❤️ शीर्षक: “प्यार जो रगों में बह गया” – इंसानियत की सबसे खूबसूरत कहानी

कहते हैं कभी-कभी किसी की रगों में बहने वाला खून किसी और की जिंदगी बन जाता है। एक लड़का जो घर से भाग गया था। सबको लगा उसने जिंदगी से हार मान ली। लेकिन किसी को क्या पता था। वही लड़का किसी अजनबी की सांसों की वजह बन जाएगा। दोस्तों पूरी कहानी जानने के लिए इस वीडियो को आखिर तक जरूर देखें। लेकिन पहले इस वीडियो को लाइक करें। चैनल को सब्सक्राइब करें और कमेंट में अपना और अपने शहर का नाम जरूर लिखें। बिहार के मधुबनी जिले का छोटा सा गांव बिरॉल सुबह की हवा में धान की महक थी और मिट्टी से उठती भाप जैसे आसमान को छूने की कोशिश कर रही थी। पर उस दिन उस घर में ना धान की खुशबू थी ना रोटी की सौंधी महक बस सन्नाटा था। टूटी हुई चूड़ियों की खनक और मां की रुलाई। आरव मिश्रा 18 साल का लड़का गांव का सबसे होनहार छात्र माना जाता था। हर कोई कहता इंजीनियर बनेगा यह लड़का। पर जब परीक्षा के नतीजे आए आरव फेल था। वो दिन उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा अंधेरा बन गया। गांव के लड़के हंसते हुए बोले अरे मिश्रा जी का बेटा भी गिर गया। शर्म अपमान और डर के बीच वह रात भर घर के पीछे वाले रास्ते से निकल गया। जेब में ₹200 एक पुरानी डायरी और मां की तस्वीर। दिल में एक ही सोच अब घर मुंह दिखाने लायक नहीं रहा। तीन दिन तक दिल्ली की सड़कों पर भटकता रहा। कभी स्टेशन पर पानी बेचता कभी ढाबे में थाली धोता। भूख से बेहोश होकर एक दिन वो फुटपाथ पर गिर पड़ा। और तभी किसी ने उसके कंधे को छुआ। अरे बेटा जिंदा है ना? आवाज थी राजेश कपूर की। 50 साल का एक दयालु होटल मालिक। वो बोले नाम क्या है? आरव ने हकलाते हुए कहा आरव बिहार से। राजेश मुस्कुराए आओ मेरे साथ खाना खाओ फिर बात करेंगे। राजेश उसे अपने फार्म हाउस ले गए। दिल्ली के बाहरी इलाके में हरे पेड़ों और शांत सड़कों के बीच वहां का सन्नाटा गांव की मिट्टी जैसा था। एक छोटा सा तालाब चारों ओर अमलताज के पेड़ और बीचोंबीच सफेद बंगला। गाड़ी रुकी तो दरवाजे से एक महिला दौड़ती हुई आई। राजेश जल्दी चलो आर्या की सांस फिर तेज हो गई है। वो थी राजेश की पत्नी सविता कपूर। आरव कुछ समझ नहीं पाया बस उनके पीछे कमरे में गया। बिस्तर पर लेटी थी एक लड़की गोरी नाजुक चेहरे पर दर्द जैसे उतर आया हो। ऑक्सीजन मास्क से सांस लेती हुई और आंखों में बुझती हुई उम्मीद। डॉक्टर ने कहा है इसे बार-बार खून चढ़ाना पड़ेगा। सविता रोते हुए बोली इसकी नसें अब नई जिंदगी मांग रही हैं। आरव को उस पल कुछ समझ नहीं आया। बस उस लड़की की आंखों में देखा। वह शांत थी पर उसकी आंखों में सवाल था क्या मैं सच में बच पाऊंगी? राजेश ने आरव की ओर देखा तुम यहीं रहो बेटे थोड़ा हाथ बटाओ फार्म हाउस देखो और आर्या का मन बहलाओ। कभी-कभी किसी अजनबी की मौजूदगी भी दवा बन जाती है। आरव ने सिर हिला दिया। वो खुद टूटा हुआ था पर शायद पहली बार किसी और के दर्द से जुड़ने वाला था। दिन गुजरते गए। आरव सुबह उसकी खिड़की खोल देता सूरज निकल आया है आर्या अब तुम मुस्कुराओ। वो