सीक्रेट तकनीक आजमाने का फैसला किया। आमतौर पर डॉक्टर वायर को सीधा घुमाते हैं। लेकिन रवि ने नकलिंग तकनीक का इस्तेमाल किया ताकि वह कमजोर नसों को छेड़े बिना उनके बीच से फिसल सके। यह ऐसा था जैसे बंद दरवाजे को तोड़ने के बजाय खिड़की से एक पतला धागा डालना।

पसीने की एक बूंद रवि के माथे से बहकर उसकी पलकों पर आ रुकी, लेकिन उसने पलक नहीं झपकाई। पूरा कमरा सांस रोके खड़ा था। बाहर खड़े शेरा की बंदूक, पिता की उम्मीद, सब कुछ उस एक बारीक तार पर टिका था।

“वायर क्रॉस हो गया है।” रवि ने धीरे से कहा। सब ने स्क्रीन की तरफ देखा। सच में वायर ब्लॉकेज के पार निकल चुका था।

डॉक्टर खन्ना की आंखें फटी की फटी रह गई। “असंभव!”

मॉनिटर की लकीर जो सपाट होने ही वाली थी, अचानक ऊपर उठी। बीप बीप बीप… रिदम वापस आ गया था। नॉर्मल रिदम। ब्लड फ्लो 100% है। बीपी स्टेबल हो रहा है।

नर्स ने अविश्वास और खुशी के साथ कहा, “रवि ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। उसके पैर अब कांप रहे थे। यह डर के नहीं बल्कि एड्रिनालाइन के उतरने के कांपना था।”

डॉक्टर खन्ना रवि के पास आए। उन्होंने मास्क के पीछे से मुस्कुराते हुए रवि के कंधे पर हाथ रखा। “बेटा, मैंने अपने 30 साल के करियर में ऐसा हाथ नहीं देखा। तुमने आज सिर्फ सिंघानिया को नहीं बचाया, तुमने मेडिकल साइंस का सम्मान बचाया है। मुझे माफ करना, मैंने तुम पर शक किया।”

हीरो या अपराधी?

सर्जरी खत्म हुई। रवि ने गाउन उतारा और अपने पुराने चाय के दाग वाले कपड़े पहने। वह धीरे-धीरे ओटी के बाहर वाले कॉरिडोर की तरफ बढ़ा। जैसे ही ओटी के ऑटोमेटिक दरवाजे खुले, बाहर का नजारा देखने लायक था। हॉस्पिटल की लॉबी खचाखच भरी थी। पुलिस, मीडिया, सिंघानिया के गुंडे और एक कोने में सहमे हुए ढेर रवि के पिता रामलाल। सबकी नजरें उस दरवाजे पर थी।

सबसे आगे शेरा खड़ा था। उसकी आंखों में खून उतर आया था। उसे लगा कि ऑपरेशन में बहुत देर हो गई है। शायद बुरी खबर आने वाली है।

रवि बाहर निकला। उसका चेहरा भावहीन था। सन्नाटा इतना गहरा था कि सुई गिरने की आवाज भी सुनाई दे जाए। शेरा ने एक कदम आगे बढ़ाया। “क्या हुआ? बोल जिंदा है या…”

रामलाल ने अपनी आंखें बंद कर ली। भगवान से प्रार्थना करते हुए।

रवि ने शेरा की आंखों में सीधा देखा और शांत आवाज में कहा, “मिस्टर सिंघानिया का दिल अब बिल्कुल ठीक है। वो खतरे से बाहर हैं।”

एक पल के लिए किसी को यकीन नहीं हुआ। फिर डॉक्टर खन्ना पीछे से बाहर आए। उन्होंने मीडिया और शेरा के सामने घोषणा की, “यह सच है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था और यह चमत्कार हम में से किसी ने नहीं बल्कि इस लड़के ने किया है। ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा।”

पूरे हॉल में एक जोरदार शोर गूंज उठा। मीडिया वाले रवि की तरफ दौड़े। कैमरे के फ्लैश चमकने लगे। “सर, सर, आप कौन हैं? आपने यह कैसे किया? क्या आप हॉस्पिटल के नए डॉक्टर हैं?”

