रात की सुनसान सड़क… साधु ने IPS मैडम को रोका — फिर हुआ ऐसा, सुनकर रूह कांप जाएगी!”

रात के ठीक 11 बजे थे। पटना की सड़कें लगभग सुनसान हो चुकी थीं। चारों ओर सन्नाटा पसरा था, केवल स्ट्रीट लाइट्स की पीली रोशनी और दूर-दूर से आती हवा की सरसराहट उस वीरानी को और भी डरावना बना रही थी। इसी अंधेरे के बीच एक गाड़ी से उतरकर तेज़ कदमों से अपने घर की ओर बढ़ रही थीं अनीता चौहान — एक निडर, कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार IPS अफसर।
उस दिन एक अहम मीटिंग की वजह से अनीता को देर हो गई थी। ड्यूटी उनके लिए कभी बोझ नहीं रही, बल्कि एक जिम्मेदारी थी। लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह रात उनकी ज़िंदगी की सबसे खौफनाक और सबसे साहसी रातों में से एक बन जाएगी।
सुनसान सड़क और रहस्यमय साधु
जैसे ही अनीता एक सुनसान मोड़ पर पहुंचीं, उन्होंने देखा कि सड़क के बीचों-बीच एक बूढ़ा साधु खड़ा है। सफेद कपड़े, झोली और माथे पर तिलक — बाहर से देखने में वह एक धार्मिक व्यक्ति लग रहा था। लेकिन उसकी आंखों में कुछ ऐसा था जिसने अनीता को असहज कर दिया।
जब अनीता उसके पास से निकलने लगीं, तो वह साधु अचानक रास्ते में आकर खड़ा हो गया। उसकी नज़रें अनीता को ऊपर से नीचे तक घूर रही थीं। अनीता ने स्थिति को समझते हुए उसे नज़रअंदाज़ कर आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन साधु पीछे-पीछे चलने लगा।
डर की शुरुआत
अंधेरे में कदमों की आहट और पीछा करता हुआ वह व्यक्ति — अनीता का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। अचानक उस बूढ़े साधु ने अनीता का रास्ता रोक लिया और उनके बाजू पकड़ लिए। उसके चेहरे पर अजीब सा नशा और बेशर्मी थी।
“कहां से आ रही हो?” उसने अश्लील लहजे में पूछा।
अनीता ने संयम बनाए रखते हुए कहा कि वह काम से लौट रही हैं। लेकिन साधु हंस पड़ा। उसने उनके बाल पकड़कर खींचे और बदतमीजी करने लगा। अब अनीता समझ चुकी थीं कि मामला बेहद गंभीर है।
जान बचाने की जद्दोजहद
अनीता ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की और भागने लगीं। बूढ़ा साधु भी उनके पीछे दौड़ा। सड़क पर गिरना, चोट लगना, सांस फूलना — सब कुछ किसी डरावने सपने जैसा लग रहा था। साधु ने भांग की बोतल निकाल ली और अनीता को डराकर उसे पीने पर मजबूर किया।
नशे की हालत में अनीता सड़क पर गिर पड़ीं। बूढ़ा साधु अपने शिकार को जीत के अहंकार से देखने लगा। लेकिन उसने यह नहीं जाना था कि जिस लड़की को वह बेबस समझ रहा है, वह एक प्रशिक्षित IPS अफसर है।
पहला पलटवार
जैसे ही साधु ने अनीता को छूने की कोशिश की, अनीता ने जमीन पर पड़ी बोतल उठाकर पूरी ताकत से उसके सिर पर दे मारी। साधु लड़खड़ा गया। अनीता, नशे और दर्द के बावजूद, जान बचाने के लिए भागीं।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।
जंगल, कोठी और खौफ
भागते-भागते अनीता जंगल के भीतर पहुंच गईं, जहां एक पुरानी कोठी थी। बूढ़ा साधु उन्हें खींचते हुए अंदर ले गया। अनीता समझ चुकी थीं कि अब केवल ताकत से नहीं, बल्कि बुद्धि से लड़ना होगा।
कोठी के अंदर पड़े एक डंडे से उन्होंने साधु पर वार किया और वहां से भाग निकलीं। इसके बाद एक पुराने खंडहर कारखाने में छिप गईं, जहां साधु उन्हें खोजता रहा।
चालाकी और मानसिक खेल
