स्टेशन पर उदास बैठी लड़की को अजनबी ने कहा… मेरे घर चलो, फिर जो हुआ इंसानियत रो पड़ी
एक नई शुरुआत
भाग 1: प्लेटफार्म नंबर चार पर मीरा
प्रयागराज रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर चार पर एक बेंच पर सुबह से ही एक लड़की बैठी थी। चारों ओर भीड़ का शोर था। किसी के हाथ में सूटकेस, किसी के कंधे पर झोला, चाय वालों की आवाजें, बच्चों की खिलखिलाहट, लेकिन उस लड़की का चेहरा सबसे अलग और उदास था। उसकी आंखों में आंसू की नमी थी और चेहरा थका हुआ। ऐसा लग रहा था जैसे कोई गहरी चिंता उसके दिल को लगातार कचोट रही हो।
स्टेशन पर काम करने वाला राजेश कई बार वहां से गुजरा। हर बार उसकी नजर उसी बेंच पर बैठी उस लड़की पर चली जाती। सुबह से लेकर दोपहर और फिर शाम तक वो वहीं बैठी रही। राजेश के मन में सवाल उठते रहे। आखिर यह लड़की कौन है? इतनी अकेली और परेशान क्यों है?
भाग 2: मीरा की कहानी
अखिरकार शाम ढलने लगी तो राजेश ने हिम्मत जुटाई। वह उसके पास गया और नरमी से बोला, “मैडम, आप सुबह से यही प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर बैठी हैं। सब ठीक है? आप किसका इंतजार कर रही हैं?” लड़की चौंक कर ऊपर देखी। उसकी आंखों में डर और स्वर में कठोरता थी। “तुम्हें इससे क्या मतलब? मैं जहां चाहूं बैठ सकती हूं।”
राजेश थोड़ा साया पर शांत स्वर में बोला, “नहीं, मेरा कोई गलत मतलब नहीं था। बस आपको परेशान देखकर पूछ लिया। अगर आप नहीं बताना चाहती तो कोई बात नहीं।” इतना कहकर वह पलटने ही वाला था कि लड़की की आंखों से आंसू ढलक पड़े। कुछ देर चुप रहने के बाद उसकी टूटी आवाज में शब्द निकले, “मेरा नाम मीरा है। मैं पास के कस्बे से आई हूं। कल मेरे पति मुझे यहां तक लाए थे। बोले थे टिकट लेकर आते हैं और फिर हम दोनों निकलेंगे। पर वह लौटकर कभी नहीं आए। सारे पैसे और सामान उन्हीं के पास थे। मैं यही प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर बैठी उनका इंतजार करती रही। लेकिन अब समझ गई हूं कि उन्होंने मुझे छोड़ दिया है।”
इतना कहते ही मीरा का गला भर आया और वह रो पड़ी। राजेश का दिल द्रवित हो गया। उसने धीरे से कहा, “यहां रात भर रहना सुरक्षित नहीं है। मेरे घर चलो। मेरी मां सीता देवी बहुत दयालु हैं। वहां तुम्हें खाना मिलेगा और आराम भी। फिर हम सोचेंगे कि आगे क्या करना है।”
भाग 3: राजेश का प्रस्ताव
मीरा कुछ पल चुप रही। उसके मन में डर था। पर सहारा भी तो कोई नहीं था। आखिरकार उसने धीमे स्वर में कहा, “अगर तुम्हारी मां मना न करे तो।” राजेश मुस्कुरा कर बोला, “मां किसी को मना नहीं करती।” दोनों प्लेटफार्म से बाहर निकले। थोड़ी ही दूरी पर राजेश का छोटा सा घर था, टीन की छत, मिट्टी की हल्की खुशबू और छोटा सा आंगन।
राजेश ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से मां सीता देवी बाहर आईं। “कौन है?” बेटा राजेश ने विनम्रता से कहा, “मां, यह मीरा है। सुबह से प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर अकेली बैठी थी। बहुत परेशान थी। मैंने सोचा इसे घर ले आऊं। कुछ खिला दो।”
