दिल की धड़कन से अस्पताल के बिस्तर तक: धर्मेंद्र की अनकही जिंदगी, दो औरतें, दो परिवार और सच्चे रिश्तों की अंतिम सीख

मुंबई के एक शांत अस्पताल के कमरे में, जहां मशीनों की बीप और दवाइयों की हल्की गंध फैली हुई है, वही आदमी लेटा है जिसका नाम कभी करोड़ों दिलों की धड़कन हुआ करता था। उम्र 90 साल। आँखों में धुंधलापन, शरीर में कमजोरी, और जिंदगी का सफर अब ढलान पर। यह वही इंसान है जिसे कभी बॉलीवुड का ही-मैन कहा गया। वही स्टार जिसकी मुस्कान पर लाखों लड़कियाँ फ़िदा हो जाती थीं। वही धर्मेंद्र, जो सिल्वर स्क्रीन पर ताकत, रोमांस और करिश्मे का दूसरा नाम थे। आज वह शांत, थका हुआ और चुप है।

उसके बिल्कुल पास बैठी है एक औरत—सफेद बाल, सादा सलवार-कमीज़, माथे पर हल्की झुर्रियाँ, और चेहरे पर गजब की शांति। वह धीरे-धीरे उसके माथे पर कपड़ा रखती है, दवाई का टाइम नोट करती है, और बिना कुछ कहे उसकी हर तकलीफ को समझती है। यह न उनकी ड्रीम गर्ल है, न कोई ग्लैमरस हीरोइन। यह हैं प्रकाश कौर—वह औरत जिसे 70 साल पहले एक 19 साल के नौजवान से ब्याह दिया गया था। वही औरत जिसने अपने पति को बनते-बिखरते, प्यार करते और टूटते देखा, लेकिन कभी साथ नहीं छोड़ा।

कहानी शुरू होती है 1935 में, पंजाब के फगवाड़ा जिले के छोटे से गांव नसराली में। 8 दिसंबर को सरकारी स्कूल के हेडमास्टर केसर सिंह देओल के घर एक बच्चे ने जन्म लिया। उसका नाम रखा गया—धर्म सिंह देओल। गांव में खेल-कूद करने वाला यह साधारण सा लड़का फिल्मों से कुछ ज्यादा ही मोह रखता था। जब कभी गांव में फ़िल्म दिखाई जाती, वह घंटों सफ़ेद पर्दे को टकटकी लगाकर देखता। दिलीप कुमार की अदाकारी, देव आनंद की स्टाइल और राज कपूर की मासूमियत उसकी आँखों में बस जाती।

लेकिन उसके पिता चाहते थे कि वह पढ़-लिखकर अफसर बने। जिंदगी की राह कुछ और थी।

1954 में, सिर्फ 19 साल की उम्र में, उसकी शादी एक सधी-सादी पंजाबी लड़की प्रकाश कौर के साथ कर दी गई। उस दौर में प्यार नहीं, परिवार के फैसले चलते थे। दोनों ने इस रिश्ते को सम्मान से निभाया। प्रकाश एक परफेक्ट गृहिणी थीं—घर संभालना, बड़ी-बूढ़ों की सेवा करना, और पति के सपनों का साथ देना।

लेकिन सपनों का रास्ता पंजाब की सीमाओं में नहीं बंध सकता था।

1958 में फिल्मफेयर टैलेंट हंट की खबर आई। धर्मेंद्र ने फोटो भेजी और किस्मत ने साथ दिया—उन्हें मुंबई बुला लिया गया। मुंबई—सपनों का शहर, पर संघर्षों का पहाड़। वे छोटे-छोटे कमरों में रहते, वड़ा पाव खाकर दिन निकालते, स्टूडियो के चक्कर लगाते। वहीं, उनके शादीशुदा होने की बात छुपानी पड़ी क्योंकि उस दौर में शादीशुदा हीरो की मांग कम होती थी।

