मां, फुटपाथ और Mercedes – एक बिछड़ा रिश्ता

शहर की सर्द सुबह थी। ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ियों की कतारें लगी थीं, हर कोई जल्दी में था। ऑफिस जाने वाले, दुकान खोलने वाले, स्कूल जाते बच्चे और उनके माता-पिता। सड़कों पर दौड़ते बच्चों की भीड़ थी, जिनके तन पर फटे कपड़े थे, चेहरे धूल और पसीने से सने थे। वे गाड़ियों की ओर भागते, भीख मांगते, किसी से रोटी, किसी से सिक्के की आस लगाए।

इन्हीं बच्चों के बीच एक दुबला-पतला लड़का, उम्र करीब बीस साल, नंगे पांव, बिखरे बाल, फटे कपड़े पहने, Mercedes कार की खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया। उसकी आंखों में मासूमियत थी, मगर थकान भी साफ झलक रही थी। वह धीरे से हाथ फैलाता है और दर्द भरी आवाज में कहता है, “मां, मुझे भूख लगी है, कुछ दे दो।”

कार के भीतर बैठी महिला का दिल जैसे कांप उठा। वह करोड़पति घराने की मालकिन थी, उसके शरीर पर सोने के कंगन, गले में मोटा हार, कानों में झुमके, चेहरे पर गहरा मेकअप, हाथों में हीरे की अंगूठियां। उसके पास नौकरानी थी, ड्राइवर था, ठंडी हवा चल रही थी। बाहर सड़क पर उसकी दुनिया से बिल्कुल अलग थी।

लड़के की आवाज ने उस औरत के सीने में तूफान खड़ा कर दिया। उसकी नजर बेटे की आंखों से टकराई। वह पल कितना भारी था, कोई सोच भी नहीं सकता। एक तरफ आलीशान जीवन जीती मां, दूसरी तरफ वही मां का बेटा फुटपाथ पर भूखा खड़ा। मां ने अपने भीतर उस मासूम को तुरंत पहचान लिया। उसके चेहरे की मासूमियत, आवाज और आंखों की चमक ने मां को सालों पुराने उस दर्द की याद दिला दी जिसे उसने दिल में दबा रखा था।

मां की आंखें भर आईं। उसने चाहा कि दरवाजा खोलकर बाहर निकले, बेटे को सीने से लगा ले। लेकिन उसके चारों तरफ समाज था, लोग थे, उसकी शान और इज्जत थी। अगर वह अभी उस लड़के को गले लगाती तो उसका करोड़पति होने का नकली गर्व पल भर में टूट जाता। उसने अपने मन को पत्थर की तरह कठोर कर लिया। बस एक नजर बेटे की ओर डालकर आंखें झुका लीं।

बेटा बार-बार कहता रहा, “मां, मुझे भूख लगी है, कुछ दे दो। दो दिन से खाना नहीं मिला। मैं पूरे दिन सड़कों पर घूमता हूं, कोई सिक्का फेंक देता है तो कभी भूखा ही सो जाता हूं। मां, तुम अमीर लगती हो, तुमसे बस रोटी मांग रहा हूं। मां, मुझे थोड़ा सा खिला दो।”

मां का दिल अंदर से रो रहा था। आंखें नम हो रही थीं, होंठ बंद थे। नौकरानी ने शीशा ऊपर कर दिया। लड़का वहीं खड़ा रह गया, कार का शीशा ऊपर उठते ही उसकी उम्मीद भी टूट गई। चेहरे पर निराशा उतर आई। वह समझ नहीं पाया कि जिस औरत को मां कहकर पुकार रहा था, उसने उसकी तरफ नजर तक क्यों नहीं उठाई।

सड़क पर खड़े लोग देख रहे थे—यह कोई साधारण भिखारी और अमीर औरत का मंजर नहीं, बल्कि मां और बेटे का मिलन था जिसमें रिश्ते दौलत की दीवारों के पीछे दब गए थे। कार आगे बढ़ गई, पीछे रह गया भूखा बेटा, जिसकी आंखों से आंसू गिर रहे थे, हाथ अब भी फैले हुए थे। लेकिन कोई नहीं था जो उसे मां की गोद दे सके।

बीते वक्त की परतें

अंजना का नाम था उस महिला का। वह आज करोड़पति घराने की मालकिन थी। उसका पति बड़ा व्यापारी था, शहर में नाम था, पैसा था, शोहरत थी, बंगला था, गाड़ियां थीं। लेकिन इन सबके पीछे उसके दिल में एक ऐसा जख्म था, जिसे वह किसी से कह नहीं पाती थी। और वही जख्म आज उसके सामने जिंदा खड़ा हो गया था।

अंजना कभी गरीब घर की बेटी थी। पिता मजदूरी करते थे, घर में अक्सर भूख के दिन आते थे। मां बीमार रहती थी। पढ़ाई बीच में छूट गई, अंजना को घर चलाने के लिए खेतों और घरों में काम करना पड़ा। इसी बीच गांव के एक लड़के से उसकी नजदीकी हो गई। दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे। किस्मत को कुछ और मंजूर था—अंजना गर्भवती हो गई।

