धर्मेंद्र जी की विदाई: बिखरते रिश्ते, दो प्रार्थना सभाएं और समाज की नजरें

अंतिम विदाई का दिन

24 नवंबर 2025, मुंबई के एक अस्पताल में हिंदी सिनेमा के महानायक धर्मेंद्र जी की सांसे थम गईं। वह शख्स जिसने अपने जीवन में करोड़ों लोगों के दिल जीते, आज इस दुनिया से विदा हो गया। अस्पताल के कमरे में सन्नाटा था, परिवार के सदस्य रो रहे थे, डॉक्टरों के चेहरे गंभीर थे। लेकिन असली तूफान उस दिन नहीं आया, बल्कि अगले कुछ घंटों में सोशल मीडिया और परिवार की दीवारों के भीतर आया।

धर्मेंद्र जी के अंतिम संस्कार की खबर जैसे ही फैली, हर कोई जानना चाहता था – परिवार कैसे जुटा, कौन आया, किसने विदाई दी, किसने नहीं।

दो प्रार्थना सभाएं: एक परिवार, दो दुनियाएं

धर्मेंद्र जी के निधन के तीन दिन बाद, मुंबई के ताज लैंड्स एंड होटल में एक भव्य “Celebration of Life” प्रार्थना सभा रखी गई। सनी देओल और बॉबी देओल ने अपने पिता के सम्मान में यह आयोजन किया। वहां बॉलीवुड के बड़े-बड़े नाम आए, सफेद फूलों से सजा हॉल, बड़े-बड़े स्क्रीन पर धर्मेंद्र जी की फिल्मों के दृश्य, और हर तरफ श्रद्धा का माहौल।

लेकिन एक चेहरा गायब था – हेमा मालिनी। न ईशा, न अहाना। सोशल मीडिया पर बहस शुरू हो गई। क्या हेमा मालिनी को बुलाया ही नहीं गया? क्या परिवार बंट गया? क्या सनी और बॉबी ने जानबूझकर दूसरी पत्नी और उसकी बेटियों को दूर रखा?

इसी दिन, ठीक उसी समय, हेमा मालिनी ने अपने जूहू स्थित बंगले पर एक अलग, निजी प्रार्थना सभा रखी। वहां सिर्फ कुछ करीबी दोस्त, रिश्तेदार और उनकी दोनों बेटियां थीं। यह दो सभाएं, दो अलग-अलग दुनियाओं का प्रतीक बन गईं।

सोशल मीडिया पर बवाल

जैसे ही खबरें आईं कि परिवार एक साथ नहीं आया, ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर लोग बिफर गए। किसी ने सनी और बॉबी को कोसा – “शर्म करो, पिता की विदाई में परिवार को जोड़ नहीं सके।” किसी ने हेमा मालिनी को दोषी ठहराया – “आपने खुद को अलग रखा, परिवार को जोड़ने की कोशिश क्यों नहीं की?”

एक यूजर ने लिखा,
“हेमा मालिनी और उनकी बेटियों को क्रेमेटोरियम में 10 मिनट से ज्यादा रुकने नहीं दिया गया। सनी ने उन्हें बुलाया ही नहीं, शायद संपत्ति के बंटवारे का डर था। अगर अब धर्मेंद्र जी नहीं रहे तो हेमा जी का उस परिवार से क्या लेना-देना?”

दूसरे ने लिखा,
“शर्म करो, सनी और बॉबी। आपने अपने पिता की बेटियों को प्रार्थना सभा से दूर रखा। भले हेमा जी से दूरी हो, लेकिन ईशा और अहाना तो आपके पिता की बेटियां हैं, आपकी बहनें हैं।”

तीसरे ने लिखा,
“धर्मेंद्र जी के जाने के बाद सबका असली चेहरा सामने आ गया। दोनों परिवार अपने-अपने रंग दिखा रहे हैं।”

रिश्तों की जटिलता: दो परिवार, एक दिल

धर्मेंद्र जी का जीवन दो हिस्सों में बंटा था। एक तरफ प्रकाश कौर – उनकी पहली पत्नी, सनी और बॉबी के मां। दूसरी तरफ हेमा मालिनी – ड्रीम गर्ल, दूसरी पत्नी, ईशा और अहाना की मां। दोनों परिवारों के बीच एक अनकहा समझौता था – सार्वजनिक कार्यक्रमों में एक साथ ना आना, एक-दूसरे की दुनिया में दखल ना देना।

45 साल तक यह मर्यादा निभाई गई। धर्मेंद्र जी ने दोनों परिवारों को बराबर सम्मान देने की कोशिश की, लेकिन समाज ने हमेशा इस दूरी को शक की नजर से देखा।