प्रकाश चुपचाप पंजाब में इंतजार करती रहीं।

1960 में उनकी पहली फिल्म आई—दिल भी तेरा, हम भी तेरे। फिल्म बड़ी हिट नहीं थी, लेकिन एक नया चेहरा सबका ध्यान खींच गया। अगले कुछ सालों में उन्होंने कई फिल्में की, पर असली धमाका आया फूल और पत्थर (1966) से। वह रातों-रात सुपरस्टार बन गए। उनके एक्शन, उनके रोमांस, और उनकी मुस्कान ने उन्हें बॉलीवुड का ही-मैन बना दिया।

इसी बीच, घर में भी खुशियाँ आईं। प्रकाश ने दो बेटों—सनी और बॉबी—को जन्म दिया। धर्मेंद्र पापा भी थे और सुपरस्टार भी। जब भी समय मिलता, वह पंजाब जाते। लेकिन धीरे-धीरे उनका जीवन दो हिस्सों में बंटने लगा—बॉलीवुड और परिवार।

और फिर आया 1970—वह साल जिसने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी।

तमिलनाडु से आई एक नई अभिनेत्री, बेहद खूबसूरत, अनुशासित और प्रतिभाशाली—हेमा मालिनी। उनकी पहली ही फिल्म ने उन्हें “ड्रीम गर्ल” बना दिया। धकड़ सुंदरता, कमाल की डांसर, और बेदाग स्क्रीन प्रेजेंस। धर्मेंद्र और हेमा की पहली फिल्म साथ में थी तुम हसीन, मैं जवान—और फिर आई शोले। शोले की शूटिंग के दौरान, दोनों करीब आने लगे। सेट पर धर्मेंद्र के बहाने खत्म ही नहीं होते थे—“लाइट ठीक नहीं”, “एक्सप्रेशन सही नहीं”, “एक और टेक।” असल में सब ठीक था, सिर्फ दिल में हलचल थी।

हेमा सब समझती थीं, पर चुप रहतीं। भावनाएं अपना रास्ता खुद बना लेती हैं।

लेकिन यह रिश्ता आसान नहीं था। धर्मेंद्र शादीशुदा थे। हेमा की माँ जया चक्रवर्ती इस रिश्ते के खिलाफ थीं। ऊपर से हिंदू कानून में दूसरी शादी गैर-कानूनी थी। लेकिन प्यार अक्सर कानून और तर्क से बड़ा हो जाता है।

रास्ता खोजा गया मुस्लिम पर्सनल लॉ का। कहा जाता है कि 1979 में दोनों ने धर्म परिवर्तन किया—धर्मेंद्र बने दिलावर खान देओल और हेमा बनीं आयशा बी देओल। फिर चुपचाप निकाह हुआ। कुछ साल शादी छुपी रही, फिर मीडिया को खबर लग गई और विवादों का तूफान उठ गया।

लोगों ने सवाल पूछा—प्रकाश का क्या? बच्चों का क्या? धर्म का क्या? पर धर्मेंद्र और हेमा ने इस मामले पर कभी ज्यादा बात नहीं की।

शादी के बाद धर्मेंद्र की जिंदगी दो घरों में बंट गई। एक तरफ मुंबई में हेमा और उनकी दो बेटियाँ—ईशा और अहाना। दूसरी तरफ पंजाब वाला घर, जहां प्रकाश कौर थीं और उनके बेटे सनी-बॉबी। यह संतुलन आसान नहीं था। सबको दर्द हुआ, सबने सहा, लेकिन समय ने सबको अपनाने का तरीका सिखा दिया।

काबिल-ए-तारीफ बात है कि दोनों परिवारों के बच्चों में कभी नफरत नहीं आई। सनी ने कभी हेमा के बारे में गलत शब्द नहीं बोला। ईशा ने हमेशा सनी-बॉबी की तारीफ की। 2023 में ईशा की बेटी की बर्थडे पार्टी में सनी देओल का शामिल होना इसका सबसे बड़ा सबूत था।

सिनेमा की बात करें तो 70 और 80 का दशक धर्मेंद्र का स्वर्णिम काल था। एक्शन, रोमांस, कॉमेडी, सामाजिक मुद्दे—हर रंग में वह चमके। शोले, जुगनू, यादों की बारात, प्रतिज्ञा जैसी फिल्मों ने उन्हें अमर कर दिया।

