🌟 दिवाली की रात – खोई हुई मुस्कान की वापसी
दोस्तों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूं,
वो सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसी सच्चाई है
जो हर उस माता-पिता के दिल को झकझोर देगी
जिसने कभी अपने बच्चे को खोया हो — या खोने का डर महसूस किया हो।
यह कहानी है अमित वर्मा और प्रिया वर्मा की,
एक ऐसे दंपति की जिनकी ज़िंदगी में सब कुछ था —
दौलत, शोहरत, सम्मान, पर खुशियों का सबसे बड़ा कारण उनसे छिन गया था:
उनकी आठ साल की बेटी मुस्कान।
मुस्कान — एक फरिश्ता
मुस्कान नाम ही उसके स्वभाव जैसा था।
वो जिस भी कोने में जाती, वहाँ रोशनी फैल जाती।
उसकी खिलखिलाहट से पूरा घर गूंज उठता,
उसके छोटे-छोटे कदमों की आहट जैसे किसी मंदिर की घंटी सी लगती।
अमित के लिए वो राजकुमारी थी,
और प्रिया के लिए सांसों की वजह।
घर में हर दिन त्योहार जैसा माहौल रहता।
मुस्कान स्कूल से लौटती तो पापा दरवाजे पर खड़े मिलते,
वो दौड़कर उनकी गोद में आती और पूरा घर हंसी से भर जाता।
प्रिया उसकी चोटी बनाती, रिबन बांधती,
और मुस्कान शीशे में खुद को देख हंस पड़ती —
“मम्मी, मैं प्रिंसेस लग रही ना?”
दिवाली की वो शाम
दिवाली आने ही वाली थी।
अमित बाजार जाने लगा तो पीछे से मुस्कान भागती आई —
“पापा, मुझे भी साथ ले चलो ना!”
अमित मुस्कुराया, “बेटा, वहां बहुत भीड़ है, पटाखे चल रहे हैं,
तुम्हें चोट लग सकती है।”
मगर भला आठ साल की बच्ची कहाँ मानने वाली थी।
उसकी आंखों में आंसू देख प्रिया बोली,
“अरे अमित, ले जाओ ना अपनी गुड़िया को,
क्या फर्क पड़ता है?”
अमित ने बेटी को गोद में उठाया और कहा,
“ठीक है राजकुमारी, पर शरारत नहीं करना।”
मुस्कान खुशी से उछल पड़ी,
“यिप्पी! मैं पापा के साथ बाजार जा रही हूं!”
मासूम खुशी, बेरहम किस्मत
बाजार दीपों से जगमगा रहा था।
मुस्कान एक-एक दुकान देखकर खुश हो रही थी —
“पापा, वो घूमने वाला चकरी पटाखा चाहिए… और वो रंगीन वाला भी!”
अमित हंसते हुए दुकानदार से बोला,
“भाई साहब, जो मेरी बेटी चाहे, सब दे दो।”
उन्होंने पटाखे, मिठाइयां, सजावट — सब खरीदा।
मुस्कान बोली, “अब रसगुल्ले लेंगे ना पापा?”
अमित ने मुस्कुराते हुए कहा, “ज़रूर बेटा।”
मिठाई की दुकान पर खड़े दोनों के चेहरे पर खुशी झलक रही थी।
लेकिन दोस्तों, कभी-कभी वक्त की चाल सबसे खूबसूरत लम्हों को
एक झटके में खामोशी में बदल देती है।
पास ही एक लड़का फूलझड़ी जला रहा था।
उसकी जलती चिंगारी उछलकर पटाखों की दुकान पर गिरी।
पल भर में धुआं, फिर धमाका!
पूरा बाजार आग की लपटों में घिर गया।
लोग भागने लगे, चीखें, अफरातफरी…
अमित की सांसें थम गईं — “मुस्कान! बेटा, कहां हो?”
वो हर दिशा में दौड़ता रहा।
“लाल रिबन वाली, आठ साल की बच्ची… किसी ने देखी?”
पर हर कोई अपनी जान बचाने में भाग रहा था।
धुएं में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
आंखों में जलन, सीने में धुआं —
फिर भी अमित नहीं रुका।
जब आग बुझाई गई,
कई घायल अस्पताल भेजे गए।
और एक छोटी बच्ची का जला हुआ शव मिला।
पहचान मुश्किल थी, पर उम्र, कपड़े और सामान देखकर
पुलिस ने वही “मुस्कान” बताई।
अमित की दुनिया उजड़ गई।
प्रिया ने जब सुना, वो बेहोश हो गई।
घर का हर कोना सन्नाटा बन गया।
सात साल की चुप्पी
समय बीतता गया — पर घाव गहरा होता गया।
हर दिवाली पर जब लोग दिए जलाते,
अमित के घर के दीये बुझा दिए जाते।
दीवारों पर अब रोशनी नहीं, सिर्फ तस्वीरें थीं —
मुस्कान की हंसती हुई, मासूम तस्वीरें।
प्रिया अक्सर कहती,
“अगर मुस्कान होती, तो आज घर कितना सुंदर लगता।”
अमित बस चुप रह जाता।
हर दीपक की लौ में उसे अपनी बेटी का चेहरा दिखाई देता।
सात साल बीत गए।
दर्द पुराना हुआ, पर मिटा नहीं।
इस दिवाली उन्होंने ठान लिया कि अब उदासी नहीं —
मुस्कान की याद में घर सजाएंगे।
अमित ने कहा, “शायद वो ऊपर से यही चाहती होगी
कि हम फिर से मुस्कुराएं।”
किस्मत का मोड़
अमित बाजार गया दीपक खरीदने।
वहां एक बूढ़ा आदमी जमीन पर बैठे मिट्टी के दिए बेच रहा था।
अमित ने कहा, “भाई साहब, मुझे 500 दिए चाहिए।”
बूढ़ा मुस्कुराया और पीछे मुड़कर बोला,
“बिटिया, जरा और दिए ले आओ।”
कुछ ही पल बाद एक 16-17 साल की लड़की आई —
धूल से सनी, पर आंखों में अजीब चमक थी।
उसने दिए गिनने शुरू किए…
और जैसे ही उसकी नजर अमित पर पड़ी —
उसकी उंगलियां थम गईं।
वो एक पल को ठिठक गई, आंखें फैल गईं,
और फिर कांपते होंठों से बोली —
“पापा…”
अमित सन्न रह गया।
वो चौंक कर बोला, “क्या कहा तुमने?”
