इंटरव्यू देने आया था लड़का… ऑफिस में बॉस बनकर बैठी थी अधूरी मोहब्बत…फिर जो हुआ, इंसानियत रो पड़ी

सुबह के 8:00 बजे थे। दिल्ली के नेहरू प्लेस की सड़कों पर ऑफिस जाने वालों की भीड़ लगी थी। सर्दी का मौसम था, हवा में हल्की धुंध थी और सूरज की रोशनी अब भी शहर की ऊंची इमारतों के पीछे अटकी हुई थी। फुटपाथ के किनारे एक लड़का खड़ा था—अविरल शर्मा। हाथ में नीली फाइल, कंधे पर बैग और चेहरे पर बेचैनी का साया। वह बार-बार घड़ी देख रहा था। अगर देर हो गई तो शायद मौका निकल जाएगा।

अविरल ने खुद से बुदबुदाया और सामने से आते ऑटो को हाथ दिखाया। “ऑटो! रुको भैया!” ऑटो रुक गया। ड्राइवर ने पीछे मुड़कर कहा, “कहां चलना है भाई साहब?” “साकेत, सिल्वरटेक कंपनी,” उसने जल्दी से जवाब दिया। ऑटो धीरे-धीरे भीड़ में घुल गया। सड़क पर गाड़ियों की लंबी कतार थी। हर कोई अपने वक्त से लड़ रहा था, लेकिन अविरल की लड़ाई कुछ और थी। वह अपने अतीत, अपनी तकदीर और अपने डर से लड़ रहा था।

भाग 2: अतीत की यादें

छह महीने से बेरोजगार था वह। हर इंटरव्यू, हर कॉल बस उम्मीद बनकर रह जाती थी। आज फिर एक मौका था। नया इंटरव्यू, नई कंपनी, नई शुरुआत। लेकिन दिल के किसी कोने में वही डर छिपा था। कहीं यह भी बाकी मौकों जैसा ना हो जाए।

ऑटो सिग्नल पर रुका। बगल में छोले बटोरे का ठेला था। अविरल ने देखा, वही ठेला था जहां वह कॉलेज के दिनों में अपने दोस्तों के साथ खाया करता था। चेहरे पर एक पल को मुस्कान आई, फिर खुद ही मिट गई। अब पुरानी बातें सोचने का वक्त नहीं है। उसने धीरे से कहा और सिर झुका लिया।

सिग्नल हरा हुआ। ऑटो आगे बढ़ा। अविरल ने शीशे में अपना चेहरा देखा। थोड़ा पाउडर ठीक किया, फाइल सीने से लगाई और खुद से कहा, “सब ठीक होगा, अविरल, सब ठीक होगा।” कुछ देर बाद ऑटो एक कांच की ऊंची बिल्डिंग के सामने रुका—”सिल्वरटेक पीवीटी लिमिटेड।” लोग लैपटॉप बैग लिए अंदर जा रहे थे। किसी को इंटरव्यू था, किसी की मीटिंग। हर चेहरा किसी नए सफर पर निकला हुआ लगता था।

भाग 3: पहली मुलाकात

अविरल ने रिसेप्शन पर जाकर कहा, “हैलो, मैं अविरल शर्मा, इंटरव्यू के लिए आया हूं।” रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुराकर कहा, “श्योर सर, 5 मिनट रुकिए। आपका इंटरव्यू हमारी सीईओ लेंगी—रिया कपूर।” बस इतना सुनना था कि उसके भीतर जैसे सब रुक गया। सांसे तेज, हाथ कांपते हुए, आंखें खाली। वह धीरे से कुर्सी पर बैठ गया।

रिया कपूर, 4 साल पहले यही नाम उसके दिल की धड़कन था। और आज वही नाम फिर उसके सामने था। बस रिश्ता बदल गया था। “सर, रिया मैम बुला रही हैं,” रिसेप्शनिस्ट की आवाज ने उसे हकीकत में खींच लिया। उसने फाइल उठाई, बैग ठीक किया और कॉन्फ्रेंस रूम की तरफ बढ़ा।

