पति विदेश से लौटा… तो पत्नी और माँ-बाप रेलवे स्टेशन पर भीख माँगते मिले… आगे जो हुआ उसने सबका दिल दहला दिया
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दिल्ली एयरपोर्ट से बाहर निकलते हुए अजय के चेहरे पर चमक थी। दो साल बाद वह अपने वतन की मिट्टी को छू रहा था। सऊदी अरब में मेहनत-मजदूरी करके जो पैसा उसने कमाया था, उससे अब उसे लग रहा था कि उसकी ज़िंदगी बदल जाएगी। वह सोच रहा था कि माँ-बाप खुश होंगे, पत्नी ज्योति उसकी बाहों में दौड़कर आ जाएगी, और भाई-भाभी को भी गर्व होगा कि छोटे भाई ने विदेश जाकर पैसा कमाया।
लेकिन किस्मत ने उसके लिए एक ऐसा मंजर सजाकर रखा था जिसकी कल्पना तक उसने कभी नहीं की थी।
स्टेशन पर हैरान कर देने वाला सच
दिल्ली से रायबरेली जाने वाली ट्रेन पकड़कर अजय घर की तरफ रवाना हो गया। रास्ते में ट्रेन एक छोटे से जंक्शन पर रुकी। अजय सोचा— “अभी तो आधा घंटा है, क्यों न कुछ चाय-नाश्ता ले लूँ।”
जैसे ही वह प्लेटफॉर्म पर उतरा, उसकी निगाह सामने पड़ी— और उसका दिल दहल गया।
एक बुजुर्ग औरत काँपते हाथों में कटोरा लिए यात्रियों से पैसे माँग रही थी। पास ही एक बूढ़ा आदमी फटे हुए कपड़ों में आँखें नीची किए खड़ा था। और वहीँ… उसका दिल सीने से बाहर निकलने को था… उसकी अपनी पत्नी ज्योति, सिर झुकाए यात्रियों से कह रही थी—
“साहब, कुछ दे दीजिए… दो दिन से कुछ नहीं खाया।”
अजय की आँखें फटी रह गईं। पैर सुन्न हो गए। यह सब क्या है? उसकी माँ, उसका बाप, उसकी पत्नी… रेलवे स्टेशन पर भीख क्यों माँग रहे हैं?
ज्योति की निगाह जब अपने पति पर पड़ी तो वह उसी पल फूट-फूट कर रो पड़ी। वह ट्रेन की भीड़, लोगों की परवाह किए बिना अजय के पैरों से लिपट गई।
भाभी के जाल में उलझा अजय
दो साल पहले की बातें याद आते ही अजय का दिल काँप उठा।
उसकी भाभी— तेजतर्रार और चालाक। शादी के बाद से ही उसने अजय को अपने मीठे बोल और इशारों में जकड़ लिया था। अजय इतना अंधा हो चुका था कि अपनी पत्नी ज्योति को वह नज़रअंदाज़ करता, ताने देता, मारता-डाँटता।
ज्योति, एक गरीब लेकिन नेकदिल लड़की, चुपचाप सब सहती रही। उसे कभी पति का प्यार नसीब नहीं हुआ।
फिर एक दिन भाभी ने कहा—
“देवर जी, विदेश जाओ, खूब पैसा कमाओ। पैसा होगा तो मजे ही मजे होंगे।”
अजय ने अपनी भाभी की बात मानी और सऊदी चला गया। जाते वक्त उसने अपने बूढ़े माँ-बाप की देखभाल की जिम्मेदारी भाई-भाभी को सौंप दी।
धोखा और बर्बादी
लेकिन जिस पर भरोसा किया, वही दुश्मन निकल गए।
भाभी ने लालच में आकर पति योगेश को समझाया। और दोनों ने धोखे से बूढ़े माँ-बाप से सारी जमीन-जायदाद अपने नाम करवा ली। एक दिन उन्हें घर से धक्के मारकर निकाल दिया।
