बारिश की बूंदें और अधूरी फाइल
आज बारिश की बूंदें ठीक वैसी ही थीं जैसी उस दिन थीं। फर्क बस इतना था—तब हम एक छत के नीचे थे, और आज कोर्ट के बाहर तलाक की फाइल के साथ। उसने मेरी तरफ देखा। उसकी आँखों में न नफरत थी, न मोहब्बत। बस एक सवाल था—क्या इतनी आसानी से सब कुछ खत्म हो सकता है?
मैं सोचता रह गया… क्या हर रिश्ता सच में कोर्ट के अंदर टूटता है या बाहर? दो दिलों की खामोशी में?
रवि और नेहा की शादी को चार साल हुए थे। दिल्ली की एक छोटी सी कंपनी में दोनों काम करते थे। सुबह साथ निकलना, बस में साथ बैठना, ऑफिस की कैंटीन में साथ चाय पीना—रोजमर्रा की जिंदगी में भी दोनों का रिश्ता किसी फिल्म जैसा था।
रवि थोड़ा शांत स्वभाव का था। कम बोलता, पर जो भी करता पूरे दिल से करता। वहीं नेहा हसमुख, चंचल और सपनों से भरी लड़की थी। उसे रवि का सादा रहन-सहन बहुत पसंद था, और रवि को नेहा की मुस्कान।
“देखो, आज तुम्हारे पसंद का आलू वाला बनाया है!”
वो मुस्कुरा कर कहती और रवि के होठों पर अनायास मुस्कान आ जाती। घर छोटा था, पर दिल बड़ा। कभी-कभी रवि रात को नेहा के बालों में उंगलियाँ फेरते हुए कहता,
“नेहा, पता है… तू मेरी जिंदगी का वह हिस्सा है जिसके बिना यह सब अधूरा है।”
नेहा हंसकर जवाब देती,
“और तुम वह हिस्सा हो जो हर सुबह मुझे उठने की वजह देता है।”
उनका रिश्ता मजबूत था। इतना कि जरा सी तकरार भी हंसी में बदल जाती। लेकिन कहते हैं न, कभी-कभी किस्मत मुस्कान के पीछे वह परछाई रख देती है जो धीरे-धीरे सब कुछ ढक लेती है। और यही परछाई नेहा की जिंदगी में आने वाली थी—सफलता की परछाई, जिसने उनकी हंसी से ज्यादा उनके रिश्ते पर असर डाला।
नेहा हमेशा मेहनती रही थी। हर प्रोजेक्ट में उसका काम सबसे अलग दिखता था। बॉस अक्सर मीटिंग में कहता,
“अगर इस टीम में कोई सच में लीडर बन सकता है तो वह नेहा है।”
रवि ताली तो बजा देता, पर उसके अंदर कहीं एक हल्की सी चुभन उठती थी। उसी ने तो नेहा को यह जॉब ज्वाइन कराई थी, और अब वही उससे आगे निकल रही थी। नेहा के प्रमोशन की खबर आई। अब वो टीम लीड बन चुकी थी।
वह घर लौटी तो खुशी से झूम रही थी।
“रवि, तुम्हारी नेहा अब टीम लीड बन गई है!”
