🌾 नेकी का सौदा
पंजाब की धरती हमेशा से अपने वीरों, किसानों और फकीरों के लिए जानी जाती रही है।
वहीं सतलुज नदी के किनारे एक छोटा-सा गांव था — हरबंसपुरा।
गांव के बीचोंबीच एक झोपड़ी में रहता था गुरबचन सिंह, चालीस साल का एक मेहनती किसान।
ऊँची पगड़ी, चौड़े कंधे और खेतों की मिट्टी से सने हाथ — वही उसकी पहचान थे।
उसकी पत्नी कई साल पहले बीमारी से चल बसी थी। अब उसकी दुनिया बस उसके छोटे बेटे जसप्रीत, जिसे सब “जस्सा” कहते थे, के इर्द-गिर्द सिमट गई थी।
जस्सा उसकी आंखों की रोशनी था।
गुरबचन का सपना था कि उसका बेटा पढ़-लिखकर अफसर बने, ताकि उसे खेतों में दिन-रात मेहनत न करनी पड़े।
गांव में हर कोई गुरबचन की इज्जत करता था।
किसी की बेटी की शादी हो, किसी को खून की जरूरत हो, या किसी के घर संकट —
गुरबचन हमेशा सबसे आगे खड़ा मिल जाता।
उसके लिए सेवा कोई काम नहीं, जीने का तरीका था।
🌊 बाढ़ का कहर
उस साल मानसून जैसे कहर बनकर बरसा।
तीन दिनों तक लगातार बारिश हुई और सतलुज का पानी गांव में घुस आया।
घर डूब गए, पशु बह गए, और लोग अपनी जान बचाने के लिए पेड़ों पर चढ़ गए।
ऐसे में गुरबचन सिंह एक फरिश्ता बनकर सामने आया।
उसने अपने पुराने ट्रैक्टर को नाव बना लिया था।
रस्सी कमर में बांधकर वह डूबते लोगों को बचाने में लग गया।
बच्चों को, औरतों को, मवेशियों को — जो मिला, उसे किनारे तक पहुँचाया।
तीसरे दिन, जब वह लगभग थककर चूर था, तभी उसे गांव के बाहर से एक चीख सुनाई दी।
उसने देखा — एक महंगी कार पानी में फंसी थी और बहने लगी थी।
भीतर कोई व्यक्ति हाथ-पैर मार रहा था।
गुरबचन ने बिना एक पल सोचे ट्रैक्टर नदी में उतार दिया।
तेज बहाव में उसने कार तक पहुँचकर शीशा तोड़ा और उस व्यक्ति को बाहर निकाला।
वह अधेड़ उम्र का शहरी आदमी था — महंगे कपड़े, पर जान आफ़त में।
बेहोश था, सिर पर चोट लगी थी।
गुरबचन ने उसे अपनी पीठ पर लादा और किसी तरह किनारे तक पहुंचाया।
गांव के स्कूल में राहत शिविर लगा था।
वहीं जब उस व्यक्ति को होश आया तो उसने देखा —
एक मिट्टी से सना किसान उसे पानी पिला रहा था।
उसने धीमी आवाज़ में कहा,
“भाई साहब, अगर आप न होते तो मैं मर गया होता। मैं आपका ये एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा।”
गुरबचन मुस्कुराया —
“डॉक्टर साहब, यह कोई एहसान नहीं। हम पंजाबी हैं। नेकी का सौदा नहीं करते, उसे निभाते हैं।”
वह व्यक्ति था — डॉ. आशीष गौरव,
देश का प्रसिद्ध कार्डियक सर्जन और गौरव हार्ट इंस्टिट्यूट, चंडीगढ़ का मालिक।
उस दिन वह एक मेडिकल कैंप के लिए जा रहा था जब बाढ़ ने उसे घेर लिया था।
