दीवारों के पीछे छुपी इंसानियत — होटल मालिक और सफाईकर्मी की कहानी

मुंबई के सबसे आलीशान होटल “द ग्रैंड ओरिएंटल” के मालिक आरव खन्ना के पास दौलत, शोहरत और रुतबा सब कुछ था, लेकिन दिल से वह बेहद अकेला था। उसके होटल की चमक-धमक के पीछे उसकी खुद की जिंदगी की दीवारें भी उतनी ही ठंडी और वीरान थीं।

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इसी होटल में काम करती थी शांति — एक गरीब सफाईकर्मी, जो अपनी छोटी सी खोली में बेटे रोहन के साथ संघर्ष भरी जिंदगी जी रही थी। शांति का अतीत भी दर्द से भरा था; उसका पति समीर (आरव का बड़ा भाई) परिवार छोड़कर उससे शादी करने के बाद गरीबी में जी रहा था, लेकिन एक हादसे में उसकी मौत हो गई। शांति ने बेटे के लिए कभी ससुराल नहीं लौटने का वादा किया था।

एक दिन जब रोहन की तबीयत बिगड़ गई और डॉक्टर ने उसके दिल के ऑपरेशन के लिए 5 लाख रुपये मांगे, शांति टूट गई। पैसे की तलाश में वह रोती-बिलखती होटल पहुंची और एक कोने में बैठकर फूट-फूटकर रोने लगी। उसी वक्त आरव ने उसे देख लिया। पहले तो उसे गुस्सा आया, लेकिन शांति की आंखों का दर्द उसे अपनी मां की याद दिला गया। उसने शांति से उसकी परेशानी पूछी और पूरी कहानी सुनने के बाद बिना कुछ कहे मदद का फैसला किया।

आरव ने रोहन को मुंबई के सबसे अच्छे अस्पताल में भर्ती करवाया, ऑपरेशन करवाया और शांति के बेटे की जान बचा ली। ऑपरेशन के बाद जब रोहन ने आरव की कलाई पर राखी देखी और अपनी मां से अपने पापा की फोटो दिखाने को कहा, तब शांति ने समीर की तस्वीर दिखाई। आरव को एहसास हुआ कि शांति उसकी भाभी है और रोहन उसका भतीजा। वर्षों बाद बिछड़े रिश्ते, आंसुओं के सैलाब में फिर से मिल गए।

आरव ने शांति और रोहन को दिल्ली अपने घर ले जाकर परिवार को एक कर दिया। पिता राजेश्वर और मां गायत्री ने बहू और पोते को गले लगा लिया। शांति को उसका सम्मान और परिवार मिला, रोहन को अच्छी शिक्षा और प्यार मिला, और आरव को वह अपनापन मिला जिसकी तलाश उसे सालों से थी।

सीख और संदेश

यह कहानी बताती है कि किस्मत के खेल बड़े निराले होते हैं। खून के रिश्ते वक्त की धूल से कभी नहीं मरते। अगर दिल से नेकी की जाए, तो वह एक दिन लौटकर आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देती है।

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