भूखे बच्चे ने बस एक रोटी माँगी थी… करोड़पति ने जो किया, इंसानियत रो पड़ी | फिर जो हुआ, सब हिल गए

रोटी का बदला – सूरज, गुड़िया और वक्त का पहिया

अध्याय 1: भूख की पुकार

शाम का वक्त था। राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर में रॉयल वीआईपी इलाके का फाइव स्टार होटल “लग्जरी ग्रैंड” अपनी शानो-शौकत के साथ चमक रहा था। बाहर लग्जरी गाड़ियां आ जा रही थीं। अमीर महिलाएं हीरे-जवाहरात और रेशमी साड़ियों में सजी धजी उतर रही थीं। अंदर महंगे इत्र की खुशबू थी, हंसी-ठिठोली थी, जिंदगी का जश्न था।

लेकिन उसी ऊंची दीवार के बाहर, फुटपाथ पर हकीकत दम तोड़ रही थी। वहां बैठा था 12 साल का सूरज। कपड़े फटे, बाल धूल से सने, आंखों में आंसू। उसकी गोद में थी छोटी बहन गुड़िया – बुखार से तपती, ठंड से कांपती, भूख से तड़पती।
“भैया, बहुत भूख लगी है। पेट में चूहे दौड़ रहे हैं। बहुत दर्द हो रहा है।”

सूरज ने अपनी फटी शर्ट उतार कर बहन को ढकने की कोशिश की। आंखों में बेबसी थी। “बस थोड़ी देर और रुक, गुड़िया। मैं अभी तेरे लिए खाना लाता हूं। फिर तुझे दवाई भी खिलाऊंगा।”

डॉक्टर ने साफ कहा था, “खाली पेट दवाई दी तो बच्ची की जान जा सकती है।”
पिछले दो दिन से दोनों ने पानी की एक-एक बूंद के सिवा कुछ नहीं चखा था।

अध्याय 2: जूठन में उम्मीद

सूरज की नजर होटल के साइड गेट पर पड़ी। एक वेटर बड़ा सा डस्टबिन लेकर बाहर आया। उसमें मेहमानों का बचा खाना, रोटियां, चावल, पनीर की सब्जी डालकर चला गया। सूरज की आंखों में चमक आ गई। उसके लिए वो जूठन नहीं, उसकी बहन की सांसें थीं।

उसने गुड़िया का सिर जमीन पर टिकाया और बोला, “तू यहीं रुकना। मैं अभी आता हूं।”
भूख और मजबूरी इंसान से सब करवा देती है। सूरज दौड़कर डस्टबिन के पास पहुंचा। गंदगी का ख्याल भी नहीं आया। उसने हाथ डाला और एक साफ तंदूरी रोटी, दाल से भरा कटोरा निकाल लिया।
“हे भगवान, तेरा लाख लाख शुक्रिया।”

लेकिन जैसे ही वह पलटा, ऊंची एड़ी की तेज आवाज गूंजी। सामने खड़ी थी होटल की जनरल मैनेजर – माया अहूजा। महंगी साड़ी, डार्क मेकअप, इतना परफ्यूम कि गरीबों की बदबू भी न छू सके। वह सूरज को ऐसे घूर रही थी जैसे वह कोई इंसान नहीं, नाली का कीड़ा हो।

अध्याय 3: पत्थर दिल औरत का जहर

सूरज सहम गया। हाथ में रोटी थी। कांपती उंगलियों से फुटपाथ की तरफ इशारा करके बोला, “मैडम, वो मेरी बहन बहुत बीमार है। दवाई खानी है, पर पेट खाली है। प्लीज मैडम, यह जूठन ले जाने दीजिए। वरना वो मर जाएगी।”

माया ने नाक पर रुमाल रखा और दूर लेटी बच्ची को देखा। लेकिन एक औरत होते हुए भी उसके अंदर ममता नहीं जागी।
“बीमार है तो सरकारी अस्पताल ले जा। यह लग्जरी ग्रैंड है। तुम जैसे भिखारी यहां खड़े होकर मेरे होटल का क्लास खराब करते हो। मुझे उल्टी आ रही है तुम्हें देखकर। फेंको यह वापस।”

सूरज के आंखों से आंसू गिरने लगे। वो माया के पैरों में गिर पड़ा। “मैडम, आपके पैर पकड़ता हूं। मैं एक मां को खो चुका हूं। अपनी बहन को नहीं खोना चाहता। मुझे मार लो, लेकिन यह रोटी ले जाने दो।”

माया ने झटके से पैर पीछे खींच लिया। “दूर हट! खबरदार जो मुझे छुआ। मेरी सैंडल गंदी कर दी।”

फिर माया ने जो किया, शायद कोई डाइन भी ना करे। पास में सफाई कर्मचारी की बाल्टी पड़ी थी – फिनाइल और साबुन का गंदा पानी। माया ने वह बाल्टी उठाई और सूरज के हाथ में मौजूद रोटी-दाल पर पूरा पानी उड़ेल दिया।
बस इतना ही नहीं, उसने डस्टबिन में बचा सारा खाना भी फिनाइल से डुबो दिया।
अब वह खाना जहर बन चुका था। रोटी कीचड़ और फिनाइल में घुल गई।

