पुनर्मिलन : केदारनाथ में 20 साल बाद चमत्कारिक मिलन
बिहार की पायल गुप्ता के जीवन में तकरीबन दो दशक पहले एक हादसा हुआ था, जिसने उसकी दुनिया बदल दी थी। उसका पति राहुल, जिससे वह बेहद प्यार करती थी, केदारनाथ यात्रा के दौरान आई भीषण बाढ़ में लापता हो गया। उस घटना के बाद, पायल ने हर मंदिर, हर तीर्थ, हर पूजा-पाठ में एक ही प्रार्थना की—“मेरे पति को लौटा दो, भगवान!”।
साल 2005 की बात है। पायल और राहुल ने केदारनाथ की पवित्र यात्रा पर जाने का निर्णय लिया था। वे दोनों बहुत उत्साहित थे, क्योंकि वह भी ताजगी, भक्तिभाव और साहस से ओतप्रोत यात्रा थी। बारिश के मौसम में दोनों पैदल यात्रा कर रहे थे। राहुल ने कई बार कहते-कहते हार मान ली थी कि “पायल, खच्चर ले लो, थक जाओगी!” लेकिन पायल नहीं मानी। उसकी जिद थी—”मुझे प्राकृतिक सौंदर्य, बाबा केदारनाथ का आशीर्वाद अपने पैरों की मेहनत से चाहिए।”
बीच-बीच में बारिश शुरू होती, पगडंडियां दलदल में बदल चुकी थीं, ठंड के कारण उँगलियाँ सूज गई थीं, लेकिन दोनों का उत्साह कम नहीं हुआ। वे लोग सुबह पांच बजे गौरीकुंड से चले, भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी किनारे कर कुल लगभग बाईस किलोमीटर की कठिन चढ़ाई पार कर ली। अंतिम घण्टे में बारिश और भी तेज हो गई। पहाड़ से गिरते झरनों के तेज प्रवाह ने कई रास्तों को बंद कर दिया था। सांझ होते-होते वे मंदिर परिसर तक पहुंचे। भिगे कपड़ों में, कंपकंपाते शरीर के बावजूद उनकी आंखों में संतुष्टि थी—बाबा केदारनाथ के दर्शन हो गए।
मंदिर के गर्भगृह में दोनों ने गंगाजल से अभिषेक किया, प्रसाद चढ़ाया और भविष्य की खुशियों के लिए आशीर्वाद मांगा। बाहर निकल कर धर्मशाला में कमरा लिया, सभी श्रद्धालु वहां थे। धुप्पल रात, बाहर बिजली चमक रही थी और बारिश निरंतर जारी थी। जल्द ही सब सो गए। अचानक रात के दो बजे अचानक बाहर खलबली मची—चट्टानें गिर रही थीं, धाराएं उफान पर थीं, टेंट और झोंपड़ियाँ बह रही थीं। धर्मशाला भी डगमगाने लगी। लोग चिल्लाए, “जल्दी भागो! मंदिर की तरफ!”
राहुल ने पायल का हाथ थामा। दोनों भागने लगे, भीगते, कांपते, आगे-पीछे फिसलती, फड़फड़ाती भीड़ में। अचानक, बेकाबू पानी की धारा में पायल फिसल गई। राहुल ने पूरी ताकत से उसका हाथ थामा, पास के खंभे को पकड़कर पायल को बचा लिया, लेकिन वह खुद पानी की चपेट में आ गया। देखते ही देखते राहुल पानी में बह गया, चिल्लाना, हाहाकार—फिर सन्नाटा। पायल का सबसे बड़ा सहारा, उसका जीवनसाथी, उसका प्यार, उसकी दुनिया, उस हहराती नदी के साथ कही दूर चला गया।
एनडीआरएफ के बचाव दस्ते आए, खोज खबर चली, लेकिन कुछ नतीजा नहीं निकला। पायल के लिए जैसे समय ठहर गया था। थक-हारकर, भारी मन से, वह अकेली बिहार लौट गई। लोग सांत्वना देते रहे—“गुड़िया, मन मार ले, अब वो नहीं लौटेगा!” मगर वह हर साल बाबा केदारनाथ के दर्शन करने जाती, हर बार उम्मीद की एक नन्ही लौ लेकर—शायद इस मंदिर की छांव में, किसी मोड़ पर उसे उसका राहुल मिल जाए।
समय बीता। कुछ समय बाद बेटे उत्तम का जन्म हुआ। पायल मां की जि़म्मेदारी में उलझ गई, लेकिन राहुल की तलाश उसकी हर सांस में थी। दिन महीने बने, महीने सालों में बदले। उसके बालों में सफेदी आने लगी, मगर दिल के भीतर अपने पति की यादें उसी तरह ताजा रही।