रवि ने मुस्कुराने की कोशिश की,
“वाह! बहुत अच्छा किया तूने। सच में गर्व है मुझे तुझ पर।”
पर उस मुस्कान के पीछे न जाने कितने सवाल छिपे थे।
अब नेहा की ड्यूटी देर तक चलती। फोन लगातार बजता, कभी क्लाइंट का, कभी मीटिंग का। रवि उसका इंतजार करता और घड़ी की सुइयां जैसे उसे हर रात चुकती। एक दिन रवि ने हल्के लहजे में कहा,
“नेहा, अब तो तू मुझसे ज्यादा कमाने लगी है।”
नेहा ने मुस्कुरा कर जवाब दिया,
“तो क्या हुआ? हम दोनों का ही तो घर है।”
रवि ने हंसने की कोशिश की, पर उसकी आँखों में कहीं एक हार की झलक थी। उसे लगा जैसे अब उसका वजूद धीरे-धीरे नेहा की सफलता में घुलता जा रहा है।
धीरे-धीरे बातें बदलने लगीं। नेहा के पास वक्त कम होता गया, रवि के पास सवाल बढ़ते गए। एक रात रवि ने पूछा,
“कब तक ऐसे चलेगा नेहा? तू सुबह जाती है, रात को लौटती है… और मैं…”
नेहा झुंझलाकर बोली,
“रवि, समझने की कोशिश करो। यह मेरा करियर है, मेरी मेहनत है। और हमारा रिश्ता…”
रवि की आवाज कांप गई। नेहा चुप रही, बस खिड़की से बाहर देखती रही। वह रात दोनों की जिंदगी का मोड़ बन गई।
अब उनके बीच काम की सफलता और रिश्ते की असफलता के बीच दीवार उठ चुकी थी। रवि को लगा, नेहा मुझसे नहीं, अपनी दुनिया से प्यार करती है। और नेहा को लगा, रवि उसकी मेहनत नहीं समझता।
गलतफहमी की पहली ईंट रखी जा चुकी थी। अब अगला कदम था वो जहर, जो धीरे-धीरे उनके रिश्ते में घुलने वाला था।
कभी जो घर हंसी से गूंजता था, अब वहां खामोशी का राज था। नेहा का प्रमोशन उसके लिए वरदान बना, पर रवि के लिए धीरे-धीरे एक सजा। वह पहले जैसी नहीं रही थी। फोन पर हर वक्त संदीप सर का नाम सुनाई देता। रवि कोशिश करता समझने की, पर भीतर कुछ टूटता जाता।
एक दिन उसने पूछा,
“यह संदीप सर का फोन बार-बार क्यों आता है?”
नेहा ने नाराज होकर कहा,
“रवि, वो मेरे बॉस हैं और ऑफिस की बात ऑफिस में ही रहती है। हर बार शक की बात क्यों करते हो?”
रवि ने कुछ नहीं कहा, बस गहरी सांस ली। लेकिन भीतर जलता सवाल अब बुझने वाला नहीं था।
कुछ दिनों बाद कंपनी की पार्टी थी। नेहा और रवि को भी बुलाया गया। रवि थोड़ा असहज था, पर गया। पार्टी में सब हंस रहे थे, गा रहे थे। नेहा अपने बॉस संदीप के साथ खड़ी थी। दोनों किसी बात पर हंस पड़े। वो एक सामान्य पल था, पर रवि के दिल में बवंडर उठ गया। वह चुपचाप वहां से निकल गया।
नेहा ने देखा, दौड़कर उसके पीछे आई।
“रवि, क्या हुआ?”
“कुछ नहीं। बस अब शोर अच्छा नहीं लगता।”
रवि ने ठंडी आवाज में कहा और टैक्सी लेकर चला गया। उस रात नेहा घर लौटी तो रवि सोने का नाटक कर रहा था। उसने धीरे से कहा,
“तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है क्या?”
रवि की आँखों में आंसू थे, पर उसने कहा,
“कभी था, अब शायद नहीं रहा।”
उस पल से उनके बीच की दूरी बस बढ़ती चली गई। अब बातें कम, ताने ज्यादा। प्यार कम, अहंकार ज्यादा।
कभी-कभी नेहा गुस्से में कहती,
“अगर मेरी तरक्की तुझसे नहीं देखी जाती, तो साफ कह दे रवि।”
और रवि बस चुप रह जाता, क्योंकि उसे डर था—अगर उसने बोल दिया, तो रिश्ता टूट जाएगा।
नेहा और रवि अब एक ही ऑफिस में काम करते हुए भी जैसे दो अलग-अलग दुनिया में जी रहे थे। पहले जहाँ दोनों एक ही केबिन में बैठकर हंसते-बोलते थे, अब एक-दूसरे की मेज के पास से गुजरते हुए बस औपचारिक नमस्ते तक सिमट गए थे।
