कहानी: अलीना की जंग

अफगानिस्तान में एक समय ऐसा था जब हालात बुरे थे। चारों ओर गोलियों की आवाजें गूंजती थीं, और लोग खौफ में जीने को मजबूर थे। इस कठिनाई के बीच एक 22 वर्षीय महिला, अलीना, अपने अपाहिज पति मुसिब की देखभाल कर रही थी। मुसिब एक बहादुर सिपाही था, जिसे एक जंग में गोली लगी थी। अब वह बिस्तर पर पड़ा था, और अलीना को उसकी देखभाल करने के अलावा कुछ नहीं सूझता था।

अलीना की दो छोटी बेटियाँ थीं, जो भूख से बिलकुल निढाल थीं। घर में खाने-पीने का सामान खत्म हो चुका था, और दवाइयों के पैसे भी नहीं थे। अलीना ने अपने पति की सेवा की, उसके जख्मों को साफ किया, और उसे खाना खिलाने की कोशिश की। लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। अलीना की उम्मीदें धीरे-धीरे खत्म हो रही थीं।

एक दिन, जब अलीना ने देखा कि हालात और भी बिगड़ गए हैं, उसने हिम्मत जुटाई और दवा लेने के लिए बाहर निकलने का फैसला किया। बाहर तालिबान की गश्त थी, और चारों ओर फायरिंग की आवाजें थीं। लेकिन अलीना का दिल सिर्फ अपने पति की सलामती के लिए दुआ कर रहा था। वह किसी तरह एक मेडिकल स्टोर तक पहुँची, लेकिन दुकानदार ने उसे दवा देने से मना कर दिया। उसने कहा, “पहले पिछला कर्जा चुकाओ, तब दवा मिलेगी।”

अलीना खाली हाथ लौट आई। उसकी आँखों में आँसू थे, और दिल में भारी खामोशी थी। वह सोचने लगी कि अगर उसने सब कुछ बेचकर दवा ले आई तो अपनी बेटियों को क्या खिलाएगी। वह थकी-हारी अपने पति के पास बैठ गई और कहा, “हम अकेले रह गए हैं। अब कोई नहीं जो हमारी मदद करे।”

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अलीना ने अपने पति के चेहरे को देखा, और उसके दिल में एक अजीब सा डर समा गया। वह जानती थी कि अगर मुसिब को कुछ हुआ, तो वह अपनी बेटियों के लिए क्या करेगी। उसने आसमान की तरफ हाथ उठाकर दुआ मांगी, “हे अल्लाह, हमारी मदद कर।”

अगले दिन, दरवाजे पर दस्तक हुई। डॉक्टर आया और बताया कि वह कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर जा रहा है। अलीना ने उसे कहा कि वह अपने पति के जख्मों की देखभाल करती रहे। डॉक्टर ने उसे ताकीद की, लेकिन अलीना के दिल में डर था।

एक दिन, अचानक शहर में एक ऐलान गूंज उठा कि जंग शुरू होने वाली है। अलीना ने अपनी बेटियों को उठाया और पड़ोसियों के साथ बेसमेंट में छिप गई। धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट ने सबको डरा दिया। कुछ समय बाद, जब सब कुछ शांत हुआ, अलीना ने हिम्मत जुटाई और घर लौट आई।

घर में धूल और मलबा फैला हुआ था। उसने मुसिब के पास जाकर उसके चेहरे से मिट्टी साफ की और उसकी आँखों में आई ड्रॉप्स डालने लगी। तभी एक टैंक उसके घर के सामने आकर रुका और धमाका हुआ। अलीना ने चीखते हुए अपनी बेटियों की तरफ दौड़ लगाई।

कुछ समय बाद, तालिबान के कुछ सिपाही उसके घर में दाखिल हुए। उन्होंने मुसिब को देखा, लेकिन उसे छोड़ दिया। अलीना को लगा कि अब वह सुरक्षित है, लेकिन बाहर की दुनिया उसके लिए और भी खतरनाक हो गई थी।

एक रात, जब अलीना ने खुद को संभालने की कोशिश की, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। एक सिपाही आया और उसके सामने पैसे फेंककर चला गया। अलीना ने सोचा कि अब उसे अपनी बेटियों के लिए कुछ करना होगा। उसने पैसे लेकर बाजार जाकर खाना और दवा खरीदी।

कुछ दिन बाद, वही सिपाही फिर आया, लेकिन इस बार उसकी आँखों में कोई भूख नहीं थी। अलीना ने उसे अंदर बुलाया। दोनों के बीच खामोशी का एक अजीब एहसास था। अलीना ने महसूस किया कि वह सिपाही, जिसका नाम हुसैन था, उसके लिए एक नया एहसास लेकर आया था।

हुसैन ने बताया कि उसके माँ-बाप मारे गए थे और उसे बचपन से ही जुल्म सहना पड़ा। अलीना की आँखों में आँसू आ गए। वह समझ गई कि दोनों की जिंदगी में दर्द एक जैसा है।

एक दिन, अलीना ने अपने पति मुसिब को एक राज बताया। उसने कहा, “जब मैं मां बनने वाली थी, तो मैंने उस बच्चे को गवाने की कोशिश की। लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि कमी मुझमें नहीं, तुममें थी।” तभी मुसिब ने हल्की सी हरकत की। अलीना ने देखा कि मुसिब होश में आ चुका है।

मुसिब ने गुस्से में अलीना को पकड़ लिया। अलीना ने अपने बचाव में चाकू उठाया और उसे मार दिया। अब वह आजाद थी। उसने अपनी आँखों में सुकून पाया।

अलीना ने महसूस किया कि अब उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं। उसने खुद को पहचान लिया था। यह कहानी केवल अलीना की नहीं, बल्कि हर उस औरत की है जो जुल्म सहते-सहते खुद के लिए खड़ी होना सीख लेती है। यह संदेश है उन सब मर्दों के लिए जो समझते हैं कि औरत कमजोर है। नहीं, अगर आप उसे मोहब्बत देंगे, तो वह आपको 10 गुना ज्यादा प्यार देगी।