बेंगलुरु की सुबह और रवि की कहानी

बेंगलुरु की सुबह हमेशा एक अलग ही मंजर पेश करती है। आसमान पर हल्की धुंध छाई हुई थी और फलक बोस इमारतों की शीशे जैसी खिड़कियां तुलुए आफताब की रोशनी में चमक रही थीं। उन्हीं बुलंद उबाला इमारतों में एक कंपनी थी जिसका मालिक था विवान राजपाल। विवान एक ऐसा बिजनेस टाइकून था जिसका नाम पूरे मुल्क में खौफ और गौरूर के साथ लिया जाता था। वह अपने दौलतमंद और ताकतवर वजूद को दूसरों की तजलील के जरिए जाहिर करता था।

कंपनी की लॉबी में एक आम सी औरत दाखिल हुई। हाथ में पुराना बैग, कंधे पर बोसीदा दुपट्टा और चेहरे पर वक्त की मार के निशान। यह थी सीता देवी, जो कंपनी की सफाई करती थी। पांच साल से वह इसी इमारत में काम कर रही थी। हर दिन दूसरों के कूड़े, गर्दो, गुबार और उनके तंज सहती हुई। मगर आज का दिन उसके लिए और भी मुश्किल था। उसे अपने 14 साल के बेटे रवि को साथ लाना पड़ा क्योंकि स्कूल की छुट्टियां थीं और वह अकेला घर पर नहीं रह सकता था।

रवि दुबला पतला लड़का था लेकिन उसकी आंखों में एक ऐसी रोशनी थी जो आम बच्चों में नहीं मिलती। उसके हाथ में एक बोसीदा सा बैग था जिसमें वह किताबें और अपनी छोटी सी डायरी रखता था। उसकी चाल में झिझक जरूर थी, लेकिन चेहरे पर एक गैर मामूली एतमाद भी नजर आ रहा था।

जब वे दोनों ऑफिस के अंदर दाखिल हुए तो रिसेप्शन पर मौजूद मुलाजिमों ने अजीब नजरों से देखा। कुछ ने दबी हंसी छुपाई, कुछ ने आपस में सरगोशियां की। “यह सफाई वाली अपने लड़के को भी ले आई,” एक ने कहा। सीता ने उन बातों को अनसुना किया और सीधे ऊपर की मंजिल की तरफ बढ़ गई।

विवान राजपाल का तंज

ऑफिस के शानदार पेंटहाउस फ्लोर पर विवान राजपाल अपनी चमकती हुई मेज के पीछे बैठा था। सामने लगे शीशे के पार पूरा बेंगलुरु शहर दिखाई दे रहा था। वह अपने महंगे सूट में था, हाथ में डायमंड घड़ी और चेहरे पर तकब्बुर की मुस्कुराहट थी। उसके साथ ही असिस्टेंट अनुपमा राव खड़ी थी जो हमेशा अपने बॉस के गौरूर को ताकत देती थी।

सीता ने अदब से झुककर सलाम किया और सफाई के औजार तरतीब देने लगी। विवान ने एक तेज नजर उस पर डाली और फिर अचानक रवि की तरफ देखकर तंजिया अंदाज में हंसा। “यह कौन है?” उसने तीखे लहजे में पूछा। सीता ने धीरे से कहा, “सर, यह मेरा बेटा है। आज मजबूरी में साथ लाना पड़ा।”

विवान ने कहा, “वाह, अब तुम अपने बच्चों को भी मेरे दफ्तर में लाने लगी हो।” अनुपमा ने फौरन मौके पर नमक मिर्च डाल दी, “सर, ये बच्चे आजकल बड़े होशियार बनने लगे हैं। पता नहीं ये भी अपने आप को कोई बड़ा स्कॉलर समझता हो।”

रवि खामोश खड़ा रहा लेकिन विवान की तजलील भरी नजरों को सह गया। फिर अचानक विवान ने कुर्सी से झुक कर कहा, “अरे बच्चे, तुम्हारी मां कहती है तुम बड़े जहीन हो। बताओ क्या कमाल है तुम में?”

रवि ने आहिस्ता से कहा, “मैं नौ जुबाने बोल सकता हूं।” पूरा कमरा एक लम्हे के लिए खामोश हो गया। फिर अचानक विवान जोर-जोर से हंसने लगा, “नौ जुबाने? हां हां, तुम तो अपनी अंग्रेजी भी सही तरह नहीं बोल पाते। यह सब बकवास है।” अनुपमा ने भी कहा, “लगाया,” और बाकी मुलाजिमों ने दबी हंसी छुपाई।

सीता का दिल जोर से धड़कने लगा। वह डर गई कि कहीं यह बात उसकी नौकरी खत्म ना करा दे। विवान ने और भी तजलील भरे अंदाज में कहा, “चलो सबके सामने अपनी नौ जुबानों का कमाल दिखाओ। अगर सच बोला तो शायद मान लूं वरना तुम्हारी मां आज ही नौकरी से फारग।”

