रामलाल की रेहड़ी: इज्जत, इंसानियत और सादगी की मिसाल

प्रस्तावना

मुहल्ले के कोने पर एक पुरानी रेहड़ी खड़ी थी। लकड़ी की बनी वह रेहड़ी बरसों की मेहनत और वक्त की मार से झुर्रीदार हो चुकी थी। लेकिन उस रेहड़ी पर खड़ा शख्स, रामलाल, अपनी मुस्कुराहट और सादगी से सबका दिल जीत लेता था। उसकी रेहड़ी से उठती खुशबू, उसकी बातों की मिठास और मेहनत का जायका पूरे इलाके में मशहूर था। रामलाल कोई बड़ा व्यापारी नहीं था, न ही उसके पास धन-दौलत थी। मगर उसकी ईमानदारी और इंसानियत उसे सबका प्रिय बना देती थी।

रामलाल का किरदार

रामलाल का चेहरा हमेशा मुस्कुराता रहता था। वह बच्चों को देखकर उनके साथ खेलता, बूढ़ों से इज्जत से बात करता और नौजवानों को अपनी कहानियों से हंसी में उलझा देता। उसकी मेहनत से बनी मिठास मारताबक से ज्यादा उसकी मुस्कुराहट और खुलूस में थी। हर शाम उसकी रेहड़ी के पास भीड़ लग जाती थी। बच्चे खेलते, औरतें ऑर्डर का इंतजार करतीं और नौजवान हंसी-ठिठोली करते। रेहड़ी के नीचे जलती अंगीठी से मक्खन, चॉकलेट और मसालों की महक फैलती थी। मुहल्ले के लोग कहते, “रामलाल, तुम्हारी मेहनत और सब्र ही असली स्वाद है।” रामलाल मुस्कुरा कर जवाब देता, “साहब, खाने का मजा प्यार से बढ़ता है।”

पुलिस का आगमन

एक रात, जब रेहड़ी के पास रौनक थी, अचानक एक पुलिस जीप आकर रुकी। सबकी नजरें जीप पर टिक गईं। जीप से उतरे सब-इंस्पेक्टर राजीव वर्मा, जो नए-नए तैनात हुए थे। उनका चेहरा सख्त था, आंखों में गुरूर था। वे सख्ती दिखाने और कानून का पालन करने के लिए जाने जाते थे। राजीव ने रेहड़ी की तरफ देखा और सोचा, “इतनी भीड़, जरूर कोई गड़बड़ है। आज इस रेहड़ी वाले को सबक सिखाऊंगा।”

राजीव तेज कदमों से रेहड़ी की तरफ बढ़े। बच्चों की हंसी थम गई, औरतें चुप हो गईं, नौजवान पीछे हट गए। रामलाल ने पुलिस वाले को आते देखा, लेकिन उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था। वह हमेशा की तरह मुस्कुराता रहा।

सवाल-जवाब

राजीव ने सख्त लहजे में पूछा, “ए बाबू, लाइसेंस है या नहीं? दिखाओ फौरन।”
रामलाल ने नरमी से जवाब दिया, “जी सर, बिल्कुल है। यह लीजिए फाइल।”
राजीव ने फाइल झटके से ली, कागज पलटे और तंजिया मुस्कुराहट के साथ बोला, “यह देखो, लाइसेंस दो हफ्ते पहले ही खत्म हो चुका है। गैरकानूनी धंधा कर रहे हो।”

भीड़ में सरगोशियां होने लगीं। एक महिला बोली, “साहब, रामलाल बरसों से मेहनत कर रहा है। कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया।”
एक नौजवान बोला, “सर, यह बच्चों को कभी-कभी मुफ्त मिठाई भी दे देता है। आप थोड़ा नरमी दिखाएं।”
लेकिन राजीव कानून का हवाला देते हुए बोला, “कानून कानून होता है। इसमें गरीब या अमीर नहीं देखा जाता।”

रामलाल ने सिर झुकाया और विनम्रता से कहा, “सर, बस इन ग्राहकों का ऑर्डर पूरा कर लेने दें। बच्चे भूखे हैं। मारताबक तवे पर है। उसके बाद मैं खुद चलूंगा।”
राजीव ने रेहड़ी को धक्का देने की कोशिश की, “कवास बंद करो। रेहड़ी जब्त होगी, और तुम्हें थाने चलना होगा।”

थाने का माहौल

रामलाल को थाने ले जाया गया। वहां नीम अंधेरा था, पुरानी मेज, चरमराता पंखा और गर्द-अलूद कैलेंडर। राजीव ने रजिस्टर खोला, “नाम?”
“रामलाल।”
“पेशा?”
“मारताबक फरोश।”
राजीव ने तंज किया, “इतनी उम्र में रेहड़ी लगा रहे हो?”
रामलाल ने जवाब दिया, “सर, हलाल मेहनत छोटी-बड़ी नहीं होती।”

राजीव ने पूछा, “घर पर कौन है?”
“बीवी सिमरन, और कोई नहीं।”
“फोन करोगे?”
“जी सर, इजाजत हो तो इत्तला दे दूं।”
राजीव ने टेलीफोन आगे कर दिया। रामलाल ने बीवी को फोन किया, “सिमरन, छोटी सी गलतफहमी है। मैं थाने में हूं, परेशान मत होना। आ जाओ।”