लड़की की आंखों से आंसू बह निकले —
“पापा, मैं मुस्कान हूं… आपकी बेटी…”
भीड़ ठहर गई।
अमित के कदम डगमगा गए।
“क्या पागलपन है ये?” उसने कहा,
“मेरी बेटी सात साल पहले मर चुकी है।”
लड़की बोली, “नहीं पापा, मैं नहीं मरी थी।
आपने मुझे पांचवीं सालगिरह पर जो दिल के आकार का लॉकेट दिया था,
वो देखिए…”
उसने कांपते हाथों से अपनी गर्दन से लॉकेट निकाला।
अमित के हाथ कांप गए।
वो वही लॉकेट था — “माय लिटिल एंजेल” लिखा हुआ,
जो उसने मुस्कान को दिया था।
अमित की सांसें थम गईं।
“ये… ये तुम्हारे पास कहां से आया?”
लड़की फूट-फूट कर रो पड़ी —
“पापा, उस दिन बाजार में जब ब्लास्ट हुआ,
एक आदमी ने मुझे अपनी बेटी समझकर उठा लिया था।
उसकी बेटी उस हादसे में मारी गई थी।
और मैं… मैं उसके साथ चली गई।”
पास खड़ा बूढ़ा आदमी आंखें झुकाकर बोला,
“साहब, सच यही है।
मैंने गलती से इसे अपनी बेटी समझा।
जब सच्चाई समझी, तब तक सब खत्म हो चुका था।
आपकी बेटी बची रही, पर मेरी बेटी मर गई।
मैंने इसे अपना लिया… डर के मारे कभी सच्चाई नहीं बताई।”
अमित के अंदर आग सुलग उठी।
“तुमने मुझे सात साल मेरी बेटी से दूर रखा!?”
उसने गुस्से में थप्पड़ मार दिया।
आदमी हाथ जोड़कर रोने लगा —
“साहब, माफ कर दीजिए, मैंने गलती की।”
तभी मुस्कान बोली,
“पापा, यह झूठ नहीं बोल रहा कि उसने मुझे रखा,
पर इसने मुझे कैद में रखा,
डराया, धमकाया… कहता था अगर भागी तो मार दूंगा।”
अमित का खून खौल उठा।
उसने तुरंत पुलिस को फोन किया।
थोड़ी देर में पुलिस पहुंची,
भीड़ जमा हो गई।
लोग सन्न थे।
अमित ने पूरी कहानी बताई।
लॉकेट, यादें, बातें — सब सामने रखे गए।
लड़की की उम्र, निशान, दांतों का रिकॉर्ड —
सब मेल खा गया।
वो सच में मुस्कान ही थी।
इंसाफ़ और नया सवेरा
पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया।
मुस्कान को अस्पताल भेजा गया।
डॉक्टरों ने बताया कि वो कुपोषण, डर और मानसिक तनाव से जूझ रही थी,
पर अब सुरक्षित थी।
अमित और प्रिया दोनों अस्पताल पहुंचे।
जैसे ही मुस्कान ने उन्हें देखा,
वो दोनों की बाहों में समा गई।
प्रिया की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।
सात साल की पीड़ा उस एक पल में पिघल गई।
अमित ने बेटी का माथा चूमा और कहा,
“अब कोई हमें अलग नहीं कर सकता।”
दिन बीतने लगे।
मुस्कान धीरे-धीरे सामान्य होने लगी।
अमित और प्रिया ने उसे पढ़ाई में वापस लगाया,
उसकी हंसी लौट आई,
और उनके घर में फिर से रौनक भर गई।
अब दिवाली फिर से आने लगी थी —
पर इस बार दीपक सिर्फ घर में नहीं,
दिलों में भी जल रहे थे।
अमित ने वही बूढ़ा दिया बेचने वाला ढूंढ निकाला,
और इस बार मुस्कान के साथ जाकर उससे दिए खरीदे।
मुस्कान बोली,
“पापा, इस बार मैं खुद दीये जलाऊंगी।”
अमित मुस्कुराया —
“हाँ बेटा, अब ये रोशनी कभी बुझने नहीं दूँगा।”
अंत
दोस्तों, ज़िंदगी कभी-कभी हमें सबसे अंधेरी रात में
वो चमत्कार दिखा देती है जो हमें फिर से जीना सिखा देती है।
अमित और प्रिया के लिए दिवाली अब सिर्फ रोशनी का त्योहार नहीं,
बल्कि प्यार, उम्मीद और पुनर्जन्म का प्रतीक बन चुकी थी।
मुस्कान लौट आई थी —
और उसके साथ लौटी थी एक टूटी हुई ज़िंदगी की रोशनी।
अगर ये कहानी आपके दिल को छू गई हो,
तो इसे सिर्फ सुनिए नहीं —
महसूस कीजिए।
क्योंकि हर अंधेरे के बाद एक रोशनी ज़रूर आती है…
बस हमें उम्मीद नहीं खोनी चाहिए।
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