7 साल बाद पत्नी DM बनकर लौटी , तो पति बाज़ार में पंचर बनाता मिला , फिर आगे जो हुआ …

रफ्तार और सुकून: नेहा वर्मा और रोहन की कहानी
भूमिका
सुबह के 6:30 बजे, नेशनल हाईवे पर कोहरा इतना घना था कि हाथ को हाथ ना दिखाई दे रहा था। सन्नाटा, ठंड, और अंधेरे के बीच एक वीआईपी नंबर वाली सफेद इनोवा आंधी की तरह दौड़ रही थी। लेकिन उसके पिछली सीट पर नहीं, बल्कि ड्राइविंग सीट पर बैठी थी जिले की डीएम नेहा वर्मा। ब्लूटूथ कान में लगा था और वह फोन पर किसी जूनियर ऑफिसर की क्लास लगा रही थी।
“मिस्टर शर्मा, मुझे बहाने नहीं चाहिए। अगर वो फाइल आज मेरी टेबल पर नहीं हुई तो अपना सस्पेंशन लेटर टाइप करवा लेना। आई डोंट केयर।”
गुस्से में फोन काटकर नेहा ने एक्सीलरेटर पर पैर दबा दिया। नेहा को आदत थी, सड़क हो या जिंदगी, सब कुछ अपनी रफ्तार से चलाने की। लेकिन नियति को इंसान की रफ्तार से कोई फर्क नहीं पड़ता।
हाईवे पर एक मोड़
अचानक धड़ाम! गाड़ी जोर से लहराई। स्टीयरिंग हाथ से छूटते-छूटते बचा। नेहा ने बड़ी मुश्किल से गाड़ी को सड़क किनारे कच्ची मिट्टी पर उतारा। सन्नाटा छा गया। टायर के परखच्चे उड़ चुके थे। नेहा बाहर निकली, ठंड गजब की थी, लेकिन उनका पारा सातवें आसमान पर था। जैक निकालना आता नहीं था और इस सुनसान जगह पर कोई परिंदा भी नहीं था।
उन्होंने झुंझलाकर पास के एक खंभे पर लगे मैकेनिक के नंबर पर कॉल किया।
“हेलो, मेरी गाड़ी खराब है। हाईवे माइलस्टोन 14 पर 10 मिनट में बंदा भेजो और सुनो, लेट हुआ तो दुकान सील करवा दूंगी। डीएम बोल रही हूं।”
15 मिनट बीत गए। नेहा घड़ी देख-देख कर पैर पटक रही थी। तभी एक पुरानी बुलेट की आवाज आई।
टुक टुक टुक…
एक लड़का आया, लेदर जैकेट, चेहरे पर काला हेलमेट। उसने बाइक रोकी और बड़े इत्मीनान से स्टैंड लगाया। उसकी रफ्तार में कोई हड़बड़ी नहीं थी, जैसे उसे डीएम की धमकी का कोई असर ही ना हो।
अतीत का सामना
नेहा चिल्लाई, “तुम्हें 10 मिनट कहां था? 20 मिनट हो गए हैं। वक्त की कीमत नहीं है तुम लोगों को?”
लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया। चुपचाप टूलकिट उठाई और टायर के पास बैठ गया। नेहा को यह खामोशी चुभ गई।
“मैं तुमसे बात कर रही हूं। बहरे हो क्या?”
लड़के ने पाना रेंज हाथ में लिया, काम रोका और धीरे से हेलमेट का पट्टा खोला। उसने सिर उठाया और हेलमेट उतार कर बाइक पर रख दिया। नेहा के गले में शब्द अटक गए।
वो चेहरा… सात साल, तीन शहर और ढेरों डिग्रियां सब कुछ धुंधला हो गया। सामने रोहन था। वही बेफिक्र आंखें, होठों पर वही हल्की सी तिरछी मुस्कान जो नेहा को कभी दीवाना बनाती थी और आज उसे चिढ़ा रही थी।
रोहन ने नेहा को देखा, फिर उसकी लाल बत्ती वाली गाड़ी को और फिर वापस नेहा को।
“वक्त की कीमत तो बहुत है, मैडम। बस उस वक्त में हम नहीं थे, इसलिए शायद तुम लेट हो गई।”
नेहा सन्न रह गई। रोहन ने तंज कसा था या सच बोला था, वो समझ नहीं पाई। रोहन टायर बदल रहा था। माहौल में तनाव इतना था कि चिंगारी भड़क जाए। नेहा को वहां खड़े रहना अजीब लग रहा था। पास ही एक छोटी सी चाय की टपरी खुली थी।
रोहन ने काम करते-करते बिना मुड़े कहा,
“ठंड बहुत है, वहां चाय अच्छी मिलती है। अदरक वाली, चीनी कम… जैसे तुम्हें पसंद थी।”
नेहा के कदम अपने आप उस टपरी की तरफ बढ़ गए। रोहन भी काम खत्म कर हाथ पोंछते हुए वहां आ गया। दोनों के हाथ में कुल्हड़ था, भांप उड़ रही थी।
सपनों का फर्क
नेहा ने अपनी डीएम वाली अकड़ वापस लाने की कोशिश की।
“यही करते हो अब? गैराज चलाते हो?”