अनीता ने स्थिति को पलटने का फैसला किया। उन्होंने साधु को यकीन दिलाया कि वह हार मान चुकी हैं। उन्होंने प्यार और विश्वास का नाटक किया। साधु अपने घमंड में अंधा हो चुका था। उसने अपनी दरिंदगी की कहानियां खुद बखुद सुनानी शुरू कर दीं।
उसे नहीं पता था कि अनीता के कपड़ों में छुपा कैमरा उसकी हर बात रिकॉर्ड कर रहा है।
असली चेहरा सामने आया
जैसे ही साधु ने अपने गुनाहों का घमंड भरा इकरार किया, अनीता ने कैमरा बाहर निकाला। उसी पल दो काली जीपों की हेडलाइट्स जंगल में चमकीं। कमांडो टीम ने चारों ओर से घेर लिया।
अब वहां खड़ी लड़की कोई बेबस शिकार नहीं थी — वह एक IPS अफसर थी, अपने पूरे अधिकार और ताकत के साथ।
गिरफ्तारी और न्याय
अनीता ने अपना पहचान पत्र दिखाया। बूढ़ा साधु कांपने लगा। उसे हथकड़ी पहनाकर जेल भेज दिया गया। उसकी “साधु” की वर्दी उतर चुकी थी, और सामने आ चुकी थी उसकी असली पहचान — एक अपराधी।
कहानी का संदेश
यह कहानी सिर्फ एक रोमांचक घटना नहीं है। यह हमें सिखाती है कि:
हिम्मत और दिमाग साथ हों तो कोई भी दरिंदा ताकतवर नहीं होता
वर्दी, उम्र या धर्म के पीछे छुपा अपराध अंततः बेनकाब होता है
कानून तब मजबूत होता है, जब उसे निभाने वाले निडर हों
निष्कर्ष
IPS अनीता चौहान की यह कहानी हर उस महिला के लिए प्रेरणा है, जो डर, अन्याय और हिंसा के खिलाफ खड़ी होना चाहती है। यह बताती है कि साहस, धैर्य और बुद्धिमत्ता से हर अंधेरी रात का अंत रोशनी में किया जा सकता है।
रात के ठीक 11 बजे थे।
पटना की सड़कें उस समय किसी वीरान सपने जैसी लगती हैं—जहाँ रोशनी भी थकी हुई दिखती है और सन्नाटा इंसान के कानों में घुसकर दिल तक उतर जाता है। दिन भर की भागदौड़ के बाद शहर जैसे खुद को समेट लेता है। दुकानों के शटर गिर चुके थे, गाड़ियों की आवाज़ें लगभग गायब थीं, और हवा में सिर्फ़ सूखे पत्तों की सरसराहट तैर रही थी।
इसी सुनसान सड़क पर अकेली चल रही थी अनीता चौहान।
एक निडर, तेज़ दिमाग़ वाली, ईमानदार आईपीएस अफ़सर—जिसके लिए देर रात तक काम करना कोई नई बात नहीं थी। उस दिन एक अहम मीटिंग खिंच गई थी। फाइलें, रिपोर्ट्स, शिकायतें—सब कुछ निपटाते-निपटाते वक्त कब निकल गया, पता ही नहीं चला।
अनीता के चेहरे पर थकान थी, लेकिन आँखों में वही पुराना आत्मविश्वास।
वह जानती थी—ड्यूटी कभी समय देखकर नहीं आती।
जैसे ही वह एक लंबे, सुनसान मोड़ पर पहुँची, उसकी नज़र अचानक सड़क के बीच खड़े एक बूढ़े साधु पर पड़ी।
सफ़ेद कपड़े, गले में रुद्राक्ष, हाथ में झोली।
पहली नज़र में वह किसी आम साधु जैसा ही लगा।
लेकिन दूसरी नज़र में—कुछ गलत था।
उसकी आँखें।
वे आँखें शांत नहीं थीं। उनमें अजीब-सी बेचैनी थी, एक भूखी निगाह, जो अंधेरे में चमक रही थी। अनीता का कदम एक पल को धीमा हुआ, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। वह रोज़ पुलिस की ट्रेनिंग में सीखी गई बात दोहराती थी—डर को चेहरे पर मत आने दो।
वह साधु के पास से निकलने लगी।
तभी—
वह बूढ़ा अचानक सड़क के बीच और आगे आ गया।
“इतनी रात को?”
उसकी आवाज़ में नकली मिठास थी।
अनीता ने बिना रुके कहा,
“रास्ता दीजिए।”
वह आगे बढ़ गई।
लेकिन उसके पीछे कदमों की आहट आने लगी।
अब अनीता का दिल तेज़ धड़कने लगा।
उसने रफ्तार बढ़ाई।
कदम पीछे भी तेज़ हो गए।
अचानक—
उस बूढ़े ने आगे बढ़कर उसका रास्ता रोक लिया और उसके बाजू को पकड़ लिया।
“मुझसे मिले बिना जा रही हो?”
