राधिका: एक रोटी और इंसानियत की जीत
शहर की तंग गलियों में एक टूटी-फूटी झोपड़ी थी। वहीं रहती थी राधिका, एक 19 साल की लड़की जिसके कंधों पर पूरी जिंदगी का बोझ था। पिता का देहांत हो चुका था, मां बिस्तर पर पड़ी थी बीमारी से जूझती हुई। घर में दो छोटे भाई-बहन थे, जिनके मासूम चेहरे राधिका की हर सुबह की प्रेरणा थे।
राधिका सुबह तड़के उठती। मोहल्ले वालों के घरों में झाड़ू-पोछा, बर्तन मांझना, कपड़े धोना—यह सब वह करती। बदले में जो चंद रुपए मिलते, उससे घर का खर्च चलता। कई बार तो हालत इतनी खराब होती कि पूरे परिवार को आधा पेट खाकर सोना पड़ता।
लेकिन राधिका की आंखों में हमेशा एक चमक रहती। वह सोचती, “मुझे पढ़ाई पूरी करनी है, अपने भाई-बहनों को पढ़ाना है ताकि हमारी जिंदगी बदल सके।” लेकिन गरीबी के कारण हालात उसे किताबों से दूर रखते।
एक दिन की कहानी: रोटी और भूख
उस दिन घर में आटे की बस आखिरी मुट्ठी बची थी। राधिका ने तीन रोटियां बनाई—एक मां के लिए, दो छोटे भाई-बहनों के लिए। खुद के लिए कुछ नहीं। यह उसकी आदत थी। खुद भूखी रह जाती, मगर दूसरों को भूखा नहीं सोने देती।
रोटियां थाली में रखी ही थीं कि बाहर से एक कमजोर, कांपती आवाज आई, “बेटी, दो दिन से भूखा हूं, भगवान के नाम पर कुछ खाने को दे दे।” राधिका ने दरवाजा खोला। सामने एक बूढ़ा भिखारी खड़ा था। फटे पुराने कपड़े, धंसी हुई आंखें, शरीर हड्डियों से भरा। उसकी हालत इतनी खराब थी कि लग रहा था अभी गिर पड़ेगा।
राधिका ने थाली की ओर देखा। सोचा, “अगर मैंने इसे एक रोटी दे दी तो मां क्या खाएगी? भाई-बहन का क्या होगा?” मगर तुरंत उसके दिल ने कहा, “भूखा इंसान भगवान होता है।” उसने थाली से एक रोटी उठाई और भिखारी को पकड़ा दी।
भिखारी की आंखें भर आईं। उसने कांपते हाथों से रोटी मुंह में डाली और राधिका को आशीर्वाद देते हुए कहा, “बेटी, तूने आज मेरी जान बचाई है।” राधिका मुस्कुराई, मगर अंदर बेचैनी थी, “अब घर में सबको कैसे खिलाऊंगी?”
बड़ा बदलाव: अमीरी की झलक
अगले दिन गली में हलचल थी। एक बड़ी चमचमाती कार मोहल्ले में आई। उससे सूट-बूट पहने दो आदमी और एक महिला उतरी। सीधे राधिका के घर पहुंची। मोहल्ले वाले चौंक गए। इतने बड़े लोग इस गरीब की झोपड़ी में क्यों?
दरवाजा खटखटाया गया। राधिका बाहर आई। महिला ने पूछा, “क्या तुम वही हो जिसने कल रात मेरे पिता को रोटी खिलाई थी?” राधिका घबराई, “जी बस एक रोटी थी, और कुछ मेरे पास नहीं था।”
महिला की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, “वह भिखारी मेरे पिता हैं। शहर के सबसे बड़े उद्योगपति। कई बार घर से निकल जाते हैं और कहते हैं कि असली इंसानियत गली-कूचों में मिलती है। कल जब वे वापस नहीं आए तो हमें पता चला कि किसी गरीब लड़की ने उन्हें रोटी दी।”
उसी वक्त कार से एक शख्स उतरा, साफ-सुथरे कपड़े, गले में शॉल, मगर चेहरा वही बूढ़ा था जिसे राधिका ने रोटी दी थी। उसने मुस्कुरा कर कहा, “बेटी, अमीरी ने हमें पत्थर दिल बना दिया है, पर तेरे जैसे गरीब लोग हमें याद दिलाते हैं कि इंसानियत अभी जिंदा है। तूने बिना सोचे-समझे अपना हिस्सा मुझे दे दिया। यह दौलत मुझ पर नहीं, तुझ पर शोभा देती है।”
उसने जेब से एक लिफाफा निकाला और राधिका को पकड़ाया। उसमें एक चेक था, लाखों रुपए का।
मोहल्ले की प्रतिक्रिया और नई शुरुआत
पूरे मोहल्ले में खलबली मच गई। कल तक लोग राधिका को गरीब समझकर ताने मारते थे। आज वही लोग कह रहे थे, “देखो, एक रोटी ने उसकी किस्मत बदल दी।”
राधिका की आंखों में आंसू थे। उसने बूढ़े व्यक्ति के पैर छुए और बोली, “बाबा, मैंने तो बस इंसानियत निभाई थी, इसके बदले इतना क्यों?”