सच्चाई का उजागर होना

कुछ देर बाद थाने में हलचल मच गई। फ्रंट डेस्क पर फोन आया, “यह कॉल जनरल सिमरन देवी की थी।”
थानेदार कमलेश शर्मा ने घबराकर पूछा, “जनरल सिमरन देवी?”
“जी, वही चार सितारों वाली जनरल।”

कमलेश दौड़कर रामलाल के कमरे में पहुंचे, “राजीव, तुम्हें पता है किसे पकड़ लाए हो? यह जनरल सिमरन देवी के शौहर हैं।”
राजीव का चेहरा सफेद पड़ गया। वह सोचने लगा, “मैंने किसे मुजरिम बना दिया?”

बाहर शानदार गाड़ी रुकी, जनरल सिमरन देवी आईं। उनकी वर्दी पर चार सितारे चमक रहे थे। वह सीधे कमरे में गईं, रामलाल को देखकर चेहरा नरम पड़ गया, “राम जी, सब ठीक है?”
रामलाल मुस्कुराकर बोले, “बस थोड़ा थक गया था।”

जनरल का सबक

जनरल ने सबको देखा, फिर कहा, “यह रामलाल मेरे शौहर हैं। रेहड़ी बान हैं। मारताबक बेचते हैं और मुझे इन पर फक्र है।”
फिर राजीव से बोली, “तुमने इन्हें मुजरिम की तरह बिठाया, सिर्फ इसलिए कि लाइसेंस दो हफ्ते पहले खत्म हो गया? कानून का मकसद इंसानियत को सहारा देना है, उसे कुचलना नहीं।”

राजीव ने नजरें झुका ली, “माफ कर दीजिए मैडम।”
जनरल ने सख्ती से कहा, “माफी लफ्जों से नहीं, आमाल से मिलती है। अगर वाकई शर्मिंदा हो तो आइंदा अपने रवैये को बदल कर दिखाओ। याद रखो, हर शख्स की इज्जत है। चाहे वह रेहड़ी वाला हो या जनरल।”

बदलाव की शुरुआत

कमरे में खामोशी छा गई। सिपाही दीवार से लगे खड़े थे, थानेदार कमलेश शर्मिंदा थे। राजीव का गुरूर टूट चुका था। जनरल ने कहा, “ताकत का मतलब दूसरों को नीचा दिखाना नहीं है। वर्दी का मकसद इज्जत देना है, छीनना नहीं।”
कमलेश ने कहा, “राजीव का तबादला किसी और यूनिट में किया जाए ताकि यह सीखे कि कानून के साथ इंसानियत भी जरूरी है।”
जनरल ने हामी भरी, “सजा का मकसद तोड़ना नहीं, सुधारना है।”

राजीव ने दिल ही दिल में कसम खाई कि वह अपनी सोच बदलेगा।

रामलाल की जीत

रामलाल मुस्कुरा रहा था। उसकी मुस्कुराहट में सुकून था। जनरल ने शौहर का हाथ थामा, “चलो राम जी, अब घर चलें।”
रामलाल ने कहा, “कल फिर रेहड़ी लगानी है, ग्राहक मेरा इंतजार करेंगे।”

बाहर निकलते ही सिपाहियों ने सलामी दी। सबके दिल में एक ही बात थी—इज्जत पेशे या पद से नहीं, किरदार और वकार से बनती है।

समाज में बदलाव

अगली सुबह रामलाल अपनी रेहड़ी पर था। उसके चेहरे पर वही मुस्कुराहट थी। लोग हैरान थे कि इतने बड़े वाक्य के बाद भी वह अपनी जगह पर है। अब उसकी रेहड़ी पर भीड़ आम दिनों से ज्यादा थी। लोग मारताबक लेने के साथ उसकी कहानी भी सुनना चाहते थे।

एक बूढ़ा बोला, “बेटा, तुमने हमें फक्र दिया है। इज्जत पेशे में नहीं, किरदार में है।”
रामलाल ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “बाबा जी, मैं तो बस अपना काम कर रहा हूं। इज्जत देना आप सबका काम है।”

कहानी का असर

रामलाल की कहानी पूरे इलाके में फैल गई। थाने में भी बदलाव आया। अब सिपाही रेहड़ी वालों से नरमी से पेश आते। एक दिन एक शिक्षक बच्चों को रामलाल की रेहड़ी पर ले आया, “देखो बच्चों, यह हैं रामलाल। इनकी कहानी हमें सिखाती है कि कभी किसी को छोटा मत समझो।”

बच्चे तालियां बजाने लगे, रामलाल की मुस्कुराहट फैल गई। वक्त के साथ उसकी रेहड़ी एक मिसाल बन गई—सच्चाई, सब्र और इंसानियत की।

निष्कर्ष

रामलाल की कहानी बताती है कि कभी किसी को उसके काम, शक्ल या कपड़ों से मत परखो। हर इंसान की अपनी कहानी होती है। असली इज्जत सादगी, मेहनत और इंसानियत में है।
कानून और इंसानियत साथ-साथ चलें, तभी समाज में असली बदलाव आता है।