घर वालों को पता चला तो भूचाल आ गया। गरीबी के साथ-साथ अब बदनामी का डर भी था। पिता ने गुस्से में अंजना को बहुत मारा, ताने दिए। समाज के ताने अलग से मिलने लगे। गांव वाले उसे घूरने लगे, कोई काम देने को तैयार नहीं था। मां ने भी आंसू बहाए, “बेटी, तूने हमारे लिए जीना मुश्किल कर दिया है।”

गर्भ के दिन जैसे-तैसे कटे, बच्चा पैदा हुआ तो हालात और खराब हो गए। ना कोई सहारा, ना पैसा, ना इज्जत। गांव के लोग हर दिन ताने देते रहे। आखिरकार पिता ने मजबूरी में कहा, “इस बच्चे को पालने की ताकत नहीं है, इसे कहीं छोड़ आओ, वरना हम सब भूखे मर जाएंगे।”

अंजना का दिल उस दिन टूट गया। उसने अपनी गोद में मासूम को उठाया, गालों पर चूमा और आंसू बहते हुए उसे शहर की सड़क पर छोड़ दिया। वही जगह थी, जहां आज बेटा भीख मांगते हुए उसके सामने खड़ा हो गया था। उस दिन अंजना ने उसे सड़क किनारे एक पेड़ के नीचे सुला दिया और खुद भाग आई। मजबूरी और घर वालों का डर इतना बड़ा था कि उसने अपने ही लाल को बेबस छोड़ दिया।

समय बीता, हालात बदले। अंजना की शादी शहर के बड़े व्यापारी से हो गई, उसे दौलत, शान और शोहरत मिली। लेकिन दिल का वह घाव कभी नहीं भरा। पति को कभी यह सच नहीं बताया कि शादी से पहले बेटे को जन्म दिया था और फुटपाथ पर छोड़ आई थी। हर त्योहार, हर पूजा, हर अकेली रात वही बच्चा याद आता, आंखें भर जातीं और भगवान से माफी मांगती।

फुटपाथ पर बिछड़ा बचपन

जिस बच्चे को मां ने सड़क पर छोड़ दिया था, उसके लिए दुनिया बेरहम थी। गोद का सहारा छूट गया था, दूध की बूंद भी नसीब नहीं हुई थी। उस दिन से लेकर आज तक उसके हर कदम ने दर्द, भूख और तनहाई को सहा। लोग बस एक नजर डालते और आगे बढ़ जाते। कोई दया करके रोटी फेंक देता, कोई झिड़क देता। रातें फुटपाथ पर बिताई, कभी कूड़े के ढेर के पास सोया, कभी दुकान के बंद शटर के नीचे ठंडी हवा से बचने की कोशिश की।

बरसात में भीगता, गर्मी में जलते पत्थरों पर नंगे पैर चलता। कोई गोद में नहीं उठाता। धीरे-धीरे बड़ा हुआ, भूख ने मजबूर किया कि राहगीरों के सामने हाथ फैलाए। कभी मंदिर के बाहर खड़ा होता, कभी बस अड्डे पर यात्रियों से सिक्के मांगता, कभी रेलवे स्टेशन पर आंखों में आंसू लिए लोगों को देखता। कई बार पुलिस ने डंडे मारे, दुकानदारों ने भगा दिया, लेकिन उसने जीना नहीं छोड़ा।

उसके मन में सवाल उठते—मैं कौन हूं? मेरी मां कौन है? मेरा घर कहां है? हर औरत को देखता, सोचता शायद यही मेरी मां होगी। कोई रुकता नहीं था। कई बार दूसरी औरतों से पूछा, “क्या आप मेरी मां हो?” लोग हंसकर आगे बढ़ जाते या डांट देते। दिल की तड़प बढ़ती रही।

दूर से अमीर बच्चों को देखता, जो मां के साथ कार में बैठते थे, खिलौने होते, अच्छे कपड़े होते। वह सोचता—अगर मेरी मां होती तो शायद मैं भी ऐसे ही अच्छे कपड़े पहनता, खिलौनों से खेलता, गर्म रोटी खाता, उसकी गोद में सोता। लेकिन किस्मत ने उसे फुटपाथ पर छोड़ दिया था।

मिलन की घड़ी

जब वह जवान हुआ, लोगों से सुना—उसकी मां जिंदा है, इसी शहर में रहती है, करोड़पति है। उसका दिल हजार टुकड़ों में बंट गया। “अगर मेरी मां करोड़पति है तो उसने मुझे क्यों छोड़ दिया? बंगला है तो मुझे फुटपाथ पर क्यों सड़ने दिया?” सवालों ने दिल को जला डाला। लेकिन उम्मीद थी कि शायद किसी दिन मां पहचान लेगी, गले लगाएगी, कहेगी—”बेटा, मैं मजबूर थी, अब तुझे कभी नहीं छोड़ूंगी।”

