सुहानी की कहानी: एक संघर्षशील मां की जीत

बारिश की ठंडी बूँदें, भीगती गलियाँ, और एक बेबस गर्भवती महिला, जिसका नाम था सुहानी। आठ महीने का बच्चा अपने पेट में लिए, वह पुराने बायोडाटा को बचाते हुए काम की तलाश में शहर की भीड़-भाड़ में घूम रही थी। उसके चेहरे पर थकान की गहरी लकीरें थीं, आंखों में नींद से ज्यादा डर था, और पैरों में कमजोरी थी। लेकिन उसके दिल में एक आग जल रही थी, क्योंकि वह जानती थी कि अब उसके साथ कोई नहीं है, सिर्फ उसका बच्चा है, और उसे उसी के लिए जीना है।

सुहानी का अतीत

सुहानी कभी इतनी टूटी हुई नहीं थी। तीन साल पहले उसकी जिंदगी सपनों से भरी थी। उसने अरविंद से एक छोटे से कैफे में मुलाकात की थी। पहले छोटी-छोटी बातें, फिर दोस्ती, चाय और फिल्में, और धीरे-धीरे वह दोस्ती प्यार में बदल गई। शादी के बाद कुछ दिन सब अच्छा रहा, लेकिन समय के साथ अरविंद का बिजनेस डूबने लगा। पैसों की कमी बढ़ी, और घर में तनाव ने ले लिया। हर छोटी-बड़ी बात पर झगड़े होने लगे। एक दिन गुस्से में भरकर अरविंद ने सुहानी से कहा, “तुम मेरी किस्मत की सबसे बड़ी गलती हो।”

तलाक और अकेलापन

उस पल का दर्द सुहानी के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल था। उसने बिना कुछ कहे अपना छोटा सा बैग उठाया और मायके चली गई। लेकिन वहां भी उसे सहारा नहीं मिला। मां-बाप पहले ही इस दुनिया से जा चुके थे, और भाइयों को उसकी मौजूदगी बोझ लगने लगी। कुछ हफ्तों बाद कोर्ट में तलाक हो गया। अरविंद के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था, और सुहानी ने भी बिना आंसू बहाए उन कागजों पर दस्तखत कर दिए। अब उसके पास बस एक टूटा-फूटा कमरा, कुछ बर्तन, और उसके पेट में पलती एक मासूम धड़कन थी।

काम की तलाश

सुहानी जानती थी कि इस दुनिया में उसके लिए कोई दरवाजा आसानी से नहीं खुलेगा, लेकिन उसने ठान लिया था कि उसे अपने बच्चे को साबित करना है कि उसकी मां कमजोर नहीं है। सबसे पहले, वह एक बेकरी पहुंची। “भाई साहब, मुझे काम चाहिए। जो भी कहेंगे, कर लूंगी।” लेकिन मैनेजर ने उसे देखकर हंसते हुए कहा, “यहां तो केक उठाने पड़ते हैं। तुम्हारी हालत देखकर लगता है तुमसे 2 किलो भी नहीं उठेगा।”

दिल टूट गया, लेकिन कदम आगे बढ़े। वह सिलाई कारखाने में गई, लेकिन मालिक ने कहा, “जब बच्चा होगा तो छुट्टी लोगी। हमें ऐसे लोग नहीं चाहिए।” किराना दुकान पर भी उसे मना किया गया। हर जगह से उसे ठुकराया गया। पैर भारी हो गए, शरीर थक गया, लेकिन हिम्मत अभी भी बाकी थी। किसी तरह, उसने लोगों के घर में काम करके अपना गुजारा करने लगी।

संघर्ष जारी

छह महीने बीत गए। एक दिन, बस स्टैंड की बेंच पर बैठी, उसने पेट पर हाथ रखते हुए धीमी आवाज में कहा, “बेटा, मम्मी हार नहीं मानेगी। चाहे हालात कितने भी कठोर क्यों ना हों, हम दोनों जीतेंगे।” उसकी आंखों में आंसू थे। उसी वक्त, एक बुजुर्ग औरत ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, “बिटिया, इतनी बारिश में कहां जा रही हो?” सुहानी ने थकी मुस्कान के साथ कहा, “काम ढूंढ रही हूं, अम्मा। लेकिन हर जगह से मना कर देते हैं।”

अम्मा ने उसे एक कागज दिया, “यह पता है, वहां एक बड़ी कंपनी है। मालिक बहुत सख्त है, लेकिन अगर तुम्हारी सच्चाई दिल को छू गई, तो काम जरूर देगा। हिम्मत मत हारना।” सुहानी ने उस कागज को कसकर पकड़ लिया। उसकी आंखों में डर और उम्मीद दोनों थे।

