कनाडा में फाइट देखने गयी थी पंजाबी लड़की , फाइटर ने थप्पड़ मार दिया, फिर उसने जो किया देख कर होश उड़
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स्वाभिमान की ज्वाला: बलविंदर कौर की कहानी
मुंबई की दोपहरें हमेशा व्यस्त रहती हैं। मरीन ड्राइव के पास फैले कांच के टावरों के बीच एक जगह थी, एलगेंट सूट्सको। यह शहर के सबसे मशहूर लग्जरी स्टोर्स में से एक था। अंदर कदम रखते ही ऐसा लगता था मानो किसी विदेशी फैशन हाउस में आ गए हों। नरम सुगंध, चमकते फर्श, मध्यम जैज म्यूजिक, और दीवारों पर टंगे ऊंचे-ऊंचे आईने, हर कोना पैसा और परिष्कार की कहानी कहता था।
आरव कपूर, 29 वर्ष का, इस स्टोर का मैनेजर था। वह तेज दिमाग वाला, महत्वाकांक्षी और सलीकेदार नौजवान था। ब्रांडेड सूट, महंगी घड़ी और परफेक्ट हेयर स्टाइल उसकी पहचान थे। वह मानता था कि हर ग्राहक की वर्थ उसके कपड़ों से दिखाई देती है।
“सर, आज शाम को एक बॉलीवुड एक्टर आने वाले हैं। शायद मीडिया भी आए,” उसकी असिस्टेंट मायरा सेन ने रिपोर्ट दी।
“अच्छा है,” आरव ने कहा। “सुनिश्चित करो कि हर चीज परफेक्ट हो और ध्यान रहे कोई रैंडम ग्राहक इधर-उधर ना भटके।”
मायरा मुस्कुराई। “जी सर।”
दोपहर के लगभग 3:00 बजे दरवाजे की घंटी बजी। कांच का ऑटोमेटिक दरवाजा खुला और एक बुजुर्ग व्यक्ति अंदर आए। उनकी चाल धीमी थी, पर आत्मविश्वास भरी। भूरे रंग का पुराना कोट, सफेद कमीज और हल्की सी मुस्कान। उन्होंने चारों ओर देखा जैसे कुछ ढूंढ रहे हों।
मायरा सबसे पहले आगे बढ़ी। “गुड आफ्टरनून सर, हाउ मे आई हेल्प यू?”
बुजुर्ग व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटी, मुझे एक सूट चाहिए किसी खास अवसर के लिए।”
“श्योर सर, आप किस रंग का सूट चाहते हैं?”
“कुछ क्लासिक जो शालीन लगे पर बहुत चमकीला ना हो।”
मायरा ने उन्हें स्टोर के एक कोने में ले जाकर कई विकल्प दिखाए। वह हर सूट को ध्यान से देखते, कपड़ा छूते, फिर धीरे से सिर हिलाते। उनकी आंखों में गहराई थी, जैसे हर धागे की कहानी समझ रहे हों। उसी समय आरव ने दूर से यह सब देखा और अपने एक कर्मचारी से कहा, “देखो, शायद यह रिटायर आदमी है। कुछ खरीदेगा नहीं। बस टाइम पास के लिए आया है। ध्यान ज्यादा मत दो।”
कर्मचारी हंसा। “जी सर।”
लेकिन मायरा को वह बात अच्छी नहीं लगी। उसे लगा जैसे किसी के सम्मान को कपड़ों से तोला जा रहा है। “सर, हर ग्राहक को समान व्यवहार देना चाहिए,” उसने कहा।
आरव ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा, “मायरा, तुम नहीं हो। यह बातें किताबों में अच्छी लगती हैं, पर बिजनेस में प्रैक्टिकल होना पड़ता है।”
मायरा चुप हो गई, पर उसका मन खिन्न था। बुजुर्ग व्यक्ति ने एक ग्रे ब्लू सूट उठाया। कपड़ा इतालवी ऊन का था। बहुत महंगा। उन्होंने बोले, “क्या मैं इसे ट्राई कर सकता हूं?”