दरवाजा खुला। अंदर वही थी। रिया, सूट में साफ-सुथरा लुक। चेहरे पर आत्मविश्वास और आंखों में हल्की कठोरता। वह वही थी, पर अब कोई और लग रही थी। अविरल धीरे-धीरे आगे बढ़ा और सामने की कुर्सी पर बैठ गया। रिया ने फाइल उठाई। बिना ऊपर देखे बोली, “सुनिए, मिस्टर अविरल शर्मा।” वह बैठ गया। कुछ देर कमरे में सिर्फ खामोशी थी।

फिर रिया ने बात शुरू की, “तो अविरल शर्मा, आपके पास 3 साल का अनुभव है?” “जी मैम,” उसने धीरे से कहा, “मैं एटलस टेक में प्रोजेक्ट असिस्टेंट था। फिर कंपनी बंद हो गई।” “अच्छा,” रिया ने सिर हिलाया। “टीम हैंडल करने का अनुभव थोड़ा बहुत?”

भाग 4: इम्तिहान

“मैम, अगर कोई प्रोजेक्ट टाइम से पहले डिलीवर करना हो तो आप क्या करेंगे?” “टाइम मैनेजमेंट और टीम को प्रोत्साहित रखूंगा,” उसने आत्मविश्वास से कहा। रिया ने हल्की मुस्कान दी, फाइल बंद की और पहली बार ऊपर देखा। उनकी नजरें मिलीं। सिर्फ 2 सेकंड के लिए, पर अविरल को लगा जैसे चार साल वापस लौट आए।

रिया ने नजरें झुका लीं। “आपकी बातों में ईमानदारी है,” वो बोली, “ठीक है अविरल। आप यह जॉब कर सकते हैं।” अविरल ने हैरानी से देखा। “मैम, मतलब?” “हां, नौकरी आपकी है। कल से जॉइन कर सकते हैं।” अविरल ने चुपचाप सिर झुका लिया। “थैंक यू मैम।” आवाज में वही पुराना कंपन था।

वह उठा। धीरे-धीरे दरवाजे की तरफ बढ़ा। पर दरवाजे तक पहुंचते-पहुंचते उसके कदम रुक गए। पीछे मुड़कर देखा। रिया अब फिर फाइल में खोई हुई थी। जैसे कुछ हुआ ही ना हो। वह बाहर आया। लॉबी में वही भीड़ थी। वही लोग, वही शोर। लेकिन उसके भीतर सब कुछ शांत था। डर, गुस्सा और शायद प्यार भी।

भाग 5: घर की वापसी

ऑफिस से सीधे अविरल घर पहुंचा। दरवाजा खोला, जूते उतारे और बिना कुछ बोले अपने कमरे में चला गया। कमरा बिल्कुल शांत था। उसने बैग नीचे रखा। बालों की क्लिप निकाली और धीरे से लाइट बंद कर दी। अंधेरा छा गया। बस खिड़की से आती हल्की चांदनी दीवार पर फैल गई थी।

वह बिस्तर पर बैठा रहा। कुछ पल तक बिल्कुल चुप। दिल अब भी तेज धड़क रहा था। चेहरे पर वही बेचैनी थी। रिया का चेहरा बार-बार सामने आ रहा था। वही आंखें, वही आवाज। अविरल ने सिर तकिए पर रखा। आंखें बंद की और बस सब कुछ धीरे-धीरे धुंधला होने लगा।

उसके सामने जैसे अतीत के एक-एक पन्ने खुलने लगे। 4 साल पहले की वह बातें, वह जगह, वह हंसी, वो लम्हे जहां जिंदगी कुछ और ही थी। जहां रिया बस एक नाम नहीं, उसकी पूरी दुनिया थी।

भाग 6: कॉलेज के दिन

4 साल पहले की बात है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉन में हल्की धूप फैली थी। चारों तरफ नए छात्रों की भीड़ थी। हंसी, हलचल और कॉफी की खुशबू हवा में घुली थी। इसी भीड़ में एक लड़का चल रहा था—अविरल शर्मा। मिडिल क्लास परिवार का इकलौता बेटा। साधारण शर्ट पर जींस। चेहरे पर सादगी और चाल में नरमी। वह पहली बार कॉलेज आया था। थोड़ा घबराया, थोड़ा उत्साहित।

