जिस बुजुर्ग को मामूली समझकर टिकट फाड़ दी गई, उसी ने एक कॉल में पूरी एयरलाइंस

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अशोक नारायण त्रिपाठी: सादगी में छुपी ताकत

सुबह के 8 बजे थे। लखनऊ इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर रोज की तरह चहल-पहल थी। लोग अपने-अपने सफर में व्यस्त थे। हाथों में लगेज, कानों में ईयरफोन, नजरों में मंजिलें। लेकिन इस भीड़ में एक चेहरा अलग था। एक बुजुर्ग आदमी, लगभग 75 साल के, सफेद झुर्रियों से भरा चेहरा, मोटा चश्मा, सादा कुर्ता-पायजामा, कंधे पर पुराना थैला और हाथ में एक फटा-पुराना टिकट। उसके पास एक बटन वाला फीचर फोन था।

वह बुजुर्ग एयरलाइन के काउंटर पर गया और शांति से बोला, “बेटा, मुझे जयपुर की फ्लाइट पकड़नी है। यह मेरा टिकट है। कंफर्म है।”

काउंटर पर खड़ी लड़की ने टिकट को देखा और हल्की हंसी के साथ अपने साथी से कहा, “सर लगता है कोई ट्रेन का यात्री भटक के यहां आ गया है।”

बगल में खड़ा युवा एयरलाइन एग्जीक्यूटिव तिरस्कार भरे अंदाज में बोला, “सॉरी दादा जी, यह रेलवे स्टेशन नहीं है। यह एयरपोर्ट है।”

बुजुर्ग ने विनम्रता से जवाब दिया, “बेटा, मैं जानता हूं। मेरा टिकट कंफर्म है। बस बोर्डिंग पास मिल जाए।”

युवा एग्जीक्यूटिव ने बिना सिस्टम चेक किए टिकट को दो टुकड़ों में फाड़ दिया और कहा, “यहाँ ऐसे कागज वाले टिकट नहीं चलते। आपकी हालत में कोई फ्लाइट नहीं पकड़ता। यह जगह आपके लिए नहीं है।”

सन्नाटा छा गया। आसपास के लोग मुड़कर देखने लगे। कुछ हंस पड़े, कुछ आगे बढ़ गए। बुजुर्ग की आंखों में कोई आक्रोश नहीं था। उसने फटे टिकट के टुकड़े अपनी जेब में रखे, थैला उठाया और एयरपोर्ट के एक कोने में बैठ गया।

उसकी उम्र की थकान कंधों पर झुकी थी, पर उसकी निगाहों में गहराई थी। उसने अपना पुराना फोन निकाला और एक नंबर डायल किया। बस तीन सेकंड की घंटी बजी और उसने कहा, “मैं एयरपोर्ट पर हूं। टिकट फाड़ दिया गया है। कुछ जरूरी नहीं, लेकिन हद हो गई है। मैं इंतजार कर रहा हूं।”

फोन रखकर वह चुपचाप बैठ गया। उसने कोई हंगामा नहीं किया, कोई सोशल मीडिया पोस्ट नहीं लिखा। कोई कैमरा नहीं उठाया। बस इंतजार करने लगा।

वहीं काउंटर पर युवा एग्जीक्यूटिव मस्ती में था, सोच रहा था कि बुजुर्ग की हालत में कोई फ्लाइट पकड़ने की उम्मीद कैसे कर सकता है। वह किसी दूसरे पैसेंजर से बात करने लगा। उसे नहीं पता था कि अगले 30 मिनट में उसके शब्द उसका सबसे बड़ा पछतावा बन जाएंगे।

20 मिनट बाद एयरपोर्ट के बाहर तीन काली गाड़ियां आईं। सरकारी नंबर प्लेट, फ्लैश लाइट्स और अंदर बैठे लोग बेहद गंभीर। डीजीसीए के सीनियर ऑफिसर आए थे। इमरजेंसी प्रोटोकॉल एक्टिवेट हो गया। एयरलाइन के रीजनल मैनेजर, ऑन प्रेशंस हेड और पीआर टीम भी बुला ली गई।

स्टाफ हक्का-बक्का था। किसवाईपी ने शिकायत की? जवाब किसी के पास नहीं था। तभी वही बुजुर्ग व्यक्ति फिर से काउंटर की ओर बढ़ा, लेकिन अब अकेला नहीं, पीछे तीन सीनियर अधिकारी थे, जिनमें से एक डीजीसीए के वरिष्ठ सलाहकार थे।

काउंटर पर खड़ा युवा स्टाफ लड़खड़ाया। उसकी आंखों में अब शरारत नहीं, पसीना था। बुजुर्ग ने उसकी आंखों में देखा और कहा, “तुमने मेरा टिकट नहीं फाड़ा बेटा। तुमने अपनी इंसानियत, अपनी समझ और अपनी कंपनी के संस्कार फाड़ दिए।”

पूरी एयरलाइन टीम स्तब्ध थी। वह एग्जीक्यूटिव जिसने टिकट फाड़ा था, पीछे हट चुका था। उसने हाथ जोड़कर कहा, “सर, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपको पहचाना नहीं।”

