मरियम — सब्र की मिसाल

(एक औरत की दास्तान जिसने ज़ुल्म को दुआ में बदल दिया)

तेज़ बरसती बारिश थी। बादलों की गड़गड़ाहट के बीच एक घर के दरवाजे पर चीखें गूंज रही थीं।
“माजिद, रहम करो, मुझे मत निकालो… मैं कहाँ जाऊँगी इन मासूम बच्चियों को लेकर?”
मरियम की आवाज़ कांप रही थी। उसकी गोद में दो नन्ही जुड़वां बेटियाँ थीं — अभी-अभी इस दुनिया में आई थीं।
लेकिन माजिद का दिल पत्थर बन चुका था।
उसने ठंडी नज़रों से देखा और कहा, “तू मनहूस है। बेटियाँ लाई है, ऊपर से माजूर हो गई है। मुझे ऐसी औरत नहीं चाहिए।”
इतना कहकर उसने दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर दिया।

बारिश की धारें आसमान से बरस रही थीं और मरियम के आँसू ज़मीन में मिल रहे थे।
वह व्हीलचेयर पर बैठी, अपने बच्चों को सीने से चिपकाए रो रही थी।
“या अल्लाह… तू ही मेरा सहारा है।”
उसकी टूटी आवाज़ बारिश में गुम हो गई।


🌙 बीते दिन — सब्र और जिल्लत का सफर

कुछ साल पहले तक मरियम के दिन यूँ नहीं थे।
वह अपने वालिद के साथ गाँव के एक छोटे से घर में रहती थी। मां का इंतकाल बचपन में ही हो गया था, मगर बाप ने बेटी को कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी।
मरियम खूबसूरत थी, मगर उससे भी ज़्यादा नेकदिल।
उसकी आँखों में शराफत थी और मुस्कान में सादगी।

उसके घर के पास ही उसका चचेरा भाई असलम रहता था — शहर में नौकरी करता था लेकिन अक्सर गाँव आता रहता।
धीरे-धीरे दोनों के बीच अपनापन बढ़ा।
कभी खेतों के पास बातों में शाम ढल जाती, कभी पुरानी डायरी में खत छुपाकर भेजे जाते।
दोनों की मोहब्बत पाक और सच्ची थी।
मरियम के दिल में ख्वाब था कि एक दिन अब्बा असलम से उसका रिश्ता तय कर देंगे।

मगर तक़दीर ने कुछ और लिखा था।
एक दिन मरियम के अब्बा की तबीयत बिगड़ गई। डॉक्टर ने कहा, “बेटी, तुम्हारे अब्बा को ज़्यादा वक्त नहीं है। उनकी एक ही ख्वाहिश है — तुम्हें अपनी आँखों के सामने रुखसत करते देखना।”
मरियम की आँखों से आँसू बह निकले।
वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन ज़ुबान जैसे जम गई।
“जैसा आप चाहें अब्बा…” — यही उसके होंठों से निकला।

इसी बीच एक रिश्ते करवाने वाली औरत घर आई। उसने बताया कि एक अच्छा रिश्ता है — माजिद नाम का लड़का, दूसरे गाँव का, अकेला बेटा है, मां के साथ रहता है।
अब्बा ने बिना देर किए हाँ कर दी।
मरियम ने दिल में दर्द दबा लिया।

कुछ ही दिनों में सादा निकाह हुआ।
रुखसती से पहले ही उसके अब्बा इस दुनिया से चले गए।
मरियम की आँखों में आँसू थे, दिल में डर, और लबों पर खामोशी।


💔 शादी की हकीकत

शादी के बाद मरियम माजिद के घर आई।
शुरू में उसने सोचा था कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।
मगर वहां प्यार नहीं, सिर्फ हुकूमत थी।
माजिद का लहजा तल्ख था, सास की ज़ुबान ज़हरीली।

वह सुबह से शाम तक घर का काम करती — पानी भरना, खाना बनाना, गाय-भैंसों की सेवा करना।
कभी तारीफ नहीं मिली, बस ताने मिलते।

“मनहूस, कुछ काम ठीक से नहीं करती।”
“घर में कदम रखा तो बरकत ही चली गई।”

मरियम चुप रहती।
वह जवाब नहीं देती क्योंकि उसने बचपन से सीखा था — सब्र करने वालों के साथ अल्लाह होता है।