भीड़ के बीच में से गुजरते हुए अचानक किसी से टकरा गया। फाइल नीचे गिरी। कागज जमीन पर बिखर गए। “ओ सॉरी,” एक लड़की झुकी। वह भी झुका। दोनों के हाथ एक ही कागज पर जा मिले। अविरल ने सिर उठाया। सामने थी रिया कपूर। आलीशान कपड़ों में, पर चेहरा ऐसा जो आत्मविश्वास से भरा था।

वो बोली, “मेरी गलती थी। माफ कीजिए।” अविरल ने मुस्कुराकर कहा, “नो प्रॉब्लम। नए हो?” उसने पूछा। “हां,” अविरल ने जवाब दिया। “पहचान लिया था। यह डर, यह फाइल और यह उलझे बाल। फ्रेशर की पहचान यही होती है।” दोनों हंस पड़े। बस यहीं से एक अनकही कहानी शुरू हुई।

भाग 7: दोस्ती का सफर

दिन बीतने लगे। हर रोज कैंटीन में किसी ना किसी बहाने अविरल आ जाता। कभी नोट्स मांगने, कभी कॉफी ट्रेट देने। धीरे-धीरे उनकी बातें लंबी होने लगी और साथ बिताए पल गहराते गए। अविरल के चेहरे पर जब भी मुस्कान आती, रिया का दिन बन जाता। अविरल हमेशा कहता, “तुम बहुत अच्छी दोस्त हो रिया,” और रिया हर बार वही मुस्कान ओढ़ लेती जो उसके दिल की बात छुपा देती थी।

उसे एहसास था कि वह अविरल से प्यार करती है। लेकिन अविरल की दुनिया उससे बहुत अलग थी। वो किराए के छोटे से कमरे में रहता था और रिया आलीशान बंगलों में। फिर भी वो हर रोज उसकी हंसी का कारण बनने की कोशिश करती। क्लास खत्म होने के बाद दोनों लॉन में बैठते। अविरल कहता, “रिया, एक दिन मैं कुछ बड़ा बनूंगा। तुम गर्व करोगी मुझ पर।”

रिया मुस्कुरा देती, “तुम्हारे सपने बहुत प्यारे हैं। अविरल, बस हकीकत से थोड़ा दूर हैं।” अविरल उस बात पर हंस देता लेकिन अंदर कहीं वो शब्द चुप जाते। तीन साल ऐसे ही गुजरे। दोनों एक दूसरे की जिंदगी बन गए, बिना कहे, बिना माने।

भाग 8: प्यार का इजहार

अविरल के लिए वह दोस्ती से कहीं आगे था। और रिया के लिए बस एक अच्छा दोस्त। कॉलेज का आखिरी दिन आया। लॉन में सब फोटो खिंचवा रहे थे। दोस्त गले मिलकर रो रहे थे। अविरल ने रिया को बुलाया। “रिया, एक बात कहनी है।” वो चुपचाप खड़ी रही। “मैं तुमसे प्यार करता हूं। बहुत।”

कुछ पल तक देखती रही। फिर हल्के से हंसी। “अविरल, तुम अच्छे हो। पर शायद बहुत बड़े सपने देख लिए तुमने।” “मतलब?” “मतलब हम दोस्त थे और बस दोस्त रहेंगे। मेरे पापा कहते हैं जिंदगी में क्लास और स्टेटस बहुत मायने रखते हैं। मैं एक बिजनेसमैन की बेटी हूं और तुम, तुम एक मिडिल क्लास लड़के हो।”

अविरल का चेहरा उतर गया। वो कुछ बोलना चाहता था। पर शब्द गले में अटक गए। रिया ने बस इतना कहा, “तुम्हारी जगह मेरे दिल में हमेशा दोस्त की रहेगी। प्यार की नहीं।” वह चली गई। अविरल वही खड़ा रह गया। हाथ जेब में, आंखों में नमी और होठों पर वही मुस्कान जो अब सिर्फ दर्द छुपाने के लिए थी।

भाग 9: अलग रास्ते

उस दिन के बाद दोनों कभी नहीं मिले। अविरल ने अपनी जिंदगी को काम में झोंक दिया। और रिया ने अपने परिवार की इच्छा के अनुसार कॉर्पोरेट दुनिया में कदम रखा। अविरल ने धीरे से आंखें खोली। कमरे की लाइट अब भी बंद थी। पर दिल के भीतर का अंधेरा बहुत बढ़ गया था।