मायरा ने तुरंत कहा, “जरूर सर, आइए।”
आरव ने बीच में कहा, “सर, यह प्रीमियम रेंज है। करीब ₹500 का सूट है। क्या आप ट्रायल के लिए निश्चित हैं?”
वह मुस्कुराए। “हां बेटा, एक बार पहन लूं तो समझ आ जाएगा कि सही लगेगा या नहीं।”
आरव ने आंखें घुमाई। “वो ट्राई करेगा। फिर कुछ खरीदेगा नहीं।” पर मायरा ने झट से सूट लिया और उन्हें ट्रायल रूम में ले गई। कपड़े बदलने में कुछ मिनट लगे। स्टोर में बाकी स्टाफ हसीन मजाक में लगा था। एक बोला, “मायरा, देखना। फोटो खिंचवा कर चला जाएगा।”
दूसरा बोला, “अरे, ऐसे लोग बस ऐसी का मजा लेने आते हैं।”
मायरा ने नाराज होकर कहा, “कम से कम इतनी उम्र की तो रखो।”
उसी समय चेंजिंग रूम का पर्दा हिला और वो बुजुर्ग व्यक्ति बाहर आए सूट पहनकर। पूरा स्टोर पल भर को शांत हो गया। वो सूट जैसे उनके लिए बना था। परफेक्ट फिट, गरिमा, सादगी और शालीनता। उनकी झुर्रियों में एक चमक थी। जैसे समय खुद झुक गया हो।
मायरा बोली, “सर, आप इस सूट में बेहद शानदार लग रहे हैं।”
वो मुस्कुराए, “धन्यवाद बेटी। असली सुंदरता तो कपड़ों में नहीं, इंसान के दिल में होती है।”
उनकी बात में इतनी सच्चाई थी कि मायरा का दिल छू गया। पर आरव फिर बीच में आया। “सर, अगर आप खरीदना चाहें तो हमारे पास लिमिटेड ऑफर चल रहा है। बस कार्ड या कैश पेमेंट स्वीकार करते हैं।”
“क्या मैं चेक से दे सकता हूं?”
आरव ने हल्की हंसी में कहा, “सर, यह ब्रांडेड स्टोर है। हम चेक नहीं लेते। आजकल कौन चेक से पेमेंट करता है?”
मायरा ने धीरे से कहा, “सर, शायद कोई अपवाद हो सकता है।”
आरव ने उसे रोक दिया। “पॉलिसी इज पॉलिसी। मायरा।”
बुजुर्ग व्यक्ति ने धीरे से सिर हिलाया। “ठीक है बेटा, कोई बात नहीं। मैं किसी और दिन आऊंगा।”
वो सूट उतार कर बड़े ध्यान से मोड़ा, जैसे कोई अनमोल चीज संभाल रहे हों। फिर मुस्कुराते हुए बोले, “धन्यवाद बेटी। सेवा अच्छी की तुमने।”
मायरा की आंखें नम थीं। आरव ने बस सिर झुकाकर एक नकली मुस्कान दी। वह बुजुर्ग धीरे-धीरे दरवाजे की ओर बढ़े। बाहर की धूप उन पर गिर रही थी। दरवाजे के बाहर निकलते वक्त उन्होंने मुड़कर एक बार देखा और मुस्कुरा दिए। मायरा को लगा जैसे वो मुस्कान कुछ कह रही हो। “समय बताएगा कि असली ब्रांड क्या है।”
वो चले गए और कुछ ही देर में स्टोर फिर से अपने रोजमर्रा के रूटीन में लौट आया। पर मायरा के मन में कुछ बदल गया था। वह सोच रही थी, “अगर वह मेरे पिता जैसे होते तो क्या मैं उनके साथ ऐसा व्यवहार होने देती?”