अशोक नारायण ने उसकी आंखों में देखा और कहा, “पहचानने की बात नहीं है बेटा। तुमने खुद को छोटा किया है। कपड़े देखकर इंसान तय करना सबसे सस्ता तरीका है चरित्र आंकने का। और याद रखो, ऊंचे डिग्री वाले लोग अगर विनम्र ना हों, तो वह शिक्षित नहीं, बस प्रशिक्षित होते हैं।”

इसी बीच एक जर्नलिस्ट ने इस दृश्य को रिकॉर्ड किया और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। कमेंट्स में लिखा गया, “सम्मान कपड़ों में नहीं, आचरण में होता है।”

एयरलाइन कंपनी ने तुरंत बैठक बुलाई। सीनियर एचआर ने कहा, “यह एक सीखने वाली घटना है। आज से हर नए स्टाफ को पहले इंसानियत का प्रशिक्षण दिया जाएगा, उसके बाद सिस्टम का।”

बुजुर्ग अब नई फ्लाइट की बिजनेस क्लास सीट पर बोर्डिंग के लिए तैयार थे। उन्हें विशेष एस्कॉट दिया गया। पर उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “मैं वही सीट लूंगा जो पहले थी। जो टिकट मेरा था, वह मेरी सादगी की पहचान थी। बदलाव लोगों के व्यवहार में आना चाहिए, मेरी सीट से नहीं।”

बोर्डिंग अनाउंसमेंट शुरू हो चुका था। जयपुर जाने वाली फ्लाइट के लिए यात्री गेट की ओर बढ़ रहे थे। बुजुर्ग धीमी चाल से चल रहे थे, कंधे पर पुराना थैला, हाथ में टूटा हुआ टिकट जिसे उन्होंने दोबारा जोड़कर पर्स में रखा था।

कोई उनके सामने नहीं चल रहा था, कोई पीछे नहीं रुक रहा था। हर आंख उन्हें देख रही थी। अब ना तिरस्कार था, ना शक। सिर्फ सम्मान और मौन।

फ्लाइट टेक ऑफ कर चुकी थी। एयरलाइन हेड खुद आए और बोले, “सर, कृपया हमें एक मौका दें। हम चाहते हैं कि आप हमारी कंपनी के ब्रांड एंबेसडर बनें।”

अशोक जी मुस्कुराए, “मैं ब्रांड एंबेसडर बनने नहीं आया बेटा, मैं तो सिर्फ अपनी फ्लाइट पकड़ने आया था। पर तुमने इस यात्रा को एक सबक बना दिया।”

एयरलाइन स्टाफ रूम में वह युवा एग्जीक्यूटिव बैठा था। उसका सीनियर बोला, “तू नया है, लेकिन याद रख जो इंसान विनम्रता से बोलता है, जरूरी नहीं वह कमजोर हो।”

लड़का बोला, “सर, मुझे लगा बस एक आम आदमी है। लेकिन मैंने आज समझा कि सादगी के पीछे भी शक्ति हो सकती है।”

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो पर मीडिया डिबेट चल रही थी। एक पत्रकार ने कहा, “यह कोई छोटी घटना नहीं थी। यह समाज के उस हिस्से को आईना दिखाने वाली घटना है जहां एक साधारण दिखने वाला बुजुर्ग अपनी गरिमा से एक पूरी संस्था को झुका देता है।”

रात को एक इंटरव्यू रिकॉर्ड हुआ। अशोक नारायण त्रिपाठी कुर्सी पर बैठे थे। सवाल था, “सर, जब आपका टिकट फाड़ा गया तब आपने चिल्लाया क्यों नहीं?”

उन्होंने जवाब दिया, “अगर हर अन्याय पर चिल्लाना समाधान होता तो देश कब का शोर में डूब चुका होता। कभी-कभी सबसे तेज प्रतिक्रिया मौन होती है। जब आप मौन रहकर दुनिया को उसकी ही तस्वीर दिखाते हैं तो उसे अपनी असलियत समझ आती है।”

एंकर ने पूछा, “अगर उस युवक ने माफी नहीं मांगी होती तो?”

अशोक जी मुस्कुराए, “तब भी मैं कुछ नहीं कहता। क्योंकि माफी अगर डर से हो तो वह पश्चाताप नहीं, बस डर का ढकाव होती है। लेकिन आज मैंने उस लड़के की आंखों में डर नहीं देखा, पछतावा देखा। वही सबसे बड़ी सजा है।”

कहानी अब देश भर में गूंज रही थी। स्कूलों, कॉलेजों, ट्रेनिंग सेंटरों में केस स्टडी के तौर पर पढ़ाई जा रही थी। टिकट के दो फटे हुए टुकड़े एक कांच के फ्रेम में एयरलाइन हेड ऑफिस में लग गए। नीचे लिखा था:

“आपने टिकट फाड़ा था, लेकिन इस आदमी ने तुम्हारी सोच को सीना चीर कर खोल दिया। हर यात्री की जेब में बोर्डिंग पास जरूरी नहीं, पर दिल में गरिमा होनी चाहिए।”

कहानी से सीख

यह कहानी सिखाती है कि इंसान की असली पहचान उसके कपड़ों, फोन या बाहरी दिखावे से नहीं, बल्कि उसके व्यवहार, विनम्रता और गरिमा से होती है। समाज में सच्ची ताकत विनम्रता और सादगी में छुपी होती है। हमें कभी किसी को उसके बाहरी रूप से आंकना नहीं चाहिए।