आधी मुस्कान देती। तुम्हारी बातों में जादू है दर्द कुछ देर के लिए गायब हो जाता है। धीरे-धीरे उनके बीच अजीब सी आत्मीयता बनने लगी। वो अब चाय साथ पीते बगीचे में बात करते और आरव उसके सपने सुनता। मुझे ठीक होकर फिर से पेंटिंग करनी है आसमान के रंगों में उम्मीद ढूंढनी है। आरव उसे सुनता और सोचता जिसे मौत छूने आई है वो जिंदगी के रंगों की बात कर रही है। एक रात आरव रसोई के कोने में खड़ा था जब उसने डॉक्टर को कहते सुना अब अगर नियमित ब्लड डोनर नहीं मिला तो मुश्किल होगी। हर तीन दिन उसे दो यूनिट खून चाहिए। उसने धीरे से अपनी बाह पर नजर डाली। उसके ब्लड ग्रुप जैसा था। उसने बिना कुछ कहे अगले दिन अस्पताल जाकर खून दिया। डॉक्टर ने नाम पूछा बस लिख दीजिए एक दोस्त। तीन दिन बाद आर्या थोड़ी ठीक लगी। राजेश ने खुश होकर कहा भगवान ने सुन ली। आरव बस मुस्कुरा दिया। किसी को कुछ बताया नहीं। हर तीन दिन वह अस्पताल जाता खून देता लौट कर वही हंसी लाता। उसके चेहरे पर थकान थी पर दिल में सुकून था। कभी-कभी आईने में खुद को देखता आंखें लाल होंठ सूखे पर मुस्कान वही। शायद जिंदगी मेरी रगों से निकलकर किसी और में बहने लगी है। सुबह की धूप फार्म हाउस के हरे पेड़ों के बीच सुनहरी परतें बिछा रही थी। आरव बाल्टी में पानी भरकर बगीचे के पौधों को सींच रहा था। लेकिन उसके हाथ कांप रहे थे सांस थोड़ी भारी थी फिर भी चेहरे पर वही मुस्कान वही जो अब आर्या की हिम्मत बन चुकी थी। आर्या खिड़की से देख रही थी उसकी आंखों में सवाल था यह लड़का इतना शांत कैसे रह सकता है? वो सोचती रही हर दिन वही रूटीन वही मेहनत वही थकान लेकिन शिकायत एक बार भी नहीं। उस शाम जब वह बगीचे में आई आरव ने उसका व्हीलचेयर धीरे-धीरे आगे बढ़ाया। आर्या बोली तुम्हारे चेहरे पर थकान दिख रही है। आरव मुस्कुराया थोड़ी बहुत थकान तो सबके हिस्से में होती है पर जो किसी और के काम आए वो थकान बुरी नहीं लगती। आर्या ने उसे देखा गहरी लंबी नजरों से। कुछ पल दोनों के बीच सिर्फ हवा थी और हवा में हल्की छुपी। दिन बीतते गए। आरव अब हर दिन ब्लड डोनेट करता। कभी-कभी कमजोरी के कारण उसकी उंगलियां नीली पड़ जाती पर वह किसी को बताता नहीं। बस डॉक्टर से कहता ना मत लिखिए बस फ्रेंड लिख दीजिए। राजेश और सविता को लगा जैसे कोई अनजान फरिश्ता हर बार उनकी बेटी के लिए खून भेज देता है। वे सोचते कौन है वो लेकिन उस फरिश्ते का चेहरा वही था जो सुबह सबसे पहले आर्या के कमरे की खिड़की खोलता था। एक रात जब आरव अस्पताल से लौटा सविता ने उसे दरवाजे पर देखा उसकी बाह पर सफेद पट्टी बंधी थी। वो बोली क्या हुआ तुम्हें? आरव थोड़ा झिझका। कुछ नहीं मैम बस मच्छर काट गया। सविता हंस पड़ी इतना बड़ा मच्छर फिर भी वह चुप हो गया और अंदर चला गया। लेकिन मां का दिल मां होता है। अगले दिन वह डॉक्टर से मिलने गई और जब डॉक्टर ने सच्चाई बताई वह वही कुर्सी पर बैठी रह गई। मैडम आपकी बेटी के लिए जो लड़का पिछले तीन महीने से लगातार खून दे रहा है वो वही है जो आपके यहां काम करता है। आरव मिश्रा। सविता के होंठ कांप गए आंखें भर आई। उन्होंने