2025 की मई थी। पायल ने 14 वर्षीय बेटे उत्तम को साथ लेकर दोबारा बाबा केदारनाथ जाने का फैसला किया। पुरानी पीड़ाएं, नई जिम्मेदारियां, और आसमान-सा विशाल प्यार लिए, मां-बेटे यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते बदल चुके थे, सड़कें बेहतर थीं, लेकिन पहाड़ वही थे। पायल के लिए हर मोड़, हर पेड़, हर झरना पुराने किस्सों को जिंदा कर देता था। दोनों ने भीगते, थकते, हँसते, बातें करते हुए चढ़ाई पार की। इस बार पायल ने बेटे को कहानी सुनाई—“तेरे पापा यहीं मुझसे बिछड़ गए थे। बाबा केदारनाथ के दरवाजे की छाँव में ही मैंने उन्हें आखिरी बार देखा।”
मंदिर पहुंचने के बाद दोनों ने दर्शन किए, स्नान किया और धर्मशाला में रात बिताई। अगली सुबह, मां ने बेटे से कहा, “आज भुकुंठ भैरव जाएंगे, यही तुम्हारे पिताजी की इच्छा थी, जो पूरी ना हो पाई थी।” मां-बेटा दोनों भैरव मंदिर के लिए निकल पड़े। सुबह का उजास, स्वर्णिम सूर्य, मन्दिर की घंटियाँ, और भीड़ में एक अजीब सी बेचैनी—पायल के दिल में यादें और सवाल दोनों उमड़े पड़े थे।
भैरवनाथ के मंदिर के ऊपरी अहाते में, एक साधु चुपचाप तपस्या में लीन था। कपड़े नाममात्र के, शरीर पर रुद्राक्ष, बढ़ी दाढ़ी और उलझी जटा। दूर से ही श्रद्धालु उसे प्रणाम करके, कुछ पैसे या फल चढ़ा रहे थे। बेटे उत्तम ने जिद की—“मम्मा, उस बाबा को कुछ दें!” पायल ने पर्स से एक नोट निकाला और साधु के पास जा पहुंची। साधु ने जब उस नोट को लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, पायल ठिठक गई—उसके हाथ पर टैटू बना हुआ था—‘पायल’। वही स्टाइल, वही जगह, वही लिखावट—जैसी राहुल के हाथ पर थी!
पायल की सांस थम गई। “यह…यह कैसे?” उसने कांपते हुए बाबा के चेहरे की ओर नजरें उठाईं—संभलकर ध्यान से देखा—साधु के आंखों की तीव्रता, चेहरे की झलकियां, सबकुछ राहुल जैसा! पायल के आँखों से आँसू टपकने लगे, उसने फुसफुसाकर कहा—“राहुल! तुम…! यह मैं हूँ, पायल!”
साधु ने मुस्कराने की कोशिश की, लेकिन उसकी आंखों में कोई पहचान ना थी। “माता, मैं तो बस बाबा केदारनाथ का सेवक हूँ। राहुल, वह कौन? मुझे नहीं पता!” उसका जवाब बहुत ही साधारण था।
पायल बार-बार समझाने लगी—“देखो, ये हमारे बेटे उत्तम हैं, ये तस्वीर देखो—ये हम दोनों,” उसने मोबाइल में संजोए पुराने वीडियो और फोटो दिखाए। साधु के बस में अब आंसूं थे, उसकी भी आँखें भर आईं। बहुत देर बाद उसकी याददाश्त धीरे-धीरे लौटने लगी। हिचकते शब्दों में साधु बोला—“मुझे याद है, बहुत साल पहले मैं भी पानी में डूबा था, सिर में चोट लगी थी, और…फिर मुझे कुछ नहीं पता। होश आया तो मैं खुद को मंदिर में, और फिर पहाड़ों में भटकते पाए।”
पायल ने उसका हाथ थामा और रोती रही। बेटे उत्तम को भी समझ आ गया कि उसके सामने उसका खोया बाप है, जिसे उसने कभी देखा ही नहीं था! भीड़ उमड़ पड़ी, हर कोई इस मिलन को देखकर सन्न रह गया। लोगों की आंखों में श्रद्धा, हैरानी और आंसू थे।
पर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। साधुत्व के मार्ग पर चले राहुल का मन डांवाडोल था—उसने जिंदगी की बीस साल तपस्या, ध्यान और अकेलेपन में, खुद को भुला बैठा था। अचानक से पत्नी-बेटा देखकर वह खुद से उलझ गया—“क्या अब वापस सांसारिक जीवन स्वीकारूं? या यहीं बाबा की सेवा करूं?”
इतने में मंदिर के मुख्य गुरु आए। उन्होंने स्नेह भरी आवाज़ में कहा—“बेटा, ईश्वर इंसान को अपनी जिम्मेदारियों से भागने के लिए नहीं, उन्हें निभाने के लिए भेजता है। तुम्हारी पत्नी ने बीस साल अकेले काटे; तुम्हारे बेटे ने पिता की ममता के लिए तरसा। जाओ, दुनिया में प्रेम बांटो। यही भगवान की आज्ञा है।”
राहुल ने, पहली बार, दोनों हाथों से पत्नी-बेटे को गले लगाया। तीनों भावनाओं के समंदर में डूब गए—कितने सालों का बिछोह, जख्म, आंसू और
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