ऑफिस में सब जानते थे कि दोनों पति-पत्नी हैं, लेकिन अब कोई भी उनके बीच की खामोशी को छेड़ने की हिम्मत नहीं करता था। नेहा अब टीम लीड थी और उसके सीधे सीनियर संदीप, जो रवि का भी मैनेजर था। संदीप पेशेवर आदमी था, पर रवि के मन में अब भी वही शक बैठा था।
हर बार जब नेहा और संदीप प्रोजेक्ट पर चर्चा करते, रवि के भीतर एक चुभन सी होती। वह जानता था यह सिर्फ ऑफिस टॉक है, पर उसके दिल ने भरोसे की जगह खो दी थी।
एक दिन मीटिंग रूम में रवि और नेहा आमने-सामने आ गए। रवि ने फाइल आगे बढ़ाते हुए कहा,
“क्लाइंट रिपोर्ट मैंने भेज दी है।”
नेहा ने ठंडे स्वर में कहा,
“थैंक यू रवि। अब से यह डॉक्यूमेंट सीधे मुझे मत देना। टीम को भेज देना।”
रवि ने उसकी आँखों में देखा। वो वही नेहा थी, पर जैसे अब दिल से बहुत दूर हो चुकी थी।
शाम को रवि पार्किंग में खड़ा था। उसने देखा, संदीप और नेहा साथ में निकल रहे थे। संदीप की कार में दोनों हंसते हुए बैठ गए। रवि बस खड़ा देखता रहा। बारिश की कुछ बूंदें उसके चेहरे पर गिरीं, पर जो जलन उसके दिल में थी, वो किसी बारिश से नहीं बुझ सकती थी।
उसने उसी रात अपना बैग उठाया, घर की चाबी टेबल पर रखी और चुपचाप बाहर निकल गया। सुबह जब नेहा उठी तो रवि का बिस्तर खाली था। टेबल पर सिर्फ एक पर्ची पड़ी थी—
“शायद अब हमें थोड़ी दूरी चाहिए, ताकि हम समझ सके कि हमारे बीच अब भी कुछ बचा है या नहीं।”
नेहा ने पर्ची को सीने से लगाया, पर अगले ही पल गुस्से से फाड़ दी। “हमेशा भागना ही तो आता है रवि को,” वह खुद से बड़बड़ाई, पर उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे।
अब ऑफिस में नेहा अकेली पड़ गई थी। रवि छुट्टी पर चला गया था। संदीप ने एक दिन पूछा,
“नेहा, सब ठीक है न तुम्हारे और रवि के बीच?”
नेहा ने मजबूरी में मुस्कुराया,
“अब तो सब ठीक ही रहेगा, क्योंकि अब कुछ बचा नहीं है।”
एक हफ्ते बाद रवि के पते पर कोर्ट से नोटिस आया—डिवोर्स पिटीशन फाइल्ड बाय मिसेज नेहा शर्मा। वो चौंक गया। फोन उठाया, पर कॉल नहीं की। उसने सिर्फ एक मैसेज लिखा,
“इतनी जल्दी फैसला कर लिया तूने?”
और फिर डिलीट कर दिया।
दूसरी तरफ नेहा भी पछता रही थी। उसने गुस्से में वकील से कहा था, “मुझे यह रिश्ता अब और नहीं चाहिए।” पर अब हर शाम वो उसी दरवाजे को देखती, जहां से रवि गया था। शायद दिल अब भी उम्मीद कर रहा था कि वह लौट आएगा।
फिर एक दिन कोर्ट की तारीख आ गई। सुबह हल्की बारिश थी। नेहा उस पुराने बर्गद के पेड़ के नीचे खड़ी थी, जहां लोग अपने केस की बारी का इंतजार करते थे। उसके हाथ में एक फाइल थी—डिवोर्स पिटीशन नेहा एंड रवि शर्मा, नीले कवर में लिपटी। पर अंदर हर पन्ने में उन दोनों के सालों का रिश्ता दफन था।
रवि सामने से आता दिखा। भीगे बाल और आँखों में वही थकान, जो शायद अब नींद नहीं दर्द से आती थी। नेहा की नजरें अनायास ही उस पर टिक गईं। वो पास आया, पर दोनों के बीच जैसे कोई अदृश्य दीवार थी।
दोनों कोर्ट की बेंच पर जाकर बैठे। कोई कुछ नहीं बोला। सिर्फ बारिश की आवाज थी और बीच-बीच में गिरती पत्तियों की हल्की सरसराहट। नेहा ने फाइल को कस कर पकड़ा और धीरे से कहा,
“आज तो सब खत्म ही हो जाएगा, है न?”