वह बिस्तर से उठा। आईने में खुद को देखा। “अब मैं वह अविरल नहीं हूं,” उसने कहा, “जो किसी की बातों से टूट जाए।” अगली सुबह सर्द हवाओं के बीच अविरल फिर उसी बिल्डिंग सिल्वरटेक पीवीटी लिमिटेड के बाहर खड़ा था। इस बार उसके कदमों में झिझक नहीं थी। बल्कि दृढ़ता थी।

भाग 10: नई पहचान

रिसेप्शन पर मुस्कुराया। “गुड मॉर्निंग।” रिसेप्शनिस्ट बोली, “गुड मॉर्निंग सर।” अविरल ने कहा, “आज से मैं जॉइन कर रहा हूं।” वह लिफ्ट में चढ़ा और मन ही मन एक बात दोहराई, “अब अतीत नहीं। बस काम और खुद की पहचान।”

लिफ्ट धीरे-धीरे ऊपर जा रही थी। हर मंजिल के साथ उसके भीतर कुछ ना कुछ उतरता जा रहा था। घबराहट, डर और वह यादें जो उसे कमजोर बनाती थीं। अब बस अविरल था—प्रोफेशनल, आत्मविश्वासी और नई शुरुआत के लिए तैयार।

भाग 11: मीटिंग का दिन

लिफ्ट खुली। उसने कदम बढ़ाया और अपने केबिन की ओर चला गया। टेबल पर उसका नाम लिखा था—”अविरल शर्मा, प्रोजेक्ट लीड, क्लाइंट कम्युनिकेशन।” वो कुछ पल खड़ा रहा। फिर मुस्कुराया। “हां, अब यही मेरी दुनिया है।”

सुबह की मीटिंग शुरू हुई। टीम के कुछ लोग उसे ज्वॉइ कराने आए। अविरल ने सबको विनम्रता से नमस्कार किया। वो अब हर शब्द सोच-समझ कर बोल रहा था। ना ज्यादा, ना कम। कॉन्फ्रेंस रूम में रिया पहले से मौजूद थी। उसकी नजरें सीधी थीं। लेकिन उनमें अब वह पुराना कंपन नहीं था। बस एक सीईओ की स्थिरता थी।

“लेट स्टार्ट,” रिया ने कहा। अविरल ने स्लाइड्स खोली। आवाज में आत्मविश्वास था। पर दिल के किसी कोने में अतीत का कोई सिरा अब भी झिलमिला रहा था। प्रेजेंटेशन खत्म हुआ। रिया ने कहा, “गुड जॉब, मिस्टर शर्मा।” बस इतना ही।

भाग 12: पुरानी यादें

पर अविरल के लिए यह शब्द किसी पुरानी पहचान के पुनर्जन्म जैसे थे। दिन धीरे-धीरे बीतने लगे। ऑफिस का रूटीन, रिपोर्ट्स, मीटिंग्स सब एक लय में चल रहा था। रिया और अविरल के बीच बात अब सिर्फ काम तक सीमित थी। पर उनकी चुप्पी में भी एक इतिहास बसा था।

कभी किसी प्रोजेक्ट के दौरान जब दोनों की राय अलग होती तो कमरा ठहर जाता था। जैसे हवा को भी पता हो कि यह दो लोग एक समय में एक दूसरे की धड़कन थे। एक शाम अविरल देर तक ऑफिस में बैठा रहा। सारे लोग जा चुके थे। वो अपनी रिपोर्ट टाइप कर रहा था। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

भाग 13: रिया का सवाल

रिया थी। “अभी तक यही?” “जी मैम,” उसने कहा। “रिपोर्ट अधूरी थी। इतनी मेहनत क्यों?” रिया ने कुछ पल तक उसे देखा। फिर हल्के स्वर में कहा, “तुम बहुत बदल गए हो।” अविरल ने मुस्कुरा कर कहा, “वक्त सबको बदल देता है।”

रिया चुप रही। वो चली गई। पर उसके शब्द अविरल के दिल में रह गए। “तुम बहुत बदल गए हो।” रात को घर लौटते वक्त अविरल ने खुद से कहा, “हां, बदला तो हूं। कभी किसी की वजह से टूटा था। अब खुद अपनी वजह से बना हूं।”