सीता देवी ने बिना कुछ पूछे मुस्कुरा कर कहा, “आओ बेटी, अंदर आओ।” उन्होंने तुरंत रोटियां सेंकी, दाल गर्म की और प्लेट में खाना सजाकर मीरा के सामने रख दिया। मीरा की आंखें फिर भर आईं। यह खाना सिर्फ रोटियों का नहीं था। इसमें अपनापन और सुरक्षा का स्वाद था।
भाग 4: मीरा का नया जीवन
खाना खाने के बाद सीता देवी ने पास की खटिया पर साफ चादर बिछाई और बोलीं, “बेटी, अब तू आराम कर ले। बाकी सब कल देखेंगे।” कई दिनों बाद मीरा की आंखें भारी हुईं और वो चैन की गहरी नींद में डूब गई। राजेश बरामदे में बैठा देर तक आसमान की तरफ देखता रहा और सोचता रहा। कभी-कभी भगवान इंसान के रूप में आकर किसी की मदद करते हैं। शायद आज मैं मीरा के लिए वही बन पाया।
अगली सुबह जब सूरज की हल्की रोशनी आंगन में उतरी तो सीता देवी की आंख खुली। उन्होंने जैसे ही दरवाजे की ओर नजर डाली तो देखकर हैरान रह गईं। आंगन चमक रहा था। बरामदा सुथरा था और कोने-कोने में साफ सफाई दिख रही थी। उन्होंने मुस्कुराते हुए आवाज लगाई, “बेटी, यह सब तुमने किया?” मीरा चुपचाप सिर झुका कर बोली, “हां मांझी, मैंने ही किया। अब जब आपके घर में रह रही हूं तो घर का काम तो मेरा भी फर्ज है। अगर मैं हाथ ना बंटाऊं तो मुझे लगेगा कि मैं आप पर बोझ हूं।”
सीता देवी की आंखें भर आईं। उन्होंने मीरा का चेहरा सहलाते हुए कहा, “बेटी, बोझ कभी नहीं। तुम तो मेरी अपनी बेटी जैसी हो। बेटियां ही तो घर को संवारती हैं। तूने तो मेरा दिल खुश कर दिया।” उस दिन से मीरा घर के कामों में हाथ बंटाने लगी। सुबह झाड़ू पोछा करती, दोपहर में रसोई संभालती और शाम को बरामदे में बैठकर सीता देवी से बातें करती।
भाग 5: रिश्ते की मिठास
उसकी आवाज में पहले जो डर था, अब धीरे-धीरे आत्मीयता और विश्वास झलकने लगा। राजेश जब ड्यूटी से लौटता तो देखता कि मां हंस रही हैं। बरामदा खिला हुआ है और घर में रौनक है। उसके दिल को चैन मिलता। उसने सोचा, “कल तक यह घर कितना खाली लगता था और आज मां के चेहरे पर मुस्कान है। यह सब इस मीरा की वजह से है।”
एक शाम का वाकया यादगार बन गया। राजेश ड्यूटी से लौटा और आंगन में बैठा था। सीता देवी वहीं चारपाई पर बैठी थीं और मीरा पास ही चूल्हे पर रोटियां सेक रही थी। हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी। उस माहौल में घर का सन्नाटा टूट चुका था। अब घर में हंसी, अपनापन और तसल्ली थी।
सीता देवी ने राजेश को देखते हुए मीरा की ओर इशारा करके कहा, “बेटा, यह लड़की कितनी समझदार है। बिना कहे ही सब काम कर देती है। मेरे दुख दर्द बांटती है। लगता है जैसे भगवान ने इसे हमारी किस्मत में भेजा है।” राजेश ने हल्की मुस्कान के साथ मां की बात सुनी। उसके मन में भी यही भाव था। पर उसने कुछ कहा नहीं।
भाग 6: मीरा का आत्मविश्वास
