जिले की Dm साहिबा ने 21 साल के भिखारी लड़के से सादी किउ की | Dm साहिबा और भिकारी लड़का

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डीएम साहिबा और भिखारी लड़का: एक अनसुनी दास्तान

जेठ की तपती दोपहर थी। सूरज आसमान में आग बरसा रहा था और सड़कें किसी तवे की तरह तप रही थीं। शहर के सबसे व्यस्त चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल लाल था। गाड़ियों की लंबी कतार खामोशी से हरी बत्ती का इंतजार कर रही थी। इन्हीं गाड़ियों के बीच सरकारी गाड़ी में जिले की डीएम साहिबा गुलिस्ता बैठी थीं। एसी की ठंडी हवा के बावजूद उनका ध्यान बाहर की दुनिया पर था। उनकी नजरें हमेशा अपने जिले के हालात को परखती रहती थीं।

अचानक उनकी नजर एक दुबले-पतले, बीस-इक्कीस साल के लड़के पर पड़ी। उसने फटे पुराने कपड़े पहन रखे थे और गाड़ियों के बीच घूम-घूमकर भीख मांग रहा था। बाकी भिखारियों से अलग उसमें एक अजीब सी झिझक थी। वह जब किसी गाड़ी के पास जाता और कोई पैसे देने से मना कर देता, तो दोबारा हाथ नहीं फैलाता, बस चुपचाप आगे बढ़ जाता। उसकी आंखों में लाचारी के साथ-साथ खुद्दारी भी थी, जो गुलिस्ता को चौंका गई।

सिग्नल हरा हुआ, गाड़ियां चलने लगीं। गुलिस्ता ने अपने ड्राइवर से कहा, “गाड़ी साइड में लगाओ।” वह गाड़ी से उतरीं और थोड़ी दूरी बनाकर उस लड़के का पीछा करने लगीं। लड़का एक छोटी सी किराने की दुकान से थोड़ा सा आटा खरीदकर एक गली में मुड़ गया। गुलिस्ता ने देखा कि वह एक दोमंजिला, साफ-सुथरे घर में घुस गया। यह देखकर गुलिस्ता हैरान रह गईं—जो लड़का दिन में भीख मांगता है, वह इतने अच्छे घर में कैसे रह सकता है?

उस रात गुलिस्ता सो नहीं सकीं। उनके दिमाग में बार-बार वही लड़का घूम रहा था। आखिर उसकी कहानी क्या है? अगली सुबह गुलिस्ता ने अपनी पहचान छिपाने के लिए एक पुरानी सलवार-कुर्ता पहन ली, बाल बिखेर लिए और चेहरे पर धूल मल ली। फिर एक ऑटो लेकर उसी गली में पहुंचीं। उन्होंने लड़के के घर का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुला तो सामने वही लड़का था।

“कौन हो तुम?” लड़के ने रूखेपन से पूछा।

गुलिस्ता ने लाचारी भरी आवाज में कहा, “मैं तीन दिन से भूखी हूं, कुछ खाने को दे दो।”
लड़का थोड़ी देर देखता रहा, फिर बोला, “आ जाओ।”
उसने रसोई से दो सूखी रोटियां और थोड़ी चटनी लाकर दी। गुलिस्ता ने रोटी खाते-खाते कमरे के कोने में किताबों का ढेर देखा—इतिहास, राजनीति, कानून, विज्ञान। वह हैरान रह गईं।
“यह किताबें किसकी हैं?”
लड़का चुप रहा। फिर बोला, “तुमने खाना खा लिया, अब जाओ।”

गुलिस्ता ने फिर मिन्नत की, “मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। मुझे भी अपने साथ काम पर ले चलो, मैं मेहनत करके खाऊंगी।”
लड़का सोच में पड़ गया, फिर मान गया।
“ठीक है, चलो मेरे साथ।”

दोनों ईंट भट्टे पर पहुंचे। सारा दिन लड़का मेहनत करता रहा, गुलिस्ता को हल्का-फुल्का काम दिया। शाम को दोनों घर लौट आए। धीरे-धीरे दोनों के बीच खामोशी टूटने लगी। गुलिस्ता अब घर में रोटियां बनाती, लड़का पढ़ाई करता।
एक दिन गुलिस्ता ने पूछा, “तुम्हारे मां-बाप नहीं हैं?”
लड़के की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, “मेरा नाम सागर है। मेरे मां-बाप और छोटी बहन दो साल पहले एक बम धमाके में मारे गए। रिश्तेदारों ने कुछ दिन साथ दिया, फिर छोड़ दिया। यह घर अब्बा के नाम पर है, लेकिन पेट भरने के लिए मजदूरी और भीख दोनों करनी पड़ती है। किताबें इसलिए हैं क्योंकि मैं यूपीएससी की तैयारी कर रहा हूं। मेरा सपना है आईपीएस ऑफिसर बनना, ताकि किसी और का परिवार ऐसे न उजड़े।”

गुलिस्ता की आंखें नम हो गईं।
“और भीख क्यों मांगते हो?”
“मजदूरी के पैसे से किताबें खरीदता हूं, भीख से पेट भरता हूं।”

कुछ दिन बाद सागर को एक चिट्ठी मिली। उसकी आंखों में खुशी थी। गुलिस्ता ने पूछा, तो सागर ने बताया, “यूपीएससी का एडमिट कार्ड आया है।”
एग्जाम के दिन सागर सुबह-सुबह निकला, लेकिन रास्ते में एक तेज कार ने टक्कर मार दी। हॉस्पिटल में उसकी आंख खुली—एग्जाम छूट गया। उसका सपना, सालों की मेहनत, सब खत्म हो गया। गुलिस्ता ने उसकी सेवा की, हिम्मत बंधाई, और बिना अपनी असली पहचान बताए उसके लिए कोचिंग और किताबों का इंतजाम किया।
सागर ने फिर से मेहनत शुरू की। इस बार उसने यूपीएससी पास किया और पूरे देश में अच्छी रैंक पाई।

सम्मान समारोह में डीएम साहिबा गुलिस्ता मुख्य अतिथि थीं। सागर को मंच पर बुलाया गया। उसने अपनी सफलता का श्रेय अपनी दोस्त “गुल” को दिया, जिसने उसे टूटने नहीं दिया।
गुलिस्ता मंच पर आईं और बोलीं, “जिस गुल की बात सागर कर रहा है, वह मैं हूं।”
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। सागर की आंखों में आंसू थे—खुशी के।
कुछ समय बाद गुलिस्ता और सागर ने शादी कर ली। अब वे सिर्फ पति-पत्नी नहीं, बल्कि समाज के लिए मिसाल थे।
एक आईपीएस ऑफिसर और एक डीएम, जिन्होंने मिलकर साबित किया कि हालात कितने भी मुश्किल हों, अगर हौसला हो तो कोई भी सपना सच हो सकता है।
उनकी कहानी आज भी लोगों को यह सिखाती है—कभी किसी को उसके हालात से मत आंकिए, क्योंकि हर इंसान के भीतर एक अनकही कहानी, एक छुपा हुआ हीरा होता है।

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