आरव ने नोटिस किया कि वह चुप है। “क्यों मायरा? क्या हुआ? ज्यादा सोचो मत। यह दुनिया प्रैक्टिकल है।”
“सर,” उसने कहा, “प्रैक्टिकल होना गलत नहीं। पर इनसेंसिटिव होना भी सही नहीं।”
आरव ने हंसते हुए कहा, “तुम आइडियलिस्ट हो। इसलिए इस फील्ड में ज्यादा आगे नहीं जा पाओगी।”
वो चली गई। पर उसके मन में एक दृढ़ निश्चय था। “मैं साबित करूंगी कि इंसानियत भी प्रोफेशनलिज्म का हिस्सा है।”
कनाडा की नई शुरुआत
कनाडा के ब्रमटन शहर में बलविंदर कौर की कहानी शुरू होती है। पंजाब के खेतों की मिट्टी में पली बढ़ी एक साधारण सी महिला, जो अपनी आंखों में घर परिवार के सपने लिए सात समंदर पार कनाडा आ बसी थी। वह तो बस अपने पति के साथ एक लाइव फाइट का रोमांच देखने गई थी। पर उसे क्या पता था कि रिंग की चैंपियन एक घमंडी और ताकतवर फाइटर उसे ही अपना अगला शिकार बना लेगी।
बलविंदर कौर, 40 साल की, जिसके चेहरे पर एक घरेलू शांति और आंखों में एक अजीब सी गहराई थी। उसकी जिंदगी सुबह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने, पति हरमन के लिए परांठे बनाने और फिर दिन भर घर के कामों में उलझे रहने की एक सीधी साधी लय में चलती थी। हरमन यहां एक छोटी सी ट्रांसपोर्ट कंपनी चलाता था और बलविंदर उसकी सबसे बड़ी ताकत थी। उसके आस-पड़ोस के लोग उसे एक शांत, मिलनसार और मेहनती औरत के रूप में जानते थे, जिसके हाथ के बने खाने की तारीफें दूर-दूर तक होती थीं।
पर कोई नहीं जानता था कि इस शांत सी दिखने वाली गृहिणी के अतीत में एक ऐसा तूफान छिपा है जिसकी गूंज आज भी उसके दिल के किसी कोने में जिंदा थी। यह कहानी शुरू होती है आज से 25 साल पहले पंजाब के माझा क्षेत्र के एक छोटे से गांव से। बलविंदर इस गांव के सबसे सम्मानित पहलवान सरदार जरल सिंह की इकलौती बेटी थी। जरल सिंह का गांव में अपना अखाड़ा था, जहां दूर-दूर से नौजवान कुश्ती के दांव पेच सीखने आते थे।
पिता की उम्मीदें
जरल सिंह की एक ही हसरत थी कि उनका एक बेटा हो जो उनकी पहलवानी की विरासत को आगे बढ़ाए। पर किस्मत ने उन्हें एक बेटी दी। गांव वालों और रिश्तेदारों ने बहुत ताने दिए। “लो पहलवान जी के घर तो पहलवान की जगह परी आ गई।” जनरल सिंह शुरू में निराश हुए। पर जैसे-जैसे बलविंदर बड़ी होने लगी, उन्होंने अपनी बेटी में एक ऐसी आग, एक ऐसी हिम्मत देखी, जो उन्होंने अपने अखाड़े के बड़े-बड़े पहलवानों में भी नहीं देखी थी।
उन्होंने समाज की परवाह किए बिना एक क्रांतिकारी फैसला लिया। वह अपनी बेटी को एक पहलवान बनाएंगे। हर रोज जब दुनिया सो रही होती, सूरज उगने से पहले जनरल सिंह अपनी नन्ही सी बलविंदर को अखाड़े की मिट्टी में ले जाते। उन्होंने उसे कुश्ती का हर दांव सिखाया। धोबी पछाड़, धाक, बाहरली तांग। उन्होंने उसे सिर्फ लड़ना नहीं सिखाया, बल्कि उसे मिट्टी की इज्जत करना, अपने विरोधी का सम्मान करना और अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करना सिखाया। वह कहते थे, “पुत्तर, असली ताकत जिस्म में नहीं, जमीर में होती है और जमीर कहता है कि ताकत का इस्तेमाल कभी गुरूर के लिए नहीं बल्कि स्वाभिमान की रक्षा के लिए करना।”