धीरे-धीरे मीरा और राजेश के बीच भी बातचीत बढ़ने लगी। मीरा कभी पूछ लेती, “आज स्टेशन पर ज्यादा भीड़ थी?” तो राजेश हंसकर जवाब देता, “भीड़ तो रोज रहती है। लेकिन तुम्हारी चिंता जैसी भीड़ किसी की आंखों में नहीं देखी।” यह सुनकर मीरा शर्मा जाती और चुप हो जाती।
एक दिन जब राजेश ड्यूटी पर गया था तो सीता देवी ने मीरा से सीधे पूछ लिया, “बेटी सच बता, तुझे मेरा बेटा कैसा लगता है?” मीरा का चेहरा लाल हो गया। उसने धीरे से कहा, “नहीं मांझी, ऐसी कोई बात नहीं। मैं तो…” सीता देवी मुस्कुराई। “बेटी, मैं तेरी आंखों को समझती हूं। अगर तू चाहे तो मैं राजेश से तुम्हारी शादी की बात करूं। मेरे बेटे को भी तेरा साथ अच्छा लगता है। घर में जो रौनक आई है वो तेरे कदमों से ही आई है।”
मीरा शर्माकर अंदर चली गई। पर उसके होठों पर हल्की मुस्कान थी और दिल में एक नई किरण। उस रात जब राजेश बरामदे में लेटा तो उसे लगा जैसे इस घर की दीवारें अब अकेली नहीं रही। मां को सहारा मिल गया है। मीरा को छांव मिल गई है। और उसे खुद भी एक अजीब सी तसल्ली। शायद यही असली सुख है।
भाग 7: मीरा का नया सपना
दिन यूं ही बीतते गए। मीरा अब घर का हिस्सा बन चुकी थी। वो सुबह से शाम तक सीता देवी का हर काम संभालती और घर को ऐसे संवारती मानो यह उसका अपना हो। राजेश भी अब पहले से ज्यादा निश्चिंत रहता क्योंकि उसे मालूम था कि मां का ख्याल रखने वाली कोई है।
एक दिन मीरा सब्जी लेने बाजार गई। वहां भीड़भाड़ के बीच उसने देखा कि एक छोटी सी दुकान पर लॉटरी के टिकट बिक रहे हैं। मीरा ने पहले कभी लॉटरी के बारे में सोचा भी नहीं था। लेकिन ना जाने क्यों उसका मन हुआ और उसने एक टिकट खरीद लिया।
वापस आते समय उसके मन में ख्याल आया, “कैसी बेवकूफी की है। इन पैसों से मैं दाल या सब्जी ले सकती थी। लॉटरी से कभी किसी का भाग्य बदलता है क्या?” घर पहुंचकर उसने टिकट सीता देवी के हाथ में देते हुए कहा, “मांझी, मुझसे गलती हो गई। यह टिकट ले लिया। पैसे बेकार चले गए।”
भाग 8: लॉटरी का जादू
सीता देवी मुस्कुरा दी और बोलीं, “बेटी, गलती क्यों? देख लेते हैं। क्या पता भगवान तेरे दुख देखकर तेरी झोली भर दें।” मीरा हंसते हुए बोली, “अरे मांझी, अगर ऐसे ही सब करोड़पति बन जाते, तो हर गली में करोड़पति घूमते। यह तो बस पैसा बर्बाद करना है।” दोनों इस बात पर हंस पड़ीं और टिकट एक कोने में रख दिया गया।
दो दिन बाद टीवी पर लॉटरी के नतीजे आने थे। उस दिन सुबह से ही सीता देवी उत्सुक थीं। शाम को उन्होंने टीवी ऑन किया और मीरा को भी बुलाया। पर मीरा ने हंसते हुए कहा, “मांझी, आप ही देख लो। मुझे तो पूरा यकीन है कि नंबर नहीं मिलेगा।”
टीवी पर जैसे-जैसे नंबर सुनाए जा रहे थे, पहले तीसरे इनाम का फिर दूसरे इनाम का, दोनों में उनका नंबर नहीं निकला। सीता देवी का दिल बैठने लगा। उन्होंने सोचा, “अब तो कुछ नहीं होगा।” लेकिन जैसे ही पहले इनाम का नंबर सुनाया गया, अचानक सीता देवी की आंखें फटी की फटी रह गईं। उन्होंने टिकट मिलाया और फिर चीख उठीं, “मीरा, बेटी देखो, तेरी 1 करोड़ की लॉटरी लग गई है!”