वही दिन आ गया। ट्रैफिक सिग्नल पर Mercedes में बैठी मां को उसने मां कहकर पुकारा, आंखों में उम्मीद थी कि अब दरवाजा खुलेगा, वह सीने से लगा लेगी। लेकिन मां की आंखें भीगीं जरूर, होंठ बंद रहे, गोद बंद रही, कार आगे बढ़ गई। पीछे रह गया बेटा, आंखों से आंसू टपकते रहे।

वह कई दिन तक उसी जगह बैठकर इंतजार करता रहा। हर बार जब कोई काली कार रुकती, दिल धड़कता कि शायद मां आई है। लेकिन हर बार उम्मीद टूटती, दर्द और गहरा हो जाता। आसपास के लोग भी पहचान गए, “यह वही है जिसे मां ने सड़क पर छोड़ दिया था। देखो, मां तो अमीर हो गई, बेटा भीख मांग रहा है।” कोई तरस खाता, कोई ताने मारता। लेकिन सबसे बड़ी चोट वही थी कि मां ने उसे जिंदा होते हुए भी मरा समझ लिया।

अंतिम मोड़ – मंच पर मिलन

एक दिन शहर में बड़ा कार्यक्रम हुआ। मंच सजा था, अमीर लोग शान से बैठे थे। मंच पर अंजना मेहमान-ए-खास बनकर आई, लोग तालियां बजा रहे थे, तारीफें कर रहे थे—देखो, कितनी दौलत कमाई है, समाज में बड़ा नाम है। उसी भीड़ में बेटा भी खड़ा था। आज मां को लोग देवी बना रहे थे। उसे लगा, यह कैसी विडंबना है—जिसने बेटे को जन्म देकर छोड़ दिया, आज दूसरों के लिए प्रेरणा बनी हुई है।

वह भीड़ को चीरते हुए मंच की ओर बढ़ा। आंखों में आंसू थे, साथ ही हिम्मत भी थी। भीड़ अचानक शांत हो गई। फटे हाल कपड़ों वाला जवान मंच की ओर बढ़ा। लोगों ने रोकना चाहा, लेकिन उसके चेहरे पर ऐसा दर्द था कि कोई भी हाथ उठाकर रोक ना सका।

वह मां के सामने जाकर खड़ा हो गया, कांपती आवाज में बोला, “मां, क्या आपको याद है? आपने सालों पहले एक बच्चे को सड़क पर छोड़ दिया था, क्या आपको याद है वह कौन था?”

मंच पर सन्नाटा छा गया। मां का चेहरा पीला पड़ गया, होंठ सूख गए। बेटे की आंखों से निकलते आंसू ने उसके दिल पर चोट कर दी। बेटा बोला, “मां, वह बच्चा मैं ही हूं, जिसे आपने गोद से निकालकर फुटपाथ पर छोड़ दिया था, भूख और गंदगी के हवाले कर दिया था। आज आपके सामने खड़ा हूं। बताइए, क्या मैं आपका बेटा हूं या सिर्फ एक अनचाहा बोझ था?”

भीड़ में हलचल मच गई। मां की आंखों से आंसू छलक पड़े। वह कुर्सी से उठ खड़ी हुई, दिल कांप रहा था, बेटे की ओर देखा और पहली बार भीतर से आवाज निकाली, “बेटा, मैं मजबूर थी। मैंने गलती की थी। समाज के डर में आकर तुम्हें छोड़ दिया था। लेकिन हर पल याद किया है। आज तू सामने खड़ा है, कहती हूं—तू मेरा बेटा है, तू ही मेरी सबसे बड़ी पूंजी है।”

बेटे ने आंसुओं से भीगे चेहरे के साथ मां की ओर देखा। घाव गहरे थे, लेकिन मां की बातों ने दिल की बर्फ तोड़ दी। कांपते हाथों से मां के पैर छुए, “मां, मैं भी यही चाहता था कि कभी आप मुझे गले से लगा लें। आज आपने अपना लिया है तो जीवन का दर्द खत्म हो गया।”

मंच पर आंसुओं की नदी बह रही थी। मां-बेटे ने एक-दूसरे को कसकर पकड़ लिया, सालों का बिछोह उस आलिंगन में पिघल गया।

कहानी का निष्कर्ष

दौलत और शान सब झूठा है, अगर अपने खून का रिश्ता अधूरा रह जाए। मां का असली रूप तभी पूरा होता है जब वह बेटे को हर हाल में अपनाए। बेटे को संतुष्टि तभी मिलती है जब मां सीने से लगाकर कहे—तू मेरा है, हमेशा मेरा ही रहेगा।

यह कहानी सिखाती है कि दुनिया की सबसे बड़ी दौलत मां की ममता है। पैसे और शान से बड़ा रिश्ता मां-बेटे का होता है। अगर आपकी मां जिंदा है तो उन्हें कभी अकेला मत छोड़िए, और अगर आप मां हैं तो कभी अपने बच्चों को अनाथ मत कीजिए। जिंदगी के हर मोड़ पर वही आपके साथ खड़े रहेंगे।