डीएम बेटी का न्याय

शहर के बीचोंबीच एक चहल-पहल वाले बाज़ार में माघमा देवी रोज़ अपनी छोटी-सी टोकरी लेकर मीठे अमरूद बेचने बैठ जाती थीं। वह भले ही मामूली फेरीवाली दिखती थीं, लेकिन उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी उनकी दो बेटियाँ थीं—बड़ी बेटी नंदिनी सिंह, जो सेना में अफसर थी और देश की सरहद पर तैनात थी, और छोटी बेटी सावित्री सिंह, जो उसी जिले की डीएम थी। माघमा देवी को गर्व था कि उनकी बेटियाँ दो मोर्चों पर देश की रक्षा कर रही हैं—एक सीमा पर और दूसरी प्रशासन में।

लेकिन यह गर्व एक दिन सड़क पर कुचल गया।

एक इंस्पेक्टर, अरुण चौधरी, अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर आया और माघमा देवी के अमरूद खाने के बाद बेस्वाद कहकर पूरी टोकरी सड़क पर फेंक दी। मेहनत, इज्ज़त और सालों का धैर्य सब कुछ मिट्टी में मिल गया। लोग तमाशबीन बने रहे, किसी ने बुजुर्ग अम्मा का साथ नहीं दिया।

लेकिन किस्मत को यह मंज़ूर न था कि अन्याय दबा रह जाए। पास की छत पर खड़ा रोहित यह सब वीडियो में कैद कर चुका था। उसने वह वीडियो नंदिनी सिंह को भेज दिया। बॉर्डर पर तैनात नंदिनी ने जब अपनी माँ की बेइज़्ज़ती देखी तो उसका खून खौल उठा। उसने तुरंत वीडियो अपनी छोटी बहन डीएम सावित्री को भेजा।

सावित्री ने वीडियो देखा, दिल में आग लगी लेकिन चेहरा ठंडा रखा। वह जानती थी, गुस्से में लिया गया कोई भी कदम उसकी माँ के न्याय की राह को कमजोर कर सकता है। उसने ठान लिया—“अब इंसाफ कानून के रास्ते से ही होगा।”

उस रात उसने एक योजना बनाई। अगले दिन वह साधारण कपड़ों में एक आम लड़की बनकर थाने पहुँची और इंस्पेक्टर अरुण चौधरी से अपनी शिकायत दर्ज करवाने लगी। अरुण और उसके साथी एसएचओ संदीप राणा हँसते रहे, उसका मज़ाक उड़ाते रहे। लेकिन तभी थाने में एक बड़ा मोड़ आया—प्रभावशाली नेता गंगा प्रसाद यादव अंदर आया।

अरुण और संदीप उसके सामने झुक गए, लेकिन गंगा प्रसाद जैसे ही उस साधारण लड़की पर नज़र पड़ी, उसके चेहरे का रंग उड़ गया। वह समझ गया—यह कोई और नहीं, बल्कि जिले की डीएम सावित्री सिंह है। अगले ही पल थाने में एसपी, डीएसपी और बड़े अफसर पहुँच गए। सावित्री ने कठोर स्वर में आदेश दिया—“इंस्पेक्टर अरुण चौधरी और एसएचओ संदीप राणा, तुम दोनों सस्पेंडेड हो।” उनके बेल्ट और टोपी उतरवा दिए गए। कल तक जो शेर बने घूमते थे, आज कटघरे में खड़े थे।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। गंगा प्रसाद यादव ने हार मानने के बजाय चाल चली। कुछ ही दिनों में माघमा देवी के अमरूदों में नशीला पदार्थ ‘बरामद’ करवा दिया गया और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। शहर में तहलका मच गया—“डीएम की माँ नशे की तस्करी करती है!”

यह वार सीधा सावित्री के दिल पर था। लेकिन उसने खुद को संभाला। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उसने कहा—“कानून सबके लिए बराबर है। इसलिए मैं इस केस की जांच से खुद को अलग करती हूँ।” उसने जाँच एसपी की टीम को सौंप दी।

साथ ही, उसने रोहित को गुप्त रूप से जांच के लिए लगाया। रोहित ने बाजार के सीसीटीवी फुटेज से वह सुराग निकाला जिसमें एक आदमी टोकरी में नशीला पदार्थ रखता दिख रहा था। वह आदमी सस्पेंडेड इंस्पेक्टर अरुण चौधरी का करीबी निकला।

सावित्री और एसपी ने जाल बिछाया। नकली खबर फैलाई गई कि असली गुनहगार सीसीटीवी में कैद हो गया है। घबराए गंगा प्रसाद ने अरुण और संदीप को गवाह को खत्म करने भेजा। लेकिन पुलिस ने मौके पर ही उन्हें रंगे हाथ पकड़ लिया। दबाव में आकर दोनों ने गंगा प्रसाद का नाम उगल दिया।

अगले ही दिन, डीएम सावित्री खुद भारी पुलिस बल के साथ गंगा प्रसाद के घर पहुँची। उसके सामने अरेस्ट वारंट रखा गया। गंगा प्रसाद यादव, जो कल तक पूरे जिले को अपनी उंगलियों पर नचाता था, आज हथकड़ियों में जकड़ा पुलिस की गाड़ी में बैठा था।

शाम को माघमा देवी जेल से बाइज्जत बरी हुईं। बाहर आते ही उन्होंने अपनी बेटी सावित्री को गले लगा लिया। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे—गर्व और सुकून के आँसू।

सावित्री ने कहा—“माँ, अब आपको अमरूद बेचने की जरूरत नहीं है। आपकी बेटी डीएम है, और आपने जो इज्ज़त खोई थी, वह लौट आई है।”

उस दिन से माँ-बेटी का जीवन बदल गया। बड़ी बेटी नंदिनी जब भी छुट्टी पर आती, तो तीनों साथ बैठकर खाना खाते, हँसते और गर्व से कहते—“अन्याय चाहे कितना भी बड़ा हो, इंसाफ अगर कानून की राह से लिया जाए, तो जीत पक्की होती है।”


यह कहानी हमें यह सिखाती है कि ताकतवर होना सिर्फ पद या वर्दी से नहीं होता। असली ताकत न्याय पर विश्वास रखने में है, और वही ताकत सावित्री ने दिखाकर अपनी माँ को न्याय दिलाया।