गरीब रिक्शे वाले ने अमीर लड़की की मदद की थी, बदले में लड़की ने जो किया किसी ने सोचा नहीं था।story

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“अधूरा रास्ता, पूरा इंसान”

भाग – 1 : धूल भरी सड़क और एक टूटती दुनिया

राजस्थान के एक छोटे से कस्बे खेरपुरा की तपती दोपहर ऐसी थी कि जैसे सूरज ने सारे शहर को तवा समझकर उस पर आग का तड़का लगा दिया हो। सड़कें धूल उड़ा रही थीं, पेड़ अपनी छाया समेटे थक चुके थे, और लोग भी जैसे गर्मी के सामने हथियार डाल चुके थे।

उसी सड़क पर एक पुराना, जर्जर, टेढ़ा-मेढ़ा सा तिपहिया रिक्शा धीरे-धीरे चल रहा था। रिक्शे के हैंडल पर पसीने से भीगा हुआ, झुलसा हुआ, पर आँखों में उम्मीद की आखिरी लौ लिए बैठा था — अरुण, उम्र बस 24।

अरुण की जिंदगी की कहानी लंबी थी, पर दर्द उससे भी लंबा। पिता मजदूर, माँ दर्जी, और घर में दो छोटे भाई-बहन। पिता की बीमारी ने घर की रीढ़ तोड़ दी थी और अरुण ही अब परिवार का एकमात्र सहारा था।

रिक्शा चलाने से जो मिलता, उसी से दवा, किराया, बच्चों की किताबें और माँ के लिए कभी-कभार नया धागा।

पर पिछले महीने अरुण पर एक और बड़ी मुसीबत टूट पड़ी थी—
उसकी बहन मीरा की शादी तय हो गई थी, और सिर्फ 30 दिन बचे थे।

घर में कुल जमा ₹3200।
और शादी का खर्च?
कम से कम ₹60,000।

अरुण हर रात एक बात सोचकर रो पड़ता—

“भगवान, मुझे गरीब बनाया, ठीक है…
लेकिन किसी गरीब बहन का भाई तो मत बनाते…”


भाग – 2 : शहर की रानी, दिल की खाली

उधर उसी शहर में रहती थी अनमोल सिंह, एक बड़ी बिजनेस टाइकून, और उनकी इकलौती बेटी—
कृतिका सिंह, उम्र 22।

कृतिका की शान-ओ-शौकत देखने लायक थी।
चमचमाती कारें, महल जैसा बंगला, शहर भर में स्कूलों और फैक्ट्रियों का मालिक घर।

पर कृतिका के भीतर एक खालीपन था जो किसी को नजर नहीं आता था।
मां बचपन में गुजर गई थीं, पिता हमेशा काम में व्यस्त।
दौलत की कोई कमी नहीं थी, पर प्यार?
दिल?
सुकून?
सब गायब।

कृतिका हमेशा सोचती—

“काश मेरे जीवन में भी कोई ऐसा होता,
जो पैसे से नहीं, दिल से मेरा था।”


भाग – 3 : टकराव नहीं… तक़दीर थी

एक दिन कृतिका अपनी बड़ी कार लेकर अकेली ही पास के मार्केट में गई थी। गर्मी इतनी कि कार का इंजन भी जैसे दुआ मांग रहा हो।

बीच चौराहे में अचानक—
धड़ाम!
कार बंद।

पीछे जाम लग गया।
लोग चिल्लाने लगे—
“मैडम गाड़ी हटाओ!”
“अरे रईसों के नखरे!”
“चलाना नहीं आता!”

कृतिका घबरा गई। आज तक उसने ऐसे ताने कभी नहीं सुने थे।
हाथ काँप रहे थे, दिल धड़क रहा था।

तभी भीड़ चीरता हुआ एक पुराना रिक्शा आया।
स्टीयरिंग पर अरुण।

वह आगे बढ़ा और शांत स्वर में बोला—
“मैडम, घबराइए मत। गाड़ी को साइड में लगा देता हूँ।”

कृतिका कुछ बोल पाती इससे पहले वो कीचड़ में उतर चुका था।
वो कार को धक्का देता रहा, फिसलता रहा, पर हार नहीं मानी।
आखिरकार कार साइड लग गई।

कृतिका ने पर्स से ₹1000 निकालकर बढ़ाए—
“ये लो, तुम्हारे मेहनत के पैसे।”

अरुण ने एक पल देखा, और नोट पीछे कर दिए—

“मैडम, इंसानियत का भाव नहीं होता।
आज आपकी मदद की है, कल कोई मेरी करेगा।”

कृतिका पहली बार स्तब्ध रह गई।
उसने सोचा—

“दुनिया में ऐसे लोग अब भी होते हैं…?”

अरुण अपने रिक्शे में बैठकर चला गया।
लेकिन उसका चेहरा, उसकी ईमानदारी, उसकी आवाज—
कृतिका के दिल में कहीं गहरे तक उतर गई।


भाग – 4 : दूसरा मिलना — किस्मत की दस्तक

कुछ दिन बाद कृतिका को कॉलेज में एक प्रोजेक्ट प्रेज़ेंटेशन देना था।
ड्राइवर नहीं आया, तो उसने सोचा—
“जो रिक्शा मिलेगा, उसी में निकल जाऊँगी।”

सड़क पर उसने हाथ दिया।
एक रिक्शा रुका।

रिक्शा चलाने वाला अरुण ही था—
पर कृतिका ने ध्यान नहीं दिया।

वह मोबाइल में नोट्स देखने लगी।

उतरने की जल्दी में वह अपना काला लेदर बैग सीट पर छोड़ गई—
जिसमें उसका लैपटॉप, महंगे डॉक्यूमेंट, और पिता की कंपनी के 6 लाख के वाउचर थे।