बलविंदर अपने पिता की उम्मीदों पर खरी उतरी। वह लड़कों से बेहतर दांव लगाती थी। उसकी पकड़ में लोहे जैसी मजबूती और उसके इरादों में फौलाद जैसी दृढ़ता थी। पर यह सब दुनिया की नजरों से छिपा हुआ था। जनरल सिंह जानते थे कि उनका समाज एक लड़की को अखाड़े में स्वीकार नहीं करेगा।
पहली चुनौती
पर एक दिन जब बलविंदर 15 साल की थी, गांव में कुश्ती का एक बड़ा दंगल हुआ। पड़ोसी गांव का एक पहलवान, जो अपने घमंड के लिए मशहूर था, खुलेआम चुनौती दे रहा था कि कोई उसे हरा नहीं सकता। जनरल सिंह के अखाड़े के सारे पहलवान उससे हार गए। जनरल सिंह का सिर शर्म से झुका जा रहा था। तभी बलविंदर, जो दुपट्टे से अपना चेहरा ढके हुई थी, भीड़ से निकली और अपने पिता के पैरों पर गिर पड़ी। “बाबूजी, एक मौका दीजिए। आज आपके सम्मान का सवाल है।”
उस दिन उस दंगल में जो हुआ, वह गांव के इतिहास में एक लेजेंड बन गया। उस नकाबपश पहलवान ने, जिसे सब एक लड़का समझ रहे थे, उस घमंडी पहलवान को कुछ ही मिनटों में धूल चटा दी। जब उसने अपना नकाब हटाया और लोगों ने बलविंदर का चेहरा देखा, तो वहां सन्नाटा छा गया। कुछ लोगों ने तालियां बजाई, पर ज्यादातर लोगों की आंखों में हैरानी और अस्वीकृति थी। उस दिन के बाद जनरल सिंह को समाज से बहुत कुछ सुनना पड़ा। पर उन्हें अपनी बेटी पर गर्व था।
कुछ साल बाद जब वह बीमार पड़े और बिस्तर पर आ गए, तो उन्होंने अपनी बेटी का हाथ पकड़ कर एक वचन लिया। “पुत्तर, यह दुनिया अभी तुम्हारे जैसी शेरनियों के लिए तैयार नहीं है। मुझसे वादा कर कि तू एक आम लड़की की तरह जिंदगी जिएगी, शादी करेगी, घर बसाएगी और अपनी इस कला का इस्तेमाल कभी भी बेवजह गुस्से में या शोहरत के लिए नहीं करेगी। हां, अगर कभी तेरे या किसी मजलूम के स्वाभिमान पर आंच आए, तो पीछे मत हटना।”
बलविंदर ने रोते हुए अपने पिता को वचन दिया। पिता के जाने के बाद उसने अखाड़े की मिट्टी को माथे से लगाया और उसे हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। कुछ साल बाद उसकी शादी कनाडा में रहने वाले एक अच्छे नेक दिल इंसान हरमन से हो गई। हरमन को बस इतना पता था कि उसकी पत्नी के पिता पहलवान थे और वह एक मजबूत दिल की औरत है। पर वह उस ज्वाला से अनजान था जिसे बलविंदर ने अपने दिल के अंदर कहीं गहरे दफन कर दिया था।
गृहणी के रूप में जीवन
कनाडा आकर बलविंदर पूरी तरह एक गृहिणी बन गई। उसने अपने दो बच्चों की परवरिश में खुद को डुबो दिया। वह खुश थी। पर कभी-कभी अकेले में उसे अखाड़े की वह सौधी मिट्टी, पिता की वह बुलंद आवाज और कुश्ती की वह ललकार बहुत याद आती। पर वह अपने वचन से बंधी थी। उसने अपनी पहलवानी को एक राज बनाकर अपने अतीत के संदूक में बंद कर दिया था।