मीरा दौड़ती हुई आई। उसने टिकट और टीवी पर दिख रहा नंबर मिलाया। दोनों एकदम एक जैसे थे। उसका दिल जोरों से धड़कने लगा। आंखों में आंसू आ गए लेकिन इस बार दुख के नहीं, खुशी के थे। मीरा ने सीता देवी को गले लगाकर कहा, “मांझी, मुझे यकीन नहीं हो रहा। भगवान ने मेरे साथ इतना बड़ा चमत्कार कर दिया। अब मुझे किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं।”
भाग 9: नई जिम्मेदारियां
सीता देवी भी रो पड़ीं। उन्होंने मीरा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटी, तेरी किस्मत ने पलटी खा ली है। अब तू अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है। तेरी जिंदगी का दर्द भगवान ने आज मिटा दिया।” राजेश को जैसे ही यह खबर मिली, वो तुरंत घर दौड़ा आया। उसकी आंखों में भी खुशी और गर्व था। उसने कहा, “मीरा, अब तो सचमुच तुम्हें नया जीवन मिल गया है। लेकिन हमें इन पैसों को समझदारी से लगाना होगा ताकि कल को किसी तकलीफ में न पड़े।”
मीरा ने सिर हिलाकर हामी भरी। उस रात घर का माहौल बिल्कुल बदल गया था। बरसों बाद सीता देवी ने इतनी बड़ी खुशी महसूस की। बरामदे में बैठे तीनों की आंखें चमक रही थीं। मीरा सोच रही थी, “कल तक मैं प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर अकेली और बेसहारा थी। आज भगवान ने मुझे परिवार भी दिया और किस्मत भी पलट दी।”
भाग 10: अतीत की दस्तक
उस रात मीरा चैन से सोई। लेकिन उसे यह पता नहीं था कि आने वाले दिनों में इस खुशी की खबर किसी और तक भी पहुंचेगी और वही उसके अतीत को फिर सामने खड़ा कर देगी। मीरा की लॉटरी लगने की खबर धीरे-धीरे पूरे मोहल्ले में फैल गई थी। लोग कहते, “देखो, कैसी किस्मत पलटी है जो लड़की स्टेशन की बेंच पर अकेली बैठी थी। आज करोड़पति बन गई।”
सीता देवी के घर में भी अब रौनक थी। राजेश हर वक्त मीरा का साथ देता और मीरा अपने पैरों पर खड़े होने के लिए छोटे कारोबार की योजना बना रही थी। लेकिन खुशियों के इन दिनों के बीच एक दिन अचानक अतीत दस्तक देने आ गया। दोपहर का समय था। मीरा अपने नए काम की तैयारी कर रही थी। सीता देवी बरामदे में बैठी थीं। तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।
राजेश ड्यूटी पर गया हुआ था। मीरा ने दरवाजा खोला तो सामने वही चेहरा खड़ा था जिसे वह कभी भूलना चाहती थी। रमेश। मीरा का शरीर जैसे पत्थर हो गया। उसकी आंखें फैल गईं। सामने वही व्यक्ति था जिसने उसे प्लेटफार्म नंबर चार पर छोड़कर गायब हो गया था। रमेश ने आंसू भरी आंखों से कहा, “मीरा, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हें छोड़कर चला गया था। लेकिन अब मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं।”
भाग 11: मीरा का सामना
मीरा ने कांपती आवाज में पूछा, “क्यों आए हो अब? उस दिन क्यों छोड़ कर गए थे? जानते हो? मैंने रात-रात भर स्टेशन के बेंच पर बैठकर तुम्हारा इंतजार किया। सोचा था लौट आओगे। लेकिन तुमने तो मुझे बेसहारा छोड़ दिया।” रमेश का सिर झुक गया। उसने कबूल किया, “मीरा, मैं बेंगलुरु में काम करता था। वहां एक लड़की से मेरा मन लग गया। उसने कहा था कि अगर मैं उसके नाम पर घर खरीदूंगा तो वह मेरे साथ रहेगी। इसी लालच में मैंने तुम्हें धोखा दिया। पर जब घर उसके नाम किया तो उसने और उसके लोगों ने मुझे घर से निकाल दिया। मैं अकेला भटकता रहा और जब सुना कि तुम्हारी लॉटरी लगी है, तब समझा कि भगवान ने मुझे सजा दी है। मीरा, मैं सचमुच पछता रहा हूं। मुझे एक मौका दे दो।”
मीरा की आंखों में आंसू आ गए। लेकिन इस बार कमजोरी के नहीं, गुस्से और आत्मसम्मान के आंसू। उसने ठहर कर कहा, “रमेश, जब मैं अकेली थी, बेसहारा थी, तब तुमने मुझे छोड़ दिया। उस दिन अगर सीता देवी और राजेश न होते तो शायद मैं जिंदा भी न रहती। अब जब भगवान ने मुझे सहारा दिया है, परिवार दिया है और मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं, तब तुम्हें मेरी याद आई?”
