Inspector क्यों झुक गया एक गांव की लड़की के सामने….

प्रतापगढ़ जिले की डीएम दिव्या चौहान एक साधारण दिन की शुरुआत कर रही थीं। उन्होंने अपने ऑफिस के काम से थोड़ी देर के लिए ब्रेक लिया और अपनी मां के लिए मटन लाने का फैसला किया। पहनावा एकदम आम, एक साधारण सा कुर्ता पायजामा। कोई नहीं जानता था कि यह लड़की इस जिले की डीएम है। दिव्या ने पैदल चलते हुए रहीम मटन की दुकान पर रुख किया।

मटन की दुकान पर

दिव्या ने हल्की आवाज में कहा, “भाई, 1 किलो मटन तोल दो।” तभी एक खटारा मोटरसाइकिल दुकान के ठीक सामने आकर रुकी। उस पर बैठा था इलाके का इंस्पेक्टर विक्रम राठौर। इंस्पेक्टर ने बाइक पर बैठे-बैठे ही कहा, “2 किलो फर्स्ट क्लास मटन पैक कर दो और जल्दी करो। टाइम नहीं है मेरे पास।” रहीम ने हड़बड़ाकर विनम्रता से कहा, “साहब, 2 मिनट। बस 2 मिनट रुक जाइए। पहले इन बहन जी का पैक कर दूं।”

इंस्पेक्टर की गुंडागर्दी

यह सुनते ही इंस्पेक्टर विक्रम ने मोटरसाइकिल से उतरकर कहा, “क्या कहा? मुझे 2 मिनट रुकना पड़ेगा? तेरे पापा ने क्या? मुझे नौकरी पर रखवाया है। मैं 2 मिनट रुकूंगा। वर्दी नहीं दिख रही तुझे? मैं कौन हूं? भूल गया क्या?” विक्रम ने दिव्या की तरफ देखा और गुस्से में बोला, “इसके लिए तू मुझे रुकवाएगा? चल पहले मेरा पैक कर।”

दिव्या चौहान यह सब देखकर सन्न रह गईं। उनका खून खौल रहा था। उन्होंने देखा कि एक वर्दी वाला दुकानदार को कैसे धमका रहा है। वह अब चुप नहीं रह सकीं। “इंस्पेक्टर साहब, आप गलत कर रहे हैं। आप लाइन तोड़ रहे हैं। मैं आपसे पहले आई हूं तो पहले मुझे मिलना चाहिए।”

दिव्या का साहस

इंस्पेक्टर विक्रम ने तिलमिलाते हुए कहा, “ए लड़की, ज्यादा दिमाग मत चला। दिख नहीं रहा कौन खड़ा है। तू जानती नहीं मैं कौन हूं। चुपचाप निकल ले यहां से वरना अच्छा नहीं होगा।” दिव्या ने भी अपनी नजरें नहीं झुकाईं। उन्होंने शांति से कहा, “आप एक औरत से इस तरह बात नहीं कर सकते।”

इंस्पेक्टर ने जोर से हंसते हुए कहा, “हद तू मुझे मेरी हद सिखाएगी?” विक्रम ने दुकानदार को फिर से धमकाया। “क्या मूर्ति बन के देख रहा है? मेरा मटन पैक कर जल्दी।” दिव्या को पता था कि अगर उन्होंने अपना परिचय दिया तो यह सब रुक जाएगा, लेकिन वह चाहती थीं कि इस सड़े हुए सिस्टम को पकड़ें।

रहीम की मजबूरी

दुकानदार रहीम ने डर के मारे कांपते हाथों से पहले इंस्पेक्टर को बढ़िया मटन छांटकर पैक कर दिया। इंस्पेक्टर मटन का पैकेट लेकर अपनी खटारा मोटरसाइकिल पर बैठने ही लगा कि दुकानदार ने डरते-डरते कहा, “इंस्पेक्टर साहब, वो पैसे।”

यह सुनते ही इंस्पेक्टर पागल हो गया। वह बाइक से वापस उतरा और रहीम का कॉलर पकड़ लिया। “तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे पैसे मांगने की? वर्दी का रब नहीं पता तुझे? तू मुझसे पैसे मांगेगा? तेरा पूरा खानदान सड़क पर आ जाएगा। भीख मांगोगे सब।”

