🌹 मां — एक अधूरी पुकार की पूर्णता 

सर्दी की वह सुबह जब सूरज बादलों में कहीं खो गया था। हवा में एक चुभन थी जो हड्डियों तक उतर जाती। मंदिर की सीढ़ियों पर एक छोटा बच्चा नंगे पांव बैठा था। उम्र मुश्किल से आठ साल, बदन पर फटा-पुराना स्वेटर, और आँखों में वह गहराई जो भूख से नहीं, अकेलेपन से पैदा होती है।

उसके होंठ सूखे, हाथों पर धूल, और नजरें भगवान की मूर्ति पर टिकी थीं।

“भगवान, बस एक बार… मेरी मां को लौटा दो,”
उसने कांपती आवाज़ में कहा।
हर दिन, हर सुबह, वह यही प्रार्थना दोहराता।

लोग आते, पूजा करते, प्रसाद चढ़ाते — और आगे बढ़ जाते। कोई उसकी ओर देखता भी नहीं। पर वह हर आने-जाने वाले में अपनी मां का चेहरा ढूंढता रहा।

कभी वह मंदिर की घंटियाँ बजने पर मुस्कुरा देता, कभी आँखें बंद कर बैठ जाता।
रातें उसके लिए ठंडी और लंबी थीं। पत्थर की सीढ़ियों पर लिपटी ठंड जैसे उसकी आत्मा में उतर गई हो। पर फिर भी, हर सुबह उसकी हथेलियाँ जुड़ जातीं — “भगवान, बस मां दे दो।”

🌙 मंदिर का सन्नाटा और एक स्त्री की पुकार

शहर की दूसरी ओर, एक हवेली में रात भर दीपक जलता रहता। सफेद साड़ी पहने एक औरत खिड़की के पास बैठी रहती। उसके बालों में अब सफेदी झलकने लगी थी, पर आँखों में अब भी किसी की तलाश थी।
बारह साल बीत चुके थे जब उसने अपने बेटे को मेले में खो दिया था। तब से वह हर मंदिर, हर दरगाह, हर देवालय गई — बस एक ही मांग के साथ:
“मेरा बच्चा लौटा दो, भगवान।”

वह शहर की अमीर औरतों में गिनी जाती थी — मीरा देवी। कारोबार, बंगला, नौकर, सब था, पर उसके भीतर एक खाली कमरा था जहाँ सिर्फ सन्नाटा रहता।

🕯️ पहला मिलन

एक दिन वही मीरा देवी अपने ड्राइवर के साथ मंदिर पहुँची। दीपक जलाया, माथा टेका — और जब उठी तो उसकी नजर दरवाजे के पास बैठे उस बच्चे पर पड़ी।
पतला, ठंड से कांपता, पर आँखों में कोई अजीब सी शांति।

वह ठिठक गई।
दिल में कुछ गूंजा — “यही है…”
पर तुरंत खुद को संभाला और बाहर निकल आई।
फिर भी, उस बच्चे की छवि उसके दिल में उतर गई थी।

रात को जब वह सोने गई, उसने आँखें बंद कीं — और वही चेहरा सामने आ गया।
वह बेचैन हो उठी।
नींद गायब थी, बस वही चेहरा घूमता रहा — मिट्टी से सना, पर किसी पुराने अपने जैसा।

☀️ अगली सुबह

अगले दिन सूरज हल्का सा झाँका।
मंदिर में वही बच्चा फिर बैठा था — पर आज वह मुस्कुरा रहा था।
क्योंकि किसी भक्त ने उसके पास प्रसाद रखा था। उसने छुआ नहीं, बस देखा और धीरे से कहा,
“पहले तू खा ले भगवान, मैं बाद में खाऊँगा।”

वह दया नहीं चाहता था, बस अपनापन।

मीरा देवी फिर मंदिर पहुँची — जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने खींच लिया हो।
वह दूर से खड़ी उसे देखती रही।
उसके हाथों में झाड़ू थी। वह सीढ़ियाँ साफ कर रहा था।
हर झाड़ू की लकीर में उसकी मेहनत थी।
मीरा की आँखें भर आईं।

उसने सोचा — “क्यों बार-बार यही बच्चा सामने आता है?”
पर कोई उत्तर नहीं मिला।

📸 तस्वीरें और यादें

घर लौटकर उसने अपनी पुरानी एलबम निकाली।
फोटो पलटते-पलटते एक तस्वीर पर उसकी उंगलियाँ ठहर गईं — उसका खोया हुआ बेटा आरव।
गाल पर छोटा-सा तिल। वही गहरी आँखें। वही मासूम मुस्कान।

