आधी रात को गरीब ऑटो वाले ने करोड़पति की बेटी की जान बचाई, इंसानियत की मिसाल बनी कहानी

रात के सन्नाटे में जब लोग अपने घरों में चैन की नींद सो रहे थे, शहर की एक सुनसान सड़क पर एक लड़की अकेली चल रही थी। घड़ी में रात के 12:30 बज रहे थे। स्ट्रीट लाइट्स की हल्की रोशनी में उसकी परछाई डगमगा रही थी। उसके कपड़े फटे हुए थे, बाल बिखरे, पैरों से खून टपक रहा था। चेहरे पर खरोंचें और होंठ फटे हुए, आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे। वह बार-बार गिरती, उठती और फिर चल पड़ती। उस लड़की का नाम था सोनाली, उम्र सिर्फ 20 साल। मासूमियत उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी, मगर उस रात के दर्द ने उसकी आत्मा तक को झकझोर दिया था।

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कुछ घंटे पहले सोनाली अपने कॉलेज से लौट रही थी। दोस्तों के साथ ग्रुप प्रोजेक्ट में देर हो गई थी। उसने जल्दी घर पहुंचने के लिए शॉर्टकट लिया, लेकिन वही शॉर्टकट उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा दुःस्वप्न बन गया। अंधेरी गली में चार लड़कों ने उसे घेर लिया, उसका पर्स, मोबाइल और जेवर छीन लिए। उसके साथ मारपीट की और जमीन पर धक्का देकर भाग गए। सोनाली दर्द से तड़पती रही, चिल्लाती रही, लेकिन वहां कोई मदद को नहीं आया। किसी तरह वह संभलकर सड़क तक पहुंची और अस्पताल जाने की कोशिश करने लगी, मगर कोई गाड़ी नहीं रुकी। कभी-कभी कोई आदमी गाड़ी धीमी करता, घूरता और चला जाता। इंसानियत कहीं नजर नहीं आ रही थी।

इसी बीच एक पुराना ऑटो उसके पास आकर रुका। ऑटो वाला राजू, उम्र करीब 35 साल, थका-हारा चेहरा, आंखों में सादगी। वह देर रात ड्यूटी खत्म करके घर लौट रहा था। उसने सोनाली को देखा और पूछा, “बेटी, यह हालत कैसे हुई? कहां जाना है?” सोनाली ने कांपती आवाज में कहा, “प्लीज मुझे अस्पताल पहुंचा दो, कोई मदद नहीं कर रहा।” राजू ने बिना देर किए ऑटो का दरवाजा खोला, “बैठो बेटी, भगवान का नाम लो, मैं तुम्हें अभी अस्पताल ले चलता हूं।”

राजू ने ऑटो तेज चलाया, बारिश की बूंदें गिर रही थीं, सड़क फिसलन भरी थी। लेकिन उसके मन में बस एक ही सोच थी—इस बेटी को बचाना है। अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टरों ने सोनाली को इमरजेंसी वार्ड में लिया। डॉक्टर ने पूछा, “आप कौन हैं इनके?” राजू ने सिर झुकाकर कहा, “मैं तो बस मदद करने वाला हूं।” पुलिस आई, सोनाली ने सब बता दिया—कैसे बदमाशों ने उसे लूटा, कैसे अकेला छोड़ दिया और कैसे राजू ने उसकी जान बचाई।

इसी बीच अस्पताल के गेट पर एक बड़ी चमचमाती कार रुकी। सूट-बूट पहने आदमी, बॉडीगार्ड्स और एक बुजुर्ग महिला उतरे। सोनाली ने देखा, वह उसके पिता थे—शहर के मशहूर करोड़पति विक्रम मल्होत्रा। विक्रम ने अपनी बेटी की हालत देखी, आंखें भर आईं। पुलिस इंस्पेक्टर ने बताया, “सर, आपकी बेटी पर हमला हुआ था, मगर शुक्र है कि यह ऑटो वाला समय पर मिल गया।”

विक्रम राजू के पास गए, “भाई, तुमने जो किया उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं। मैं करोड़पति हूं, लेकिन आज समझा कि अमीरी इंसानियत में होती है।” उन्होंने जेब से एक चेक निकाला, “यह लाखों रुपये हैं, इसे स्वीकार करो।” राजू ने हाथ जोड़कर कहा, “साहब, मैंने इंसानियत निभाई है, इसके लिए इनाम नहीं चाहिए। बेटी को सुरक्षित देखना ही काफी है।” सोनाली ने राजू का हाथ थाम लिया, “अंकल, प्लीज पैसे ले लीजिए, अगर आप ना होते तो मैं शायद जिंदा भी ना रहती।” राजू की आंखें भर आईं। उसने चेक लिया, मगर बोला, “यह रकम मैं अपनी झोपड़पट्टी की बच्चियों की पढ़ाई पर खर्च करूंगा, ताकि किसी और बेटी को आधी रात में अकेला ना भटकना पड़े।”

अगले दिन अखबारों में खबर छपी—आधी रात को गरीब ऑटो वाले ने करोड़पति की बेटी की जान बचाई। समाज में हलचल मच गई। लोग कहने लगे, “पैसे वाले तो मदद नहीं करते, यह गरीब ऑटो वाला फरिश्ता बन गया।” सोनाली के पिता ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “मेरी बेटी को बचाने वाला कोई करोड़पति नहीं, बल्कि एक साधारण ऑटो वाला है। आज मैं अपनी दौलत से ज्यादा उस इंसानियत पर गर्व करता हूं जो इस इंसान के दिल में है।”

कुछ हफ्तों बाद जब सोनाली ठीक हुई, तो उसने राजू को अपने घर बुलाया। वहां बड़ी दावत रखी गई थी। सोनाली ने मंच पर खड़े होकर कहा, “आज अगर मैं जिंदा हूं तो इस इंसान की वजह से। इन्होंने मुझे सिखाया है कि मदद करने के लिए अमीर होना जरूरी नहीं, बस दिल बड़ा होना चाहिए।” सारी भीड़ खड़े होकर ताली बजाने लगी। राजू की आंखों से आंसू बह निकले। इंसानियत की कीमत रुपयों से नहीं, दिल से चुकाई जाती है।