दिव्या का निर्णय

रहीम गिड़गिड़ाने लगा। “नहीं साहब, गलती हो गई साहब। छोड़ दीजिए।” विक्रम ने उसे एक जोरदार थप्पड़ मारा। “इसी में तेरी भलाई है कि मुझे फ्री में माल दिया कर।”

दिव्या चौहान यह सब देखकर सन्न थी। वह अंदर से कांप रही थीं, लेकिन डर से नहीं, गुस्से से। उन्होंने दुकानदार से कहा, “भाई, यह इंस्पेक्टर आपको मटन के पैसे नहीं देता। ऐसे तो आपको बहुत घाटा हो गया। क्या वह आपसे हमेशा ऐसे ही मटन लेकर जाता है?”

रहीम की कहानी

रहीम ने आंसू पोंछते हुए कहा, “हाँ बहन, यह हफ्ता वसूली करने हर दूसरे-तीसरे दिन आता है। कभी पैसे नहीं देता। कुछ बोलो तो यही धमकाता है। कहता है, ‘दुकान बंद करा दूंगा। जेल में डाल दूंगा।’”

दिव्या ने गहरी सांस ली। “नहीं भाई, अब छोड़ना नहीं है। अब बहुत हो गया। इस इंस्पेक्टर को इसकी वर्दी की गर्मी उतारनी पड़ेगी।”

साक्ष्य की योजना

उन्होंने रहीम को समझाया, “कल वह फिर आएगा 5 किलो मटन लेने। कल जब आप दुकान पर रहेंगे, मैं भी आपके साथ रहूंगी। हम यहां एक कैमरा लगाएंगे। उस इंस्पेक्टर की सारी करतूत कैमरे में रिकॉर्ड करूंगी ताकि हमारे पास पक्का सबूत हो।”

रहीम ने कहा, “मैं गवाही दूंगा।” दिव्या ने पर्स से पैसे निकाले और ₹1000 का नोट उसकी तरफ बढ़ाया। “यह लीजिए।”

अगले दिन की तैयारी

दिव्या ने अगले दिन का बेसब्री से इंतजार किया। दूसरे दिन सुबह-सुबह दिव्या चौहान फिर उसी मामूली गांव वाली के लिबास में रहीम की दुकान पर आ गईं। उन्होंने अपने बैग से एक छोटा बटन के आकार का स्पाई कैमरा निकाला और उसे दुकान के सामने काउंटर के पास छिपा कर लगा दिया।

इंस्पेक्टर का आगमन

दिव्या वहीं एक कोने में स्टूल पर बैठ गई जैसे किसी ग्राहक का इंतजार कर रही हो। दोनों इंस्पेक्टर का इंतजार करने लगे। एक घंटा बीता। फिर डेढ़ घंटा। तभी वही खटारा मोटरसाइकिल से इंस्पेक्टर विक्रम राठौर उतरा।

उतरते ही दुकानदार से बोला, “मटन पैक करके रखा है या नहीं? कल मैंने तुझे बोल कर गया था कि तैयार रखना।” उसकी नजर दिव्या पर पड़ी। वह मजाक उड़ाते हुए हंसा, “अरे, यह लड़की आज फिर यहां क्या कर रही है?”

दुकानदार से बदसलूकी

इंस्पेक्टर ने दुकानदार से कहा, “मटन पैक कर जल्दी।” जैसे ही इंस्पेक्टर ने मटन लिया, दुकानदार ने कहा, “सर, मटन के पैसे?” यह सुनते ही इंस्पेक्टर का पारा चढ़ गया।

वह लाल हो उठा और चिल्लाया, “अबे तुझे कितनी बार समझाना पड़ेगा। फिर मुझसे पैसे मांग रहा है। मैंने कल भी कहा था, मैं पैसे वैसे नहीं दूंगा।”

दिव्या का हस्तक्षेप

दिव्या चौहान गुस्से से चिल्लाई, “इंस्पेक्टर साहब, बस बहुत हो गया। आपको पैसे देने ही पड़ेंगे। आप यहां गुंडागर्दी कर रहे हैं। चिकन हो या मटन, फ्री में नहीं मिलता।”

इंस्पेक्टर विक्रम ने दिव्या की ओर बढ़कर थप्पड़ मार दिया। “तू खुद को क्या समझती है?” दिव्या ने अपना गाल सहलाया। उनकी आंखें गुस्से से लाल हो गईं।