उसके चेहरे पर एक विकृत मुस्कान थी। नशे की बदबू उसके मुँह से साफ़ आ रही थी।
अनीता ने झटका देकर हाथ छुड़ाया।
“हाथ हटाओ। यह ठीक नहीं है।”
वह हँस पड़ा।
“ठीक–गलत मैं तय करता हूँ।”
अगले ही पल उसने अनीता के बाल पकड़कर खींच लिया।
उस क्षण अनीता को समझ आ गया—यह सिर्फ़ बदतमीज़ी नहीं है। यह ख़तरा है।
उसने पूरी ताक़त से खुद को छुड़ाया और भागने लगी।
पीछे से वह बूढ़ा भी दौड़ा।
अंधेरी सड़क, तेज़ साँसें, दिल की धड़कन—सब कुछ एक साथ।
अनीता दौड़ते-दौड़ते फिसली और सड़क पर गिर पड़ी।
उसके घुटनों में तेज़ दर्द उठा।
वह उठने ही वाली थी कि—
एक ज़ोरदार धक्का।
वह फिर गिर गई।
बूढ़ा साधु उसके ऊपर झुक गया।
उसकी आँखों में अब हवस थी—खुली, बेहया, डरावनी।
“अब कहाँ भागेगी?”
उसने हँसते हुए कहा।
उसने झोली से भांग की बोतल निकाली।
“पी ले। नहीं तो…”
धमकी अधूरी थी, लेकिन उसका मतलब साफ़ था।
अनीता ने मना किया।
लेकिन वह नहीं रुका।
डर, थकान और दर्द के बीच—उसने अनीता को जबरन बोतल थमा दी।
कुछ घूँट।
बस कुछ ही पलों में—
दुनिया घूमने लगी।
ज़मीन हिलने लगी।
आवाज़ें दूर होती चली गईं।
अनीता सड़क के बीच गिर पड़ी।
कान में बस उस बूढ़े की हँसी गूँज रही थी।
वह पास आया।
उसने अनीता के बालों की लट उँगलियों में लपेटी।
“अब मज़ा आएगा…”
लेकिन—
अगले ही पल—
धड़ाम!
अनीता ने ज़मीन पर पड़ी बोतल उठाकर पूरी ताक़त से उसके सिर पर मार दी।
बूढ़ा चीख़ता हुआ पीछे गिरा।
खून बहने लगा।
अनीता लड़खड़ाते हुए उठी।
नशा, दर्द, डर—सब कुछ एक साथ।
लेकिन उसने हार नहीं मानी।
वह फिर दौड़ी।
जंगल की तरफ़।
पीछे से चीख़ आई—
“पकड़ो उसे!”
लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
सिर्फ़ अंधेरा।
जंगल।
एक पुरानी कोठी।
वह अंदर घुसी।
बूढ़ा भी।
दरवाज़ा बंद।
अंधेरा।
उसने अनीता को पकड़ने की कोशिश की।
लेकिन इस बार—
अनीता की आँखों में डर नहीं था।
अब वहाँ रणनीति थी।
उसने पास पड़ा लकड़ी का डंडा उठाया।
और—
सीधा वार।
बूढ़ा फिर गिरा।
अनीता भागी।
खंडहर।
पुराना कारख़ाना।
छिपना।
साँस रोकना।
और तभी—
उसने फैसला किया।
अब भागना नहीं है।
अब उसे इस दरिंदे को उसके अंजाम तक पहुँचाना है।
उसने खुद को कमज़ोर दिखाया।
प्यार से बात की।
विश्वास दिलाया।
बूढ़ा फँसता चला गया।
अपने घमंड में—
उसने अपने सारे गुनाह खुद बखुद उगल दिए।
लड़कियाँ।
वीडियो।
तस्वीरें।
सब कुछ।
उसे नहीं पता था—
अनीता के कपड़ों में छुपा कैमरा सब रिकॉर्ड कर रहा है।
और फिर—
रात चीरती हुई रोशनी।
दो काली जीपें।
कमांडो।
हथियार।
घेराबंदी।
अनीता की आवाज़ गूंजी—
“गिरफ़्तार कर लो इसे।”
बूढ़ा काँपने लगा।
“तुम… तुम कौन हो?”
अनीता ने अपना कार्ड दिखाया।
“आईपीएस अनीता चौहान।”
“जिसे तुम शिकार समझ रहे थे—वह तुम्हें पकड़ने आई थी।”
हथकड़ी लगी।
साधु की वर्दी उतर गई।
अपराधी सामने आ गया।
और जंगल में—
न्याय खड़ा था।
संदेश
यह कहानी सिर्फ़ एक थ्रिलर नहीं है।
यह बताती है कि—
साहस और बुद्धि साथ हों, तो सबसे बड़ा दरिंदा भी हारता है
वर्दी, उम्र या धर्म अपराध को छुपा नहीं सकते
औरत अगर ठान ले, तो वह सिर्फ़ बचती नहीं—न्याय दिलाती है
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