मीरा का दिल कांप उठा।
“नहीं… यह कैसे हो सकता है? लेकिन… वो चेहरा…”
उसकी आँखों से आँसू बह निकले।

रात भर वह जागती रही।
हर सांस में वह एक ही सोचती — “अगर वही है… तो भगवान ने मेरी सुन ली।”

💧 वह रात जब सब बदल गया

अगली सुबह वह फिर मंदिर पहुँची।
पर बच्चे का कहीं पता नहीं।
किसी ने बताया — “रात बहुत ठंडी थी, तबीयत बिगड़ गई, पास के आश्रम ले गए।”

मीरा के पांव कांप गए।
वह भागती हुई वहाँ पहुँची।

आश्रम के फर्श पर बच्चा पड़ा था। चेहरा पीला, होंठ सूखे, और सीने पर वही गुलाब का पत्ता जो मंदिर से उड़ा था।
मीरा उसके पास बैठ गई, काँपते हाथों से उसके बालों पर हथेली रखी।
वह क्षण जैसे समय रुक गया हो।

बच्चे ने हल्की सांस ली।
धीरे से आँखें खोलीं।
मीरा की ओर देखा — और मुस्कुराया।
वह मुस्कान मीरा के दिल में उतर गई।
उस मुस्कान में था भरोसा, अपनापन, और वह शब्द जो उसने बरसों से नहीं सुना था — “मां।”

मीरा टूटकर रो पड़ी।
उसने बच्चे को गोद में लिया।
“भगवान… तूने आखिर मेरी सुन ली।”

🌤️ नई सुबह, नया जीवन

अगले दिन वह उसे घर ले आई।
कपड़े, खाना, दवा — सब इंतजाम किया।
बच्चा अब धीरे-धीरे खुलने लगा था।
मीरा के घर में बरसों बाद हंसी गूँजी।
नौकर हैरान थे — जो औरत वर्षों से मुस्कुराई नहीं, अब उस बच्चे के साथ खिलखिला रही थी।

एक शाम मीरा ने उसे बगीचे में खेलते देखा।
उसने फूल तोड़ा, हवा में लहराया और बोला,
“मां, देखो — भगवान का तोहफा!”
मीरा की आँखें भर आईं।
वह बोली — “हाँ बेटा, भगवान का तोहफा।”

🧬 सच्चाई की जांच

लेकिन मीरा के मन में एक सवाल अब भी था — “क्या सच में यह मेरा आरव है?”
उसने मेडिकल टेस्ट करवाने का निर्णय लिया।
डॉक्टर ने कहा — “तीन दिन लगेंगे।”

वो तीन दिन मीरा के जीवन के सबसे लंबे दिन थे।
वह हर पल बच्चे को देखती, उसकी हंसी, उसकी चाल, उसके हावभाव — सब अपने बेटे जैसे थे।
वह डरती भी थी — “अगर नहीं निकला तो?”

तीसरे दिन शाम को रिपोर्ट आई।
मीरा ने काँपते हाथों से खोला।
कागज पर लिखा था —
“DNA Match: Positive.”

वह कुछ पल तक देखती रही।
फिर कागज नीचे गिर गया।
आँखों से आँसू बह निकले।
उसने बच्चे को गले से लगा लिया।
“अब कोई दूरी नहीं… अब मैं पूरी हूँ।”

🕊️ अंत — अधूरी प्रार्थना पूरी हुई

बच्चा मीरा की गोद में सिर रखकर बोला,
“मां, अब मैं मंदिर नहीं जाऊँगा…”
मीरा मुस्कुराई — “क्यों बेटा?”
वह बोला — “क्योंकि भगवान ने मेरी सुन ली।”

मीरा की आँखों से आँसू झर झर गिरे।
वह बोली — “और भगवान ने मेरी भी।”

मंदिर की घंटियाँ दूर कहीं बज उठीं।
हवा में फूलों की खुशबू घुली।
मानो भगवान मुस्कुरा रहे हों।

मीरा ने बच्चे को चूम लिया।
उसके होंठों पर अब कोई प्रार्थना नहीं थी — क्योंकि अब कोई अधूरी इच्छा नहीं बची थी।


समापन पंक्तियाँ (YouTube नैरेशन शैली में):

दोस्तों, अगर आपने आज अपनी मां को याद किया हो,
तो कमेंट में “मां” जरूर लिखें ❤️
क्योंकि इस दुनिया में सब कुछ बदल सकता है —
लेकिन मां की दुआ और बच्चे की पुकार कभी व्यर्थ नहीं जाती।

🙏 “मां” — एक शब्द नहीं, पूरी जिंदगी का अर्थ है।