तीन साल बीत गए।
मरियम उम्मीद से थी।
गांव की दाई ने बताया कि वह जुड़वा बच्चों की मां बनने वाली है।
सास ने कहा, “देख लेना, अगर बेटे हुए तो सब ठीक, वरना निकाल दूँगी।”

मरियम की आँखों में डर उतर गया।
वह हर नमाज़ में दुआ करती —
“या अल्लाह, जो भी दे, मुझे हिम्मत दे उसे संभालने की।”


👶 बेटियों की पैदाइश और ज़ुल्म की शुरुआत

वक़्त आया, मरियम को दर्द उठा।
दाई ने खुशखबरी दी — “मुबारक हो, दो प्यारी बेटियाँ हुई हैं।”
मरियम के होंठों पर मुस्कान आई, मगर अगले ही पल माजिद गरज उठा,
“बेटियाँ! फिर से मनहूसियत लाई है। जा, इन बोझों को खुद पाल।”

सास ने भी ज़हर उगला, “घर में पैर रखा तो पहले दहेज नहीं लाई, अब दो- दो मुसीबतें पैदा कर दीं।”

मरियम ने बेटियों को सीने से लगाया और आँसू बहाते हुए बस इतना कहा,
“ये अल्लाह की अमानत हैं।”

लेकिन उसके घर में किसी को परवाह नहीं थी।
दिन बीतते गए।
एक दिन काम करते हुए मरियम का पैर फिसल गया।
वह गिर पड़ी, और उसकी टांग टूट गई।
अस्पताल में डॉक्टर ने कहा — “इलाज लंबा और महंगा होगा।”

माजिद ने गुस्से में कहा, “मैं माजूर औरत नहीं पाल सकता।”
और घर लौटते ही उसके दिल में और ज़हर भर गया।

वह अब मरियम से नफरत करने लगा था।
उसकी आंखों में ममता नहीं, तिरस्कार था।


वो दिन जब सब खत्म हुआ

एक दिन तूफानी बारिश हो रही थी।
मरियम अपनी दोनों बेटियों के साथ कमरे में थी।
अचानक दरवाज़ा खुला, माजिद अंदर आया —
“निकल जा मेरे घर से! मैंने दूसरी शादी का फैसला किया है। नई बीवी बेटे देगी।”

मरियम की आंखें फैल गईं, “यह क्या कह रहे हो माजिद? ये तुम्हारी बेटियाँ हैं!”
माजिद ने गुस्से में उसकी व्हीलचेयर को धक्का दिया।
वह ज़मीन पर गिर गई, लेकिन अपनी बेटियों को कसकर सीने से लगा लिया।

“या अल्लाह, रहम कर…”
पर कोई रहम नहीं हुआ।
माजिद ने दरवाज़ा बंद कर दिया।

बारिश और आँसू — दोनों एक साथ गिर रहे थे।
मरियम ने अपनी बच्चियों को अपनी चादर से ढँका, आसमान की तरफ देखा और बोली,
“या अल्लाह, अब तेरा ही आसरा है।”

वह खुद व्हीलचेयर घसीटती हुई कच्चे रास्ते पर चल पड़ी।
कीचड़, बिजली की चमक, और डर — पर उसके चेहरे पर एक अजीब सुकून था।


🌧️ नई सुबह की तलाश

घंटों के सफर के बाद वह अपने पुराने घर पहुंची।
वह घर जहाँ कभी अब्बा की हँसी गूंजती थी, अब सूना था।
दरवाज़े पर जंग लगा ताला लटक रहा था।

मरियम बस चुपचाप देखती रही —
मानो दीवारों के पीछे अब्बा की आवाज़ कह रही हो,
“अंदर आ जा बेटी…”

इतने में एक पड़ोसन आई — “अरे मरियम, तू?”
मरियम फूट-फूट कर रो पड़ी।
“बाजी, मुझे अंदर जाने दो। मेरे पास कहीं और ठिकाना नहीं।”

औरत ने ताला खोला।
दोनों अंदर गए।
मरियम थककर कुर्सी पर गिर पड़ी।
उसने कहा, “अल्लाह तेरा शुक्र है, तूने किसी को तो भेजा जो मेरे बच्चों के लिए रोटी लाए।”
फिर आँखें बंद कर लीं।


🪡 नई जिंदगी की शुरुआत

धीरे-धीरे मरियम ने खुद को संभालना शुरू किया।
उसने अपने अब्बा की पुरानी सिलाई मशीन साफ की, धागे डाले, और कपड़े सिलना शुरू किया।
गांव की औरतें उसके पास आने लगीं।
मरियम मेहनत से अपनी बेटियों की परवरिश करने लगी।