भाग 14: नया असाइनमेंट

अगली सुबह अविरल को एक नया असाइनमेंट मिला। क्लाइंट मीटिंग का प्रेजेंटेशन उसे ही लीड करना था। यह वही प्रोजेक्ट था जिस पर कंपनी की प्रतिष्ठा टिकी थी। रिया ने खुद उसे बुलाकर कहा, “इस बार तुम बोलोगे। मुझे भरोसा है तुम इसे संभाल लोगे।”

अविरल ने हल्की मुस्कान दी। “मैं पूरी कोशिश करूंगा।” अगले दिन कॉन्फ्रेंस हॉल में मीटिंग शुरू हुई। क्लाइंट्स सामने बैठे थे। अविरल ने स्लाइड्स खोलीं। आवाज में सधेपन के साथ आत्मविश्वास था। उसने पूरे प्रोजेक्ट की प्रस्तुति इस तरह दी कि हर लाइन में मेहनत और ईमानदारी झलक रही थी।

भाग 15: तालियों की गूंज

सबके चेहरों पर संतोष था। रिया ने सिर्फ सिर हिलाया। वह मुस्कुराई नहीं, पर अविरल समझ गया कि उसने मंजूरी दे दी है। मीटिंग खत्म हुई तो तालियां बजी। लोग उसे बधाई देने लगे। पर अविरल की निगाह बस एक चेहरे पर टिक गई। वो चेहरा अब भी शांत था। पर शायद उसकी आंखों में कोई अनकहा गर्व था।

उस शाम जब सब जा चुके थे। अविरल फाइल समेट रहा था। तभी पीछे से आवाज आई, “कॉफी लोगे?” वो पलट कर देखा। रिया थी। पहली बार उसने उसे यूं सहज स्वर में कुछ कहते सुना था। “जी,” अविरल ने कहा। “मीटिंग के बाद आमतौर पर लोग थोड़ा रिलैक्स करते हैं। तुम तो सीधे काम में लग गए।”

भाग 16: नए रिश्ते की शुरुआत

अविरल ने धीरे से कहा, “अब आदत हो गई है। मैम, काम ही मेरा सुकून है।” रिया ने सिर झुकाया। “सुकून काम में मिलता है या खुद से भागने में?” वो सवाल अविरल के दिल में उतर गया।

वो कुछ पल चुप रहा। फिर बोला, “शायद दोनों में थोड़ा-थोड़ा।” रिया मुस्कुराई। “कल सुबह तक फाइनल रिपोर्ट दे देना।” वो चली गई, पर पहली बार उसकी मुस्कान में अविरल को वही पुरानी गर्मी महसूस हुई जो 4 साल पहले उसके हर गुड लक में होती थी।

भाग 17: रात की सोच

रात को अविरल देर तक नींद में नहीं जा पाया। वो छत की तरफ देखता रहा। सोचता रहा कि क्या वक्त वाकई सब कुछ बदल देता है या फिर सिर्फ रिश्तों के नाम बदलते हैं। एहसास वही रह जाते हैं। अगली सुबह ऑफिस में जब वह पहुंचा तो दरवाजे के पास रिया खड़ी थी। “गुड मॉर्निंग, मिस्टर शर्मा।” उसने कहा। “गुड मॉर्निंग, मैम,” अविरल ने उत्तर दिया।

“आज मीटिंग जल्दी है,” वो बोली। “और उसके बाद लंच मेरी तरफ से।” अविरल ने चौंक कर देखा। “मैम?” रिया ने बस मुस्कुराया। “एक सीईओ कभी किसी स्टाफ को लंच पर नहीं बुलाती, लेकिन एक पुरानी दोस्त शायद बुला सकती है।”

भाग 18: नए रिश्ते की शुरुआत

अविरल चुप रहा। दिल में कुछ हल्का सा कापा। वक्त ने दोनों को अलग रास्तों पर भेजा था। पर शायद अब जिंदगी फिर किसी मोड़ पर उन्हें आमने-सामने ला रही थी। जहां सवाल वही थे। बस जवाब नए होने वाले थे। अविरल की उंगलियां टेबल पर रखी फाइल पर टिकी थीं। पर दिमाग कहीं और भटक रहा था।

