मीरा और राजन: पहचान से परे एक सच्ची कहानी

शहर की सड़कों पर सूरज की आखिरी किरणें बिखर रही थीं। हवा में हल्की ठंडक घुल चुकी थी। ऑफिस से थकी-हारी मीरा अपनी स्कूटी पर घर लौट रही थी। रोज की तरह उसके मन में बस एक ही ख्वाहिश थी—जल्दी घर पहुंचकर सुकून की सांस लेना। लेकिन उस शाम कुछ अलग था। रास्ते के किनारे फुटपाथ पर बैठे एक बुजुर्ग भिखारी पर उसकी नजर पड़ गई। फटे पुराने कपड़े, बिखरे बाल और हाथ में कटोरा लिए वह आदमी बरसों से मुस्कान को तरसता दिखता था।

मीरा कई दिनों से उसी रास्ते से गुजरती थी और उसे रोज वहीं बैठा देखती थी। आज ना जाने क्यों उसका दिल पसीज गया। उसने स्कूटी रोकी, पर्स से कुछ सिक्के निकाले और कटोरे में डाल दिए। “बाबा, मेरे पास चेंज नहीं है, ये रख लीजिए।” भिखारी ने बिना बोले उसकी तरफ देखा और हल्की सी मुस्कान दी। लेकिन उसकी आंखों में एक गहरी कहानी छुपी थी। मीरा जल्दी से आगे बढ़ गई, मगर वह आंखें उसके दिल में उतर गई थीं।

अनजाना रिश्ता

अगले दिन फिर वही हुआ। ऑफिस से लौटते वक्त मीरा उस मोड़ पर पहुंची तो भिखारी उठकर उसके पास आ गया। उसने मुस्कुराकर हाथ फैलाया। मीरा ने जेब से सिक्के निकाले और दे दिए। अब यह रोज का सिलसिला बन गया। मीरा जैसे ही उस जगह पहुंचती, भिखारी सामने आ जाता। वह पैसे देती और वह देर तक उसे देखता रहता। बिना एक शब्द बोले, बस आंखों से बातें करता।

एक दिन मीरा ने देखा कि वह भिखारी उसके घर के आसपास घूम रहा है। उसका दिल घबराया, फिर भी पसीज गया। उसने आवाज लगाई, “रुको, खाना ले लो।” मां से कहा, “मां, कुछ खाना पैक कर दो।” फिर दरवाजे पर जाकर डिब्बा उसके हाथ में थमा दिया। खाना लेते वक्त भी उसकी आंखें मीरा पर टिकी थीं। मीरा डर और दया के बीच उलझ गई और दरवाजा बंद कर लिया।

रातभर मीरा करवटें बदलती रही। मां ने देखा तो बोली, “बेटी, किसी भूखे को खाना देना पुण्य का काम है। भगवान तुझे इसका फल जरूर देंगे।” मीरा ने सिर हिलाया, पर मन में सवाल थे—क्यों उसकी आंखें रोज मेरा पीछा करती हैं?

खामोश मोहब्बत

अब मीरा ऑफिस से लौटते ही उसी फुटपाथ की ओर मुड़ जाती। उसका दिल कहता, शायद आज भी वह वहां होगा। सचमुच, वह रोज वहीं बैठा मिलता। धीरे-धीरे एक अजीब सा रिश्ता बन गया। बिना बोले, बिना कुछ कहे, सिर्फ आंखों से बात करने वाला। मीरा खुद से सवाल करती, “क्या यह सिर्फ एक भिखारी है या इसके पीछे कोई और सच छुपा है?”

एक शाम जब मीरा ने उसे खाना दिया, अचानक भिखारी ने उसका हाथ पकड़ लिया। मीरा चौंक गई। उसकी आंखों में डर साफ झलकने लगा। “यह क्या कर रहे हो?” उसने कापती आवाज में पूछा। भिखारी बोला, “डरिए मत, मैडम, मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं।” मीरा ने भौंहे चढ़ाई, “अगर पैसों की जरूरत है तो साफ-साफ कहो। लेकिन इस तरह हाथ पकड़ना बर्दाश्त नहीं होगा।”

भिखारी ने सिर झुका लिया, “मुझे आपके पैसों की नहीं, आपके दिल की जरूरत है। मैं आपको पसंद करने लगा हूं। जब भी आपका चेहरा देखता हूं, मेरी सारी भूख, सारी तकलीफ जैसे भूल जाता हूं।” मीरा गुस्से में बोली, “शर्म नहीं आती? अपनी औकात देखी है? मैं सिर्फ इंसानियत के नाते तुम्हारी मदद करती हूं और तुम इसे प्यार समझ बैठे?”

