समीर, जया मैडम और एक माँ की कहानी

पटना के एक निजी स्कूल में सुबह-सुबह बच्चों की चहचहाहट गूंज रही थी। मगर एक कोने में बैठा 13 वर्षीय समीर चुपचाप अपनी किताबों में खोया था, हाथ में स्कूल फीस का नोटिस था जिसे वह छुपाने की कोशिश कर रहा था। उसकी आंखों में चिंता और उदासी साफ झलक रही थी। कक्षा में प्रवेश करते ही उसकी क्लास टीचर जया मैडम की नजर समीर पर पड़ी। उन्होंने देखा कि बाकी बच्चे उत्साह से पढ़ रहे हैं, लेकिन समीर का चेहरा बुझा हुआ है।

जया मैडम ने प्यार से पूछा, “समीर बेटा, तुम इतने उदास क्यों हो? क्या बात है?” समीर ने सिर झुका लिया और चुप रहा। जया मैडम ने उसके हाथ से नोटिस लिया, जिस पर लिखा था, “आखिरी चेतावनी: फीस जमा करो, वरना नाम काट दिया जाएगा।” जया मैडम के दिल में चिंता घर कर गई। वे समीर को लेकर प्रिंसिपल के ऑफिस पहुंचीं। प्रिंसिपल ने सख्त स्वर में कहा, “अगर फीस नहीं भरेगा तो स्कूल में नहीं पढ़ पाएगा। अगर आपको इतनी सहानुभूति है तो आप ही इसकी फीस भर दीजिए।”

यह सुनकर समीर का दिल टूट गया। उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। ऑफिस से बाहर निकलते ही वह फूट-फूट कर रोने लगा और जया मैडम से लिपट गया। “मैडम, मैं क्या करूं? मेरे पिताजी अब नहीं हैं, माँ मजदूरी करके किसी तरह दो वक्त की रोटी जुटाती हैं। फीस के पैसे कहां से आएंगे?” उसकी मासूमियत और दर्द ने जया मैडम को भीतर तक झकझोर दिया। उन्होंने समीर को सीने से लगा लिया और कहा, “बेटा, अब रो मत। मैं समझ गई हूं कि तुम्हारे साथ कितनी बड़ी मुश्किल है। लेकिन घबराओ मत, कोई ना कोई रास्ता जरूर निकलेगा।”

कक्षा खत्म होते ही जया मैडम ने बैग उठाया और समीर को साथ लेकर उसके घर चल दीं। संकरी गलियों और टूटी सड़कों से होते हुए वे एक पुराने जर्जर मकान के सामने पहुंचे। समीर ने दरवाजा खोला, अंदर से कमजोर सी महिला बाहर आई—समीर की माँ, कमला देवी। उनके चेहरे पर थकान और आंखों के नीचे काले घेरे थे। जया मैडम ने नम्रता से हाथ जोड़कर नमस्ते किया। कमला देवी ने टूटी फूटी कुर्सी पर बैठने को कहा और पानी व चाय ले आईं। घर में ज्यादा कुछ नहीं था, मगर मेहमाननवाजी में कोई कमी नहीं थी।

जया मैडम ने धीरे से पूछा, “बहन जी, आप अकेली ही सब संभाल रही हैं?” कमला देवी की आंखें भर आईं, उन्होंने बताया, “जब तक मेरे पति थे, सब ठीक था। उनके जाने के बाद मैं मजदूरी करके दो वक्त की रोटी तो जुटा लेती हूं, लेकिन फीस और बाकी खर्च उठाना मेरे बस में नहीं। कई बार सोचती हूं बेटे को स्कूल से निकाल लूं, लेकिन उसका मासूम चेहरा देखकर हिम्मत नहीं होती।”

यह सुनकर जया मैडम का दिल पसीज गया। उन्होंने अपने कंगन उतारकर कमला देवी के हाथ में रख दिए, “इन्हें रख लीजिए, कल जाकर समीर की फीस भर दीजिए। यह बच्चा बहुत होशियार है, इसे पढ़ने से मत रोकिए।” कमला देवी ने पहले लेने से मना किया, लेकिन जया मैडम ने कहा, “मेरे अपने बच्चे नहीं हैं, लेकिन समीर में मुझे अपना बेटा दिखाई देता है। अगर यह बच्चा पढ़ाई से वंचित हो गया, तो मेरा शिक्षक होना बेकार हो जाएगा।” कमला देवी ने कंगन थाम लिए, उनकी आंखों में आंसू थे। उन्होंने कहा, “मैडम, मैं नहीं जानती इस एहसान का बदला कैसे चुकाऊंगी। भगवान आपको कभी दुख न दे।”