बाबा ने कहा, “क्योंकि इंसानियत की कीमत सबसे ज्यादा है। और यह पैसा सिर्फ तुम्हारा नहीं, उन गरीब बच्चों का भी है जो भूखे पेट सोते हैं। इसे बांटना, जैसे तुमने मेरे साथ बांटा।”
राधिका ने पैसे से सबसे पहले अपनी मां का इलाज करवाया। भाई-बहनों का अच्छे स्कूल में दाखिला कराया और अपने लिए भी पढ़ाई शुरू की।
समाज सेवा का मिशन
लेकिन असली काम उसने किया अपने मोहल्ले में मुफ्त भोजनालय शुरू करके। अब वहां कोई भूखा नहीं सोता। हर आने वाला इंसान बिना पूछे खाना पा जाता।
लोग कहते थे, “देखो, यह वही लड़की है जिसने एक रोटी दी थी और बदले में भगवान ने पूरी जिंदगी की रोटियां दे दी।”
कुछ दिन बाद वही बूढ़ा बाबा फिर वहां आया। इस बार उसने कहा, “बेटी, अब मुझे तुझ पर गर्व है। मैंने दौलत तो बहुत देखी है, पर असली अमीरी तेरे दिल में है। आज से तू मेरी बेटी जैसी है।”
राधिका मुस्कुराई और बोली, “बाबा, रोटी छोटी हो सकती है, लेकिन इंसानियत कभी छोटी नहीं होती।”
प्रेरणा और संदेश
राधिका की कहानी हमें यह सिखाती है कि इंसानियत सबसे बड़ी दौलत है। जब हम अपने हिस्से से कुछ दूसरों को देते हैं, तो वह दिल को अमीर बनाता है।
गरीबी, कठिनाइयां, और मुश्किलें चाहे कितनी भी हों, अगर दिल में इंसानियत हो तो कोई भी इंसान बड़ी से बड़ी चुनौती को पार कर सकता है।
राधिका ने साबित कर दिया कि एक छोटी सी मदद, एक छोटी सी रोटी भी किसी की जिंदगी बदल सकती है। और यही असली अमीरी है।
दोस्तों, अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो इसे लाइक करें, शेयर करें और कमेंट में बताएं कि आपको इसका कौन सा हिस्सा सबसे ज्यादा प्रेरित करता है। ऐसी कहानियों के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें। धन्यवाद।
अगर आप चाहें तो मैं इस कहानी को और विस्तार से लिख सकता हूँ या किसी अन्य विषय पर मदद कर सकता हूँ।
News
मकान से घर तक: एक बेटे की सीख
मकान से घर तक: एक बेटे की सीख शुरुआत नोएडा की ऊँची-ऊँची इमारतों, चमचमाती सड़कों और भागती दौड़ती ज़िंदगी के…
“जूते की धूल से तिरंगे तक: शहीद के बेटे की कहानी”
“जूते की धूल से तिरंगे तक: शहीद के बेटे की कहानी” जूते की धूल से तिरंगे तक बस अड्डे की…
अजय की उड़ान
अजय की उड़ान गाँव के छोर पर एक टूटा-फूटा घर था। मिट्टी की दीवारें, खपरैल की छत और आँगन में…
बरसात की रात का आसरा
बरसात की रात का आसरा बरसात की वह काली रात थी। आसमान से लगातार मूसलाधार बारिश गिर रही थी। गाँव…
बेटे ने बूढ़े पिता की थाली छीन ली… लेकिन पिता ने जो किया उसने पूरे गाँव को रुला दिया!
बेटे ने बूढ़े पिता की थाली छीन ली… लेकिन पिता ने जो किया उसने पूरे गाँव को रुला दिया! गाँव…
इंसानियत का असली चेहरा
इंसानियत का असली चेहरा शाम का समय था। ऑफिस से लौटते हुए आर्या अपनी स्कूटी पर मोहल्ले की सड़क से…
End of content
No more pages to load