लेकिन शेरा ने सबको धक्का देकर हटाया। वह रवि के सामने आ खड़ा हुआ। वह कुछ देर रवि को घूरता रहा। फिर अचानक वह शहर का सबसे खूंखार गुंडा रवि के पैरों में झुक गया। “डॉक्टर साहब, मैंने आपको मारने की धमकी दी थी। मेरी जान ले लो। लेकिन आपने मेरे भगवान को बचा लिया। आज से यह शेरा आपका गुलाम है।”

रवि ने उसे उठाया। “मुझे गुलाम नहीं चाहिए। बस मेरे पापा को घर जाने दीजिए। वह बहुत डरे हुए हैं।”

रामलाल दौड़ कर आए और रवि को गले लगा लिया। उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी। “मेरा बेटा, मेरा डॉक्टर बेटा!”

कानून का सामना

लेकिन कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी। सोनू सिंघानिया को होश आना बाकी था और जब शहर के सबसे ताकतवर इंसान को पता चलेगा कि उसकी जान एक चाय वाले ने बचाई है तो उसका क्या रिएक्शन होगा? क्या वह रवि को इनाम देगा या इसे अपनी तौहीनी समझेगा? और सबसे बड़ी बात हॉस्पिटल का मैनेजमेंट क्या करेगा? क्योंकि रवि ने बिना लाइसेंस के सर्जरी की थी जो कानूनन जुर्म था। क्या उसकी बहादुरी ही उसकी मुसीबत बन जाएगी?

थिएटर के बाहर कैमरों की फ्लैश लाइट चमक रही थी। रवि जैसे ही बाहर आया वो एक हीरो बन चुका था। लेकिन हर कहानी में एक विलेन जरूर होता है और इस बार विलेन कोई इंसान नहीं बल्कि कानून और हॉस्पिटल का अहंकार था।

जैसे ही मीडिया का शोर थोड़ा कम हुआ, पुलिस की जीप के सायरन की आवाज गूंजी। इंस्पेक्टर विक्रम अपनी टीम के साथ हॉस्पिटल के अंदर दाखिल हुए। उनके चेहरे पर सख्ती थी।

डॉक्टर खन्ना जो कुछ देर पहले रवि की तारीफ कर रहे थे, अब हॉस्पिटल के मैनेजमेंट और डीन के दबाव में थे। हॉस्पिटल के डीन डॉक्टर रस्तोगी अपनी साख बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। अगर यह बात बाहर कानूनी तौर पर साबित हो जाती कि एक मेडिकल स्टूडेंट ने बिना लाइसेंस के सर्जरी की है, तो हॉस्पिटल का लाइसेंस रद्द हो सकता था।

इंस्पेक्टर विक्रम रवि के पास आए और बोले, “रवि कुमार?”

रवि ने सिर हिलाया, “जी सर।”

“तुम्हें गिरफ्तार किया जाता है।”

इंस्पेक्टर ने हथकड़ी निकालते हुए कहा। भीड़ में सन्नाटा छा गया। रामलाल दौड़कर इंस्पेक्टर के पैरों में गिर पड़े। “साहब, मेरे बेटे ने जान बचाई है। यह कोई मुजरिम नहीं है। इसने तो भगवान का काम किया है।”

इंस्पेक्टर ने रामलाल को उठाते हुए कहा, “बाबा, हम जानते हैं लेकिन कानून भावनाओं से नहीं चलता। इसने इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट का उल्लंघन किया है। बिना डिग्री और लाइसेंस के सर्जरी करना एक गंभीर अपराध है। हमें इसे ले जाना होगा।”

शेरा जो अब रवि का भक्त बन चुका था बीच में आया। उसने इंस्पेक्टर का रास्ता रोका। “खबरदार जो डॉक्टर साहब को हाथ भी लगाया। पहले मुझसे निपटना होगा।”

माहौल तनावपूर्ण हो गया। रवि ने शेरा के कंधे पर हाथ रखा। “शेरा, हटो। कानून को अपना काम करने दो। मैंने जो किया वो सही था। इसका फैसला अब वक्त करेगा। मुझे भागने की जरूरत नहीं है।”

रवि ने अपने दोनों हाथ आगे कर दिए। लोहे की हथकड़ियां उसके कलाइयों पर कस दी गई। वह हाथ जिन्होंने अभी-अभी एक धड़कते हुए दिल को नई जिंदगी दी थी, अब सलाखों के पीछे जाने वाले थे। मीडिया ने इस दृश्य को लाइव दिखाया। “जान बचाने की सजा, जेल।”