गुरबचन की इंसानियत ने उसे बचा लिया।
डॉ. गौरव ने अपना कार्ड गुरबचन को दिया और कहा,
“अगर कभी किसी भी वक्त तुम्हें मेरी जरूरत पड़े, यह कार्ड याद रखना।”
गुरबचन ने कार्ड अपनी फटी कमीज की जेब में रख लिया —
और वक्त के साथ भूल गया।
💔 किस्मत की मार
छह महीने बाद सब कुछ सामान्य दिखने लगा,
पर किस्मत को कुछ और मंज़ूर था।
एक दिन जस्सा खेतों में खेलते-खेलते बेहोश हो गया।
गुरबचन भागा — पहले हकीम, फिर सरकारी अस्पताल।
डॉक्टरों ने कहा, “बच्चे के दिल में छेद है। तुरंत ऑपरेशन करना होगा। खर्चा करीब 10-12 लाख आएगा।”
गुरबचन के पैरों तले जमीन खिसक गई।
उसके पास तो मुश्किल से दस हज़ार रुपये थे।
पर वो पिता था —
उसने अपनी जमीन गिरवी रख दी, गाय बेच दी, और हर रिश्तेदार से उधार मांगा।
कुल मिलाकर मुश्किल से पाँच लाख रुपये जुटे।
वह जस्से को गोद में लेकर चंडीगढ़ निकल पड़ा।
🏥 गौरव हार्ट इंस्टिट्यूट
शहर की चमक देखकर ही वह घबरा गया।
अस्पताल किसी पाँच सितारा होटल जैसा था।
काउंटरों पर लंबी कतारें थीं, लोग महंगे कपड़ों में,
और वह एक गरीब किसान —
फटी कमीज़, टूटी जूती, और गोद में आधा बेहोश बेटा।
कई काउंटरों पर धक्के खाने के बाद आखिरकार एक डॉक्टर ने रिपोर्ट देखी —
“बच्चे को तुरंत भर्ती करना होगा। पहले 5 लाख जमा करो।”
गुरबचन ने हाथ जोड़कर कहा,
“साहब, मेरे पास बस 1 लाख हैं। बाकी मैं…।”
क्लर्क ने बेरुखी से कहा,
“तो सरकारी अस्पताल जाओ। यहां गरीबों का इलाज नहीं होता।”
वह वहीं गलियारे में बेंच पर बैठ गया।
जस्सा की सांसें धीमी हो रही थीं।
गुरबचन की आंखों से आंसू बह निकले।
वह ऊपर देखता और बुदबुदाता —
“हे वाहेगुरु, मैंने तो हमेशा भलाई की,
फिर मेरा बच्चा क्यों भुगते?”
तभी उसके हाथ किसी चीज़ से टकराए —
वह वही पुराना विजिटिंग कार्ड था।
उस पर लिखा था —
डॉ. आशीष गौरव, चीफ कार्डियक सर्जन, गौरव हार्ट इंस्टिट्यूट, चंडीगढ़।
वह सन्न रह गया।
उठा, बेटे को वहीं बेंच पर लिटाया, और भागा डॉक्टर के केबिन की ओर।
🔁 किस्मत का पलटाव
सेक्रेटरी ने रोका — “अपॉइंटमेंट है?”
“नहीं जी, पर दिखाना बहुत जरूरी है।”
तभी दरवाज़ा खुला और डॉक्टर गौरव बाहर निकले।
उन्होंने गुरबचन को देखा — पहचान न पाए।
पर जब गुरबचन ने कांपती आवाज़ में कहा —
“साहब… बाढ़… सतलुज… मेरा ट्रैक्टर…”
डॉक्टर गौरव ठिठक गए।
उनकी आंखों में पहचान की चमक लौट आई।
“गुरबचन सिंह! तुम यहां?”
गुरबचन की आंखों से आंसू बह निकले —
“साहब, मेरा बेटा… उसका दिल…”
डॉक्टर गौरव ने उसका हाथ थाम लिया —
“कहां है वो बच्चा?”