समय बीतता रहा। 90 के दशक में वे बूढ़े होने लगे। 2000 में राजनीति में आए, लेकिन धीरे-धीरे कैमरों से दूर हो गए। उम्र असर दिखाने लगी—घुटनों में दर्द, पीठ में तकलीफ, आँखों की समस्या। 2024–2025 में उनकी हालत और बिगड़ गई। 2025 की शुरुआत में उनकी आंखों में गंभीर कॉर्नियल समस्या आई। सर्जरी करनी पड़ी। अस्पताल से बाहर निकलते समय एक आंख पर पट्टी थी। लेकिन जो सबसे ज्यादा ध्यान खींचता था—उनके साथ खड़ी प्रकाश कौर, सनी और बॉबी।

हेमा मालिनी आई थीं, लेकिन कुछ समय ही रुकीं। इसके बाद जब धर्मेंद्र को इलाज के लिए अमेरिका ले जाया गया, फ्लाइट में भी सनी, बॉबी और प्रकाश थे—हेमा नहीं। सोशल मीडिया गरम हो गया—हेमा कहां हैं? क्यों नहीं दिखतीं?

लेकिन हर कहानी की दो साइड होती हैं। हो सकता है हेमा पर्दे के पीछे से सपोर्ट कर रही हों। हो सकता है कि डेली केयर प्रकाश बेहतर तरह संभाल सकती हों। हो सकता है कि दोनों परिवारों के बीच एक समझदारी भरी व्यवस्था हो। इसलिए हेमा को गलत ठहराना उतना ही गलत है जितना प्रकाश को नज़रअंदाज़ करना।

असल बात यह है कि 70 साल बाद भी प्रकाश वही है—धैर्यवान, शांत, समर्पित। उसने न कभी इंटरव्यू दिए, न कभी शिकायत, न आंसू दुनिया को दिखाए। बस चुपचाप निभाती रहीं—पत्नीत्व, मातृत्व, और उस वादे को जो सात फेरों में लिया था।

और यह भी सच है कि हेमा ने भी धर्मेंद्र से सच्चा प्यार किया। उन्होंने सामाजिक आलोचना झेली, करियर दांव पर लगाया, दो बेटियों को पाला-पोसा, और आज भी राजनीति व समाज सेवा में सक्रिय हैं। उनकी भी त्याग की कहानी है।

सबसे बड़ी परिपक्वता बच्चों ने दिखाई। उन्होंने अपने रिश्तों को कड़वाहट बनने नहीं दिया।

अब 2025 में धर्मेंद्र 90 साल के हो चुके हैं। कमजोर हैं। पर दिल से अब भी उतने ही जिंदादिल। कभी पोते-पोतियों के साथ हंसते दिख जाते हैं, कभी सनी की गदर 2 देखकर बच्चे की तरह खुश होते हैं। शोहरत आज भी वैसी ही है, पर जिंदगी अब शांत है—यादों, परिवार, और कुछ खास पलों के साथ।

धर्मेंद्र की जिंदगी हमें कई सीख देती है।
युवावस्था का आकर्षण हमेशा नहीं टिकता।
रिश्तों की असलियत समय की मार में दिखती है।
हर फैसला अपने परिणाम लेकर आता है।
और अंत में, सबसे जरूरी—बुढ़ापे में सिर्फ वही मायने रखता है जो आपका हाथ पकड़कर आपके पास बैठा है।

ग्लैमर फीका पड़ जाता है।
स्टारडम खत्म हो जाता है।
पर इंसानियत और निष्ठा हमेशा ज़िंदा रहती है।

इस कहानी में सबसे चमकता चेहरा न शोले का वीरू है, न ड्रीम गर्ल—बल्कि वह शांत, दृढ़, नम्र औरत—प्रकाश कौर—जिसे कभी कोई अवॉर्ड नहीं मिला, पर जिसने जिंदगी की सबसे बड़ी जीत हासिल की—अंत तक साथ निभाने की।