रोहन ने चाय की चुस्की ली।
“हां, गैराज है, छोटा है, पर मेरा है। किसी के ऑर्डर नहीं सुनने पड़ते।”
नेहा ने तंज कसा,
“मैंने कहा था रोहन, बड़े सपने देखो। अगर उस दिन मेरी बात मान लेते तो आज इस ठंड में काले हाथ नहीं करने पड़ते। कहीं अच्छी ऐसी केबिन में होते।”
रोहन हंसा। एक ऐसी हंसी जिसमें दर्द कम और दया ज्यादा थी।
“नेहा, तुम ऐसी केबिन में बैठकर भी खुश नहीं हो। यह तुम्हारे चेहरे की झुर्रियां बता रही हैं। और मैं काले हाथ करके भी सुकून से सोता हूं। फर्क सपनों का नहीं, नींद का है।”
नेहा तिलमिला गई। एक मामूली मैकेनिक उसे जिंदगी का फलसफा सिखा रहा था। उसने पर्स निकाला और 500 के दो नोट निकाले।
“चाय के पैसे और उसकी मजदूरी। यह लो और ज्ञान अपने पास रखो।”
रोहन ने नोट देखे, फिर अपनी जेब से ₹10 का सिक्का निकाला और चाय वाले को देकर कहा,
“मेरा हो गया।”
फिर नेहा की तरफ मुड़ा,
“तुम्हारी गाड़ी का टायर बदला है, उसका चार्ज ₹100 है। लेकिन आज पुराने कस्टमर के लिए डिस्काउंट समझ लो।”
उसने नेहा के पैसे नहीं लिए। बुलेट स्टार्ट की और जाते-जाते बोला,
“टायर नया है मैडम, पर रास्ता वहीं पुराना मत चुनना। कांटे बहुत हैं।”
वो चला गया। नेहा हाथ में नोट लिए उस उड़ती धूल को देखती रह गई। उसकी जीत पर आज किसी ने करारा तमाचा मारा था।
अहंकार की चोट
नेहा ऑफिस पहुंची लेकिन दिमाग में रोहन अटका था। उसका वो मना करना, वो तेवर… नेहा का ईगो हर्ट हो चुका था। उसे लगा रोहन ने पैसे ना लेकर उसे नीचा दिखाया है।
दोपहर में उसने अपने पीए मिश्रा जी को बुलाया।
“हाईवे पर त्यागी ऑटो वर्क्स नाम की एक दुकान है। उसका मालिक कुछ लोन या सरकारी स्कीम के लिए अप्लाई कर रहा होगा। उसका एक 5 लाख का लोन तुरंत सेंक्शन करवाओ। और हां, यह पैसे सरकारी फंड से नहीं, मेरे पर्सनल अकाउंट से जाने चाहिए। उसे लगना चाहिए कि सरकार ने मदद की है।”
नेहा रोहन पर एहसान करके अपना पलड़ा भारी करना चाहती थी। वो उसे यह जताना चाहती थी कि देखो मैं देने वाली हूं और तुम लेने वाले।
शाम को मिश्रा जी वापस आए। हाथ में एक लिफाफा था।
“क्या हुआ? खुश हुआ वो?”
