परिचय

24 नवंबर 2025 की तारीख भारतीय फिल्म उद्योग के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गई। इस दिन केवल एक सुपरस्टार, धर्मेंद्र, ने दुनिया को अलविदा नहीं कहा, बल्कि अपने पीछे कई सवाल और विवाद भी छोड़ गए। इस लेख में हम उस दिन की घटनाओं का विश्लेषण करेंगे, जो न केवल बॉलीवुड के सितारों के लिए, बल्कि उनके परिवार के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

धर्मेंद्र का अंतिम संस्कार

धर्मेंद्र का अंतिम संस्कार जल्दबाजी में किया गया, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह परिवार के बीच के तनाव को छिपाने के लिए किया गया था। जब हेमा मालिनी और उनकी बेटी ईशा देओल अंतिम संस्कार की रस्मों के बीच वहां से चली गईं, तो यह संकेत मिला कि परिवार में कुछ ठीक नहीं था।

धर्मेंद्र की पहली पत्नी प्रकाश कौर और हेमा मालिनी के बीच का तनाव उस दिन खुलकर सामने आया। क्या यह अंतिम संस्कार केवल एक औपचारिकता थी, या इसके पीछे गहरे रिश्तों की कड़वाहट थी?

धर्मेंद्र का जीवन और उनकी विरासत

धर्मेंद्र, जो भारतीय सिनेमा के एक महानायक थे, ने अपने करियर में कई सफल फिल्में दीं। उनका जीवन केवल फिल्मों तक सीमित नहीं था; यह एक जटिल रिश्तों और भावनाओं का मिश्रण था। 1980 में हेमा मालिनी से विवाह करने के बाद, धर्मेंद्र को कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

प्रकाश कौर, जो धर्मेंद्र की पहली पत्नी थीं, ने उनकी दूसरी शादी को स्वीकार किया, लेकिन उनके बच्चों सनी और बॉबी ने कभी भी इस रिश्ते को दिल से नहीं अपनाया। यह तनाव अंतिम संस्कार के दिन भी स्पष्ट था, जब हेमा मालिनी और उनके परिवार ने श्मशान घाट पर एक अलग ही दूरी बनाए रखी।

हेमा मालिनी क्यो अधूरे अंतिम संस्कार को छोड़कर आ गई बाहर ? Hema Malini Was  Treated Very Unfairly

अंतिम संस्कार का माहौल

24 नवंबर की सुबह, जूहू में धर्मेंद्र के बंगले के पास एक अजीब सी खामोशी थी। जब एंबुलेंस का सायरन सुनाई दिया, तो सभी का दिल बैठ गया। धर्मेंद्र का निधन एक ऐसा पल था जिसने उनके परिवार को एकजुट किया, लेकिन साथ ही यह पुराने झगड़ों को भी उजागर कर गया।

जब हेमा मालिनी श्मशान घाट पहुंचीं, तो वहां का माहौल बेहद तनावपूर्ण था। रिपोर्ट्स के अनुसार, पुलिस को श्मशान घाट का गेट बंद करना पड़ा क्योंकि भीड़ बेकाबू हो गई थी। हेमा मालिनी को गेट पर रोकने का एक प्रयास किया गया, जिससे उनकी बेबसी और लाचारी साफ झलक रही थी।

प्रकाश कौर का दर्द

धर्मेंद्र की पहली पत्नी प्रकाश कौर भी अंतिम संस्कार में मौजूद थीं, लेकिन मीडिया की चकाचौंध से दूर। यह उनके लिए एक कठिन पल था, क्योंकि उन्होंने अपने पति को दूसरी औरत के साथ बंटते हुए देखा था। प्रकाश कौर ने हमेशा धर्मेंद्र का समर्थन किया, लेकिन उस दिन उनके चेहरे पर जो दर्द था, वह सबको महसूस हुआ।

सनी और बॉबी ने अपनी मां को लेकर कितने प्रोटेक्टिव थे, यह भी उस दिन देखने को मिला। यह पुरानी दुश्मनी और पुराना प्यार एक ही छत के नीचे सांस ले रहा था।

हेमा और प्रकाश की दूरी

हेमा मालिनी और प्रकाश कौर का एक ही समय पर वहां होना अपने आप में एक ऐतिहासिक और भावुक क्षण था। भले ही उनके बीच कोई बातचीत नहीं हुई, लेकिन उस खामोशी में दशकों का शोर था।

हेमा मालिनी ने अंतिम संस्कार में अपनी श्रद्धांजलि दी और फिर ईशा का हाथ थामे वहां से निकल गईं। उनका इतनी जल्दी चले जाना कई सवाल खड़े कर गया। क्या उन्हें वहां अनवांटेड फील कराया गया? या फिर उन्होंने खुद ही यह फैसला लिया ताकि सनी और बॉबी को अपने पिता के साथ वो आखिरी पल सुकून से बिताने का मौका मिल सके?

धर्मेंद्र की संपत्ति और भविष्य के संघर्ष

धर्मेंद्र की संपत्ति करीब 1000 करोड़ से ज्यादा थी। अब जब वह नहीं रहे, तो वसीयत को लेकर क्या ड्रामा होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन अंतिम संस्कार के दिन जिस तरह से हेमा की फैमिली विजिटर की तरह आई और चली गई, उसने भविष्य के संघर्षों की एक धुंधली तस्वीर पेश कर दी है।

धर्मेंद्र का जाना एक युग का अंत है। लेकिन उनके जाने के साथ ही वह पर्दा भी गिर गया है जिसने देओल परिवार के अंतर्विरोधों को ढका रखा था। अब जब वह कड़ी टूट गई है जो इन सबको बांधे रखती थी, तो देखना होगा कि यह परिवार बिखरता है या निखरता है।

सामाजिक दृष्टिकोण

यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि स्टारडम चाहे कितना भी बड़ा हो, मौत के सामने सब बराबर हो जाते हैं। अंत में, इंसान के साथ सिर्फ उसके कर्म और उसके द्वारा बनाए गए रिश्ते ही जाते हैं। धर्मेंद्र जी ने रिश्ते तो बहुत बनाए लेकिन शायद उन्हें सुलझा नहीं पाए।

उनकी अंतिम यात्रा में वह भीड़ थी, वह शोर था, वह सितारे थे, लेकिन एक अजीब सा खालीपन भी था। वह खालीपन था एक कंप्लीट फैमिली का। काश उस दिन गेट पर कोई रोक-टोक ना होती। काश उस दिन दो पत्नियां एक-दूसरे का हाथ थामकर अपने पति को विदा करतीं।

निष्कर्ष

धर्मेंद्र जी की कहानी सिर्फ फिल्मों की कहानी नहीं थी। यह जज्बातों, गलतियों, प्यार और रिश्तों को निभाने की एक लंबी जद्दोजहद थी। उनका जाना एक युग का अंत है, लेकिन उनकी इस अधूरी प्रेम कहानी ने हमें यह सिखाया है कि रिश्ते कितने भी जटिल क्यों न हों, उन्हें सम्मान और समझ की आवश्यकता होती है।

धर्मेंद्र जी को हमारी भावनी श्रद्धांजलि। उनकी फिल्मों की तरह उनकी जिंदगी भी सुपरहिट रही। बस क्लाइमेक्स थोड़ा दर्दनाक और अधूरा सा लगा। आप अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं। क्या धर्मेंद्र के परिवार को एक हो जाना चाहिए या फिर यह दूरियां ही उनकी शांति का राज हैं?