उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे की हिला देने वाली कहानी: एक मजदूर मां, एक निर्दयी पति और एक किसान का दिल पिघला देने वाला फ़ैसला!

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले में हुई यह घटना सुनकर हर किसी की आंखें नम हो जाती हैं। यह कहानी है मधु नाम की एक महिला मजदूर की — जो अपनी गोद में आठ महीने की बच्ची को लेकर रोज़ काम की तलाश में निकलती थी। किस्मत इतनी बेरहम थी कि न घर में ठिकाना था, न बाहर कोई सहारा। लेकिन इस दर्दभरी कहानी में उम्मीद की एक किरण भी थी — एक किसान रवि, जिसने पहले तो मधु को ठुकरा दिया, लेकिन बाद में वही उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी ताकत बन गया।

रवि, जो तीन साल सऊदी अरब में काम करने के बाद अपने गांव लौटा था, नर्सरी का कारोबार शुरू करने वाला था। उसे मजदूरों की ज़रूरत थी। राजस्व चौक पर मजदूर ढूंढते हुए उसकी नजर एक जवान और खूबसूरत महिला पर पड़ी — मधु। पहले तो रवि ने उसे साथ ले जाने का फैसला किया, लेकिन जैसे ही उसने देखा कि मधु की गोद में एक नन्ही बच्ची है, उसने झट से मना कर दिया। मधु वहीं चौक पर बैठी रह गई, आंखों में आंसू और चेहरे पर निराशा के बादल।

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अगले दिन रवि दोबारा मजदूर लेने आया — और इस बार उसने मधु को मौका दे दिया। खेत में पहुंचकर मधु ने जो मेहनत दिखाई, उसने सबको हैरान कर दिया। बाकी महिलाएं 50 थैलियां भरतीं, तो मधु 60 से ज्यादा! बच्चे को पास लिटाकर, बिना किसी शिकायत के काम करती रही। बच्ची जब रोने लगी, तो रवि खुद उसे गोद में उठाकर झुलाने लगा। उस दृश्य को देखकर बाकी मजदूर भी भावुक हो गए।

धीरे-धीरे रवि और मधु के बीच बातचीत बढ़ने लगी। रवि को पता चला कि मधु का पति शराबी है, जो उसे मारता-पीटता है, गालियां देता है और नन्ही बच्ची की परवाह तक नहीं करता। मजबूर होकर मधु अपने मायके लौट आई थी, जहां बूढ़ी मां के साथ किसी तरह गुजारा कर रही थी। काम की तलाश में जब भी बाहर जाती, लोग बच्चे की वजह से उसे काम पर रखने से मना कर देते। लेकिन रवि ने उसमें एक सच्ची मेहनतकश औरत देखी — जिसने जिंदगी की हर मार को हिम्मत से झेला।

रवि उसे रोज़ काम पर बुलाने लगा। अब वह मधु की बच्ची के लिए खिलौने, चिप्स, फ्रूटी और समोसे तक लाता। मजदूरों में वह सबसे ज्यादा मेहनती थी और रवि के दिल में धीरे-धीरे उसके लिए इज्जत के साथ एक अपनापन पनपने लगा।

लेकिन किस्मत ने फिर करवट ली। एक शाम मधु नर्सरी पहुंची तो आंखों में आंसू थे। उसने रवि से कहा, “मैं अब यहां काम नहीं कर पाऊंगी। मेरा पति कल आया था… उसने मुझे मारा, गालियां दीं और कहा कि मैं यहां गलत काम करती हूं।” यह सुनकर रवि का खून खौल उठा। उसने मधु को समझाने की कोशिश की, लेकिन तभी नर्सरी पर उसका पति आ धमका।

वह मधु को गालियां देने लगा, “यहीं आती है न तू धंधा करने?” — और फिर उसका हाथ पकड़कर घसीटने लगा। मधु ज़मीन पर गिर गई, बच्ची ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। तभी रवि आगे बढ़ा, उसकी आंखों में आग थी। उसने उस शराबी को रोका और गरजते हुए कहा, “बस बहुत हुआ! अब ये तेरे साथ नहीं जाएगी। अगर एक कदम भी आगे बढ़ा तो पुलिस में दूंगा!”

भीड़ इकट्ठी हो गई। महिलाएं मधु को संभालने लगीं। रवि ने बच्ची को गोद में लिया और कहा, “अब डरने की ज़रूरत नहीं। यह नर्सरी अब तुम्हारा घर है।”

गांव में लोग कहते हैं, उस दिन से मधु ने दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह आज भी रवि की नर्सरी में काम करती है — और लोग जब पूछते हैं कि वह कौन है, तो रवि मुस्कुराकर कहता है, “मेरे खेत की सबसे मजबूत जड़।”

यह कहानी सिर्फ एक महिला मजदूर की नहीं, बल्कि उस हर औरत की आवाज़ है जिसे समाज ने कमजोर समझा। और यह उस आदमी की मिसाल भी है जिसने दिखाया — असली मर्द वह नहीं जो डराए, बल्कि वह जो किसी की टूटी ज़िंदगी को सहारा दे।