अरुण को बैग कुछ देर बाद मिला।
उसे उठाते समय उसके हाथ कांपे।

पहली ही आवाज आई—
“इसमें पैसे होंगे… बहन की शादी भी हो जाएगी।”

दूसरी आवाज—
“पर यह तेरा नहीं, अरुण!
किसी का हक मत छीन।”

उस रात अरुण के घर में भूख थी, दवा नहीं थी, बहन रो रही थी—
पर फिर भी उसने बैग नहीं खोला।

सुबह वह बैग कृतिका की कंपनी पहुंचाकर वापस कर आया।


भाग – 5 : तूफान और टूटते अरमान

कृतिका ने जब सुना कि बैग अरुण ने लौटाया—
वह कुछ बोल ही नहीं पाई।
उस रात उसने पहली बार किसी गरीब आदमी के लिए दुआ की थी।

इधर अरुण पर मुसीबतों का सैलाब बढ़ता जा रहा था।
मंडप वाला एडवांस मांग रहा था।
कैटर वाले ने कहा—
“आज नहीं तो बुकिंग रद्द।”

रिश्तेदारों ने हाथ खड़े कर दिए।

अरुण रात में मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा रो रहा था—
“हे भगवान, मीरा की इज्जत तेरे हाथ है।
कोई रास्ता दिखा दे…”

उसकी सिसकियाँ रात में गूंज रही थीं।


भाग – 6 : एक फरिश्ता — बिना पंखों वाला

अगली सुबह कृतिका स्कूल जाते समय सड़क के किनारे अरुण को टूटा बैठा देख पाई।
पास दो मजदूर बोल रहे थे—

“उसकी बहन की शादी टूट जाएगी।”
“पैसे नहीं हैं बेचारे के पास।”
“दवा-दरू में सब खत्म हो गया।”

कृतिका की सांसें रुक-सी गईं।

“ये वही लड़का है… जिसने मेरा बैग लौटाया।”

वह कार में बैठी कांपती उंगलियों से कॉल करने लगी—

हॉल मैनेजर, कैटर, ज्वेलर—
तीनों को पैसे भेजकर बोली—

“किसी को मत बताना कि किसने दिए हैं।
जिसके नाम से बुकिंग है, उसी के नाम से सब करो।”

कुछ ही घंटों में अरुण के घर चमत्कार होने लगे—

मंडप वाला—
“एडवांस मिल गया!”

कैटर—
“पैसे पूरे आ गए!”

ज्वेलर—
“सारा सामान तैयार है!”

अरुण पत्थर की तरह खड़ा था—
“किस देवता ने मेरी मदद की?”

कृतिका दूर से कार में बैठी यह सब देखकर मुस्कुरा रही थी।
पहली बार उसके दिल ने राहत की सांस ली थी।


भाग – 7 : रोशनी का दिन

शादी का दिन आया।
छोटे से कच्चे घर में फूलों की खुशबू, ढोलक की थाप, हल्दी की महक—
सब कुछ एक नए जीवन का ऐलान कर रहे थे।

मीरा दुल्हन बनी बैठी थी।
अरुण के हाथ काँप रहे थे—
खुशी भी थी, डर भी।

बारात आई।
रौनक फैल गई।
लोग कह रहे थे—

“अरुण ने बिना सहारे अपनी बहन की शादी कर दी!
क्या ईमानदार लड़का है!”

पर उन्हें नहीं पता था कि कहीं दूर एक कार में बैठी कृतिका यह सब सुनकर अपनी मुस्कान रोक नहीं पा रही थी।

विदाई के वक्त अरुण का हृदय लगभग टूट गया था।
पर अंदर कहीं एक बात गूंज रही थी—

“भगवान ने मेरी बहन की इज्जत बचा ली…”

और वह देवदूत कृतिका थी।


भाग – 8 : एक नई सुबह, नई किस्मत

अगले दिन अरुण को कंपनी के मालिक का बुलावा मिला।
वह डरते-डरते उनके ऑफिस पहुंचा—
जी हाँ, वही कंपनी—
जिसकी बेटी थी कृतिका।

पिता ने अरुण का हाथ पकड़कर कहा—

“बेटा, तुमने बैग लौटाकर सिर्फ ईमानदारी नहीं दिखाई…
तुमने यह साबित किया कि दुनिया में अच्छे लोग अभी भी हैं।
आज से तुम हमारी कंपनी की लॉजिस्टिक्स यूनिट में स्थायी नौकरी करोगे।”

अरुण की आँखे भर आईं।
कृतिका ने आगे बढ़कर कहा—

“तुमने मुझे इंसानियत सिखाई थी,
मैंने बस उसे लौटाया है।”

अरुण की जिंदगी बदल चुकी थी।
उसका परिवार अब भूखा नहीं सोएगा,
उसकी बहन अब ससुराल में सुरक्षित थी,
माँ की दवाएँ मिलेंगी,
और उसे वह इज्जत मिल रही थी जिसके वह हकदार था।


भाग – 9 : कहानी की सीख

ईमानदारी का कोई दाम नहीं।
इंसानियत का कोई मोल नहीं।
अरुण गरीब था, पर उसके दिल में अमीरी थी।
कृतिका अमीर थी, पर उसके दिल में इंसानियत की असली दौलत।

दोनों ने एक-दूसरे की दुनिया बदल दी।

यह कहानी सिर्फ एक गरीब और एक अमीर की नहीं—
यह कहानी है—

सही रास्ता चुनने की।
विश्वास रखने की।
नेकी लौटकर आने की।
और दिल की दौलत की।