जिसे सबने मामूली समझकर निकाल दिया…असल में वो उसी प्लेन के मालिक की पत्नी थी — फिर जो हुआ….
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सादगी बनाम घमंड – रिया की कहानी
मुंबई एयरपोर्ट का शोरगुल, भीड़ और भागमभाग। हर कोई जल्दी में था, लेकिन उसी भीड़ में एक औरत बिल्कुल चुपचाप, बिना किसी दिखावे के, फर्स्ट क्लास के केबिन में दाखिल हुई। नाम था – रिया गुप्ता।
पुरानी नीली जींस, एक घिसी हुई हुडी, बालों को जल्दी-जल्दी बांधा गया जूड़ा और चेहरे पर थकान की परछाई। देखने वाले किसी को भी वह एक साधारण यात्री लगती। लेकिन उसकी बादामी आँखों में एक सुकून और दिल में एक छोटा-सा राज़ था।
वह किसी बिज़नेस मीटिंग या शॉपिंग टूर के लिए नहीं जा रही थी। उसका असली मक़सद था अपनी बहन माया को दुबई में सरप्राइज़ देना। बस दो दिन की छुट्टियाँ, जिसमें हंसी, ठिठोली और बहनापा शामिल हो।
रिया चाहती तो महंगे कपड़े पहनकर, ब्रांडेड पर्स लेकर चलती। आखिरकार अरबों की संपत्ति की मालकिन थी, दिल्ली और कोलकाता की ज़मीन-जायदाद की उत्तराधिकारी। लेकिन उसे इन सबकी परवाह नहीं थी। वह भीड़ में घुलना-मिलना, सादगी से जीना पसंद करती थी।
लेकिन उस दिन उसकी सादगी ही उसकी सबसे बड़ी कसौटी बन गई।
अपमान की शुरुआत
जैसे ही रिया ने फर्स्ट क्लास की अपनी सीट पर बैठने की कोशिश की, फ्लाइट अटेंडेंट अनीता शर्मा आ गई।
“आपका बोर्डिंग पास?” – आवाज़ में मिठास कम और तिरस्कार ज़्यादा।
रिया ने मुस्कुराते हुए पास थमाया। अनीता ने स्कैन किया, और फिर उसके कपड़ों पर तिरछी नज़र डाली।
“ये फर्स्ट क्लास का टिकट है। लेकिन क्या आप वाकई सही जगह पर हैं?”
रिया शांत रही – “जी हाँ, यही मेरी सीट है।”
लेकिन अनीता को भरोसा नहीं हुआ। उसके लहजे में घमंड टपक रहा था।
इसी बीच सामने बैठा एक बिज़नेसमैन रोहन मेहता, महंगे सूट और चमचमाती घड़ी वाला, उठ खड़ा हुआ –
“मैडम, इकॉनमी उधर है। शायद रास्ता भटक गई हैं।”
उसकी बात पर कुछ लोग हँस पड़े।
अनीता भी बोली – “बिल्कुल सही। असली सवारियों को बैठने दीजिए।”
रिया ने शांत स्वर में दोहराया – “मेरा टिकट सही है। मैं यहीं बैठ सकती हूँ।”
लेकिन उपहास की बौछार थमने का नाम नहीं ले रही थी। एक और फ्लाइट अटेंडेंट विक्रम सिंह आ गया और बोला –
“अरे, ये तो लॉटरी में सीट जीतकर आ गई होंगी। रोज़ ऐसे लोग फ्री अपग्रेड के लिए नाटक करते हैं।”
अब तो पूरी फर्स्ट क्लास तमाशा देखने लगी। कोई फोटो खींच रहा था, कोई हँसी उड़ा रहा था। किसी ने कहा –
“हुडी शायद सड़क से उठाई होगी।”
रिया की मुट्ठियाँ भींच गईं, लेकिन उसने सिर झुकाया नहीं। उसने केवल आँखें बंद कीं और चुप रही।
जब हद पार हो गई
अनीता ने आखिरकार रिया की बाँह पकड़कर घसीटा और उसे इकॉनमी क्लास की सीट 27B पर बिठा दिया।
“यही तुम्हारा असली तख़्त है।” – उसने व्यंग्य किया।
विक्रम ने उसका बैग ज़मीन पर पटक दिया।
सारी फर्स्ट क्लास ने तालियाँ बजाईं, मानो कोई मज़ाकिया शो खत्म हुआ हो। रिया का दिल टूट रहा था, लेकिन उसने चुप्पी साधे रखी।
वह चाहती तो उसी वक़्त फोन उठाकर अपने पति को कॉल कर सकती थी। एक कॉल और सबकी दुनिया बदल जाती। लेकिन वह ऐसी नहीं थी। उसने बस एक छोटा-सा मैसेज भेजा –
“फ्लाइट की शुरुआत थोड़ी खराब रही। तुम्हें याद कर रही हूँ।”
तूफ़ान का आगमन
कुछ ही मिनट बाद पूरे केबिन में हलचल मच गई। इंटरकॉम पर कैप्टन की आवाज़ आई –
“हमारे पास एक विशेष घोषणा है।”
दरवाज़ा खुला… लेकिन बाहर कैप्टन नहीं, बल्कि एक शख़्स आया।
छह फुट तीन इंच लंबा, गहरे बालों में हल्की सफ़ेदी, और चेहरे पर ऐसी सख़्ती कि पूरा माहौल थम गया।
वह थे आरव मल्होत्रा – सपना एयरलाइंस के मालिक, और रिया के पति।
“मेरी पत्नी कहाँ है?” – उसकी आवाज़ धीमी लेकिन इतनी धारदार थी कि रोंगटे खड़े हो जाएँ।
अनीता के हाथ से ट्रे गिर गई। विक्रम का चेहरा पीला पड़ गया।
आरव इकॉनमी की ओर बढ़ा और सीट 27B पर बैठी रिया को देखा। उसकी आँखें नरम हो गईं। वह उसके सामने घुटनों पर बैठ गया।
“रिया… तुम ठीक हो?”