रवि ने उसकी तरफ देखा।
“खत्म… एक छोटा सा शब्द, पर आवाज में टूटे हुए दिल की गूंज थी। क्या तू सच में चाहती है कि सब खत्म हो जाए नेहा?”
नेहा ने नजरें झुका ली।
“रवि, अब क्या बचा है हमारे बीच? हर बात पर झगड़ा, हर दिन तकरार। मैं भी थक गई हूं।”
रवि की आवाज कांप गई,
“तू थक गई, पर मैं अभी भी वहीं खड़ा हूं, जहां हमने साथ में सपने देखे थे।”
नेहा ने अचानक पलट कर पूछा,
“तो फिर तू चला क्यों गया था रवि? क्यों छोड़ा मुझे अकेला उस रात?”
रवि ने गहरी सांस ली,
“क्योंकि मुझे लगा तू अब मुझे नहीं समझती। हर बार जब मैं कुछ कहता, तो संदीप का नाम ले आती थी और मुझे लगता शायद अब मैं तेरी दुनिया का हिस्सा नहीं रहा।”
नेहा की आँखों में आंसू आ गए,
“संदीप… वो तो बस मेरे बॉस थे रवि। मैंने कभी कुछ गलत नहीं किया। मुझे लगा तू मुझ पर भरोसा ही नहीं करता।”
रवि के गालों पर पानी की बूंदें गिरीं—शायद बारिश की, शायद आंसुओं की।
“मैंने भरोसा खोया नहीं था नेहा। बस डर गया था। डर की कहीं तेरी जिंदगी में मेरी जगह कोई और न ले ले। तू आगे बढ़ रही थी और मैं वहीं का वहीं रह गया था।”
नेहा रो पड़ी,
“रवि, मैंने आगे बढ़ने की कोशिश की थी, पर तेरे बिना नहीं। हर बार जब प्रमोशन मिला, मैं सबसे पहले तेरे पास भागी, पर तू हर बार बस मुस्कुरा कर रह गया। मुझे लगा शायद तुझे मेरी खुशी पसंद नहीं।”
रवि ने धीरे से कहा,
“पसंद नहीं नेहा… तेरी खुशी ही तो मेरी जिंदगी थी। बस मैं समझ नहीं पाया कि तेरे सपनों को मेरी ईगो ने कैसे मुकाबला समझ लिया।”
अब दोनों रो रहे थे। बारिश में भीगे हुए दो लोग, जिन्होंने शायद पहली बार सच बोला था।
नेहा ने कहा,
“रवि, अगर मैं उस दिन तेरे पास लौट आती तो? तो क्या सब ठीक हो जाता?”
रवि ने धीरे से मुस्कुराया,
“शायद हां, शायद नहीं। पर कोशिश तो की जा सकती थी न।”
नेहा ने वो फाइल जिसमें उनका रिश्ता खत्म करने के कागजात थे, धीरे से रवि की तरफ बढ़ाई,
“क्या अब भी साइन कर दूं?”
रवि ने चुपचाप फाइल ली। उसे खोला और देखा। हर पन्ने पर उनके नाम साथ-साथ लिखे थे।
“नेहा, यह कागज कहता है कि हम अब एक नहीं हैं। पर यह नाम कहते हैं कि हम हमेशा रहेंगे। तू चाहे साइन कर दे, मेरा दिल तो पहले ही तेरे नाम लिख चुका है।”
नेहा फूट-फूट कर रो पड़ी। उसने फाइल को छाती से लगाया और बोली,
“रवि, नहीं कर सकती। मुझे अब भी तुझसे उतना ही प्यार है जितना पहले था।”
रवि ने उसके आंसू पोंछे। धीरे से कहा,
“तो फिर चल, घर चलते हैं।”
नेहा ने सिर उठाया। वो मुस्कुराई, पहली बार। वैसे ही जैसे पहले हंसा करती थी। दोनों उठे। फाइल वहीं बेंच पर छोड़ दी। बारिश अब रुक चुकी थी। आसमान साफ था। दोनों कोर्ट के गेट से बाहर निकले।
ना किसी फैसले की जरूरत थी, ना किसी जज की मोहर की।
क्योंकि असली फैसला तो वही था जो दो दिलों ने बारिश में एक दूसरे की आँखों में देखकर लिया था।
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