और फिर 15 साल बाद वो रात आई जिसने उस बंद संदूक के ताले को एक ही झटके में तोड़ दिया। उस हफ्ते हरमन का जन्मदिन था। हरमन और उसके दोस्त कनाडा में होने वाली लोकल फीमेल फाइट लीग के बहुत बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने जिद करके बलविंदर को भी अपने साथ चलने के लिए मना लिया। “चल बलविंदर, तुझे भी दिखाते हैं कि यहां की कुड़ियां कैसे लड़ती हैं। तुझे बहुत मजा आएगा।”
बलविंदर शुरू में हिचकिचाई। लड़ाई झगड़ा यह सब उसे अब पसंद नहीं था। पर पति की खुशी के लिए वह तैयार हो गई।
फाइट लीग का रोमांच
शनिवार की रात ब्रमटन का सबसे बड़ा इंडोर स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। तेज संगीत, लेजर लाइट्स का धुआं और हजारों लोगों का शोर, माहौल में एक अजीब सा नशा था। बलविंदर इस दुनिया में खुद को थोड़ा अलग-थलग महसूस कर रही थी। उसने एक साधारण सा पंजाबी सूट पहना था और सिर पर दुपट्टा ओढ़ रखा था। वह अपने पति और उसके दोस्तों के साथ रिंग के बिल्कुल पास वाली सीटों पर बैठी थी।
फाइट शुरू हुई। रिंग में दो लड़कियां एक दूसरे पर बेरहमी से वार कर रही थीं। बलविंदर ने ऐसा कुछ पहले कभी नहीं देखा था। यह कुश्ती नहीं थी। कुश्ती में सम्मान होता है। नियम होते हैं। यहां तो बस जीतने की एक जंगली भूख थी। आखिरी फाइट थी उस लीग की चैंपियन विरोनिका द विंडिकेटर की। विरोनिका एक लंबी चौड़ी बेहद ताकतवर फाइटर थी, जिसके नाम से ही उसकी विरोधी कांपती थी। वह सिर्फ अपनी ताकत के लिए नहीं बल्कि अपने बुरे व्यवहार और घमंड के लिए भी जानी जाती थी। वह अक्सर जीतने के बाद अपने हारे हुए विरोधी का मजाक उड़ाती थी।
फाइट शुरू हुई। विरोनिका अपनी विरोधी पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी। उसने कुछ ही मिनटों में उसे बुरी तरह से हराकर नॉकआउट कर दिया। पूरा स्टेडियम “विरोनिका, विरोनिका” के नारों से गूंज उठा। बलविंदर भी यह सब देख रही थी। वह विरोनिका की ताकत से प्रभावित थी। पर उसके लड़ने के तरीके में जो क्रूरता और असम्मान था, उसे देखकर उसका मन खट्टा हो गया। यह ताकत नहीं, यह तो वह वैशीपन है। उसने मन में सोचा।
विरोनिका का अपमान
जीतने के बाद विरोनिका रिंग में घूम-घूम कर दर्शकों का अभिवादन स्वीकार कर रही थी। उसकी आंखों में जीत का नशा और गुरूर साफ झलक रहा था। वह रिंग के किनारे आई जहां बलविंदर और उसका परिवार बैठा था। हरमन और उसके दोस्त भी बाकी लोगों की तरह शोर मचा रहे थे और तालियां बजा रहे थे। बलविंदर भी माहौल में बहकर हल्की सी मुस्कान के साथ ताली बजा रही थी।
तभी विरोनिका की नजर बलविंदर पर पड़ी। शायद उसे बलविंदर का साधारण पहनावा उस चमकदमक वाली दुनिया में एक धब्बे की तरह लगा या शायद बलविंदर की शांत आंखों में उसे अपने लिए कोई चुनौती दिखी या शायद वह बस अपनी ताकत के नशे में चूर थी। वह बलविंदर के बिल्कुल सामने आकर खड़ी हो गई।