अगले दिन कमला देवी ने कंगनों को गिरवी रखकर समीर की फीस जमा कर दी। समीर का नाम काटे जाने का डर टल गया। जया मैडम ने समीर पर और ध्यान देना शुरू कर दिया। वह हर रोज उसकी कॉपी चेक करतीं, सवाल पूछतीं और हर गलती पर सुधार करतीं। समीर भी मेहनत करने लगा। धीरे-धीरे वक्त बीतता गया। समीर ने आठवीं, नवीं और फिर दसवीं पास की। घर की जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगीं। पिता की कमी ने उसे उम्र से पहले बड़ा कर दिया था।

दसवीं के बाद समीर ने मोहल्ले के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। शाम को चार-पांच बच्चे घर की टूटी चौखट पर बैठ जाते और समीर उन्हें मन लगाकर पढ़ाता। ट्यूशन से मिलने वाले पैसों से घर के खर्च में थोड़ी राहत मिलने लगी। कमला देवी बेटे की जिम्मेदारी देखकर भावुक हो जातीं। कभी उसके सिर पर हाथ फेरतीं, कभी भगवान से दुआ करतीं, “हे प्रभु, मेरे बेटे के पसीने की हर बूंद को सफलता में बदल देना।”

जया मैडम भी अक्सर उनके घर आतीं, कभी किताबें लाकर देतीं, कभी सिर्फ अपने शब्दों से हौसला बढ़ातीं। “समीर बेटा, तुम बहुत होशियार हो। याद रखो, कठिनाइयां इंसान को मजबूत बनाती हैं।” उनके शब्द समीर के लिए दुआ से कम नहीं थे। इंटर तक पहुंचते-पहुंचते समीर का आत्मविश्वास और बढ़ गया। एक दिन उसने मां से कहा, “मां, मैं वकील बनना चाहता हूं। मुझे लोगों की मदद करनी है, जैसे जया मैडम ने हमारी मदद की।”

कमला देवी ने बेटे की आंखों में चमक देखी और गर्व से बोलीं, “बेटा, मैं गरीब हूं, लेकिन तेरा सपना अधूरा नहीं रहने दूंगी। जितना कर सकती हूं करूंगी, बाकी भगवान और तेरी मेहनत तेरा साथ देंगे।” समीर ने कॉलेज में दाखिला लिया। अब उसकी जिंदगी और कठिन हो गई—दिन में कॉलेज, रात में ट्यूशन और कभी-कभी छोटे-मोटे काम। मगर उसके भीतर हौसले की आग जल रही थी। कॉलेज में उसकी गिनती सबसे होशियार छात्रों में होने लगी। बहस प्रतियोगिताएं, मूटकोर्ट—हर जगह उसका नाम चमकने लगा।

फिर वह दिन आया जब समीर ने लॉ की पढ़ाई पूरी की और पहली बार वकील का काला कोट पहना। आईने के सामने खड़े होकर उसने खुद को देखा, उसकी आंखों में आंसू थे। “मैडम, आज आपका त्याग सफल हुआ है।” वकील बनने के बाद समीर की जिंदगी बदलने लगी। शुरुआती कुछ साल कठिनाई से गुजरे, लेकिन उसकी मेहनत ने उसे जाना-माना वकील बना दिया। कोर्ट में उसके तर्क इतने सटीक होते कि जज भी उसकी दलीलों की सराहना करते। लोग दूर-दूर से उसके पास केस लेकर आने लगे। घर की हालत भी अब ठीक हो गई थी। उन्होंने एक छोटा पक्का मकान बना लिया था।