“मैडम, उसने लोन लेने से मना कर दिया। और यह लिफाफा आपके लिए भेजा है।”
नेहा ने लिफाफा खोला। उसमें ₹100 का एक पुराना मुड़ा-तुड़ा नोट था—वही टायर बदलने की मजदूरी। और एक पर्ची थी।
पर्ची पर लिखा था—
“गरीब हूं नेहा, भिखारी नहीं। अपनी कीमत चुकाने की आदत है, वसूलने की नहीं। यह ₹100 रख लो, अगली बार किसी गरीब की मदद कर देना मेरी तरफ से।”
नेहा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
“उसकी इतनी हिम्मत!”
टकराव और सच
रात के 9:00 बजे नेहा अपनी गाड़ी लेकर सीधे रोहन के गैराज पहुंची। रोहन शटर गिराने ही वाला था। नेहा गाड़ी से उतरी और सीधे उसके पास जाकर खड़ी हो गई।
“दिक्कत क्या है तुम्हारी रोहन?” नेहा चिल्लाई, “मैं मदद करना चाहती हूं। तुम्हें इस कीचड़ से निकालना चाहती हूं। और तुम हो कि अपना यह झूठा स्वाभिमान लेकर बैठे हो। क्यों?”
रोहन ने शटर का ताला लगाया और धीरे से पलटा। अब उसकी आंखों में वो नरमी नहीं थी।
“क्योंकि मुझे तुम्हारी दुनिया से नफरत है नेहा।”
“मेरी दुनिया?”
“हां, इस तुम्हारी दुनिया, जहां रिश्तों का भी टेंडर निकलता है। जहां इंसान की हैसियत उसकी गाड़ी और कुर्सी से नापी जाती है।”
“7 साल पहले तुम मुझे इसलिए छोड़ गई थी क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं थे तुम्हारे शौक पूरे करने के लिए। आज मैं खुश हूं तो तुम्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा। तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारे पैसों के नीचे दब जाऊं ताकि तुम्हें तसल्ली मिले कि तुम सही थी।”
नेहा की आंखों में आंसू आ गए। गुस्सा पिघलने लगा था।
“मैं बस… मैं बस तुम्हें खुश देखना चाहती थी रोहन। मैं आज भी अकेली हूं।”
नेहा की आवाज टूट गई। रोहन का चेहरा थोड़ा नरम हुआ। वो पास आया, पर छुआ नहीं।
“नेहा, जिस दिन तुमने हमको छोड़कर किसी और को चुना था, उसी दिन हम दोनों हार गए थे। तुम्हारे पास पावर है, बंगला है, दुनिया सलाम ठोकती है। यह तुम्हारी जीत है। मुबारक हो।”
रोहन ने अपने गैराज की तरफ इशारा किया, जहां एक पुराना खटिया और छोटा सा स्टोव रखा था।
“मेरे पास आज खाने के लिए दाल-रोटी है और कल की कोई फिक्र नहीं। यह मेरी जीत है।”
अंतिम वार और सच्चाई
माहौल एकदम शांत हो गया। दूर हाईवे से ट्रकों की आवाज आ रही थी। रोहन ने आखिरी वार किया, जो बेहद गहरा था।
“जाओ नेहा। तुम्हारी गाड़ी बड़ी है, रफ्तार तेज है। मेरा स्कूटर धीरे चलता है। अगर साथ चलेंगे तो या तो मैं कुचला जाऊंगा या तुम लेट हो जाओगी। और तुम्हें लेट होना पसंद नहीं।”
रोहन ने अपनी चाबी उठाई और अंधेरे में पैदल ही अपने घर की तरफ चल पड़ा। उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
नेहा वहां खड़ी रही। उसकी चमचमाती लाल बत्ती वाली गाड़ी गैराज के पीले बल्ब की रोशनी में अजीब लग रही थी। उसे आज समझ आया कि 7 साल पहले उसने रोहन को नहीं छोड़ा था, बल्कि अपने सुकून को छोड़ा था।
उसने गाड़ी स्टार्ट की। शीशे में रोहन की परछाई अब गायब हो चुकी थी। नेहा मुस्कुराई। एक हारी हुई मुस्कान, आंखों में आंसू थे, पर होठों पर एक कड़वा सच।
शायद कुछ जीतें हार से भी बदतर होती हैं।
गाड़ी आगे बढ़ गई, और पीछे रह गया बस धूल और धुआं।
सीख
दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि अगर हमने किसी के बुरे वक्त में उसका साथ छोड़ दिया, तो हमें भविष्य में उसकी सजा जरूर मिलती है। और असली जीत वही है, जिसमें सुकून हो, न कि सिर्फ रफ्तार।
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