“व्हाट आर यू लुकिंग एट आंटी? गो मेक सम रोटीज। क्या देख रही हो आंटी? जाओ जाकर रोटियां बनाओ,” उसने ऊंची आवाज में अपमानजनक लहजे में कहा। बलविंदर, हरमन और उसके दोस्त सब सन्न रह गए। उन्हें समझ नहीं आया कि यह क्या हो रहा है। बलविंदर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह बस शांत खड़ी रही। शायद उसकी यह खामोशी विरोनिका को और चुभ गई। उसे लगा कि उसकी बेइज्जती का कोई असर नहीं हुआ।
वह आगे बढ़कर जो किया उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उसने अपना हाथ उठाया और हजारों लोगों के सामने कैमरों के सामने बलविंदर के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। थप्पड़ की आवाज तेज संगीत के शोर में दब गई। पर उसने बलविंदर के अंदर सोए हुए तूफान को जगा दिया। यह सिर्फ एक थप्पड़ नहीं था। यह उसके स्वाभिमान पर हमला था। यह उसके पिता की दी हुई सीख पर हमला था। यह उसकी पहचान पर हमला था। “पुत्तर, अगर कभी तेरे या किसी मजलूम के स्वाभिमान पर आंच आए तो पीछे मत हटना।”
पिता के यह शब्द उसके कानों में बिजली की तरह कौंधे। एक पल के लिए सब कुछ जैसे थम गया। बलविंदर की आंखों की शांति एकाएक गायब हो गई। उसकी जगह एक ऐसी ज्वाला धधक उठी जिसे देखकर हरमन भी डर गया। उसने अपनी पत्नी का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था।
“बलविंदर, जाने दे, छोड़ दे। यह प्रोफेशनल फाइटर है। यह तुझे मार डालेगी,” हरमन ने उसे पकड़ने की कोशिश की। पर बलविंदर ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ाया। उसकी पकड़ में इतनी ताकत थी कि हरमन पीछे हट गया। अब बलविंदर की नजरें सिर्फ और सिर्फ विरोनिका पर थीं, जो अभी भी हंस रही थी। अपनी इस हरकत पर गर्व महसूस कर रही थी।
फाइट की तैयारी
बलविंदर ने कुछ कहा नहीं। उसने बस अपना दुपट्टा अपनी कमर में कसा। यह वही हरकत थी जो उसके पिता दंगल में उतरने से पहले करते थे। और फिर इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, उसने दौड़कर रिंग की रस्सियों पर हाथ रखा और एक ऐसी फुर्ती और सधे हुए अंदाज में छलांग लगाई कि वहां मौजूद सारे सिक्योरिटी गार्ड और रेफरी बस देखते रह गए।
एक आम सी दिखने वाली औरत का यह पेशेवर अंदाज हैरान करने वाला था। अब बलविंदर रिंग के अंदर थी, विरोनिका के सामने। स्टेडियम में अब नारों का शोर नहीं बल्कि एक रहस्यमई खामोशी थी। हर कोई हैरान था कि यह हो क्या रहा है। विरोनिका अब भी हंस रही थी। “ओ तो आंटी लड़ना चाहती हैं। लगता है आज किसी को अस्पताल जाने का शौक है।”
रेफरी और सिक्योरिटी गार्ड रिंग में भागे। “मैम, आप नीचे उतर जाइए। आप ऐसा नहीं कर सकती।” पर तभी फाइट का प्रमोटर, जो यह सब देख रहा था, उसकी आंखों में डॉलर के चिन्ह चमक उठे। उसने सोचा, “यह तो अप्रत्याशित ड्रामा है। इससे तो शो और हिट हो जाएगा।”