कुछ साल बाद समीर की शादी सीमा से हुई, जो स्वभाव से सरल और समझदार थी। उसने घर संभाला, कमला देवी की सेवा को अपना कर्तव्य मान लिया। धीरे-धीरे घर में खुशियां लौट आईं। समीर और सीमा के यहां एक बेटे का जन्म हुआ। कमला देवी उसे गोद में लेकर घंटों खेलतीं और भगवान को धन्यवाद देतीं।

लेकिन इस सबके बीच कहीं जया मैडम का नाम पीछे छूटता जा रहा था। एक शाम जब समीर ऑफिस से लौटा, उसने मां को आंगन में अकेले बैठे देखा। उनकी आंखों में हल्की नमी थी। समीर ने पूछा, “मां, क्या बात है?” कमला देवी ने कहा, “बेटा, तुझे याद है जब तेरा नाम स्कूल से काटने वाला था, तब जया मैडम ने अपने गहने गिरवी रखकर तेरे लिए खड़ी हुई थीं। उनकी वजह से तू आज इस मुकाम पर है। मेरी आखिरी इच्छा है कि तू एक बार अपनी जया मैडम से मिल ले।”

समीर की आंखें भर आईं। उसने मां से वादा किया कि वह जया मैडम को ढूंढेगा। लेकिन यह आसान नहीं था। स्कूल बंद हो चुका था, पुराने रिकॉर्ड धूल में दबे थे। फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। वह स्कूल पहुंचा, वहां के चौकीदार से पूछा, रिकॉर्ड रूम में पुरानी फाइलें खंगालीं। घंटों तलाशने के बाद उसे एक फाइल मिली जिसमें जया मैडम का नया पता था। वह वहां पहुंचा, दरवाजा खटखटाया। एक दुबली-पतली महिला ने दरवाजा खोला—बाल सफेद, हाथ में लकड़ी का सहारा। समीर ने एक नजर देखा और पहचान गया। वह उनकी जया मैडम थीं।

समीर उनके पैर छूने झुक गया। जया मैडम चौंक गईं, “बेटा, तुम कौन हो?” समीर की आंखों से आंसू बह रहे थे। “मैडम, मैं वही समीर हूं, आपका छात्र।” जया मैडम ने गौर से देखा, उनकी आंखें भर आईं। “अरे, तू वही समीर है! भगवान, आज मेरी तपस्या पूरी हुई।” उन्होंने उसे गले लगा लिया। समीर ने घर के भीतर कदम रखा, घर टूटा-फूटा था, फर्श उखड़ चुका था। उसने पूछा, “मैडम, आप यहां अकेली क्यों?” जया मैडम ने बताया, पति के गुजर जाने के बाद देवरों ने सारी जमीन पर कब्जा कर लिया, पुलिस तक गई लेकिन पैसे वालों ने सबको खरीद लिया। अब मैं अकेली यहीं रह रही हूं।

समीर ने उनका हाथ पकड़ते हुए कहा, “मैडम, अब आपको और तकलीफ नहीं झेलनी पड़ेगी। अब आपका बेटा वकील है, मैं आपका केस लड़ूंगा और आपकी जमीन आपको वापस दिलाऊंगा।” कुछ महीनों की कड़ी मेहनत के बाद समीर ने कोर्ट में वह केस जीत लिया। जया मैडम की जमीन और हक वापस मिल गए। सबसे बड़ी जीत यह थी कि वह अकेली नहीं रहीं। समीर उन्हें अपने घर ले आया। मां कमला देवी ने बहन की तरह उन्हें गले लगाया। सीमा ने उनका ख्याल अपनी मां की तरह रखना शुरू किया और समीर के बच्चे उन्हें नानी कहने लगे। अब जया मैडम फिर से हंसने लगीं। वह अक्सर समीर से कहतीं, “बेटा, मैंने तुम्हें बचपन में पढ़ाया था, लेकिन असली सबक तो तुमने मुझे दिया कि अच्छे कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते।”

यह कहानी हमें यही सिखाती है कि एक शिक्षक का त्याग, एक माँ का संघर्ष और एक सच्चे शिष्य की कृतज्ञता मिलकर जिंदगी को नया अर्थ दे सकते हैं। अगर हम अपने जीवन में किसी के उपकार को याद रखें और सही समय पर उसका कर्ज चुकाएं तो समाज और भी सुंदर हो सकता है।

जय हिंद, जय भारत।