नई शुरुआत

अगली सुबह, सुहानी ने अपने पुराने दुपट्टे को सिर पर डालकर उस कंपनी के गेट तक पहुंची। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। रिसेप्शन पार करके जैसे ही उसने मालिक के केबिन का दरवाजा खोला, उसकी सांसे थम गईं। सामने जो आदमी बैठा था, वह और कोई नहीं बल्कि उसका तलाकशुदा पति अरविंद था। उसकी आंखें कुछ पल के लिए जमी रह गईं। हाथ में पकड़ा बायोडाटा कांपने लगा।

अरविंद ने उसे देखकर ठंडी आवाज में कहा, “तुम यहां?” सुहानी ने गहरी सांस ली और हिम्मत जुटाई। “हां, मैं नौकरी मांगने आई हूं।” अरविंद ने व्यंग्य भरी हंसी छोड़ी। “नौकरी इस हालत में तुम देख भी रही हो खुद को?” सुहानी ने कहा, “मैं काम करूंगी क्योंकि मुझे अपने बच्चे को किसी का मोहताज नहीं बनने देना है। मैं बोझ नहीं हूं, अरविंद।”

आत्मसम्मान की लड़ाई

अरविंद ने कहा, “हमारी कंपनी में सख्त नियम है। यहां सिर्फ वही लोग टिक पाते हैं जो पूरी तरह फिट हों।” लेकिन सुहानी ने उसकी बात बीच में ही काट दी। “मैं यहां बीवी बनकर नहीं आई हूं। मैं यहां एक इंसान बनकर आई हूं।” कुछ देर की चुप्पी के बाद, अरविंद ने कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें एक हफ्ते का ट्रायल दूंगा।”

सुहानी की आंखों में आंसू थे, लेकिन होठों पर हल्की मुस्कान थी। “एक हफ्ता नहीं, अरविंद, मैं पूरी जिंदगी संभाल सकती हूं।” उसके शब्दों में जिद साफ थी।

पहला दिन

सुहानी ने अपना पुराना दुपट्टा सिर पर ठीक किया और ऑफिस में पहला दिन शुरू किया। एचआर मैनेजर ने उसे काम समझाया। सुहानी ने बिना शिकायत किए काम शुरू कर दिया। उसकी आंखें लाल हो चुकी थीं, लेकिन उसके दिल में एक आवाज थी, “रुकना नहीं है, थकना नहीं है।”

जब वह वाटर कूलर पर पानी पीने गई, तो पास खड़ी एक लड़की ने ताना मारा, “घर पर आराम करने का टाइम नहीं मिला क्या?” सुहानी ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “आराम तो जिंदगी में बाद में भी हो सकता है।”

इवेंट की तैयारी

इवेंट वाले दिन, सुहानी ने हर स्टॉल पर जाकर काम किया। पेट में दर्द उठ रहा था, लेकिन उसने मुस्कुराते हुए कहा, “अगर मैं बैठ गई, तो मेरे बच्चे को कौन बताएगा कि उसकी मां ने हार मान ली थी।”

शाम को, जब क्लाइंट ने सब कुछ देखा, तो उसने कहा, “पर्फेक्ट।” अरविंद ने सुहानी को देखा। उसकी आंखों में वही चमक थी जिसे उसने सालों पहले देखा था।

जीवन में बदलाव

कुछ हफ्तों बाद, अरविंद ने घोषणा की कि सुहानी कंपनी की नई क्रिएटिव हेड होंगी। सुहानी ने अपनी मेहनत से सबको चौंका दिया था। अब उसकी पहचान सिर्फ अरविंद की पत्नी या तलाकशुदा औरत की नहीं थी, बल्कि एक मजबूत औरत की थी जिसने अपने बच्चे और अपनी इज्जत के लिए लड़ाई जीती थी।

अंत में

एक दिन कंपनी की सालाना पार्टी थी। अरविंद ने स्टेज पर आकर कहा, “आज मैं अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा सच बताना चाहता हूं। एक साल पहले मैंने एक औरत को छोड़ दिया था, जो गर्भवती थी। आज वही औरत मेरी कंपनी की जान है और मेरे बेटे की मां।” पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।

सुहानी ने धीरे से स्टेज पर आई और कहा, “शुरुआत करने के लिए सिर्फ माफी काफी नहीं होती। अरविंद, भरोसा चाहिए।”

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि प्यार का मतलब सिर्फ दिल जीतना नहीं होता, बल्कि भरोसा भी जीतना होता है। अगर आप सुहानी की जगह होते, तो क्या अरविंद को दूसरा मौका देते? कमेंट में जरूर बताइए।