भिखारी बोला, “प्यार औकात देखकर नहीं होता। जब दिल किसी पर आ जाए तो सामने वाला भिखारी हो या राजा, फर्क नहीं पड़ता। मैं जानता हूं आप मुझसे बहुत ऊपर हैं, मगर दिल का क्या करूं?” मीरा गुस्से से कांप उठी, खाना उसके हाथ में धकेला और दरवाजा बंद कर लिया। मगर सारी रात उसके कानों में वही शब्द गूंजते रहे—प्यार औकात देखकर नहीं होता।

सवालों की हलचल

अगले दिन मीरा ने अपनी सहेली को सब बताया। सहेली ने हंसते हुए कहा, “यह सब एक चाल है। भिखारी समझ रहा है अगर तुझे फंसा लेगा तो तेरी कमाई पर ऐश करेगा। वरना भिखारी को प्यार करने से क्या मतलब?” मीरा को उसकी बात सही लगी। उसने तय किया कि अगर वह फिर ऐसी बात करेगा तो पुलिस की धमकी दे देगी।

और सचमुच, अगले दिन जब उसने फिर वही बात दोहराई तो मीरा ने सख्ती से कहा, “देखो, मैं तुम्हें सिर्फ भूख मिटाने के लिए खाना देती हूं। अगर दोबारा ऐसी बेहूदगी की तो पूरे मोहल्ले में शोर मचा दूंगी और पुलिस बुला लूंगी।” लेकिन उसकी उम्मीद के खिलाफ वह हंस पड़ा। उसकी आंखों में वही ज़िद, वही चाहत चमक रही थी। “आप चाहे दुनिया से डरा दें मगर मुझे नहीं। मुझे तो बस आप चाहिए। साफ कह दीजिए, आप मुझे चाहती हैं या नहीं।”

मीरा ने ठंडी सांस ली, “तुम सोच रहे हो कि मैं तुम्हारी मोहब्बत के नाम पर अपनी कमाई तुम्हारे हाथ में रख दूंगी। मगर मैं सब जानती हूं।” इतना सुनते ही भिखारी का चेहरा बदल गया। उसने डिब्बा लौटाते हुए कहा, “अगर आप यही समझती हैं तो ठीक है। मुझे अब आपके पैसों या खाने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन इतना जरूर जान लीजिए, मेरे दिल में आपके लिए जो है, वह सच्चा है।” इतना कहकर वह चला गया।

मीरा वही दरवाजे पर खड़ी रह गई, हाथ में डिब्बा पकड़े, आंखों में सवाल लिए। “अगर यह मुझे धोखा देना चाहता था तो खाना क्यों लौट आया? फिर क्यों बिना डरे मेरी आंखों में आंखें डालकर सच बोला?”

खालीपन की तड़प

कई दिन तक वह भिखारी उसके दरवाजे पर नहीं आया। अब मीरा जब ऑफिस से लौटती तो उसकी आंखें अनजानी ही उसे तलाशने लगतीं। मगर ना वह फुटपाथ पर दिखता, ना दरवाजे पर। मां ने भी पूछा, “बेटी, वो आदमी अब क्यों नहीं आता?” मीरा ने अनमने ढंग से जवाब दिया, “पता नहीं मां, शायद कहीं और चला गया होगा।” लेकिन दिल के अंदर कहीं ना कहीं उसे उसकी कमी खल रही थी। वह आंखें जो रोज उसका इंतजार करती थीं अब गायब थीं। वो खामोशी जो उसके दिल को विचलित करती थी, अब वही खामोशी उसे और बेचैन कर रही थी।

कई हफ्ते बीत गए। फुटपाथ पर बैठने वाला वह भिखारी अब कहीं दिखाई नहीं देता था। पहले तो मीरा को चैन मिला कि चलो अब वह अजीब-अजीब बातें नहीं करेगा। लेकिन धीरे-धीरे उसकी आदत जैसे बन चुकी थी। ऑफिस से लौटते ही उसकी नजरें उसी जगह टिक जातीं जहां वह बैठा करता था। मगर खाली फुटपाथ देखकर उसका दिल खाली-खाली सा लगने लगा।