सूरज सन्न रह गया। उसकी चीख गले में अटक गई। उसकी बहन की उम्मीद, उसकी भूख का इलाज – सब कुछ उसकी आंखों के सामने बर्बाद हो गया।

माया ने क्रूर हंसी-हंसते हुए कहा, “ले, अब खिला दे अपनी बहन को। यह होटल रईसों के लिए है। तुम जैसे भिखारियों के लिए यहां की हवा भी हराम है। अब दफा हो जा यहां से।”

सूरज कीचड़ में घुटनों के बल बैठकर फूट-फूट कर रोने लगा।

अध्याय 4: इंसानियत का उजाला

तभी सन्नाटे को चीरती एक दमदार आवाज गूंजी, “माया अहूजा!”

होटल के पोर्च में एक विंटेज कार रुकी थी। उसमें थे कुंवर रणवीर सिंह – जयपुर राजघराने के वारिस और होटल के मालिक।
वह आज अचानक निरीक्षण पर आए थे और अपनी कार से पूरा तमाशा देख चुके थे।
उनका चेहरा गुस्से से लाल था।
“शर्म नहीं आती तुम्हें? एक औरत होकर एक बच्ची की भूख और दर्द तुम्हें नहीं दिखा? अन्न में भगवान बसते हैं और तुमने अन्न पर फिनाइल डालकर अपनी इंसानियत का कत्ल कर दिया।”

“सर, मैं तो बस स्टैंडर्ड मेंटेन कर रही थी।”
“भाड़ में गया तुम्हारा स्टैंडर्ड!” रणवीर सिंह चिल्लाए।
“जिस जगह एक भूखा बच्चा रो रहा हो, वह जगह महल नहीं, जेल होती है। तुम जैसी पत्थर दिल औरत मेरे होटल की मैनेजर तो क्या, इस शहर में रहने लायक भी नहीं। यू आर फायर्ड। अभी के अभी निकल जाओ!”

फिर रणवीर सिंह रोते सूरज के पास झुके। उसके गंदे कीचड़ सने हाथ अपने हाथों में लिए। “रो मत मेरे बच्चे।”
फुटपाथ पर गए, बुखार से तपती गुड़िया को गोद में उठाया। महंगे शाही कुर्ते गंदे हो रहे थे, पर उन्हें कोई परवाह नहीं थी।
स्टाफ को हुक्म दिया – “तुरंत बेस्ट डॉक्टर बुलाओ और इन बच्चों के लिए मेरे पर्सनल किचन से शाही दावत तैयार करवाओ।”

उस रात जयपुर के उस आलीशान होटल में दो गरीब बच्चों ने वो खाना खाया, जो राजा-महाराजा भी मुश्किल से खाते हैं। गुड़िया का पूरा इलाज हुआ। रणवीर सिंह ने सूरज के सिर पर हाथ रखा, “बेटा, आज से तुझे कभी भीख नहीं मांगनी पड़ेगी। तेरी पढ़ाई, गुड़िया का इलाज – सब मेरी जिम्मेदारी। आज से तुम अनाथ नहीं हो।”

वक्त का पहिया घूमा। बहुत तेजी से घूमा।

अध्याय 5: वक्त का बदला – 20 साल बाद

20 साल बीत गए। लग्जरी ग्रैंड अब देश का नंबर वन होटल बन चुका था। विशाल कॉन्फ्रेंस हॉल में जश्न का माहौल था। स्टेज पर था हैंडसम सूट-बूट वाला नौजवान – सूरज सिंह, होटल का जनरल मैनेजर। उसके बगल में थी खूबसूरत डॉक्टर – डॉ. गुड़िया सिंह, शहर की सबसे बड़ी हार्ट स्पेशलिस्ट।

रणवीर सिंह के आशीर्वाद और परवरिश ने दो अनाथ बच्चों की तकदीर बदल दी थी।

प्रोग्राम खत्म होने के बाद सूरज अपने आलीशान कैबिन में बैठा था। तभी सिक्योरिटी गार्ड का इंटरकॉम आया, “सर, हाउसकीपिंग के लिए एक बूढ़ी औरत आई है। बहुत गरीब और लाचार लग रही है। दो दिन से भूखी है। कोई भी काम दे दो।”

सूरज ने कहा, “उसे इज्जत के साथ अंदर भेजो।”

दरवाजा खुला। एक बूढ़ी कमजोर औरत अंदर आई। सफेद बिखरे बाल, जगह-जगह फटी साड़ी, चेहरे पर झुर्रियों का जाल, कांपते कदमों से आई और हाथ जोड़ लिए, “मालिक माईबाप, मुझे कोई काम दे दो। झाड़ू-पोछा, बर्तन – मैं सब कर लूंगी। मेरा बेटा मुझे घर से निकाल चुका है, खाने को एक दाना नहीं है।”