भाग 12: अतीत का सामना
रमेश गिड़गिड़ाने लगा, “मीरा, मुझसे गलती हो गई। मुझे माफ कर दो।” पर मीरा का चेहरा कठोर हो गया। उसने साफ शब्दों में कहा, “माफी से जख्म नहीं भरते। मैंने तुम्हारा इंतजार किया था। और तुम लौटे नहीं। अब लौटकर मत आओ। मेरी जिंदगी में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं बची। यहां से चले जाओ।”
सीता देवी भी पास आ गईं। उन्होंने गुस्से से कहा, “बेटी ने नया जीवन शुरू किया है। तूने उसे बहुत दुख दिया है। अब उसके सामने मत आना। निकल जा यहां से।” रमेश सिर झुकाकर रोता हुआ चला गया। मीरा दरवाजे पर खड़ी रह गई। उसके दिल में हलचल तो थी पर साथ ही एक सुकून भी था। आज उसने अपने अतीत का सामना किया और उसे वही रोक दिया।
भाग 13: नई शुरुआत
अब उसकी जिंदगी उसके अपने हाथों में थी। शाम को जब राजेश लौटा तो मीरा ने सब कुछ बता दिया। राजेश ने शांत स्वर में कहा, “मीरा, तुम्हारा निर्णय सही था। जो इंसान एक बार छोड़कर चला गया, उस पर दोबारा भरोसा करना मूर्खता है। अब तुम्हें पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं। हम सब तुम्हारे साथ हैं।”
मीरा की आंखें फिर से भर आईं। लेकिन इस बार उसमें डर नहीं, ताकत थी। उसने महसूस किया कि अब वह पहले जैसी बेसहारा लड़की नहीं रही। अब वह अपने लिए और अपने नए परिवार के लिए जी रही है। रमेश के लौटने और फिर ठुकराए जाने के बाद मीरा का मन अब पूरी तरह शांत हो गया था। उसने ठान लिया कि अब वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेगी। अब उसकी जिंदगी में नया परिवार, नया सहारा और नई उम्मीद थी।
भाग 14: शादी की तैयारी
सीता देवी ने एक दिन राजेश को पास बैठाकर कहा, “बेटा, अब मुझे तुझसे एक बात कहनी है। मीरा ने इस घर को संभाल लिया है। उसने मेरे दुख दर्द बांटे हैं। मेरी आंखों में हंसी लौट आई है। मुझे लगता है कि भगवान ने इसे हमारी किस्मत में बहू बनाकर भेजा है। अगर तुझे भी कोई ऐतराज न हो तो क्यों न मैं इसकी शादी तुझसे कर दूं?”
राजेश ने मां की ओर देखा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। वह बोला, “मां, अगर मीरा भी राजी हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। सच तो यह है कि अब यह घर मुझे अधूरा लगता है जब मीरा नजर नहीं आती।”
सीता देवी ने यह बात मीरा से कही। पहले तो वह शर्मा गई। पर फिर सिर झुका कर धीरे से बोली, “मांझी, आपने जब कहा था कि मैं आपकी बेटी जैसी हूं। तभी से मैंने सोचा था कि यही मेरा घर है। अगर आप सब चाहें तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं।”
भाग 15: शादी की रस्में
और फिर एक शुभ दिन तय किया गया। छोटे से घर में बड़ी रौनक छा गई। मोहल्ले के लोग आए, ढोलक बजी, मेहंदी लगी। सीता देवी की आंखों में आंसू थे। लेकिन इस बार खुशी के। उन्होंने सोचा, “जिस लड़की को प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर बेसहारा छोड़ा गया था, आज वही मेरी बहू बन रही है।”
शादी पूरे रीति-रिवाज से हुई। राजेश और मीरा एक दूसरे के जीवन साथी बन गए। उस रात जब दोनों बरामदे में बैठे थे तो मीरा ने धीमे स्वर में कहा, “राजेश, अगर उस दिन तुम मुझे अपने घर न लाते तो शायद मैं जिंदा भी न होती। तुमने मुझे नया जीवन दिया है।”