रिया ने सिर हिलाया। “बस थोड़ी भीड़ है।”
आरव ने उसका हाथ थामा – “अब नहीं। मेरे साथ चलो।”
हिसाब-किताब
जब दोनों फर्स्ट क्लास लौटे, पूरा केबिन स्तब्ध था।
आरव ने अनीता की ओर देखा –
“तुमने मेरी पत्नी को उसकी सीट से निकाला। क्यों?”
अनीता काँप रही थी – “सर… वो अमीर नहीं लग रही थी।”
आरव हँस पड़ा – लेकिन वह हँसी बर्फ जैसी थी।
“अमीर नहीं लग रही थी… यही तुम्हारा बहाना है?”
विक्रम बोला – “सर, हमसे गलती हो गई। हमें पता नहीं था।”
“पता करने की कोशिश भी नहीं की। कपड़ों से, चुप्पी से फैसला कर लिया कि वो कोई नहीं है। बहुत बड़ी गलती की तुमने।”
फिर उसने फोन निकाला –
“राहुल, फ्लाइट 217 पर हूँ। अनीता शर्मा और विक्रम सिंह – दोनों को तुरंत सस्पेंड करो। ब्लैकलिस्ट करो। कोई और एयरलाइन इन्हें नौकरी न दे।”
पूरा केबिन सन्नाटे में डूब गया।
आरव फिर रोहन और मेघा की ओर मुड़ा –
“तुमने हँसी उड़ाई, फोटो खींची। सपना एयरलाइंस को तुम्हारे पैसों की जरूरत नहीं। ब्लैकलिस्ट कर दो।”
रोहन का फोन हाथ से छूटकर गिर गया। मेघा का चेहरा उतर गया।
सादगी की जीत
रिया ने धीरे से आरव की बाँह छुई –
“बस करो, उन्हें सबक मिल गया।”
आरव ने उसकी ओर देखा, गुस्सा पिघल रहा था।
“तुम्हें अपमानित करने वालों को सबक मिलना ही चाहिए।”
फ्लाइट दुबई पहुँची। अनीता और विक्रम को सुरक्षा कर्मी बाहर ले गए – बिना विदाई, बिना नौकरी, बस बदनामी के साथ। रोहन और मेघा भी जीवनभर के लिए ब्लैकलिस्ट हो चुके थे।
एयरपोर्ट पर मीडिया का हुजूम जमा हो गया। अगले दिन दुबई के अखबारों में हेडलाइन थी –
“सादगी की ताक़त: मालिक की पत्नी ने झुकाया पूरा एयरलाइन सिस्टम।”
सपना एयरलाइंस ने आधिकारिक बयान जारी किया –
“हर सवारी की इज्ज़त की जाएगी, चाहे उसके कपड़े साधारण हों या महंगे। सादगी कमजोरी नहीं है।”
अंत नहीं, शुरुआत
दुबई की चमकती सड़कों पर, बहन माया ने दौड़कर रिया को गले लगाया –
“तूने बताया क्यों नहीं कि आ रही है?”
रिया मुस्कुराई – “अरे, सरप्राइज़ देना था।”
माया ने हँसते हुए कहा – “लेकिन तूने तो पूरी फ्लाइट को सरप्राइज़ दे दिया।”
रिया ने अपनी पुरानी हुडी को सीने से लगाया और बोली –
“लोग कपड़े देखते हैं। मैं दिल से जीती हूँ। यही मेरी ताक़त है।”
आरव और माया हँस पड़े।
दुबई का सूरज चमक रहा था। लेकिन उस दिन रिया की सादगी की चमक उससे कहीं ज़्यादा रोशन थी।
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