जन आंदोलन और सिंघानिया की वापसी

अगले 48 घंटे शहर के लिए बहुत भारी थे। पूरे शहर में रवि के समर्थन में प्रदर्शन होने लगे। “रवि को रिहा करो” के नारे हर गली में गूंज रहे थे। लेकिन कोर्ट और कानून की प्रक्रिया अपनी रफ्तार से चल रही थी। रवि हवालात की ठंडी फर्श पर बैठा था। उसकी आंखों में कोई पछतावा नहीं था। उसे बस इस बात का सुकून था कि उसने अपने पिता का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था। भले ही अंजाम कुछ भी हो।

तीसरे दिन सुबह हॉस्पिटल के वीआईपी सूट में हलचल हुई। सोनू सिंघानिया को होश आ गया था। उसने अपनी आंखें खोली। सब कुछ धुंधला था। धीरे-धीरे उसे अपने सीने में हल्का दर्द और आसपास मशीनों की आवाज महसूस हुई। उसके सेक्रेटरी मेहता और डॉक्टर रस्तोगी तुरंत उसके पास पहुंचे।

“सर, आप ठीक हैं?”

सिंघानिया ने पानी मांगा। पानी पीने के बाद उसकी पहली लाइन थी, “मैं जिंदा हूं।”

डॉक्टर रस्तोगी ने मक्खन लगाते हुए कहा, “जी सर, बिल्कुल। यह हमारे हॉस्पिटल की वर्ल्ड क्लास फैसिलिटी और हमारे सीनियर डॉक्टर्स की मेहनत का नतीजा है कि आप हमारे बीच हैं।”

सिंघानिया ने डॉक्टर रस्तोगी को घूर कर देखा। उसकी याददाश्त वापस आ रही थी। उसे याद था कि बेहोश होने से पहले उसने डॉक्टरों को हाथ खड़े करते और घबराते हुए देखा था। “झूठ मत बोलो रस्तोगी। मुझे याद है तुम सबकी हालत खराब थी। मुझे बचाने वाला कौन है? मुझे उससे मिलना है।”

कमरे में सन्नाटा छा गया। मेहता और डॉक्टर रस्तोगी ने एक दूसरे को देखा। “वो… वो अभी यहां नहीं आ सकता सर।”

“क्यों? उसे क्या चाहिए? पैसा? उसे बोलो सोनू सिंघानिया बुला रहा है।”

मेहता ने हिम्मत जुटाई। “सर, जिसने आपको बचाया वो कोई बड़ा डॉक्टर नहीं है। वो सामने वाली चाय की दुकान वाले का बेटा है। एक स्टूडेंट। उसने रिस्क लेकर ऑपरेशन किया। लेकिन हॉस्पिटल ने उस पर केस कर दिया है। वो इस वक्त जेल में है।”

यह सुनते ही सोनू सिंघानिया का ईसीजी मॉनिटर तेजी से बीप करने लगा। उसे गुस्सा आ गया। उसने अपने हाथ से ड्रिप खींचने की कोशिश की। “क्या बकवास है? जिस लड़के ने मेरी जान बचाई, वह जेल में है और तुम लोग यहां सूटबूट पहनकर क्रेडिट ले रहे हो?”

“शेरा, शेरा कहां है?”

शेरा दरवाजे पर ही खड़ा था। वह तुरंत अंदर आया। “जी बॉस?”

“जाओ अभी जाओ और पुलिस कमिश्नर को मेरा फोन मिलाओ और उस लड़के को बाइज्जत यहां लेकर आओ। अगर उसे एक खरोच भी आई होगी तो मैं यह पूरा हॉस्पिटल खरीद कर उसमें आग लगा दूंगा।”

आधे घंटे के अंदर पुलिस कमिश्नर का फोन आया और रवि की जमानत हो गई। सोनू सिंघानिया की पावर के आगे कानून के हाथ भी बंध गए थे।

नया जीवन, नया सपना

शाम को रवि को हॉस्पिटल लाया गया। इस बार हथकड़ियों में नहीं बल्कि एक हीरो की तरह उसे सीधे सिंघानिया के कमरे में ले जाया गया। कमरे में डॉक्टर रस्तोगी, डॉक्टर खन्ना और शहर के कई बड़े लोग मौजूद थे। रवि ने जैसे ही कमरे में कदम रखा, सिंघानिया ने उठने की कोशिश की।

“लेटे रहिए सर। टांके ताजे हैं।” रवि ने डॉक्टर वाले अंदाज में कहा।

सिंघानिया मुस्कुराया। उसने गौर से रवि को देखा। साधारण कपड़े, चेहरे पर सौम्यता और आंखों में सच्चाई। “तो तुम हो वो जादूगर? सुना है तुम चाय वाले के बेटे हो?”