राजेश ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “नहीं मीरा, यह सब तुम्हारी किस्मत और तुम्हारी सच्चाई है। मैंने तो बस इंसानियत का फर्ज निभाया। असली ताकत तो तुम्हारे भीतर थी जिसने तुम्हें संभाला।”
भाग 16: मीरा का नया व्यवसाय
अब मीरा ने सोचा कि लॉटरी के पैसों को सही दिशा में लगाना जरूरी है। राजेश और सीता देवी से सलाह लेकर उसने एक छोटा सा कपड़ों का कारोबार शुरू किया। धीरे-धीरे मेहनत और ईमानदारी से वह कारोबार चल निकला। मीरा सुबह-सुबह दुकान संभालती और शाम को घर लौटकर सीता देवी के साथ मिलकर खाना पकाती।
मोहल्ले वाले भी अब कहते, “देखो, पहले बेसहारा थी। आज अपने पैरों पर खड़ी है। सचमुच किस्मत और मेहनत दोनों साथ हो तो इंसान की जिंदगी बदल जाती है।” राजेश को भी गर्व होता। वह ड्यूटी से लौटकर दुकान पर मदद करता। दोनों मिलकर भविष्य के सपने देखते। सीता देवी उन्हें आशीर्वाद देतीं और कहतीं, “अब मुझे कोई चिंता नहीं। मेरे बच्चों का घर परिवार संभल गया है।”
भाग 17: आत्मविश्वास की नई कहानी
मीरा की आंखों में अब डर नहीं बल्कि आत्मविश्वास था। उसने सोच लिया था, “मैं कभी किसी पर निर्भर नहीं रहूंगी। अब मेरी जिंदगी मेरे अपने फैसलों पर चलेगी।” समय बीतता गया। घर में हंसी-खुशी छा गई। राजेश और मीरा का रिश्ता मजबूत होता चला गया।
और इस तरह वह लड़की जिसे एक प्लेटफार्म के बेंच पर छोड़कर उसका पति भाग गया था, अब अपने नए परिवार के साथ हंसते-खेलते जीवन बिता रही थी। दोस्तों, जिंदगी में कभी-कभी हालात हमें तोड़ देते हैं। लेकिन अगर हिम्मत न हारे और अच्छे लोग साथ मिल जाएं, तो वही टूटे सपने दोबारा जुड़ जाते हैं।
भाग 18: मीरा की नई पहचान
मीरा ने अपने जीवन में जो बदलाव लाए, उससे न केवल उसका जीवन बल्कि उसके आसपास के लोगों का जीवन भी बदल गया। वह अब एक प्रेरणा बन चुकी थी। मोहल्ले के लोग उसे देखते और उसकी मेहनत की तारीफ करते। मीरा ने यह साबित कर दिया कि अगर इंसान में हिम्मत और आत्मविश्वास हो, तो वह किसी भी परिस्थिति का सामना कर सकता है।
भाग 19: एक नई चुनौती
लेकिन एक दिन मीरा की जिंदगी में एक नई चुनौती आई। उसके पुराने कस्बे से एक व्यक्ति आया, जो मीरा के अतीत से जुड़ा था। उसने कहा, “मीरा, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता चला है। तुम अब एक सफल महिला हो। लेकिन तुम्हें याद है, तुम्हारे पति ने तुम्हें छोड़ दिया था। क्या तुम उसे माफ करोगी?” मीरा ने उसकी बात सुनकर कहा, “मैंने अपने अतीत को भुला दिया है। अब मैं अपने नए जीवन में खुश हूं।”
भाग 20: खुशियों का सफर
मीरा ने अपनी मेहनत और लगन से एक नया जीवन शुरू किया। उसने अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत की और अपने परिवार के साथ खुश रहने का फैसला किया। राजेश और सीता देवी ने हमेशा उसका साथ दिया। अब मीरा अपने नए परिवार के साथ खुश थी और उसने अपने अतीत को पीछे छोड़ दिया था।
निष्कर्ष
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अगर हम हिम्मत न हारें और अपने सपनों की ओर बढ़ते रहें, तो हम किसी भी परिस्थिति से बाहर निकल सकते हैं। मीरा ने यह साबित कर दिया कि सच्ची मेहनत और आत्मविश्वास से हम अपने जीवन को बदल सकते हैं।
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