एक रात बिस्तर पर लेटे हुए मीरा सोच रही थी, “अगर वह मुझे धोखा देना चाहता तो मेरे इंकार के बाद भी मेरा पीछा करता। मगर उसने तो खाना भी लौटा दिया। क्या सचमुच उसकी नियत साफ थी? क्या उसकी आंखों में जो मोहब्बत मैंने देखी, वह असली थी?” वह बेचैन होकर करवटें बदलती रही। कहीं ना कहीं उसके दिल में अब उस आदमी के लिए कोमलता घर करने लगी थी।

सच्चाई का सामना

फिर एक दिन हफ्तों बाद अचानक वह उसे सड़क पर दिखाई दिया। मीरा अपनी स्कूटी पर थी और वह फुटपाथ से उठकर उसकी ओर बढ़ा। लेकिन इस बार उसने ना हाथ फैलाया, ना पैसे मांगे। बस उसकी ओर देखता रहा और धीमी आवाज में बोला, “आप कैसी हैं?” मीरा कुछ पल के लिए ठिठक गई। यह पहली बार था जब उसने उससे सीधे सवाल किया था। “ठीक हूं। तुम कहां थे इतने दिनों से?” उसने मुस्कुराकर कहा, “थोड़ा बीमार हो गया था। अब ठीक हूं।”

उसकी आवाज में सच्चाई थी। मीरा का दिल और पसीज गया। उसने पर्स से पैसे निकाल कर देने चाहे, मगर उसने सिर हिलाकर मना कर दिया, “नहीं, अब मुझे आपकी भीख नहीं चाहिए। अगर आप देना ही चाहती हैं तो अपने चेहरे की मुस्कान दे दीजिए।” मीरा का चेहरा लाल पड़ गया। उसने जल्दी से स्कूटी स्टार्ट की और आगे बढ़ गई। मगर उसके कानों में वह शब्द गूंजते रहे—“आपकी मुस्कान।”

अब तो हालात यह हो गए कि जब भी वह उसे कहीं दिख जाता, मीरा खुद भी उसे मुस्कुरा कर देख लेती। दोनों के बीच खामोश निगाहों का रिश्ता गहराने लगा। धीरे-धीरे मीरा की सोच बदलने लगी। उसे लगने लगा कि शायद इस भिखारी के दिल में वाकई उसके लिए सच्चा प्यार है। और अगर प्यार सच्चा हो तो इंसान का हुलिया या हालात कोई मायने नहीं रखते।

एक दिन उसने हिम्मत जुटाकर उससे पूछ ही लिया, “तुम्हें मुझसे मोहब्बत क्यों हुई? तुमने मुझ में ऐसा क्या देखा?” भिखारी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, “मैडम, मैंने सुना है कि आप अपने परिवार की खातिर अपनी शादी टालती रही हैं। आप खुद की खुशियां कुर्बान कर रही हैं। ऐसे लोग इस दुनिया में बहुत कम होते हैं। जब पहली बार मैंने आपकी आंखों में देखा, तो मुझे एहसास हुआ कि आप सिर्फ सुंदर नहीं, बल्कि बहुत बड़ी इंसान भी हैं। और मैं… मैं तो एक गरीब हूं, मगर दिल से आपको चाहने लगा।”

मीरा की आंखें भर आईं। उसने सोचा, “मेरी पूरी जिंदगी मां और भाई-बहनों के लिए गुजरी। कभी किसी ने मेरी फिक्र नहीं की और यह आदमी भले ही भिखारी है मगर मेरी तकलीफ समझता है। मेरी कुर्बानी की कदर करता है।” धीरे-धीरे वह भी उसके प्यार में डूबने लगी। अब वह रोज ऑफिस से लौटकर उसके लिए खाना पैक करती और दरवाजे पर खड़ी उसका इंतजार करती। बातें ज्यादा नहीं होती थीं, मगर आंखें सब कुछ कह देती थीं।