रवि का जवाब

माहौल एक तमाशागाह बन चुका था। सीता की आंखों में आंसू भर आए मगर रवि ने एक गहरी सांस ली और अपनी डायरी पर हाथ कसकर खड़ा हो गया। उसके चेहरे पर अब खौफ की जगह अजम्म नजर आ रहा था। यह लम्हा वह मोड़ था जहां एक बच्चे की खामोशी, कहानी को सस्पेंस और तूफान की तरफ ले जाने वाली थी।

कमरे में अचानक सन्नाटा छा गया। सबकी नजरें उस 14 साल के लड़के पर जम गई जिसने अभी-अभी दावा किया था कि वह नौ जुबाने बोल सकता है। विवान राजपाल अपनी महंगी कुर्सी पर टेक लगाए मुस्कुरा रहा था जैसे एक नए तमाशे की तैयारी कर रहा हो।

रवि ने गहरी सांस ली। उसके अंदर हल्की सी कपकपाहट थी मगर आंखों में अज्म की चमक बढ़ रही थी। उसने सबसे पहले हिंदी में बोलना शुरू किया, “मेरी मां ने मुझे सिखाया है कि इज्जत सबसे बड़ी दौलत है।”

ऑफिस के भारतीय मुलाजिमों ने एक दूसरे की तरफ देखा। बात आम सी थी, लेकिन अंदाज इतना पुख्ता था कि सब चौंके बिना ना रह सके। फिर रवि ने फौरन अंग्रेजी में कहा, “Respect is the true wealth that no money can buy।” इस बार गैर मुल्की इन्वेस्टर्स चौंक कर सीधे बैठ गए। यह लहजा किसी स्कूल के बच्चे का नहीं लग रहा था बल्कि किसी प्रोफेशनल स्पीकर का।

विवान ने मसनुई कहा, “यह दो जुबाने तो सभी बोल लेते हैं। कुछ नया दिखाओ।” रवि ने लम्हा भर ठहर कर अचानक उर्दू में कहा, “इंसान की असल पहचान उसके अखलाका और इल्म से होती है ना कि उसके लिबास और दौलत से।”

उर्दू के नरम और नाजुक अल्फाज ने कमरे का माहौल बदल डाला। अनुपमा के चेहरे पर हैरत के आसार नुमाया हुए। मगर वह फिर भी तंजिया अंदाज में बोली, “यह सब रटा मारा हुआ है।”

रवि के होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट आई। उसने अगली जबान चुनी बंगाली। उसने एक मुकम्मल फिकरा कहा जिसका मतलब था, “मैंने यह जबान एक पुरानी लाइब्रेरी की किताबों से सीखी।” एक बंगाली मुलाजिम ने बेख्तियार ताली बजाई।

जुबानों का जादू

अब फिजा बदलने लगी थी। विवान की मुस्कुराहट हल्की पड़ने लगी। मगर वह अब भी जिद में बोला, “चार जुबाने चलो बाकी दिखाओ वरना यह सब ड्रामा खत्म करो।”

रवि ने अपनी आंखें बंद कीं और कुछ लम्हों बाद तमिल में बोलना शुरू किया। उसने एक पुराना मकोला दोहराया जो उसने किताबों से याद किया था। ऑफिस में मौजूद एक साउथ इंडियन मुलाजिम की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। वह धीरे से बोला, “यह बच्चा झूठ नहीं बोल रहा। यह तमिल वाकई जानता है।”

अब कमरे में सरगोशियां बढ़ने लगीं। मुलाजिम हैरत और तजसुस के साथ एक दूसरे को देखने लगे। रवि ने रुख मोड़ा और फ्रेंच में कहा, “Le respect est la richesse vraie que l’argent ne peut pas acheter।” सामने बैठे फ्रांसीसी इन्वेस्टर ने फौरन सर हिलाया, “C’est parfait।”

अब मामला संगीन हो चुका था। विवान के चेहरे का रंग बदल गया। मगर वह बोला, “छह जुबाने हो गई। क्या बाकी भी साबित कर सकते हो?”

रवि ने जवाब ना दिया बल्कि स्पेनिश में कहा, “La dignidad es el mayor tesoro del ser humano।”

एक स्पेनिश सरमायादार झुककर बोला, “Este niño es digno de confianza।”

तालियां बजने लगीं। हंसीज़ाक करने वाले मुलाजिम अब संजीदा हो चुके थे। रवि ने बैग से डायरी निकाली और मैड्रिन चाइनीज में एक जुमला कहा। अल्फाज इतनी रवानी से निकले कि गैर मुल्की दंग रह गए।

निर्णायक पल

अब सिर्फ एक जुबान बाकी थी। सबकी निगाहें रवि पर थीं। विवान ने गरूर से कहा, “अगर आखिरी जुबान भी साबित कर दी, तो शायद मान जाऊं।”