अध्याय 6: कर्म का चक्र

सूरज फाइल देख रहा था। लेकिन वह आवाज, वह लहजा सुनते ही उसका हाथ रुक गया। उसने धीरे से नजरें उठाई। वक्त ने चेहरा बदल दिया था, जवानी और घमंड ढल चुके थे। लेकिन सूरज की आंखों ने उसे तुरंत पहचान लिया – यह माया अहूजा थी। वही घमंडी मैनेजर, जिसने 20 साल पहले उसे रोटी मांगने पर अपमानित किया था।

उस दिन के बाद माया की बदनामी इतनी हुई कि कहीं इज्जत की नौकरी नहीं मिली। वक्त ने उसे आज उसी होटल में सफाई की नौकरी मांगने पर मजबूर कर दिया, जहां कभी वह मालकिन बनकर राज करती थी।

सूरज कुर्सी से उठा। धीरे-धीरे उसके पास गया। टेबल से पानी का गिलास उठाया और माया की तरफ बढ़ाया, “काकी, प्यास लगी होगी, पानी पी लीजिए।”
माया ने कांपते हाथों से गिलास लिया, पानी पिया, आंखों में आंसू थे।
“जुग-जुग जियो बेटा, तुम बहुत नेक हो। भगवान तुम्हें तरक्की दे।”

सूरज ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “नेक मैं नहीं, वक्त है माया मैडम।”
“मैडम” सुनते ही माया के हाथ से गिलास छूट गया। पानी कालीन पर बिखर गया। वह डर से थरथर कांपने लगी, “तो तुम मेरा नाम कैसे जानते हो?”

सूरज ने उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा, “याद कीजिए, 20 साल पहले इसी होटल के डस्टबिन के पास एक भाई अपनी बीमार बहन के लिए रोटी मांग रहा था और आपने उस रोटी पर फिनाइल डाल दिया था। कहा था ना, मर जाने दो अपनी बहन को, यहां गंदगी मत फैलाओ।”

माया का चेहरा भूरा पड़ गया। उसकी नजर दीवार पर लगी फोटो पर गई – जिसमें रणवीर सिंह, सूरज और गुड़िया साथ खड़े थे। उसे सब याद आ गया। वो घुटनों के बल गिर पड़ी और फूट-फूट कर रोने लगी, “माफ कर दो साहब। मैंने एक औरत होकर ममता का गला घोट दिया था। मुझे मेरे पापों की सजा मिल गई। मैं नरक में जी रही हूं।”

अध्याय 7: माफी और इंसानियत की जीत

सूरज ने झुककर उसे कंधों से थामा और उठाया। उसकी आंखों में बदले की आग नहीं, करुणा थी।
“उठिए काकी। मैं आपको पुलिस के हवाले नहीं करूंगा, ना ही धक्के मार के निकालूंगा। रणवीर बाऊजी ने मुझे सिखाया है कि किसी की मजबूरी का फायदा उठाना सबसे बड़ी कायरता है।”

उसने इंटरकॉम उठाया और अपनी बहन को बुलाया। थोड़ी देर में डॉक्टर गुड़िया अंदर आई। उसने भी माया को पहचान लिया, पर चुप रही।

सूरज ने कहा, “गुड़िया, यह माया आंटी हैं। इनका पूरा चेकअप करो। बहुत कमजोर लग रही हैं। और कैंटीन इंचार्ज को बोलो, इन्हें इज्जत से भरपेट खाना खिलाएं।”

माया सन्न रह गई। जिस बच्ची के मरने की उसने दुआ मांगी थी, आज वही डॉक्टर बनकर उसका इलाज करने जा रही थी। जिस बच्चे को उसने कीचड़ खिलाया था, आज वही उसे इज्जत की रोटी दे रहा था।

सूरज ने माया के हाथ में जॉइनिंग लेटर रखते हुए कहा, “आपको हाउसकीपिंग सुपरवाइजर की नौकरी मिल जाएगी। यहां आपको मेहनत की रोटी मिलेगी, अपमान की नहीं। बस एक बात हमेशा याद रखिएगा – वक्त, गवाही और भगवान कभी भी किसी का भी रूप बदल सकते हैं।”

माया अहूजा सूरज और गुड़िया के पैरों में गिर कर रोती रही। उस दिन उसकी भूख ही नहीं, उसकी आत्मा का भी शुद्धिकरण हो गया।

अध्याय 8: कहानी की सीख

सूरज ने अपना बदला थप्पड़ मारकर नहीं, बल्कि इज्जत और मदद देकर लिया। उसने साबित कर दिया कि ऊंचे पद पर बैठकर इंसान बड़ा नहीं होता, जिसका दिल बड़ा हो वही असली रईस होता है।

कर्म की चक्की बहुत धीरे चलती है, लेकिन जब पीसती है तो बहुत बारीक पीसती है।

अंतिम सवाल और संदेश

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जय हिंद।