विदेशी लड़की भारत में घूमने आयी थी, यहाँ कुछ लोग उसके पीछे पड़ गए थे, एक टेक्सी ड्राइवर ने उसे बचाकर

अतिथि देवो भवः – राजू और एमली की अद्भुत कहानी

भूमिका

‘‘अतिथि देवो भवः’’— हमारे देश की आत्मा भी है और संस्कृति की सबसे सुंदर झलक भी। लेकिन क्या आज की इस स्वार्थी दुनिया में हम सच में इस उपदेश को जी पा रहे हैं? इसी सवाल का जवाब है यह कहानी— जब दुराचार ने एक विदेशी मेहमान को अंधेरे में डूबो दिया, तो एक साधारण दिलवाला टैक्सी ड्राइवर बना उसके लिए फरिश्ता। यह दास्तान है मानवता के पुनर्जागरण की।

परिचय: भारत का सपना

लंदन की धुंधली सड़कों और टेम्स नदी के किनारे पली-बढ़ी 23 साल की एमली बचपन से भारत के रंगों और कहानियों में खोई रहती थी। एक आर्ट स्टूडेंट होने के नाते, राजस्थान के किले, बनारस की आरती, केरल की हरियाली, दिल्ली का इतिहास—इन सब को अपने कैनवस पर उतारना उसका सपना था। घरवालों की आशंका और दोस्तों की चिंता के बावजूद, वह अपने दृढ़ विश्वास के साथ भारत आने को तैयार थी—‘‘भारत जादुई देश है, वहाँ के लोग बहुत अच्छे होते हैं!’’

स्वप्न का टूटना

फरवरी की एक शाम एमली दिल्ली पहुंची। एयरपोर्ट से करोल बाग के ‘‘होटल नमस्ते इंडिया’’ रवाना हुई, जो इंटरनेट में अच्छी रेटिंग्स वाला था। होटल मैनेजर खन्ना ने चापलूस मुस्कान के साथ उसका स्वागत किया। पहले दो दिन मन के अनुरूप बीते—एमली ने दिल्ली के दर्शनीय स्थल देखे, डायरी में नोट्स लिखे, कैमरे में खूबसूरत लम्हे कैद किए।

लेकिन जल्दी ही उसे महसूस हुआ—होटल स्टाफ और खन्ना जरूरत से ज़्यादा उसकी निगरानी कर रहे हैं, बेवजह सवाल, महंगे टूर पैकेज का दबाव, मना करते ही बर्ताव खराब। सफाई आधी-अधूरी, हर चीज़ में ओवरचार्जिंग, घूरती निगाहें… एमली थोड़ा असहज रहने लगी।

फंसने की रात

चौथे दिन शाम को जब एमली कमरे में लौटी, देखा— दरवाजा थोड़ा खुला, अंदर एक कांच का गुलदस्ता पूरी तरह टूटा पड़ा। तभी मैनेजर और दो स्टाफ कमरे में घुस आए, खन्ना ने गुस्से में कहा, “मैडम, आपने कीमती गुलदस्ता तोड़ दिया! दस हज़ार का नुकसान, तुरंत भरिये—वरना पासपोर्ट और सारा सामान हमारे पास रहेगा। पुलिस का डर भी दिखाया, झूठा इल्ज़ाम लगाने की धमकी दी: “एक विदेशी लड़की की कौन सुनेगा?”

अजनबी देश में फंसी, लाचार और असहाय एमली रोने लगी। दो दिन बीते, वह कैदी की तरह कमरे में बंद रही। ना खाने की इच्छा, ना किसी से बात— मन का जादुई भारत, डरावने सपने में बदल चुका था।

आशा की किरण

तीसरी रात हिम्मत बटोरकर एमली ने कहा कि वह बाहर के एटीएम से पैसे निकालेगी। खन्ना ने होटल का एक कर्मचारी राजू उसके साथ भेजा। जैसे ही होटल से बाहर निकली, उसने तेज़ी से रोड पर खड़ी पहली टैक्सी पकड़ी और बोली, “कहीं भी ले चलो, बस यहाँ से दूर।”

यह टैक्सी ड्राइवर था—राजू। दिल्ली की सड़कों का अनुभवी, लेकिन इंसानियत के असल मायने जानने वाला—साँवला, 45 साल का, सच्ची आंखों के साथ। उसने घबराई, रोती एमली को देख, नरम आवाज में पूछा, “क्या हुआ मैडम, डरिए मत। मैं आपकी मदद करूँगा।” धीरे-धीरे एमली ने टूटी हिंदी और अंग्रेज़ी में सब बता दिया।

राजू का खून खौल उठा, उसने निश्चय किया, ‘‘मैडम, जब तक मैं हूँ, आपको कुछ नहीं होगा।’’ पुलिस जाना खतरनाक था, उसने कहा—‘‘आप मेरे घर चलिए। गरीब हूँ पर आप वहाँ सुरक्षित रहेंगी।’’