रिया का “लंच मेरी तरफ से” कहना उसके कानों में जैसे बार-बार गूंज रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था। यह एक सीईओ का औपचारिक निमंत्रण था या 4 साल पुराने किसी अधूरे रिश्ते की दस्तक। लंच ब्रेक में जब दोनों कैफे पहुंचे। रिया ने खिड़की के पास वाली सीट चुनी।

भाग 19: पुरानी खामोशी

दोनों के बीच वही पुरानी खामोशी थी जो कभी बहुत कुछ कहती थी। अब भी बस कहे जाने का इंतजार कर रही थी। “कैसे हो, अविरल?” रिया ने आखिर पूछा। अविरल मुस्कुराया। “ठीक हूं। काम अच्छा चल रहा है।” और दिल ने अविरल ने उसकी आंखों में देखा। वो सवाल किसी इंटरव्यू जैसा नहीं था। बल्कि किसी अधूरे इजहार जैसा लगा।

उसने ना नजरें झुका लीं। “अब उस पर काम बाकी है।” रिया हल्के से मुस्कुराई। “तुम आज भी वही अविरल हो। साफ, सच्चे और थोड़े जिद्दी।” अविरल ने पहली बार खुलकर उसकी तरफ देखा। “और तुम आज भी वही रिया हो। जो अपनी बात मुस्कान में छुपा लेती है।”

भाग 20: नए रिश्ते की शुरुआत

दोनों की हंसी टकराई और बीच में फैली खामोशी जैसे गलने लगी। कुछ पल बाद रिया ने कहा, “अविरल, जिंदगी ने हम दोनों को बहुत दूर घुमा दिया। पर शायद अब वक्त हमें एक ही रास्ते पर लाना चाहता है।” अविरल ने धीरे से पूछा, “और अगर वह रास्ता दोबारा दर्द तक ले जाए?”

रिया ने जवाब दिया, “तो इस बार साथ चलेंगे। अकेले नहीं।” वो लंच जैसे किसी नई शुरुआत की मीठी झलक थी। दोनों बाहर निकले तो मौसम ठंडा हो चला था। दिल्ली की सर्द हवा में हल्की धूप घुली थी। रिया ने कहा, “मैं तुम्हें ड्रॉप कर दूं।”

अविरल ने इंकार किया। “नहीं, मैं खुद चला जाऊंगा।” पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। कुछ ही देर बाद अविरल की कार रिंग रोड पर मुड़ी ही थी कि सामने अचानक एक ट्रक ने ब्रेक मारा। कार ने नियंत्रण खो दिया और जोरदार आवाज के साथ डिवाइडर से टकराई। लोग दौड़ पड़े। शहर की भीड़ में अफरातफरी मच गई।

भाग 21: दुर्घटना का सामना

उसी वक्त रिया को फोन आया। “मैम, अविरल सर का एक्सीडेंट हो गया है।” रिया के हाथ से मोबाइल गिर गया। वो बिना कुछ सोचे गाड़ी घुमा दी। जब पहुंची तो सड़क पर वही चेहरा था—खून में लथपथ, आंखें बंद, होठों पर हल्की लकीरें। रिया ने झुककर उसे बाहों में उठा लिया। “अविरल, कुछ मत बोलो। मैं हूं यहां।” वो दौड़ती हुई हॉस्पिटल पहुंची।

डॉक्टरों ने आईसीयू में लिया। रिया बाहर खड़ी कांपती रही। डॉक्टर बोले, “हेड इंजरी है। अगला 24 घंटा बहुत क्रिटिकल है।” रिया ने सिर झुका लिया। “बस इसे बचा लीजिए। बाकी सब मुझसे ले लीजिए।” रात भर वो वहीं बैठी रही। आईसीयू के बाहर की बेंच पर। हाथों में अविरल की स्कार्फ। आंखों में नमी।

भाग 22: उम्मीद की किरण

हर बीतता सेकंड उसके लिए सजा था। उसने खुद से फुसफुसा कर कहा, “4 साल पहले मैंने तुझे खो दिया था। अविरल, इस बार खुदा भी चाहे तो नहीं खोऊंगी।” सुबह की पहली किरण आईसीयू के शीशे से अंदर पहुंची। अविरल की उंगलियां हिली। डॉक्टर बाहर निकले। “वो होश में आ रहे हैं।”