हर टांका उसके ज़ख्मों का मरहम था।
हर धागे में उसकी दुआ बसी थी।

एक साल बीत गया।
मरियम अब पहले जैसी नहीं रही थी।
अब वह मजबूत थी, आत्मनिर्भर थी।


💔 अतीत की दस्तक

एक दिन दरवाज़े पर दस्तक हुई।
मरियम ने दरवाज़ा खोला —
सामने असलम खड़ा था।

वही चेहरा, मगर वक्त की धूल में ढका हुआ।
आंखों में पछतावा और आवाज़ में कांप।
“मरियम…” उसने धीरे से कहा।

मरियम की आंखों से आँसू बह निकले।
“तुम यहाँ क्यों आए हो असलम? बहुत देर कर दी तुमने। अब मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं।”

असलम बोला, “मरियम, मैंने तुझे धोखा नहीं दिया था। हादसे में मैं महीनों अस्पताल में था। मेरे फोन से किसी और ने तुझे झूठा संदेश भेजा था।”

मरियम के होंठ कांप उठे, “क्या?”
“जब मैं लौटा, तू शादी कर चुकी थी। मैं हर साल यहां आता रहा, इसी उम्मीद में कि तुझे एक दिन देख सकूं।”

मरियम की आँखों में आंसुओं की बारिश उमड़ आई।
वह जमीन पर बैठ गई।
“एक झूठ ने हमारी जिंदगी बर्बाद कर दी असलम…”

असलम ने पास आकर कहा, “मरियम, अब तू अकेली नहीं है। चल मेरे साथ। मैं तेरा इलाज करवाऊँगा, तेरी बेटियों को अपनी बेटियाँ बनाऊँगा। तू मेरी बीवी बनेगी — इस बार सच में, हमेशा के लिए।”

मरियम ने रूहानी आवाज़ में कहा, “अगर यह अल्लाह की मर्ज़ी है, तो मैं इंकार कैसे करूं।”


🌹 खुशियों का लौटना

असलम ने मरियम से सादगी से निकाह किया।
ना कोई दिखावा, ना दहेज।
बस दो टूटे हुए दिलों का मिलन।

वह मरियम और उसकी बेटियों को शहर ले गया।
इलाज हुआ, और कुछ महीनों में मरियम फिर से चलने लगी।
उसकी मुस्कान लौट आई।

असलम ने उन बच्चियों को ऐसे प्यार दिया जैसे वे उसकी अपनी हों।
मरियम रात को सजदे में गिरकर कहती,
“या अल्लाह, तूने मेरा सब्र ज़ाया नहीं किया।”


⚖️ इंसाफ का वक्त

उधर, माजिद की ज़िंदगी बर्बाद हो चुकी थी।
जिस औरत के लिए उसने मरियम को छोड़ा था, उसने उसका सारा माल लेकर भाग गई।
मां बीमार पड़कर मर गई।
माजिद अकेला, तन्हा, और बेबस रह गया।

वक्त ने पलटी खाई —
जो औरों को धिक्कारता था, आज खुद सड़कों पर भीख मांग रहा था।

एक दिन मरियम अपनी बेटियों को स्कूल से लेने गई।
सड़क किनारे उसने एक भिखारी देखा —
कमज़ोर, मैले कपड़े, कांपते हाथ।
मरियम का दिल पिघल गया।
उसने आगे बढ़कर कुछ पैसे दिए।

भिखारी ने ऊपर देखा —
वो माजिद था।

दोनों की नज़रें मिलीं।
माजिद की आंखों में पछतावा, और मरियम की आंखों में रहम।
मरियम ने मुस्कुराकर सिर झुकाया और आगे बढ़ गई।
पीछे बस माजिद की टूटी आवाज़ गूंजी —
“काश… मैंने अपनी बीवी को ठुकराया ना होता।”


🕊️ अंतिम संदेश

मरियम की कहानी आज भी गांव की औरतों के बीच कही जाती है।
लोग कहते हैं —
“वो औरत जिसने सब खोकर भी सब पा लिया।”

उसकी जुड़वां बेटियाँ अब पढ़-लिखकर डॉक्टर बन चुकी हैं।
मरियम के चेहरे पर सुकून है, आँखों में शुक्र है।

वह हर शाम आसमान की ओर देखती और कहती —

“या अल्लाह, तूने दिखाया कि सब्र करने वालों पर हमेशा तेरी रहमत बरसती है।”


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