संपत्ति, अधिकार और डर

सोशल मीडिया पर चर्चाएं थीं – क्या संपत्ति का विवाद है? क्या सनी और बॉबी ने हेमा जी को इसलिए दूर रखा कि कहीं बंटवारे की बात ना उठ जाए? हकीकत यह थी कि धर्मेंद्र जी ने अपनी संपत्ति दोनों परिवारों के लिए पहले ही तय कर दी थी। सनी और बॉबी को मुंबई के बंगले, फार्महाउस, हेमा मालिनी और उनकी बेटियों को अलग मकान और आर्थिक सुरक्षा।

लेकिन समाज के डर और परिवार की मर्यादा ने दोनों पक्षों को एक साथ आने से रोक दिया।

हेमा मालिनी की चुप्पी और दर्द

हेमा मालिनी ने ताज लैंड्स एंड की सभा में न जाकर अपने पति को सम्मान दिया। उन्होंने मीडिया के सवालों का जवाब नहीं दिया। अपने सोशल मीडिया पर उन्होंने धर्मेंद्र जी के साथ पुरानी तस्वीरें, शादी के पल, बेटियों के साथ यादें साझा कीं। एक पोस्ट में लिखा –
“धर्म जी, आप मेरे दोस्त, मेरे गाइड, मेरे बच्चों के पिता। आपका खालीपन कभी नहीं भर पाएगा।”

उनकी चुप्पी में दर्द था, सम्मान था, और समाज के तानों से बचने की कोशिश भी थी।

सनी और बॉबी की जिम्मेदारी

सनी देओल और बॉबी देओल ने अपने पिता के अंतिम संस्कार से लेकर प्रार्थना सभा तक सब कुछ संभाला। उन्होंने मीडिया से दूरी बनाई, परिवार को निजी रखा। उन्होंने अपने पिता की इच्छा का सम्मान किया – “मेरी विदाई शांति से हो, बिना भीड़ के।”

लेकिन उनके इस फैसले को सोशल मीडिया ने गलत समझा। किसी ने कहा – “सनी ने परिवार तोड़ दिया।” किसी ने लिखा – “बॉबी ने बहनों को दूर रखा।”

बहनों का दर्द: ईशा और अहाना

ईशा और अहाना – धर्मेंद्र जी की बेटियां, हेमा मालिनी की संतान। दोनों ने अपने पिता के लिए सोशल मीडिया पर भावुक पोस्ट की।
ईशा ने लिखा,
“पापा, आपने हमें हमेशा प्यार दिया। आपकी यादें हमारे दिल में अमर रहेंगी।”

अहाना ने लिखा,
“पापा, आप हमेशा हमारे साथ रहेंगे।”

लेकिन दोनों बहनों ने ताज लैंड्स एंड की सभा में हिस्सा नहीं लिया। उनका दर्द था, लेकिन उन्होंने मर्यादा निभाई।

समाज का फैसला और असली सच्चाई

समाज ने परिवार के फैसले पर सवाल उठाए। किसी ने कहा – “यह परिवार टूट गया।” किसी ने लिखा – “धर्मेंद्र जी के जाने के बाद सब बदल गया।”

लेकिन असली सच्चाई यह थी कि दोनों परिवारों ने अपनी-अपनी सीमाओं का सम्मान किया। उन्होंने सार्वजनिक विवाद से बचने के लिए अलग-अलग प्रार्थना सभाएं रखीं। यह दूरी झगड़े की नहीं, बल्कि समझदारी और सम्मान की थी।

धर्मेंद्र जी की आत्मा और परिवार का भविष्य

धर्मेंद्र जी की आत्मा आज भी अपने दोनों परिवारों के साथ है। वह अपने बच्चों, दोनों पत्नियों, और रिश्तों की मर्यादा को देख रही है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि रिश्ते कभी-कभी दूरी में भी सुरक्षित रहते हैं। परिवार टूटता नहीं है, बल्कि समय के साथ बदलता है।

धर्मेंद्र जी के जाने के बाद देओल परिवार ने समाज की नजरों के सामने अपनी मर्यादा, सम्मान और दर्द को छुपा लिया। लेकिन हर दिल जानता है कि पिता की यादें, बच्चों का प्यार और परिवार की जड़ें हमेशा मजबूत रहती हैं।

निष्कर्ष: समाज, मर्यादा और इंसानियत

धर्मेंद्र जी की अंतिम यात्रा ने हमें यह सिखाया कि रिश्तों की जटिलता को समझना आसान नहीं है। समाज जल्दी फैसले सुना देता है, लेकिन हर परिवार की अपनी कहानी होती है। दो प्रार्थना सभाएं, दो दुनियाएं, लेकिन एक ही भावना – प्यार और सम्मान।

धर्मेंद्र जी का जीवन और विदाई हमें यह सिखाती है कि दौलत, अधिकार, और समाज के ताने कभी रिश्तों की गहराई को नहीं तोड़ सकते। असली इंसानियत, सम्मान और मर्यादा ही परिवार को जोड़ती है।

अगर आपको यह कहानी दिल से छू गई हो, तो इसे जरूर साझा करें। क्योंकि हर परिवार की अपनी जंग होती है, और हर रिश्ते की अपनी मर्यादा।