रिया भागी अंदर। अविरल की आंखें धीरे-धीरे खुलीं। धुंधली निगाहों के बीच उसने रिया को देखा। “तुम,” उसकी आवाज कापी। रिया ने मुस्कुराकर कहा, “हां, मैं। जहां जाना नहीं चाहिए था, वहीं रुकी रही।” अविरल की पलकों से आंसू बह निकले। “मुझे लगा तुम नफरत करती हो मुझसे।”

भाग 23: प्रेम का पुनर्मिलन

रिया ने उसका हाथ थामा। “नफरत? अविरल, मैंने तो तुझे उसी वक्त माफ कर दिया था। जिस दिन तू मेरी जिंदगी से गया था।” अविरल रो पड़ा। “क्यों इतनी अच्छी हो तुम?” रिया ने धीरे से कहा, “क्योंकि तुझसे बुरा होना कभी सीख ही नहीं पाई।” कमरे में सन्नाटा था। पर उस सन्नाटे में सालों का टूटा रिश्ता धीरे-धीरे जुड़ने लगा था।

कुछ दिनों बाद अविरल हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुआ। रिया ने खुद उसके घर तक छोड़ा। दरवाजे पर रुकते हुए अविरल बोला, “रिया, मैं कुछ कहना चाहता हूं।” “कहो क्या?” “क्या हम फिर से शुरुआत कर सकते हैं?” रिया ने बिना कुछ बोले बस मुस्कुरा दिया। “मैं तो अब तक उसी मोड़ पर खड़ी हूं जहां तुमने छोड़ा था।”

भाग 24: नई शुरुआत

अविरल की आंखों में नमी थी। “तो चलो, इस बार साथ चलते हैं और कभी पीछे नहीं मुड़ते।” कुछ महीनों बाद दिल्ली के कनॉट प्लेस के एक छोटे से मंदिर में फूलों की हल्की महक और शंख की आवाज के बीच रिया ने अविरल के गले में मंगलसूत्र बांधा। उसकी आंखों में वही चमक थी जो कभी कॉलेज के लॉन में पहली बार देखी थी।

अविरल ने आंसू पोंछे और बोला, “अब मैं किसी क्लास या स्टेटस का बेटा नहीं, बस तुम्हारे प्यार का पति हूं।” रिया मुस्कुराई और बोली, “मैं वही लड़की हूं जो अब हर हाल में तुम्हें संभालेगी।” दोनों ने एक दूसरे को देखा। 4 साल का फासला 4 सेकंड में मिट गया।

भाग 25: सच्चा प्यार

रात को दोनों छत पर बैठे थे। ठंडी हवा चल रही थी। आसमान में वही चांद चमक रहा था। अविरल ने सिर रिया के कंधे पर रखा और बोला, “वक्त ने हमें तोड़ा नहीं। बस थोड़ा घुमा दिया ताकि हम खुद को पहचान सकें।” रिया ने उसका हाथ थामा।

“और जब दो लोग सच में एक दूसरे के लिए बने होते हैं तो जिंदगी चाहे जितनी परीक्षा ले, अंत में जीत प्यार की ही होती है।” चांद की रोशनी दोनों पर पड़ी। कहानी वही ठहर गई जहां उसे ठहरना था। खामोशियों में भी पूरा और अधूरापन मिटा देने वाला प्यार।

भाग 26: अंत में

कभी-कभी जिंदगी हमें गिरा कर नहीं, संभाल कर सिखाती है कि सच्चा प्यार लौट कर जरूर आता है। बस इस बार हमेशा के लिए। दोस्तों, प्यार कभी स्टेटस नहीं देखता। बस दिल की सच्चाई देखता है। और अगर सच्चा हो तो वक्त चाहे कितना भी बीत जाए, लौट आता है।

लेकिन अगर कोई पुराना प्यार आपकी जिंदगी में फिर लौट आए, तो क्या आप उसे दोबारा अपनाएंगे? कमेंट में जरूर बताइए। और अगर इस कहानी ने आपके दिल को छुआ हो तो वीडियो को लाइक और शेयर करें और चैनल “कहानी बाय प्रभात” को सब्सक्राइब जरूर करें। मिलते हैं अगली कहानी में। तब तक इंसानियत निभाइए, मोहब्बत फैलाइए और किसी की मदद करने से पीछे मत हटिए। जय हिंद, जय भारत!

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