सच्चा मेजबान—गरीबी में भी अमीरी

राजू की बस्ती का घर दो कमरों का छोटा सा था, पर उसमें अपनापन और प्यार, पराएगी से कहीं ज्यादा था। उसकी पत्नी सीता, बूढ़ी मां, छोटी बेटी पिंकी—सब पहले घबराए, पर जब सच्चाई सुनी, तो सीता बोली, ‘‘चिंता ना करो बेटी, ये घर अब तुम्हारा है।’’

अपना डर भूल, एमली उन तीन दिनों में जैसे परिवार का हिस्सा बन गई—सीता के साथ रसोई में, मांजी से कहानियां, पिंकी के संग गुड़िया वाला खेल। वहाँ प्यार, भाईचारा, सुरक्षा थी। गरीबी के बावजूद, सब मिल-बांट कर खाते, हर त्याग में मुस्कान थी।

मुसीबत से मुक्ति—दोस्ती और जुगाड़

राजू जानता था, फर्ज़ तभी पूरा होगा जब एमली को पासपोर्ट और सामान मिल जाए। अपने टैक्सी ड्राइवर भाइयों—लखन, सलीम, जोसेफ—से सलाह कर एक फिल्मी योजना बनाई। एक दिन सलीम टूरिस्ट ऑफिसर बनकर होटल पहुंचा, शिकायत की धमकी दी और अंदर जाँच की माँग की। उसी समय नगर निगम वाले बनकर लखन और राजू ने होटल के पीछे स्मोक मशीन चला दी—सारा होटल अफरातफरी में खाली हो गया। जोसेफ वेटर के ड्रेस में, अंदर जाकर बड़ी होशियारी से एमली का पासपोर्ट और सामान लेकर पिछवाड़े भाग निकला।

सफलता! जब वह अपनी अमानत लेकर घर लौटा, सारा घर खुशियों से गूंज उठा। एमली राजू के पैरों में गिर गई, पर राजू ने रोक कर कहा, ‘‘तुम भी मेरी बेटी जैसी हो।’’

विदाई की घड़ी—नेकदिल का इनाम

राजू ने अपनी सारी जमा पूंजी से एमली का एयरटिकट कराया। एयरपोर्ट विदा करते वक्त, एमली ने अपनी कीमती चैन देने की कोशिश की, राजू ने विनम्रता से मना कर दिया—‘‘इंसानियत की कोई कीमत नहीं, बस मुझे यही तोहफा चाहिए कि आप हमारे देश के बारे में अच्छा सोचें।’’

नई सुबह—ईमानदारी की मिसाल

छः महीने बाद, एक दिन अचानक राजू के घर के बाहर विदेशी गाड़ी और कुछ गोर लोग दिखे, उसके दिल की धड़कन बढ़ गई। गाड़ी से उतरे एक बुजुर्ग सज्जन—‘‘क्या आप राजू हैं? मैं एमली का पिता हूँ, लंदन से आपका आभार प्रकट करने आया हूँ। आपने मेरी बेटी की इज़्ज़त व जान बचाई—यह कर्ज़ मैं कभी चुका नहीं सकता।’’

राजू भावुक हो गया; उसने पैसे लेने से मना कर दिया। तब जेम्स ने उससे कहा, “यह सिर्फ इनाम नहीं, निवेश है। मैं भारत में ‘अतिथि कैब्स’ नाम की सर्विस शुरू करना चाहता हूँ, जिसका मैनेजिंग डायरेक्टर तुम बनो। यह पचास लाख रुपये का फंड, दस गाड़ियाँ, और तुम्हारी बेटी और माँ की पढ़ाई व इलाज की जिम्मेदारी अब मेरी!’’ जेम्स ने होटल वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी शुरू कर दी।

निष्कर्ष—नेकी का मीठा फल

राजू की जिंदगी बदल गई—आज वह ‘अतिथि कैब्स’ के मालिक हैं, समाज के लिए नई मिसाल हैं। उन्होंने सैकड़ों मेहनती ड्राइवरों को रोज़गार दिया, अपनी बेटी को अच्छे स्कूल में पढ़ाया, अपनी माँ का इलाज करवाया। सबसे बड़ी बात—उनकी ईमानदारी को देश-दुनिया ने सलाम किया।

यह कहानी सिखाती है—अगर आपके भीतर इंसानियत है, अगर आप बिना स्वार्थ मदद करते हैं, तो ‘‘अतिथि देवो भवः’’ का फल आपको खुद-ब-खुद मिलता है। यही भारत की असली पहचान है—राजू जैसे लोग, जो हर मेहमान में ‘‘ईश्वर’’ देखते हैं।

अगर आपको यह प्रेरणादायक और दिल छूने वाली कहानी पसंद आये, तो इसे जरूर आगे बढ़ाएं—ताकि मानवता और मेहमान-नवाज़ी का संदेश दूर तक पहुँच सके।