“जी सर।” रवि ने विनम्रता से कहा।

सिंघानिया ने डॉक्टर रस्तोगी और बाकी स्टाफ की तरफ देखा जो सिर झुकाए खड़े थे। “देखो इन डिग्री वालों को। इनके पास डिग्रियां तो बहुत हैं लेकिन जिगरा नहीं है। और तुम्हारे पास डिग्री नहीं थी लेकिन जिगरा था। बिजनेस और जिंदगी दोनों जिगरे से चलते हैं। कागज के टुकड़ों से नहीं।”

सिंघानिया ने रवि का हाथ अपने हाथ में लिया। “तुमने मुझे नई जिंदगी दी है। मैं इसकी कीमत तो नहीं चुका सकता लेकिन मैं तुम्हें एक मौका देना चाहता हूं। रवि, मेरी एक फार्मास्यूटिकल कंपनी है और मैं शहर में एक नया मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल चैन शुरू करने वाला हूं। मैं चाहता हूं कि तुम मेरी उस कंपनी के सीईओ बनो। तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो, जो भी खर्चा होगा मैं उठाऊंगा। लेकिन उस कंपनी को तुम्हारी सोच, तुम्हारी ईमानदारी और तुम्हारे जैसे जुनून की जरूरत है।”

वहां खड़े सभी लोग दंग रह गए। एक स्टूडेंट को सीधा सीईओ! रवि हैरान था।

“सर, लेकिन मुझे बिजनेस का कोई अनुभव नहीं है। मैं बस एक डॉक्टर बनना चाहता हूं।”

सिंघानिया हंसा, “बिजनेस मैं सिखा दूंगा। तुम बस इंसानियत जिंदा रखना। आज के दौर में डॉक्टर तो बहुत हैं लेकिन हीलर कम हैं। मुझे तुम पर भरोसा है।”

रवि की आंखों में आंसू आ गए। उसने पीछे मुड़कर देखा। दरवाजे पर उसके पिता रामलाल खड़े थे। उनकी छाती गर्व से फूल गई थी। आज उनका सपना सिर्फ पूरा नहीं हुआ था, बल्कि उनकी सोच से भी बड़ा हो गया था।

छह साल बाद…

छह साल बाद शहर के बीचोंबीच एक विशाल इमारत खड़ी थी। “रामलाल मेडिसिटी”। यह शहर का सबसे आधुनिक हॉस्पिटल था, जहां गरीबों का इलाज मुफ्त होता था। एक आलीशान केबिन में सूट-बूट पहने एक नौजवान बड़ी सी रिवॉल्विंग चेयर पर बैठा फाइलों पर साइन कर रहा था। नेमप्लेट पर लिखा था – डॉ. रवि कुमार, सीईओ एंड मैनेजिंग डायरेक्टर।

तभी इंटरकॉम बजा। “सर, मीटिंग के लिए सब तैयार हैं।”

“मैं आ रहा हूं।” रवि ने कहा। वह अपनी कुर्सी से उठा और खिड़की के पास गया। वहां से उसे सड़क के उस पार पुरानी जगह दिखाई दी। वहां अब वह पुरानी टपरी नहीं थी, बल्कि एक सुंदर सा टी कैफे था जिसे उसके पिता चलाते थे – शौक के लिए, मजबूरी के लिए नहीं।

रवि मुस्कुराया। उसने अपने कोट का बटन लगाया और बाहर निकल गया। उसने दुनिया को दिखा दिया था कि इंसान की पहचान उसके कपड़ों या उसके बाप की हैसियत से नहीं, बल्कि उसकी काबिलियत और उसके हौसले से होती है। जिस शहर ने कभी उसे और उसके पिता को हिकारत से देखा था, आज वही शहर उनके सम्मान में सिर झुकाता था।

सीख:
हर मुश्किल घड़ी में हौसला, मेहनत और सच्चाई ही इंसान को उसकी मंजिल तक पहुंचाती है। रवि की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।