सच्चाई का सामना

दिव्या ने मन ही मन सोचा, “बस अब तो यह इंस्पेक्टर सारी हदें पार कर चुका है। कैमरे में सारी रिकॉर्डिंग हो रही है। इंस्पेक्टर जो भी कर रहा है सब कुछ लोगों के सामने आएगा।”

उन्होंने कहा, “देखिए इंस्पेक्टर साहब, आप अपनी हद पार कर चुके हैं। यह एक आम जनता की दुकान है और आप यहां मुफ्त में सामान नहीं ले सकते। आपको पैसे देने होंगे।”

इंस्पेक्टर की धमकी

इंस्पेक्टर ने फिर से दुकानदार की तरफ देखा और धमकाते हुए कहा, “अब समझा यह कौन है बे? और यहां मुझसे जुबान लड़ रही है। तुझे डर नहीं लगता? तू यहां से भाग ले।”

दिव्या का साहस

इंस्पेक्टर के जाने के बाद दिव्या ने गहरी सांस ली और कहा, “कैमरा निकाल लीजिए।” दुकानदार ने कांपते हाथों से कैमरा निकाल कर उन्हें दिया। दिव्या ने कहा, “कल मैं इस मामले को कोर्ट तक लेकर जाऊंगी।”

कोर्ट में सुनवाई

दूसरे दिन यह मामला कोर्ट तक पहुंच गया। प्रतापगढ़ डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में भारी भीड़ लगी थी। दिव्या चौहान आज डीएम के तौर पर नहीं बल्कि एक गवाह के तौर पर आई थीं। उनका चेहरा शांत था, लेकिन आंखों में गुस्सा और हिम्मत दोनों दिख रहे थे।

गवाहों की गवाही

दिव्या ने शांत और दमदार आवाज में कहा, “माननीय जज साहब, मैंने यह सब अपनी आंखों से देखा। इंस्पेक्टर विक्रम राठौर ने ना सिर्फ दुकानदार रहीम को धमकाया और मारा बल्कि मुझ पर भी हाथ उठाया।”

दुकानदार रहीम ने कहा, “मैं गरीब आदमी हूं। रोज कमाता हूं। यह इंस्पेक्टर कई बार मुझसे फ्री में मटन ले गया।”

अदालत का फैसला

जज ने अपना चश्मा उतारा और कहा, “अदालत के सामने सारे सबूत और गवाह साफ हैं। यह वीडियो रिकॉर्डिंग इस केस का सबसे बड़ा सबूत है। इंस्पेक्टर विक्रम राठौर ने अपने पद का दुरुपयोग किया है।”

सजा का ऐलान

जज ने कहा, “इंस्पेक्टर विक्रम राठौर को उसके पद से तुरंत बर्खास्त किया जाता है। साथ ही अदालत उसे वसूली करने, मारपीट करने और एक सरकारी अधिकारी पर हमला करने के जुर्म में 3 साल की सश्रम कैद और ₹50 के जुर्माने की सजा सुनाती है।”

सकारात्मक बदलाव

यह सुनते ही कोर्ट हॉल में सन्नाटा छा गया। इंस्पेक्टर राठौर वहीं कटघरे में घुटनों पर गिर पड़ा। पुलिस के दो सिपाही आगे आए। दिव्या चौहान ने राहत की सांस ली। दुकानदार रहीम की आंखों में आंसू थे, लेकिन वह खुशी के आंसू थे।

निष्कर्ष

लोगों ने कहा, “अब सिस्टम में भी कुछ लोग हैं जो सच के साथ खड़े हैं।” दिव्या चौहान और दुकानदार रहीम दोनों के चेहरे पर सुकून था। उन्होंने डर के खिलाफ लड़कर न्याय पाया था।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जब एक महिला अपने हक के लिए खड़ी होती है, तो वह न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी एक मिसाल बन जाती है। सच्चाई और न्याय की राह कभी आसान नहीं होती, लेकिन अगर इरादा मजबूत हो, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।

इस तरह, दिव्या चौहान ने साबित कर दिया कि एक व्यक्ति की हिम्मत और दृढ़ता से समाज में बदलाव लाया जा सकता है।

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