कर्म की सजा: एक बहू की सीख

दोस्तों, कहते हैं ना, वक्त कभी भी पलट सकता है। आज जो आपको छोटा समझते हैं, कल वही आपके सामने झुक सकते हैं। लेकिन सोचिए, अगर वही वक्त आपके साथ खेल जाए और आपको उसी दर्द, उसी उपेक्षा में धकेल दे, जिसे आपने कभी किसी और के लिए महसूस ही नहीं किया था? यही कहानी है दिव्या की—एक ऐसी बहू, जिसने अपनी सास के दर्द और मजबूरी का मजाक उड़ाया, उसे झूठा और नाटक समझा। लेकिन वक्त ने ऐसा पलटा मारा कि दिव्या को भी वही तिरस्कार खुद सहना पड़ा।

अभिषेक का प्यार और दिव्या की जलन

अभिषेक अपने ऑफिस से घर लौटता है और माँ—सुमित्रा जी—के लिए दवाइयां और मरहम लाता है। प्यार से कहता है: “माँ, आपकी दवाइयां लाया हूँ।” माँ स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरती हैं। उनकी आंखों में गर्व है। दिव्या किचन से यह सब देखती है, उसके मन में कहीं जलन सी उठती है।

थोड़ी देर बाद, जब अभिषेक माँ के साथ बचपन की यादें साझा करता है, तो दिव्या ताना मारती है, “माँ के पास बैठने का समय तो है, अपनी पत्नी के लिए फुर्सत नहीं!” उसका गुस्सा छलक पड़ता है। अभिषेक नम्रता से जवाब देता है, लेकिन दिव्या को लगता है कि उसका पति हमेशा अपनी माँ की तरफदारी करता है।

सास की संघर्ष की कहानी

कहानी के अगले हिस्से में सुमित्रा जी अपने अतीत में खो जाती हैं। पति के अचानक निधन के बाद, उन्होंने अकेले दम पर दोनों बच्चों को पाला, गहने गिरवी रखकर टिफिन सेंटर खोला, दिन-रात मेहनत की, बच्चों को पढ़ाया-लिखाया, अच्छे संस्कार दिए।

बहू के आने से उम्मीद और हकीकत

जब दिव्या इस घर की बहू बनकर आई तो सास को उम्मीद थी—घर में अब बेटी जैसी बहू होगी। पर दिव्या अपनी प्राइवेसी चाहती थी, उसे सास-ससुर, ननद किसी में रुचि नहीं थी। वह केवल अपने पति को ही अपने करीब रखना चाहती थी।

धीरे-धीरे घर में उसका व्यवहार सासजी से कटुतापूर्ण हो गया। ताने, उपेक्षा, बीमारी का मजाक…सासजी को उम्मीद थी कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा, पर दिव्या ने उन्हें और चुभती बातें कहनी शुरू कर दी।

मिश्री सी मिठास अपने मायके के लिए

एक दिन दिव्या के मम्मी-पापा घर आते हैं। दिव्या बड़े प्रेम से खाने-पीने का ध्यान रखती है। उनकी पसंद के डिशेज बनाती है। सासजी खुशी और चुभन दोनों महसूस करती हैं। उन्हीं को याद आता है जब कुछ दिन पहले उनकी बेटी प्रीति मायके आई थी, तो दिव्या ने न ही प्रीति से बात की, न उसकी पसंद का खाना बनाया। ऐसे में सास का दिल दुख गया।

सास की बीमारी और बहू का स्वार्थ

शादी की तैयारी में व्यस्त दिव्या अपनी सास को नजरअंदाज करती है। जब सुमित्रा जी की तबीयत खराब होती है, दिव्या चिड़चिड़े ढंग से बातें करती है—”इतना भी नहीं हो सकता कि आप खुद पानी ले लें?”। अभिषेक माँ का ख्याल रखता है और चाहता है कि मां का साथ न छोड़े, मगर दिव्या मायके की शादी में पहले जाना चाहती है।

आखिरकार, अभिषेक मां को साथ लेकर दिव्या के मायके जाता है। रास्ते में सुमित्रा जी बार-बार वाशरूम जाने की मजबूरी जाहिर करती हैं, और दिव्या ताने मारती है—”इतनी बार रुकना पड़ा तो जाम लग गया, कार्यक्रम छूट गया।” मायके में भी वह बहस करती है: “माँ जी के कारण देर हो गई।”

कर्म का खेल मायके में

शादी के बाद दिव्या की माँ—शांति जी—बीमार पड़ जाती हैं, बार-बार वाशरूम जाना पड़ता है। पहले दिव्या, भाभी के साथ मिलकर माँ को सहारा देती है, पर तीसरी बार भाभी चिढ़ जाती है—”इतना पानी पीती ही क्यों हो, बार-बार जाना पड़ता है!” दिव्या को बुरा लगता है, पर भाभी झुंझला कर चल देती है।

फिर शांति जी खाने में पनीर मांगती हैं, लेकिन भाभी दलिया बना देती है, कहती है, “मेरा भी आराम जरूरी है।” दिव्या को अपनी सास के साथ किए गए हर व्यवहार—खिचड़ी बनाना, ताने मारना, बीमारी का मजाक—याद आने लगते हैं।

रात को जब वह भाई से शिकायत करती है, तो भाई कहता है—”माँ बिस्तर पकड़कर लेटी है, भाभी घर संभालती है, क्या सब आसान है?”

नया सबक, नई शुरुआत

तभी शांति जी दिव्या को थप्पड़ मारती हैं—”ये सब नाटक था तुम्हें सिखाने के लिए। जैसे तुमने अपनी सास का दर्द नहीं समझा, वैसे ही जब माँ की तकलीफ देखी, तो असली एहसास हुआ।” दिव्या फूट-फूटकर रोती है—”माँ, मैंने बहुत गलत किया…।”

शांति जी समझाती हैं—”सच्चा पश्चाताप कर्म से होता है।”

क्षमा और अपनापन

दूसरे दिन दिव्या अपने घर लौटती है, सीधे सास के पैरों पर गिर जाती है—”माँ जी, मुझे माफ़ कर दीजिए।” सुमित्रा जी उसे गले लगाती हैं—”माँ अपने बच्चों से कब तक नाराज़ रह सकती है?”

अब जब अभिषेक माँ के घुटनों की मालिश करता है, दिव्या बोलती है, “अब सेवा मैं करूंगी।” सास-बहू का रिश्ता बेटी-माँ जैसा हो जाता है।

निष्कर्ष

यह कहानी कर्म के चक्र की है। जो जैसा करता है, लौटकर वही पाता है। अगर आप माँ-बाप, सास-ससुर, बुजुर्गों का दर्द नहीं समझेंगे, एक दिन वही दर्द आपके सामने आएगा। समय रहते अपने व्यवहार में सकारात्मक बदलाव लाएं—यही संदेश है इस कहानी का।

क्या शांति जी ने दिव्या को सही सबक दिया? क्या दिव्या सच में बदल गई? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं। अगर कहानी ने आपके दिल को छुआ, तो लाइक/शेयर करें—शायद किसी और के व्यवहार में भी बदलाव आ जाए।