उसने माइक पर घोषणा की, “लेडीज एंड जेंटलमैन, लगता है हमारी चैंपियन को एक अनचाही चुनौती मिल गई है। क्या कहते हैं आप लोग? क्या एक राउंड हो जाए?” भीड़ जो अब तक कंफ्यूज थी, अब उत्साहित हो उठी। उन्हें एक मसालेदार अनपेक्षित मुकाबला देखने को मिल रहा था। पूरा स्टेडियम “फाइट, फाइट, फाइट” के नारों से गूंजने लगा।
विरोनिका ने अपने ग्लव्स पहने। “ठीक है। मैं इस मोटी औरत को 1 मिनट में धूल चटा दूंगी।”
रेफरी ने बेमन से दोनों को रिंग के बीच में बुलाया। एक तरफ थी प्रोफेशनल एमएमए फाइटर, जिसके शरीर पर हर मांसपेशी फौलाद की तरह थी और दूसरी तरफ थी बलविंदर कौर, एक साधारण पंजाबी सूट में, जिसके चेहरे पर अब ना कोई डर था, ना कोई गुस्सा, बस एक अजीब सी शांति थी। एक एकाग्रता थी जो किसी योगी में ही दिखती है।
फाइट की घंटी बजी। विरोनिका अपनी पूरी ताकत से बलविंदर पर झपटी। उसने तेज किक्स और पंचेस की बौछार कर दी। वह सोच रही थी कि एक ही वार में इस औरत को नीचे गिरा देगी। पर वह हैरान रह गई। बलविंदर किसी हवा के झोंके की तरह उसके हर वार से बच रही थी। उसकी फुर्ती उसकी शारीरिक बनावट से बिल्कुल मेल नहीं खा रही थी। वो विरोनिका के हमलों से ऐसे बच रही थी जैसे वह पहले से जानती हो कि अगला वार कहां पड़ने वाला है।
बलविंदर का जवाब
भीड़ हैरान थी। हरमन अपनी आंखें फाड़े यह सब देख रहा था। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। विरोनिका का गुस्सा अब बढ़ने लगा। उसने एक तेज हाई किक मारी, जो अगर लग जाती तो बलविंदर का काम तमाम कर देती। पर बलविंदर नीचे झुकी, किक से बची और एक ही झपट्टे में विरोनिका की टांग पकड़ कर उसे अपनी ओर खींच लिया। अब विरोनिका का संतुलन बिगड़ चुका था। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, बलविंदर ने उसे अपने कंधे पर उठाया। हवा में घुमाया और अखाड़े की मिट्टी की कसम खाते हुए उसे उठाकर रिंग के फर्श पर पटक दिया।
यह कुश्ती का वही प्रसिद्ध दांव था, धोबी पछाड़। विरोनिका दर्द से कराह उठी। पूरा स्टेडियम सन्न रह गया। यह क्या था? यह कोई स्ट्रीट फाइट नहीं थी। यह एक शुद्ध तकनीकी कुश्ती का प्रदर्शन था। विरोनिका जल्दी से उठी। उसकी आंखों में अब हैरानी और गुस्सा था। वह फिर से बलविंदर की ओर दौड़ी। पर बलविंदर अब पूरी तरह से अपने रंग में आ चुकी थी। उसने विरोनिका को पास आने दिया और फिर अपनी अद्भुत पकड़ का इस्तेमाल करते हुए उसे एक ऐसे लॉक में जकड़ लिया जिससे निकलना नामुमकिन था।
यह एमएमए का कोई सबमिशन होल्ड नहीं था। यह कुश्ती की एक पारंपरिक पकड़ थी जिसे ढाक कहते हैं। विरोनिका की सांसें उखड़ने लगीं। उसने अपनी पूरी ताकत लगा दी, पर वह उस पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाई। उसका घमंड, उसका नशा सब टूट रहा था। कुछ ही सेकंड में उसने हार मानते हुए जमीन पर हाथ पटकना शुरू कर दिया। उसने टैप आउट कर दिया। घंटी बजी, फाइट खत्म हो चुकी थी।