पूछा हर तीन दिन डॉक्टर बोला हां और बिना किसी स्वार्थ के। हम हैरान थे कि कौन है वो आज तक किसी ने ऐसा नहीं किया। सविता घर लौटी और बरामदे में बैठे आरव को देखा वह धूप में बैठा कपड़े सुखा रहा था। उनके पैर अपने आप उसके पास चले गए। उन्होंने बस इतना कहा बेटा तुझे दर्द नहीं होता। आरव ने सिर उठाया और मुस्कुराया जब दर्द किसी और की सांस बन जाए तो वह दर्द नहीं ईश्वर का वरदान बन जाता है। सविता वही बैठ गई उनकी आंखों से आंसू टपकने लगे। वो बोली तू जानता है तूने क्या किया है। मेरी बेटी की रगों में अब तेरे खून की धड़कन बह रही है। आरव बस चुप रहा कंधे झुकाए बोला मैम बस इतना चाहता था कि वह ठीक हो जाए। मैं तो वैसे भी घर से चला आया था शायद भगवान ने मुझे यही भेजा था। उस रात जब सविता ने राजेश को सब बताया तो वो नि:शब्द रह गए। उन्होंने कहा मैं कल ही उससे बात करूंगा। सुबह उन्होंने आरव को बुलाया बेटा तू क्यों छुपाता रहा? आरव बोला साहब अगर बताता तो आप रोक देते और मैं उसे तकलीफ में नहीं देख सकता था। कभी-कभी बिना नाम के किए गए काम ज्यादा सुकून देते हैं। राजेश के गले से शब्द नहीं निकले बस उठकर उन्होंने आरव को गले लगा लिया। तू अब हमारे लिए सिर्फ नौकर नहीं घर का बेटा है। दोपहर को जब आर्या ने सच्चाई सुनी तो वो टूट गई। उसने यह सब मेरे लिए किया और मैं कुछ नहीं जानती थी। उसने आईने में खुद को देखा चेहरा पहले से गुलाबी था पर अब उस रंग में लाज और पश्चाताप दोनों मिल गए थे। उस शाम उसने आरव से कहा कभी सोचा नहीं था कि कोई मेरी सांसों के लिए अपनी रगें खाली कर सकता है। आरव हंसा आपकी सांसें चलती हैं तो लगता है मैंने जिंदगी सही जगह खर्च की है। उसकी आंखों में पहली बार कुछ बदल गया। वो सिर्फ आभार नहीं था वो प्यार था। धीरे-धीरे अनकहा पर सच्चा वक्त जैसे थम गया था। आर्या अब पहले से बहुत बेहतर थी उसके चेहरे पर रंग लौट आया था मुस्कान भी लेकिन उसकी आंखों में अब एक अनकहा तूफान बसने लगा था। वो जान चुकी थी कि जिसकी वजह से वह जिंदा है वो खुद धीरे-धीरे मिटता जा रहा है। कभी वह किताब लेकर पढ़ती तो हर पन्ने में आरव की आवाज सुनाई देती पढ़ाई करो तभी तो सूरज तुम्हें सलाम करेगा। कभी बगीचे में जाती तो हवा में उसकी हंसी गूंजती। अब यह घर उसके बिना अधूरा लगता था। एक सुबह उसने देखा आरव दीवार का सहारा लेकर खड़ा है चेहरा पीला होठ सूखे हुए। वो दौड़कर पहुंची आरव तुम ठीक तो हो? आरव ने हंसने की कोशिश की बस थोड़ा चक्कर आया था अब ठीक हूं। वो झूठ बोल रहा था और आर्या की आंखों ने वह झूठ पहचान लिया। उसने डॉक्टर से बात की डॉक्टर ने कहा देखिए आरव बहुत कमजोर हो गया है लगातार ब्लड डोनेट करने से शरीर में आयरन और हीमोग्लोबिन की कमी हो गई है अब एक भी दान जानलेवा साबित हो सकता है। आर्या वही बैठी रह गई आंखों से आंसू बह निकले। उसने धीमी आवाज में कहा डॉक्टर वो ऐसा क्यों कर रहा है? डॉक्टर ने सिर्फ एक बात कही कभी-कभी कुछ लोग अपनी जिंदगी किसी और में देख लेते हैं। उस शाम आर्या ने पहली बार आरव से कहा अब और नहीं वादा करो अब और खून नहीं