बेचारे माँ-बाप के पास अब न पैसा रहा, न ठिकाना। मजबूरी में उन्हें स्टेशन पर भीख माँगनी पड़ी।
उधर ज्योति को भी घर में ताने सुनने पड़े। आखिरकार उसने मायके का सहारा लिया लेकिन वहाँ भी अपमान मिला। वह रो-रोकर थक चुकी थी। अंत में उसने ठान लिया—
“अब चाहे भीख माँगनी पड़े, लेकिन अपमानित होकर नहीं रहूँगी।”
वह भी अपने सास-ससुर के साथ स्टेशन पर आ मिली। वही उसका नया घर बन गया।
दो साल बाद का सामना
अजय के होश उड़ चुके थे।
वह अपनी पत्नी के पैरों पर गिर पड़ा—
“ज्योति… मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें कभी समझा ही नहीं। तुम कितनी नेक हो, मैं अंधा था जो भाभी के जाल में फँस गया।”
माँ-बाप की आँखों से आँसू टपक रहे थे। उन्होंने कहा—
“बेटा, तुझसे भी गलती हुई, और तेरे भाई-भाभी से भी। लेकिन तेरी पत्नी ने हमें संभाला। अगर यह ना होती, तो हम कब के मर चुके होते।”
उस दिन प्लेटफॉर्म पर चारों एक-दूसरे से लिपटकर रोए।
नए सिरे से जीवन
अजय के पास अब कुछ नहीं था। सारा पैसा वह भाभी के खाते में डाल चुका था।
लेकिन उसने हार नहीं मानी।
वह अपने परिवार को लेकर दूसरे शहर चला गया। मंडी में पल्लेदारी करने लगा। ज्योति ने कहा—
“मुझे एक छोटी-सी सब्जी की दुकान दिलवा दो। हम दोनों मिलकर मेहनत करेंगे।”
धीरे-धीरे दुकान चल निकली। बूढ़े माँ-बाप भी दुकान पर बैठ जाते। थोड़े ही समय में उनका धंधा बढ़ने लगा। अजय ने कड़ी मेहनत से खुद की आढ़त खोल ली। देखते ही देखते उन्होंने जमीन खरीदी, घर बनाया और अपनी खोई इज्जत वापस पा ली।
कर्म का फल
उधर योगेश और उसकी पत्नी सारा पैसा उड़ाकर ससुराल वालों के रहमोकरम पर जीने लगे। लेकिन जब पैसा खत्म हुआ तो उन्हें भी घर से निकाल दिया गया। अब वही लोग दर-दर की ठोकरें खा रहे थे।
एक दिन भटकते हुए वे उसी मंडी में पहुँचे जहाँ अजय अब बड़ा व्यापारी बन चुका था।
भाभी जैसे ही सास-ससुर के पैरों में गिरी, अजय ने रोक दिया—
“रुक जाओ भाभी! जिन हाथों ने इन्हें घर से निकाला था, वो हाथ अब आशीर्वाद के काबिल नहीं हैं।”
लेकिन बूढ़े माँ-बाप बोले—
“बेटा, गुस्सा छोड़। यह भी खून का रिश्ता है। माफ कर दे।”
ज्योति ने भी कहा—
“हाँ, इन्हें माफ कर दीजिए। इंसान गलतियों से सीखता है।”
आखिरकार अजय का दिल पिघल गया। उसने भाई को भी एक छोटा धंधा शुरू करवाया। और दोनों भाई फिर साथ रहने लगे।
सीख
यह कहानी सिर्फ अजय या ज्योति की नहीं है। यह उन सबकी है जो लालच, धोखे और स्वार्थ में अपने ही रिश्तों को नष्ट कर देते हैं।
लेकिन यह कहानी यह भी सिखाती है कि सच्चा प्यार और ईमानदारी कभी हारते नहीं। ज्योति जैसी पत्नी, जिसने अपमान और भूख सहकर भी अपने परिवार का साथ नहीं छोड़ा— वही असली लक्ष्मी है।
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