वह जस्से के पास पहुंचे।
बच्चा नीला पड़ चुका था।
उन्होंने तुरंत आदेश दिया —
“इस बच्चे को मेरे प्राइवेट वार्ड में ले जाओ! मैं खुद ऑपरेशन करूंगा।”
पूरा स्टाफ हैरान था।
एक अमीर अस्पताल का मालिक खुद एक गरीब किसान के बच्चे के पीछे क्यों लगा है?
पर डॉक्टर गौरव के लिए यह सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं था,
यह ज़िंदगी का ऋण चुकाने का मौका था।
❤️ नेकी का सौदा
आठ घंटे चला वह ऑपरेशन।
गुरबचन बाहर बैठा वाहेगुरु से दुआ मांगता रहा।
सुबह हुई —
ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा खुला,
डॉक्टर गौरव बाहर आए,
और बोले —
“मुबारक हो गुरबचन सिंह, तुम्हारा जस्सा अब ठीक है।”
गुरबचन की आंखों से खुशी के आंसू झरने लगे।
कई दिनों तक जस्सा अस्पताल में रहा।
डॉक्टर गौरव रोज़ मिलने आते, कभी फल लाते, कभी कहानियाँ सुनाते।
वह और उनकी पत्नी अब जस्से को “अपना बच्चा” कहने लगे थे।
जब डिस्चार्ज का दिन आया तो अकाउंट्स डिपार्टमेंट ने बिल लाकर दिया —
₹1,65,000।
गुरबचन का चेहरा उतर गया।
वह कुछ कह पाता, उससे पहले ही डॉक्टर गौरव ने बिल फाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया।
गुरबचन हकलाया —
“साहब, यह आप क्या कर रहे हैं?”
डॉक्टर गौरव मुस्कुराए —
“गुरबचन, उस दिन तुमने मेरी जान बचाई थी।
आज मैंने तुम्हारे बेटे की।
अब हिसाब बराबर — नेकी का सौदा।”
वह आगे बढ़े और बोले —
“यह सिर्फ इतना नहीं। तुम्हारी जमीन जो तुमने गिरवी रखी थी —
मैंने छुड़ा ली है।
अब वो फिर से तुम्हारी है।”
गुरबचन के पैर लड़खड़ा गए।
वह डॉक्टर के चरणों में गिर पड़ा।
डॉक्टर ने उसे उठाया —
“पंजाबी किसी के पैरों में नहीं गिरते,
वो गले लगाते हैं।”
दोनों गले मिले —
दो इंसान, दो धर्म, दो आत्माएँ —
एक भाव में बंधी हुईं: इंसानियत।
🌱 अंत नहीं, शुरुआत
जस्सा पूरी तरह ठीक हो गया।
डॉक्टर गौरव ने घोषणा की —
“हर साल मेरा हॉस्पिटल हरबंसपुरा गांव में मुफ्त मेडिकल कैंप लगाएगा।
किसी भी बच्चे का दिल अगर बीमार होगा — उसका इलाज मुफ्त होगा।”
गांव में जब गुरबचन जस्से को लेकर लौटा,
लोगों ने फूलों की वर्षा की।
वह अब सिर्फ किसान नहीं, गांव का गर्व था।
उसने फिर से हल उठाया —
पर इस बार उसके दिल में कोई डर नहीं था,
सिर्फ़ कृतज्ञता थी —
वाहेगुरु, और उस डॉक्टर के लिए,
जिसने साबित कर दिया कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।
✨ सीख
इस कहानी की सबसे बड़ी सीख यही है —
“नेकी का सौदा कभी घाटे का नहीं होता।”
जब आप बिना स्वार्थ के किसी की मदद करते हैं,
तो ज़िंदगी किसी न किसी रूप में वही लौटाती है।
ऊपरवाला देर करता है, पर अंधेर नहीं।
और शायद इसलिए कहा गया है —
“ऊपरवाले की लाठी में आवाज़ नहीं होती,
पर उसका न्याय हमेशा होता है।”
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