दोगे। आरव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा अब जरूरत भी नहीं पड़ेगी अब तो आप ठीक हो गई हैं। नहीं आर्या बोली मैं ठीक नहीं हूं जब तुम्हें तकलीफ होती है मुझे सांस नहीं आती। तुमने मुझे जिंदगी दी अब मैं नहीं चाहती वह जिंदगी तुम्हारे बिना अधूरी हो। आरव चौंक गया पहली बार किसी ने उससे ऐसा कहा था बिना दया बिना सहानुभूति सीधे दिल से। वो कुछ देर उसे देखता रहा वो आंखें जिनमें कभी दर्द था अब उनमें ममता डर और प्रेम सब कुछ था। आर्या उसने कहा मेरे पास देने को कुछ नहीं था बस यह खून था सो दे दिया मगर अगर तुम सच में मेरी जिंदगी में रहना चाहो तो अब इसे खुशियों से भर दो। आर्या रो पड़ी उसने उसका हाथ पकड़ लिया मैं वादा करती हूं अब तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगी। समय बीता और उनका रिश्ता अब सबकी समझ से परे था। राजेश और सविता उन्हें देखकर चुपचाप मुस्कुरा देते। शब्द नहीं कहते पर उनके मन में एहसान और सम्मान दोनों थे। कभी-कभी राजेश कहते इस लड़के ने हमें भगवान से भी बड़ा उपहार दिया है। हमारी बेटी आरव की तबीयत अब भी उतनी मजबूत नहीं थी पर उसके चेहरे की चमक लौट आई थी। कभी वह मजाक में कहता अब आपकी बेटी का दिल मेरे खून से धड़कता है तो अब मैं तो उसकी आधी जिंदगी का मालिक हूं। सविता हंस देती बेटा अब वह तुम्हारी पूरी जिंदगी की वजह है पर वक्त कभी पूरी तरह किसी का नहीं होता। एक दिन अचानक आरव को तेज बुखार हुआ और वो बेहोश होकर गिर पड़ा। डॉक्टर ने कहा शरीर बहुत कमजोर है इम्यून सिस्टम गिर चुका है। आर्या ने उसका हाथ थाम लिया तुम्हें कुछ नहीं होगा सुन रहे हो ना? तुमने मुझे बचाया अब मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी। आरव ने आंखें खोली अगर कभी मैं चला भी जाऊं तो याद रखना मेरा खून तुम्हारे अंदर बहता रहेगा। उसकी आवाज धीमी थी पर हर शब्द जैसे आर्या के दिल पर अंकित हो गया। वो रात बहुत लंबी थी। आर्या उसकी बिस्तर के पास बैठी रही हाथ पकड़े हुए। सुबह की पहली किरण खिड़की से अंदर आई। आरव की सांसे हल्की थी पर मुस्कान अब भी थी। उसने फुसफुसाकर कहा अब मैं जीना सीख गया हूं तुम्हें देखकर और धीरे-धीरे आंखें बंद कर ली। आर्या ने उसका चेहरा छूते हुए कहा तुमने जो दिया वो सिर्फ खून नहीं था वो जिंदगी का अर्थ था। बरसात की हल्की फुहारे गिर रही थी दिल्ली का आसमान धूसर था पर आर्या के मन में और भी गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था। आरव अस्पताल के कमरे में लेटा था नींद हसी पर जागते हुए भी दूर। डॉक्टरों ने कहा उसका शरीर बहुत थक चुका है लेकिन दिल अब भी मजबूत है। राजेश और सविता बाहर बैठे थे उनके चेहरे पर वही सवाल किसकी प्रार्थना ज्यादा सुनी जाएगी? और उसी वक्त आर्या ने निर्णय लिया अब यह कहानी अधूरी नहीं रहेगी। तीन दिन बाद जब आरव को थोड़ी ताकत मिली आर्या उसके पास आई कमरे में हल्की धूप थी और हवा में दवाइयों की गंध। आर्या ने उसका हाथ थामा अब मैं तुम्हें वहां ले चलूंगी जहां से तुम आए थे तुम्हारे गांव तेरे मां-बाप को यह जानने का हक है कि उन्होंने