निष्कर्ष और पहचान
एक पल के लिए पूरे स्टेडियम में मौत जैसा सन्नाटा छा गया। फिर वो सन्नाटा तालियों, सीटियों और एक अविश्वसनीय शोर के तूफान में बदल गया। लोगों को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। एक साधारण सी दिखने वाली आंटी ने उनकी अजय चैंपियन को हरा दिया था। रेफरी ने कांपते हुए बलविंदर का हाथ उठाकर उसे विजेता घोषित किया। बलविंदर ने अपना हाथ नीचे कर लिया। उसने विरोनिका की ओर देखा, जो अब भी जमीन पर पड़ी दर्द और शर्मिंदगी से कर रही थी। बलविंदर की आंखों में जीत का गुरूर नहीं बल्कि एक शांत सा संदेश था। “यह होता है सम्मान का मतलब।”
वह चुपचाप रिंग से उतरी। प्रमोटर उसके पीछे भागा। “मैम, रुकिए एक मिनट। मैं आपको एक कॉन्ट्रैक्ट देना चाहता हूं। आप अगली चैंपियन बन सकती हैं।”
बलविंदर रुकी। उसने प्रमोटर की ओर देखा और बड़ी शांति से पंजाबी में कहा, “मैं कोई फाइटर नहीं हूं। मैं एक मां हूं। एक पत्नी हूं। मैंने तो बस अपने स्वाभिमान की लड़ाई लड़ी थी जो अब खत्म हो गई है।”
उसने भीड़ में अपने पति हरमन को ढूंढा, जो अब भी सदमे और गर्व के मिले-जुले भाव के साथ खड़ा था। उसने उसका हाथ पकड़ा और दोनों चुपचाप उस शोर भरे स्टेडियम से बाहर निकल गए। पीछे एक ऐसी किंवदंती छोड़कर जिसे ब्रमटन शहर शायद कभी नहीं भुला पाएगा।
समाज पर प्रभाव
अगले दिन यह खबर पूरे कनाडा के भारतीय समुदाय में आग की तरह फैल गई। “पराठे बनाने वाली ने चैंपियन को हराया। पंजाबी शेरनी ने सिखाया सबक।” ऐसी सुर्खियों से अखबार और सोशल मीडिया भरे पड़े थे। बलविंदर कौर रातोंरात एक गुमनाम गृहिणी से एक सेलिब्रिटी बन गई थी। एक ऐसी हीरो जिसने यह साबित कर दिया था कि असली ताकत जिम में नहीं बल्कि जमीर में होती है।
दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी भी इंसान को उसके बाहरी रूप से कभी नहीं आंकना चाहिए। हर इंसान के अंदर एक कहानी, एक ताकत छिपी होती है जिसे सही समय पर छेड़ने पर वह कुछ भी कर सकती है। स्वाभिमान ही इंसान का सबसे बड़ा गहना है और उसकी रक्षा करना हर इंसान का धर्म है।
अगर बलविंदर कौर की इस कहानी ने आपके दिल में भी स्वाभिमान की एक छोटी सी लौ जलाई है तो इस वीडियो को एक लाइक जरूर करें। हमें कमेंट्स में बताएं कि आपको बलविंदर का फाइट के बाद कॉन्ट्रैक्ट ठुकरा देने का फैसला कैसा लगा। इस कहानी को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि यह संदेश हर किसी तक पहुंच सके और ऐसी ही और दिल को छू लेने वाली सच्ची और प्रेरणादायक कहानियों के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूलें। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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