किस्मत का खेल

मीरा ने अपने दिल में एक फैसला कर लिया था—अगर यह वाकई मुझे सच्चा चाहता है तो मैं इसे अपना लूंगी। चाहे यह भिखारी ही क्यों ना हो, मैं इसे छोटा-मोटा काम शुरू करवा दूंगी। मुझे पैसों की नहीं, प्यार की जरूरत है। लेकिन तभी किस्मत ने जैसे कोई और खेल खेलना शुरू कर दिया। एक दिन से दो दिन, दो दिन से तीन दिन और फिर हफ्ते बीत गए। वो भिखारी फिर से अचानक गायब हो गया। ना फुटपाथ पर, ना मोहल्ले में, ना कहीं और।

मीरा बेचैन हो उठी। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे—कहीं बीमार होकर अस्पताल में तो नहीं, कहीं किसी हादसे का शिकार तो नहीं हो गया या फिर क्या वाकई उसने मुझे धोखा दिया और चला गया। दिन-रात उसकी आंखें उसी की तलाश में रहतीं। ऑफिस में बैठी होती तो भी खिड़की से बाहर झांकती, शायद कहीं दिख जाए। रास्ते बदलकर भी जाती कि शायद कहीं मिल जाए। मगर नतीजा वही—खाली सड़कें और खाली इंतजार।

धीरे-धीरे महीने गुजर गए, मगर उसके दिल से उसकी याद नहीं गई। उसकी मुस्कान, उसकी आंखों की सच्चाई और उसका “आपकी मुस्कान चाहिए” कहना सब जैसे दिल में बस गया था।

सच्चे प्यार की जीत

इसी बीच घर की जिम्मेदारियां बढ़ गईं। छोटी बहन की पढ़ाई पूरी हुई और उसे जॉब भी मिल गई। मां की आंखों में अब एक ही चिंता थी—मीरा की शादी। एक दिन मां ने साफ कहा, “बेटी, अब मैं तुम्हारी जिद और नहीं मानूंगी। तुमने परिवार के लिए बहुत कुर्बानी दी है। अब तुम्हें अपना घर बसाना ही होगा।”

मीरा ने सिर झुका लिया। उसका दिल तो अब भी उस गुमनाम भिखारी से जुड़ा हुआ था। मगर मां के सामने कुछ कह ना सकी। मां ने रिश्ता ढूंढना शुरू कर दिया। एक संडे को लड़के वाले घर पर आने वाले थे। मां ने कहा, “अच्छे से तैयार हो जाना। अब तुम्हारी उम्र निकलती जा रही है।” मीरा के दिल में तूफान उमड़ पड़ा। उसे लगा कि वह अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा राज मां को बता दे कि वह पहले से ही किसी को चाहती है। मगर वह खुद उलझन में थी। वो तो महीनों से लापता था। कहीं कोई खबर नहीं। क्या वाकई उसका इंतजार करना ठीक है?

रविवार का दिन आ गया। लड़के वाले घर आए। मां ने मीरा को अच्छे कपड़े पहनने के लिए कहा। मगर उसने साधारण सलवार सूट ही पहन लिया। चेहरा भी बिना मेकअप का। वह चुपचाप जाकर बैठक में बैठ गई। लड़के की मां तरह-तरह के सवाल कर रही थी—पढ़ाई कहां तक की है? जॉब कहां करती हो? खाना बनाना आता है? मीरा सिर झुका कर हां या ना में जवाब देती रही। उसका मन तो किसी और ख्यालों में डूबा था। आंखों में नमी थी, मगर उसने किसी तरह आंसू रोक रखे थे।

राजन की वापसी

तभी अचानक दरवाजा जोर से खुला। सबकी नजरें उसी ओर मुड़ी। वहां खड़ा था एक नौजवान, साफ-सुथरे कपड़ों में, आंखों में अजीब सी बेचैनी। उसने तेज आवाज में पुकारा, “मीरा!” मीरा जैसे कुर्सी से चौंक कर उठ गई। आवाज जानी-पहचानी थी। उसने गौर से देखा और उसके होश उड़ गए। “तुम… राजन?”