कैसा बेटा जन्म दिया है। आरव ने धीमी मुस्कान दी अगर मां ने यह सुना तो शायद रो पड़ेंगी। आर्या बोली तो रोने दो आज किसी मां को अपने बेटे पर रोने का भी गर्व महसूस होगा। दो दिन बाद वे लोग ट्रेन से मधुबनी के बिरौल पहुंचे। गांव की हवा अब भी वैसी ही थी। कच्चे रास्ते मिट्टी की खुशबू और दूर कहीं चौपाल पर बजती ढोलक। लेकिन जैसे ही गाड़ी गांव में रुकी लोगों की भीड़ लग गई। अरे यह तो आरव है सुनो सुनो वही लड़का जो खून बेचने गया था। फुसफुसाहटें तीर बनकर हवा में चलीं। आर्या सब सुन रही थी पर उसने सिर झुका लिया। घर पहुंचे तो सरिता देवी दरवाजे पर खड़ी थी सूखी आंखें कांपते होंठ। जैसे ही उन्होंने बेटे को देखा दौड़ पड़ी उसे सीने से लगा लिया। बेटा कहां चला गया था तू? आरव बस यही कह सका मां मैंने किसी को जिंदगी दी। सरिता कुछ समझ नहीं पाई पर उनकी आंखों में डर उतर आया। किसे दी और किसकी जरूरत थी तेरे खून की? आर्या ने धीरे से कहा मांजी वो मैं थी। सबकी नजरें उसकी ओर मुड़ गईं। वो आगे बढ़ी हाथ जोड़कर बोली आपके बेटे ने मुझे जिंदगी दी है। वो अपने खून से मेरी रगों में सांसें भरता रहा हर तीन दिन बिना बताए। आंगन में सन्नाटा छा गया। गांव के लोग अब भी चुप खड़े थे। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि खून बेचने वाला लड़का दरअसल जिंदगी बांटने वाला था। सरिता देवी की आंखों से आंसू झरने लगे। उन्होंने कहा बेटा तूने तो भगवान को मात दे दी। फिर आर्या के कंधे पर हाथ रखा बिटिया अगर तू ना होती तो यह सच किसी को पता ही नहीं चलता। तूने आज हमारे बेटे को लौटाया है। आर्या की आंखों में नमी थी लेकिन होंठों पर दृढ़ता। मांजी मैंने सिर्फ सच कहा है। और एक बात और जिसने मेरे लिए इतना किया उसके बिना मैं अधूरी हूं। मैं आरव से शादी करना चाहती हूं। चारों ओर सन्नाटा छा गया। कुछ क्षणों तक सिर्फ हवा की सरसराहट सुनाई दी। फिर किसी ने पीछे से कहा अरे यह लड़की तो अमीर है और यह लड़का तो गांव का गरीब नौजवान है। दूसरा बोला रिश्ता कहां निभ पाएगा? सरिता देवी ने सबकी ओर देखा रिश्ते पैसे से नहीं खून और प्यार से बनते हैं। अगर मेरा बेटा किसी की जान दे सकता है तो क्या उस लड़की का दिल उसका नहीं हो सकता? राजेश कपूर आगे बढ़े मैं भी यही कहने आया हूं। हम आरव को बेटा मानते हैं अब अगर हमारी बेटी ने उसे अपना जीवन साथी चुना है तो भगवान की यही मर्जी होगी। उस शाम गांव के मंदिर की घंटियां देर तक बजती रहीं। हल्की बारिश फिर शुरू हो गई। मिट्टी में मिली बूंदों की खुशबू और आर्या के आंसुओं में कोई फर्क नहीं था। आरव ने आर्या का हाथ थामा मैंने कभी सोचा नहीं था कि मेरा दिया हुआ खून एक दिन मेरा ही दिल बन जाएगा। आर्या ने धीरे से कहा तुमने मुझे जिंदगी दी और मैंने तुम्हें उसका अर्थ अब हम दोनों अधूरे नहीं। गांव के बीच में छोटी सी शादी हुई ना कोई तामझाम ना शोहरत बस मिट्टी के दिए मां के आंसू और पूरे गांव का सन्नाटा जो आशीर्वाद बन गया। जब सात फेरे खत्म हुए तो सरिता देवी ने आसमान की ओर देखा और कहा भगवान अब मेरे बेटे की जिंदगी किसी और की नहीं