रवि ने गहरी सांस ली और क्लासिकल लहजे में अरबी बोलने लगा। कमरा लम्हे भर को रुक गया। अरब इन्वेस्टर की आंखों में हैरत और अकीदत झलकने लगी। विवान की आंखें फैल गईं। माथे पर पसीना चमकने लगा।

रवि ने आहिस्ता कहा, “यह नौजुबाने मेरी ताकत नहीं। मां की कुर्बानियों का समर है।”

तालियों की गूंज उठी। सीता देवी की आंखों से फक्र के आंसू बह निकले। कमरा जो पहले विवान के कहकों और मुलाजिमों की हंसी से गूंज रहा था, अब खामोश था। सब निगाहें रवि पर थीं जिसकी आवाज में गैर मामूली ठहराव था।

बदलाव की शुरुआत

विवान का इतराब छुप ना सका। उसने खंकार कर कहा, “जबरदस्त ड्रामा है। लेकिन जुबाने बोल लेना मां की नौकरी नहीं बचा सकते।”

सीता देवी का दिल डूब गया मगर रवि ने मां को ऐसी नजर दी जिसमें अज्म और हौसला था। सीता के लब कपकपा जरूर रहे थे मगर दिल में उम्मीद की शमी रोशन हो चुकी थी।

अचानक एक फ्रांसीसी इन्वेस्टर बोला, “मिस्टर राजपाल, यह बच्चा महज जुबाने नहीं जानता बल्कि उन्हें जज कर चुका है। मैंने जिंदगी में बहुत कम लोगों को इतनी रवानी से बोलते सुना है।”

अनुपमा राव ने कहा, “सर, यह सब शायद तैयारशुदा जुमले हो। जुबाने सीखने और बिजनेस समझने में फर्क है।”

लेकिन रवि ने डायरी खोली। एक सफे पर उसने मुख्तलिफ जुबानों में एक ही जुमला लिखा था। वह जुमला हर बार जुबान बदलकर दोहराता रहा और स्थानीय लहजा भी अपनाया।

एक स्पेनिश इन्वेस्टर ने कहा, “यह बच्चा महज किताब ही नहीं है। यह जुबान को रूह की तरह समझता है।”

विवान की हार

विवान ने मेज पर हाथ मारा, “बस जुबाने आती हैं तो क्या? इससे मेरा फायदा। जुबाने लफ्ज नहीं बिजनेस और ताकत की बुनियाद है।”

रवि ने पहली बार उसकी आंखों में देखकर कहा, “जी हां। और कल रात आपकी इंटरनेशनल कॉल में कई गलतियां हुई जो डील तोड़ देती।”

कमरा लरस गया। मुलाजिम और इन्वेस्टर फाइलें खोलने लगे। खेल पलट रहा था।

विवान का चेहरा सुर्ख हुआ। क्या एक बच्चा मेरे मोहदों पर तत्सरा करेगा?

रवि ने सुकून से कहा, “मैं बच्चा जरूर हूं। मगर जुबाने मेरा हथियार हैं। आपने अरबी में गलत अल्फाज कहे और फ्रांसीसी दस्तावेज पर गलत दस्तख्त की बात की। यह आपको करोड़ों का नुकसान पहुंचा सकती थी।”

इन्वेस्टर चौंक गए। एक अरब बोला, “वह दुरुस्त कह रहा है। कल वाकई ऐसी गलतियां थी। हमें लगा आप जानबूझकर कर रहे हैं या लालमी में।”

प्रस्ताव और नई राह

रवि ने एक और कागज निकाला, “यह मेरा तजिया है। मैंने आपकी बातचीत के नोट्स लिए और हर जुबान में दुरुस्ती दर्ज की। इससे डील बच सकती है और नफा भी हो सकता है।”

गैर मुल्की शराखा एक दूसरे को देखने लगे। एक फ्रांसीसी इन्वेस्टर मुस्कुरा कर बोला, “यह लड़का तुम्हारी कंपनी का मुस्तकबिल बचा सकता है।”

सीता देवी की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। अब उसने महसूस किया कि उसका बेटा सिर्फ उसकी उम्मीद नहीं बल्कि दुनिया का सहारा भी बन सकता है।

निष्कर्ष

विवान राजपाल के लिए यह सब एक खौफनाक ख्वाब बन चुका था। जिस बच्चे को वह मजाक समझ रहा था, वह अब उसके करोड़ों के बिजनेस के लिए खतरा या नजात दहिंदा बन गया था। विवान ने पहली बार माना कि दौलत से ज्यादा इल्म और इज्जत की कीमत होती है।

सीता देवी अब कंपनी में एक एग्जीक्यूटिव बन गईं और रवि कंपनी का सबसे कम उम्र लैंग्वेज कंसलटेंट। रवि ने साबित किया कि मेहनत और इज्जत से बड़ी कोई ताकत नहीं।

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