कमरे में सन्नाटा छा गया। लड़के की मां गुस्से से उठ खड़ी हुई, “यह कौन है? क्या पहले से इसका कोई आशिक है?” मां घबरा कर बोली, “नहीं बहनजी, हम इस लड़के को नहीं जानते।” लेकिन वो नौजवान आगे बढ़ा और सबके सामने बोला, “मेरा नाम राजन है। मैं मीरा से मोहब्बत करता हूं। मैं इसे किसी और का होते हुए नहीं देख सकता।”

घर में खलबली मच गई। लड़के वाले नाराज होकर चले गए। मां शर्म से पसीने-पसीने हो गई। भाई ने गुस्से में राजन का कॉलर पकड़ लिया, “कौन हो तुम? मेरी बहन का नाम लेकर तमाशा क्यों कर रहे हो?” राजन ने उसका हाथ हटाया, “मैं कोई गुंडा नहीं हूं। मैं इज्जत से बात करना चाहता हूं। लेकिन सच यही है कि मैं मीरा से मोहब्बत करता हूं।”

मीरा की आंखें नम थीं। महीनों बाद सामने खड़ा था वही इंसान जिसे उसने भिखारी समझा था। मगर आज वो जैसे बदल चुका था—साफ कपड़े, आत्मविश्वास से भरा चेहरा और आंखों में वही पुरानी चाहत। मीरा ने कांपती आवाज में कहा, “तुम राजन हो… लेकिन तुम तो भिखारी थे। फिर यह सब कैसे?”

राजन ने गहरी सांस ली, “नहीं मीरा, मैं भिखारी नहीं हूं। मैं एक अंडरकवर पुलिस ऑफिसर हूं। भिखारी का भेष सिर्फ एक मिशन के लिए था।” कमरे में सन्नाटा छा गया। राजन ने आगे कहा, “शहर में बच्चों की तस्करी करने वाली एक गैंग थी। मुझे उन्हें पकड़ने का जिम्मा मिला था। भिखारी बनकर मैं उनके बीच घुसा। तुम्हारे मोहल्ले में वह छिपे थे। तभी तुमसे मुलाकात हुई। मैंने सोचा तुम भी मुझे नजरअंदाज कर दोगी, मगर तुमने मुझे खाना दिया, पैसे दिए। उस दिन मुझे लगा इंसानियत अभी जिंदा है। और उसी दिन मैंने तुम्हें दिल में बसा लिया।”

मीरा की आंखों से आंसू बह निकले। राजन ने अपनी पट्टी ऊपर की और टांग का जख्म दिखाया, “जब गैंग को पकड़ने गए तो मुझ पर हमला हुआ। गोली लगी और महीनों अस्पताल में रहा। तुम्हारा नंबर नहीं था, इसलिए बता नहीं सका। मगर हर पल तुम्हें याद किया।”

मां की आंखों में अब विश्वास झलकने लगा। भाई ने कॉलर छोड़ा, “तो यह सच है?” राजन ने सिर हिलाया, “हां, और आज मैं यहां एक ऑफिसर नहीं, एक इंसान के तौर पर आया हूं। मैं मीरा से मोहब्बत करता हूं। मैं वादा करता हूं कि इसे रानी बनाकर रखूंगा और इसके परिवार की जिम्मेदारी अपने बेटे की तरह निभाऊंगा।”

मां की आंखों से आंसू गिरने लगे। उन्होंने मीरा से पूछा, “बेटी, क्या तू भी इसे चाहती है?” मीरा रोते हुए बोली, “हां मां, मैं इसे दिल से चाहती हूं। मैंने इसे भिखारी समझकर भी अपनाया था। अब जब इसकी असली पहचान पता चली तो इसे कैसे ठुकरा दूं?”

मां ने राजन की ओर देखा, “अगर तुम्हारी नियत साफ है तो मैं अपनी बेटी तुम्हें सौंपने को तैयार हूं। मगर इसे कभी दुख मत देना।” राजन ने मां के पैर छू लिए, “आप निश्चिंत रहिए। यह अब मेरी जिंदगी है।”

नई शुरुआत

कुछ ही दिनों बाद दोनों की शादी हो गई। राजन ने न सिर्फ मीरा को रानी की तरह रखा, बल्कि उसकी मां और भाई-बहनों को भी अपनाया। मीरा की जिंदगी में खुशियां लौट आईं। वह अब हंसती थी, जीती थी और हर रात तारों को देखकर कहती—“इंसान वही नहीं जो बाहर से दिखता है। असली पहचान तो उसके दिल की सच्चाई होती है।”